शाश्वत सत्य ‘मृत्यु’ की विभिन्न अवधारणाएं

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
16-04-2020 03:10 PM
शाश्वत सत्य ‘मृत्यु’ की विभिन्न अवधारणाएं

धर्म और विज्ञान दो बिल्कुल अलग चीजें हैं। लेकिन कुछ आध्यात्मिक सच दोनों में मिलते हैं। हम मरते क्यों हैं, इस सवाल का जवाब दोनों देते हैं। विज्ञान का जवाब भौतिक अनुभवों से प्राप्त जीवन के तंत्र पर आधारित होता है। धर्म इस बारे में अलग व्याख्या देता है क्योंकि मृत्यु का प्रश्न रहस्य के परदों में छिपा है। उसके अनुसार जो हम नहीं जानते और कभी-कभी जो हम नहीं जान सकते, इसलिए इस ‘विषय पर विश्वास’ का भरोसा करना होगा। धीरे-धीरे लोगों ने अपने हिसाब से मृत्यु के बारे में सोचना शुरू किया और यह ईश्वर के हाथ से बाहर चला गया। इस अभियान में गैलिलियो (Galileo) की प्रमुख भूमिका थी। यह तथ्य निकलकर आया कि मृत्यु का कारण ईश्वर की मर्जी नहीं है, इसे रोकने के लिए कुछ कोशिशें की जा सकती हैं। पेन्सिलीन , सी-सेक्शन्स और रोग प्रतिरोधक टीकों की खोज के साथ बहुत हद तक उस मृत्यु पर काबू पाया गया। जो अतीत में दैवीय प्रकोप कहा जाता था। कुल मिलाकर लोगों ने महसूस किया कि ज्यादातर मामलों में मौत को रोका जा सकता था। लेकिन बचाव से पहले यह जानना जरूरी था कि लोग मरते क्यों हैं। हमें बीमारी, आघात, विकास और बुढ़ापे को समझना होगा। प्रार्थना से मृत्यु नहीं रुकती। सवाल यह है कि हर व्यक्ति नश्वर है, तो हम सबको मरना क्यों है। इस सवाल का धर्म में जवाब यह है कि बाइबिल के अनुसार आदम और ईव (Adam and Eve) को ईश्वर के आदेश के विरुद्ध पाप करने के जुर्म में मौत की सजा दी गई थी। उनके वंशज होने के कारण हम उस श्राप का दंड भुगत रहे हैं। चलो मान लेते हैं, लेकिन फिर जानवर क्यों मरते हैं। पेड़ भी बूढ़े होकर मर जाते हैं, आखिर क्यों। हो सकता है कि सबसे सुरक्षित जवाब यह है कि जिसने भी ज्ञान का स्वाद चखा, उसके लिए ईश्वर ने मौत तय कर दी।

इस्लाम में जीवन को एक प्रयोग और मौत को उसका अंत बताया गया है। ईसाई धर्म में भी फैसले के दिन कयामत के दिन की बात मानी जाती है। इस तरह इस्लाम और क्रिश्चियन धर्म में मौत के बाद दूसरी दुनिया के विवरण मिलते हैं। इसी तरह के कई धर्म मिलते हैं। नोर्स (Norse) पुराणों में जो युद्ध में मारे गए उन वीरों को मौत के बाद वाल्हाला यानि महान लोगों के चिर शांति भवन में ओडिन (Odin)(सबसे बड़े ईश्वर और कवि) के साथ रखा जाएगा। ग्रीक पुराणों के अनुसार अच्छी आत्माओं को इलीसियम (ELYSIAN FIELDS/ELYSIUM) में जगह मिलती थी। बौद्ध और हिन्दु धर्म में दूसरी दुनिया को लेकर बिलकुल अलग धारणाएं हैं। वे मौत को एक परीक्षा का अंत मानते हैं।जिसके बाद पुनर्जन्म होता है।मनुष्य के अगले जन्म में जीवन उसके पिछले जन्म के कर्मों पर निर्भर करता है। जब कोई परीक्षा से ऊपर उठ जाता है, तब वह आजाद हो जाता है, उसे निर्वाण मिल जाता है।

