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वर्तमान समय में इंटरनेट (Internet) हम सभी के जीवन का मुख्य हिस्सा बन गया है। दुनिया भर की सूचनाएं बस कुछ मिनटों में ही इंटरनेट के माध्यम से हम तक पहुंच जाती हैं। किंतु क्या आपने कभी यह सोचा कि आखिर कैसे भारत वैश्विक इंटरनेट से जुडा हुआ है? दरअसल इस जुडाव का कारण अन्तःसमुद्री संचार केबल (submarine communications cable) है, जो भारत को वैश्विक इंटरनेट से जोडे हुए है। अन्तःसमुद्री संचार केबल भूमि आधारित स्टेशनों के बीच समुद्र तल पर बिछायी गयी केबलें है, जो समुद्र और समुद्र के हिस्सों में दूरसंचार संकेतों (telecommunication signals) को ले जाने का कार्य करती है। 99% से अधिक इंटरनेट ट्रेफिक (traffic) उच्च गुणवत्ता वाले फाइबर ऑप्टिक (fiber optic) केबल पर ही निर्भर करता है जो विभिन्न देशों को जोडता है तथा आम तौर पर समुद्र के तल पर बिछा होता है। ट्रेफिक का केवल एक छोटा हिस्सा उपग्रहों (satalite) के माध्यम से जाता है। आधुनिक केबल आमतौर पर लगभग 2.5 सेंटीमीटर व्यास तथा 1.4 टन प्रति किलोमीटर वजन के होते हैं। पहली अन्तःसमुद्री केबल 1850 की शुरूआत में टेलीग्राफी (Telegraphy) के लिये बिछायी गयी थी। विलियम कुके और चार्ल्स व्हीटस्टोन ने 1839 में जब अपने कार्यकारी टेलीग्राफ को पेश किया तब अटलांटिक महासागर में अन्तःसमुद्री संचार केबल का विचार सोचा जाने लगा। इसके बाद 1842 सैमुअल मोर्स ने न्यू यॉर्क हार्बर के पानी में टेरेड हेम्प (tarred hemp) और भारतीय रबर (rubber) से इंसुलेडेट (Insulated) तार को डूबा दिया और इसके द्वारा टेलीग्राफ किया। एक लंबी अन्तःसमुद्री संचार तार की सफलता हेतु तार को आवरित करने तथा पानी में विद्युत प्रवाह को रोकने के लिए एक अच्छा इन्सुलेटर आवश्यक था तथा इसके लिए 19 वीं सदी की शुरुआत में भारतीय रबर का उपयोग किया गया। 1842 में ऊष्मा से पिघलने वाले तथा आसानी से उपयोग किये जाने वाले एक अन्य इंसुलेटिंग गम का उपयोग किया गया। 1845 में इंसुलेटर के रूप में गुट्टा-परचा (gutta-percha - विभिन्न एशियाई पेड़ों के लेटेक्स से उत्पादित रबर जैसा गोंद) का उपयोग किया गया।
अन्तःसमुद्री संचार केबल नेटवर्क (Network) को विभिन्न सरकारों और विशाल कंपनियों द्वारा बिछाया गया है जो इनका रखरखाव भी करते हैं। निवेश की बड़ी लागत के कारण इस तरह की परियोजनाएं आमतौर कई कंपनियों द्वारा की जाती हैं। कंपनी द्वारा अधिकृत नेटवर्क के आकार को अलग करने के लिए तीन स्तर बनाए गये हैं। पहला टियर (Tier) -1, दूसरा टियर -2 तथा तीसरा टियर -3। टियर -1, वो कंपनियाँ हैं जिनके पास एक वैश्विक नेटवर्क है जो दुनिया भर में कई केबलों को जोड़ता है। वे दूसरों को शुल्क दिए बिना इंटरनेट पर किसी भी गंतव्य तक पहुंच प्रदान करने में सक्षम होते हैं। वे आमतौर पर अन्य टियर -1 कंपनियों के नेटवर्क का उपयोग बिना किसी शुल्क के करते हैं। यह नेटवर्क इंटरनेट की रीढ़ के रूप में कार्य करता है। टियर-2 ऐसी कंपनियां हैं जिनके पास एक क्षेत्रीय नेटवर्क है और आमतौर पर एक या एक से अधिक टियर -1 नेटवर्क से जुड़ी हैं। टियर -1 कंपनी के नेटवर्क तक पहुंचने के लिए उन्हें भुगतान करना होता है। टियर-3 इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISPs-आईएसपी) हैं जिनसे हम अपने ब्रॉडबैंड कनेक्शन (broadband connections) खरीदते हैं। ये स्तर अंत में उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट से जोड़ता है। भारत मुंबई, कोचीन, चेन्नई और तूतीकोरिन (Tuticorine) पर दुनिया से जुड़ा हुआ है। हमारे सभी अंतर्राष्ट्रीय इंटरनेट ट्रैफ़िक इन पोर्ट (International Internet Traffic In Port) शहरों से होकर जाते हैं। वह स्थान जहाँ अंतर्राष्ट्रीय केबल भूमि से जुड़ते हैं, लैंडिंग स्टेशन (landing stations) कहलाते हैं। भारत में 3 लैंडिंग स्टेशन मुंबई, चेन्नई और कोचीन का स्वामित्व टाटा कम्युनिकेशंस (Tata Communications) के पास है तथा यह भारत की एकमात्र टियर -1 कंपनी हैं। टाटा कम्युनिकेशंस के BKC मुंबई लैंडिंग स्टेशन पर अन्तःसमुद्री केबल की बैंडविड्थ 3.6 Tbps के आस-पास हो सकती है। भारती एयरटेल 2 लैंडिंग स्टेशन चेन्नई