त्वचा के लिए काफी लाभदायक हुआ करते थे पहले के प्राकृतिक गुलाल

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
09-03-2020 04:08 AM
त्वचा के लिए काफी लाभदायक हुआ करते थे पहले के प्राकृतिक गुलाल

होली का त्यौहार साल में ऐसे समय पर आता है, जब मौसम में बदलाव होता है, यह बदलाव अधिकांश रूप में वायरल बुखार और सर्दी का कारण बनता है। ऐसे में आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा निर्धारित प्राकृतिक गुलाल (यह रंग पारंपरिक रूप से नीम, कुमकुम, हल्दी, बिल्व और अन्य औषधीय जड़ी बूटियों से बने होते हैं) के साथ होली मनाने का एक औषधीय महत्व है।

होली के जश्न में गुलाल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बिना गुलाल के होली काफी रूखी सी लगती है, लेकिन यह रंग डालने की प्रथा कहाँ से विकसित हुई होगी? इस प्रश्न का जवाब एक किंवदंती से प्राप्त होता है, ऐसा माना जाता है कि एक बार भगवान कृष्ण ने अपनी माँ यशोदा से अपने सांवले रंग के बारे में शिकायत की और राधा का गोरा रंग होने के पीछे का कारण पूछा। और इस पर माँ यशोदा ने राधा पर रंग डाल दिया। इस प्रकार रंग के त्यौहार को होली के उत्सव के रुप में मनाया जाने लगा।