उपनिषदों में लिखे वेदांत दर्शन में इस बारे में एक अच्छा उदाहरण दिया गया है, यहां ईश्वर दुनिया से ऊपर नहीं है, सर्वव्यापी यानी ईश्वर ही दुनिया है और सब कुछ ईश्वर में समाहित है। मुक्त होने का मतलब है कि व्यक्ति और बाकी सभी चीजें एक ही धागे से बनी हैं। जीवन जिसके बारे में अक्सर हम सोचते हैं कि तुम और मैं के बीच बटवारा या एक बनावट और दूसरी केवल कुछ तरकीबें हैं जो हम अपने साथ चलते हैं, यह मानते हुए कि हम ईश्वर और सच्चाई का सही स्वभाव समझते हैं। हम सोचते हैं कि हम इसलिए मरते हैं क्योंकि ईश्वर अपने साथ लुका-छिपी का खेल खेलता है। लेकिन हम कभी नहीं मरते, हम सिर्फ ईश्वर की लहर में गिर पड़ते हैं। कुछ क्रिश्चियन जीसस को संबोधित इन शब्दों को पहचानेंगे – एक लकड़ी के टुकड़े को तोड़ो, और मैं वहां हूं, पत्थर उठा दो, तुम मुझे वहां पाओगे।

मृत्यु का उद्देश्य
मृत्यु का उद्देश्य अगली पीढ़ी के लिए जगह बनाना है। यह दुनिया की सभी जातियों, नस्लों में होता है। यहां तक कि हजार वर्ष जी चुके पेड़ की भी एक दिन मृत्यु होती है। विटामिन और डॉक्टर इंसान को कुछ साल और जीने का मौका देते हैं, इससे ज्यादा नहीं। बुढ़ापे के साथ-साथ मनुष्य का शरीर ढलने लगता है। जीवन और मृत्यु के उद्देश्य के बारे में जानना ऐसे ही है जैसे यह पूछना कि पहाड़ और समुद्र के होने का क्या उद्देश्य है। इसके जवाब के लिए इतिहास में पीछे लौटें जब शिकार ही आदिमानव का मुख्य भोजन था। कबीले के बूढ़े लोगों को पीछे छोड़ दिया जाता था क्योंकि वह आगे जाने में सक्षम नहीं थे। आधुनिक समय में मौत का कारण शरीर के अंगों का तकनीकी रूप से काम करना बंद कर देना है न कि किसी दैवीय कारण से। अगर हम शरीर के सभी अंगों को हमेशा चुस्त-दुरुस्त रखें तो अमरत्व असंभव नहीं रह जाएगा।

मृत्यु का उद्देश्य है थकी हुई पुरानी जर्जर प्रजातियां समाप्त होकर नयी प्रजातियों को पनपने – आगे बढ़ने का मौका देना है।
अद्वैत वेदांत में मृत्यु को तीन कोणों से देखा जा सकता है-
1. पूरे सकल शरीर की मृत्यु
2. सूक्ष्म शरीर की मृत्यु
3. कोई मौत नहीं

हम सब जानते हैं कि मौत के बाद शरीर का वर्तमान स्वरूप हमेशा के लिए खत्म हो जाता है और वापस अपने मूल रूप वेदांतिक व्याख्या अनुसार मूल तत्वों में बदल जाता है जो बाद में राख, मिट्टी, पौधे, कीड़े का रूप ले लेते हैं। वेदांत स्थूल और सूक्ष्म शरीर के बीच की पहचान बताता है जो जीवन और मृत्यु की एकदम अलग परिप्रेक्ष में व्याख्या करता है। हम ऐसा भी मानते हैं कि पुनर्जन्म होता है। तो एक शरीर की मौत के बाद भी कुछ बचा रहता है जो नए शरीर में स्थापित हो जाता है। यह पुराना शरीर नहीं हो सकता, जोकि विघटित हो गया बल्कि यह सूक्ष्म शरीर है, जिसके पास इंद्रियों की शक्तियां (खुद इंद्रियां नहीं बल्कि उनकी सूक्ष्म शक्तियां)हैं, मस्तिष्क (भाव, बुद्धि, स्मृति और विचार), काम करने वाले अंगों की शक्तियां (उदाहरण के लिए बोलने की क्षमता,समझने या चलने की क्षमता) और शारीरिक कार्य करने की शक्तियां ( उदाहरण के लिए श्वसन,प्रसार और पाचन)।