और मुंबई में हैं। इसके अलावा रिलायंस ग्लोबलकॉम (Reliance Globalcom), सिफि टेक्नॉलोजिस (Sify Technologies) का एक-एक लैंडिंग स्टेशन मुंबई में और बीएसएनएल (BSNL) का तूतीकोरिन में है, जो श्रीलंका से जुडा हुआ है। पूर्व की ओर, केबल चेन्नई को सिंगापुर से जोड़ती है। पश्चिमी की तरफ मुंबई से हम संयुक्त अरब अमीरात से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं तथा दक्षिण की ओर हम दक्षिण अफ्रीका से आने वाली केबलों से जुड़े हैं। भारत में एक गैर लाभकारी सरकारी संगठन भी है जिसे नेशनल इंटरनेट एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया (National Internet Exchange of India-NIXI) कहा जाता है, यह भारतीय इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को विदेशी सर्वर (server) का उपयोग करने के बजाय एक दूसरे के नेटवर्क को प्रभावी तरीके से उपयोग करने की अनुमति देता है। इससे उपभोक्ताओं के लिए सेवा की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है और विदेशी एजेंसियों द्वारा डेटा के छीने जाने की संभावना भी कम हो जाती है।
भारत के भीतर कई नेटवर्क हैं, जिनमें से एक है रेलटेल (RailTel) है। रेलटेल रेल मार्ग के मार्गों के साथ फाइबर ऑप्टिक केबल (fiber optic cables) बिछाने के लिए 2000 में शुरू की गई एक सरकारी परियोजना है। ये केबल 400Gbps तक की बैंडविड्थ (bandwidth) के लिए सक्षम हैं। इसके पास 30,000 किलोमीटर से अधिक का नेटवर्क है। 2014 में भारत ने प्रति माह 967 पेटाबाइट्स (petabytes) का इस्तेमाल किया था जो उसके बाद और प्रति वर्ष 33% की दर से बढ़ रहा है। पेटाबाइट्स कंप्यूटर (computer) और इसी तरह के इलेक्ट्रॉनिक (electronic) उपकरणों में माप की इकाई है। 1 पेटाबाइट्स = 1000 टेराबाइट्स (terabytes) या 1000 ट्रिलियन बाइट्स (trillion bytes) होता है। 2013 में एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल अंतरराष्ट्रीय बैंडविड्थ 33,900 जीबी प्रति सेकंड (Gbps) की है। हालाँकि लगभग 6,000 Gbps उपयोग करने के लिए तैयार हैं, जबकि केवल 1,110Gbps की खपत होती है। निश्चित रूप से यह आंकड़े अब तक बढ़ गए होंगे। वीडियो (Video) से लेकर फेसबुक (Facebook), ऑनलाइन बैंकिंग (online banking) आदि सभी के लिए हमें इंटरनेट की आवश्यकता होती है। अन्तःसमुद्री संचार केबल लैंडिंग स्टेशन सर्वर (server) के लेन (LAN port) पोर्ट में प्लग (plugged) की गयी होती हैं, यदि इस केबल को अनप्लग किया जाता हैं, तो भारत का वैश्विक इंटरनेट से जुडाव टूट जायेगा और हम इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हम अन्तः-समुद्री संचार केबल की भूमिका को अवश्य समझ ही गए होंगे। वर्तमान समय में कोरोना प्रकोप के कारण विश्व के कई क्षेत्रों की पूरी तरह से तालाबंदी कर दी गयी है। इस स्थिति में विभिन्न क्षेत्रों ने अपने कार्यों को इंटरनेट के जरिए घर से करना शुरू किया है। स्कूल की शारीरिक शिक्षा से लेकर डॉक्टरों के अपॉइमेंट्स (appointments) तक के हमारे दैनिक जीवन के अधिकांश पहलू कोरोना विषाणु के कारण ऑनलाइन (online) हो गए हैं जिसके कारण इंटरनेट की मांग में अचानक तेजी से वृद्धि हुई है। हालांकि इस मांग को पूरा किया जा सकता है किन्तु मांग में आयी अचानक वृद्धि ने इंटरनेट स्पीड (speed) अचंभित रूप से कम कर दिया है। कोरोना विषाणु केवल मानव स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि इंटरनेट को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।
संदर्भ:
1. https://www.mumbai-ix.net/blog/role-of-submarine-cables-for-growth-of-internet-in-india/
2. https://bit.ly/344ouPb
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Submarine_communications_cable#Early_history:_telegraph_and_coaxial_cables
4. https://www.quora.com/How-is-India-connected-to-the-internet
5. https://www.weforum.org/agenda/2020/03/will-coronavirus-break-the-internet/
चित्र सन्दर्भ:
1. prarang archive - modified
2. youtube.com - internet in india
3. youtube.com - internet underwater
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