पहले के समय में, गुलाल को पेड़ों में लगने वाले फूलों (जैसे कि भारतीय प्रवाल वृक्ष) से तैयार किया जाता था, इनमें औषधीय गुण होते थे और ये त्वचा के लिए भी फायदेमंद होते थे। हालांकि समय के साथ, इन प्राकृतिक रंगों की जगह कृत्रिम रंगों ने ले ली है। ऐसे ही गुलाल के कई रंगों को प्राथमिक रंगों से मिलाकर प्राप्त किया जाता था। रंगों के कुछ पारंपरिक प्राकृतिक पौधों पर आधारित स्रोत निम्न हैं:
नारंगी और लाल :- पलाश या टेसू के पेड़, जिसे जंगल की लौ भी कहा जाता है, चमकीले लाल और गहरे नारंगी रंग के विशिष्ट स्रोत हैं। लाल रंग (Red powder) को सुगंधित लाल चंदन, सूखे हिबिस्कस के फूल, मजीठ के पेड़, मूली, और अनार जैसे स्रोतों से प्राप्त किया जाता है। वहीं हल्दी पाउडर के साथ चूना मिलाने से नारंगी पाउडर बनाया जा सकता है, ऐसे ही पानी में केसर उबालने से भी नारंगी रंग प्राप्त होता है।
हरा :- गुलमोहर के पेड़ की मेहंदी और सूखे पत्ते हरे रंग का एक स्रोत हैं। कुछ क्षेत्रों में, वसंत की फसलों और जड़ी बूटियों की पत्तियों को हरे रंग के रंगद्रव्य के स्रोत के रूप में उपयोग किया गया है।
पीला :- हल्दी पाउडर से पीले रंग को बनाया जा सकता है। कभी-कभी उपयुक्त रंग प्राप्त करने के लिए इसे चने या अन्य आटे के साथ मिलाया जाता है। साथ ही बेल फल, अमलतास, गुलदाउदी की प्रजातियाँ और गेंदा की प्रजातियाँ पीले रंग के वैकल्पिक स्रोत हैं।
नीला :- इंडिगो (indigo) का पौधा, भारतीय जामुन, अंगूर, नीले हिबिस्कस और जेकरांडा फूल होली के लिए नीले रंग के पारंपरिक स्रोत हैं।
मैजेंटा और बैंगनी :- चुकंदर मैजेंटा और बैंगनी रंग का पारंपरिक स्रोत है। रंगीन पानी तैयार करने के लिए अक्सर इन्हें पानी में प्रत्यक्ष रूप से उबाला जाता है।
भूरा :- चाय के सूखे पत्तों से भूरे रंग के पानी को बनाया जाता है।
काला :- अंगूर, आंवला के फल और वनस्पति कार्बन (लकड़ी के कोयले) से काले रंग का निर्माण किया जाता है।
वहीं रंगों का उचित उपयोग एक ऐसा वातावरण बनाने में मदद करता है जो व्यक्ति को खुश और आनंदित रख सकता है। रंग लोगों को खुशियों से जोड़ते हैं, इसलिए, रंग हिंदू संस्कृतियों और समारोहों का एक प्रमुख हिस्सा बन गए हैं। आइए जानें लाल, हरा, पीला, केसर, इत्यादि जैसे हिंदू समारोहों में इस्तेमाल होने वाले मुख्य रंगों के सांस्कृतिक महत्व के बारे में:
केसर - हिंदू धर्म में, केसर रंग एक उच्च दर्जा रखता है और अक्सर संत या सन्यासी द्वारा पहना जाता है। ये रंग आग का प्रतिनिधित्व करती है और जैसे आग सभी अशुद्धियों को जलाती है उसी तरह इस रंग को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। इस रंग को त्याग और मोक्ष से जोड़ा गया है और ये धार्मिक संयम का भी प्रतिनिधित्व करता है।
लाल - हिंदू धर्म में लाल रंग का उपयोग शुभ अवसरों जैसे कि बच्चे के जन्म, विवाह, त्यौहार और इत्यादि के लिए किया जाता है। विवाह के प्रतीक के रूप में, महिलाएं अपने बालों की मांग पर सिंदूर लगाती हैं और शादी में दुल्हन आमतौर पर लाल रंग की साड़ी पहनती है। लाल रंग को शक्ति के रंग के रूप में भी जाना जाता है।
पीला – पीला रंग को ज्ञान और बुद्धि का रंग माना जाता है। यह मानसिक विकास, क्षमता, खुशी, शांति और ध्यान का प्रतीक है। यह वसंत ऋतु का प्रतिनिधित्व करता है और मन को तरोताजा करता है। भगवान विष्णु की पोशाक का रंग भी पीला है जो उनकी बुद्धिमत्ता और ज्ञान का प्रतीक है। इसी कारण से, भगवान कृष्ण और गणेश भी पीले रंग के वस्त्र में चित्रित किए जाते हैं।
हरा - शांति और खुशी का प्रतीक होने के नाते, हरा रंग मन को स्थिर करता है। यह आंखों के लिए सुखदायक होता है और आत्मा को ताज़ा करता है।
सफेद - सफेद सात अलग-अलग रंगों का मिश्रण है, इसलिए इस रंग को कई गुणों का प्रतीक माना जाता है। सफेद रंग पवित्रता, शांति, स्वच्छता और ज्ञान, इन सभी का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं ज्ञान की देवी, सरस्वती को हमेशा सफेद कपड़े पहने, सफेद कमल पर बैठते हुए दर्शाया गया है।
नीला – आकाश, समुद्र, नदियों और झीलों में उच्च मात्रा में नीला रंग देखने को मिलता है। नीला रंग शक्ति, भव्यता, बहादुरी, स्थिर मन और चरित्र की गहराई का प्रतिनिधित्व करता है। भगवान कृष्ण और भगवान राम ने मानव जाति की रक्षा और बुराई को नष्ट करने के लिए अपना जीवन बिताया था, इसलिए उनका रंग नीला है।

संदर्भ :-
https://en.wikipedia.org/wiki/Gulal
https://en.wikipedia.org/wiki/Holi#Holi_colours
https://detechter.com/what-do-the-different-colors-in-hinduism-represent/
https://wou.edu/wp/exhibits/files/2015/07/hinduism.pdf
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