समकालीन भाषा में कहें तो मृत्यु के साथ हार्डवेयर (HARDWARE) के टुकड़े हो जाते हैं और सॉफ्टवेयर (SOFTWARE) बचा रहता है हालांकि थोड़े घटे हुए रूप में। इस कमी का मतलब है लेन देन संबंधी (TRANSACTIONAL) स्मृति-सारे डाटा का सफाया हो जाता है। परिचालन व्यवस्था बची रहती है। जिससे हमें जरूरी डाटा को फिर से याद करने में मदद मिलती है। ज्यादातर लोगों को पिछले जन्म की याद नहीं होती। अपने नये अवतार में भी हममें तुरंत ये सारी क्षमताएं होती हैं। उन्हें चालू करना होता है। उन सारे कामों का सार बचा रहता है, एक तरह का सूक्ष्म शरीर का खाका मात्र। क्या इसका ये मतलब है कि स्थूल शरीर की मृत्यु हो जाती है और सूक्ष्म शरीर अमर है? नहीं, दोनों की मौत निश्चित है। वेदांत में हम ये मानते हैं कि एक बिन्दु पर एक एक करके सभी एकल शरीरों का अंत हो जाता है। जीवन का अंत भी किसी बिन्दु पर हो जाता है। इसे प्रलय कहते हैं जिसमें सारी सृष्टि अपने सूक्ष्म तत्वों में कुछ मिलियन वर्षों के लिए लुप्त हो जाती है। इस प्रलय में सूक्ष्म शरीरों की भी मृत्यु हो जाती है। यहां हमें यह तय करना होगा कि वेदांतिक अर्थ में वास्तव में मृत्यु क्या है? मृत्यु की जगह हमें कहना चाहिए रूपांतरण। एक रूप का दूसरे रूप में बदल जाना। वेदांत में रूपांतरण का स्थान है। वेदांत ये दावा करता है कि यहां एक मूल अभौतिक सिद्धांत है जो सारे मिथ्या प्रकारों को रेखांकित करता है, और जो सबसे अधिक सूक्ष्म है। ये सिद्धांत ना तो रूप है ना मिथ्या, ये सत्य है। इस सत्य सिद्धांत को ब्राह्मण कहते हैं। ब्राह्मण वो सिद्धांत है जो ये प्रगट करता है कि अस्तित्व ही अद्वैत है। अगला प्रश्न है क्या ब्राह्मण की मौत होती है? उपनिषद के अनुसार ब्राह्मण सनातन है। सारे रूप अन्य रूपों की तरह मृत्यु को प्राप्त होंगे , लेकिन वे रूप जो ब्राह्मण हैं, कभी नहीं मरते।

पुनर्जन्म
पुनर्जन्म की अवधारणा मानवता के जन्म और उसके भाग्य को लेकर बहुत आकर्षक व्याख्या करती है। इसे न पूर्वी क्षेत्रों के और नये जमाने के आध्यात्म ने स्वीकार किया है बल्कि बहुत सारे ऐसे लोगों ने भी जो ऐसी गूढ़ रुचियों और प्रतिबद्धताओं में भाग नहीं लेते। जीवन के अर्थ समझने के लिए ये जानना कितना रोचक है कि इस जीवन से पहले न जाने कितने जीवन जीए और जाने कितने आगे जीने हैं। एक तरफ पुनर्जन्म बहुत सूकून भरा जरिया है , खासतौर से उनके लिए जो अपनी अंतरआत्मा की आवाज पर मुक्ति चाहते हैं। यह इस बात का आश्वासन देती है कि व्यक्ति का जीवन अगले जन्मों में भी चलता रहेगा और इस तरह मुक्ति का एक और नया मौका भी मिल जाएगा। पुनर्जन्म को आज इतने ज्यादा लोगों द्वारा स्वीकार किए जाने का कारण यह है कि ये लोगों के बीच के मतभेदों को दूर करता है। पूर्वी धर्म इन मतभेदों के लिए पूर्व जन्मों को कारण बताते हैं, अच्छा या बुरा उसके परिणाम व्यक्ति अगले जन्म में भुगतता है। इसलिए पुनर्जन्म एक पूर्णत उपयुक्त मार्ग है। किसी को उसके कर्मों के आधार पर सम्मानित या प्रताड़ित करने का, बिना किसी ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करते हुए।

अद्वैत वेदांत
हम मानव को मरते और जन्म लेते देखते हैं। लेकिन हम ये नहीं देखते कि मरने के बाद होता क्या है? 90 प्रतिशत दार्शनिक सिद्धांतों ने कोई ऐसा संतोषजनक स्प्ष्टीकरण इस घटना को लेकर नहीं दिया है। केवल अद्वैत में साहस के साथ इस सवाल का सामना किया और उसका जवाब भी ढूंढा। जब जन्म मृत्यु और पुनर्जन्म एक दृष्टिकोण से सब सच्चे हैं, अद्वैत के अनुसार ये सब बातें वास्तविक नहीं हैं। जैसे जैसे आप आत्मा और अनआत्मा के बीच के फर्क को समझेंगे, आपकी जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म से जुड़ी समस्याएं सच साबित हो जाएँगी। सब जीव, जगत और ईश्वर अपने में एकात्म हो जाते हैं, तब जन्म और मृत्यु कहां हैं? जीवन और मृत्यु अलग चरण हैं और अपने सार नहीं हैं। जीव का सार संचेतना है। ये जन्म से लेकर मृत्यु तक बहती है। मृत्यु को अब शरीर की मृत्यु के रूप में देखना चाहिए ना कि संचेतना की। अदृश्य को दृश्य की रोशनी में देखना चाहिए। जन्म और मृत्यु केवल बदलाव हैं।अगर एक जीव पैदा होता है तो ये नहीं समझना चाहिए कि ऐसा पहले कभी नहीं होना चाहिए। इसी तरह जब एक व्यक्ति की मौत होती है तो ये नहीं सोचना चाहिए कि पूरी तरह से खत्म हो गया है। वो वहां है पर सूक्ष्म रूप में। ये केवल शरीर है जो मरता है, जब जीव उसे छोड़ देता है, जीव नहीं मरता ऐसा उपनिषद में कहा गया है। लेकिन जीव के दृष्टिकोण से जन्म और मृत्यु वास्तविक नहीं है। तो ये जन्म और मृत्यु के विचार एक सपने की तरह हैं जिनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं है। फर्क सिर्फ हमारे नजरिए में है।

संदर्भ
1. https://www.psychologytoday.com/us/blog/statistical-life/201703/why-do-we-die
2. https://www.quora.com/What-is-the-purpose-of-death
3. https://www.advaita-vision.org/death-and-deathlessness/
4. https://www.comparativereligion.com/reincarnation.html
5. http://advaitavedanta.in/birth_death_english.aspx
चित्र संदर्भ:
1.
मुख्य चित्र में मृत्यु के उपरान्त जीवन की अवधारणा प्रस्तुत की गयी है।
2. द्वितीय चित्र में मृत्यु को अटल सचाई के रूप में प्रदर्शित किया है जो हर पल दबे पाँव हमारे पीछे होती है।
3. अंतिम चित्र में मृत्यु और अगले पीढ़ी के सम्बन्ध को दिखने के लिए पार्श्व में बंजर भूमि के साथ कपाल का चित्र है।

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