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महिलाएं समाज का एक अभिन्न अंग हैं, किंतु यदि प्राचीन काल की बात की जाये तो इस अवधारणा का अनुसरण प्रायः कम ही होता था। ऐसा शायद इसलिए भी है क्योंकि पहले के समय में महिलाओं को घर तक ही सीमित किया जाता था तथा समाज में पुरूषों की प्रधानता होती थी। ऐसे दौर में यदि एक ऐसे समाज की कल्पना की जाये, जहां समाज में पुरूषों की नहीं बल्कि महिलाओं की प्रधानता है, तो यह किसी आश्चर्य से कम नहीं होगा। किंतु 1905 में प्रकाशित हुई पुस्तक ‘सुल्ताना का स्वप्न’ (Sultana's dream) में ऐसे समाज की कल्पना की गयी है। सुल्ताना का स्वप्न एक अद्भुत कल्पित वैज्ञानिक (साइंस फिक्शन - Science fiction) उपन्यास या कहानी है जिसे कोलकाता की एक प्रगतिशील मुस्लिम महिला रुक़य्या सख़ावत हुसैन द्वारा लिखा गया था। इस कहानी ने पूरे साहित्यिक जगत को हिला दिया था। इसे एक नारीवादी काल्पनिक कहानी भी कहा जा सकता है।
रुक़य्या सख़ावत हुसैन अविभाजित बंगाल की एक मुस्लिम नारीवादी, सुप्रसिद्ध लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने लैंगिक समानता के संघर्ष में अपना भरपूर योगदान दिया जिसके लिए उन्हें आज जाना जाता हैं। अपने चारों ओर के वातावरण और रूढ़िवादी सामाजिक प्रथाओं का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा और यही कारण था कि वे तत्कालीन समाज में महिलाओं के उत्थान के लिए निरंतर प्रयास कर रही थीं। मुस्लिम लड़कियों को शिक्षित करने के लिए उन्होंने एक पाठशाला भी खोली। उन्होंने पुरुषों और महिलाओं के प्रति समान व्यवहार या समान अधिकारों की पेशकश की। वे जानती थीं कि, महिलाओं का अशिक्षित होना समाज में उनकी कमज़ोर आर्थिक स्थिति के लिए ज़िम्मेदार है, और इसलिए उन्होंने महिलाओं को समान रूप से शिक्षित करने की मांग की। पद्मराग, अबरोधबासिनी, मोतीछुर, नारीर आधिकार आदि उनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं।
उन्होंने शिक्षा को महिलाओं की मुक्ति का मुख्य केंद्र माना तथा कोलकाता में बंगाली मुस्लिम लड़कियों को शिक्षित करने के उद्देश्य से पहला विद्यालय स्थापित किया। अपनी मृत्यु तक, शत्रुतापूर्ण आलोचना और सामाजिक बाधाओं का सामना करने के बावजूद उन्होंने स्कूल चलाया। 1916 में, उन्होंने एक मुस्लिम महिला संघ की स्थापना की जो महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार के लिए प्रयासरत था। 1926 में, रुक़य्या ने कोलकाता में आयोजित बंगाल महिला शिक्षा सम्मेलन की अध्यक्षता की, जो महिलाओं के शिक्षा अधिकारों के समर्थन में महिलाओं को एक साथ लाने का पहला महत्वपूर्ण प्रयास था। अपनी मृत्यु तक वे महिलाओं की उन्नति के लिए विवादों और सम्मेलनों में व्यस्त थीं। उनके कार्यों की सराहना के लिए बांग्लादेश में हर साल 9 दिसंबर को रुक़य्या दिवस मनाया जाता है।
उनकी पुस्तक सुल्ताना का स्वप्न 1905 में ही मद्रास स्थित अंग्रेजी आवधिक-पत्रिका द इंडियन लेडीज़ मैगज़ीन (The Indian Ladies Magazine) में प्रकाशित हुई थी। इस कहानी में सुल्ताना नाम की महिला ने एक नारीवादी आदर्श राज्य की कल्पना की है। इस राज्य को स्त्रीदेश (Ladyland) कहा जाता है जहां सब कुछ महिलाओं के अधीन होता है। यहां पारंपरिक पर्दा प्रथा भी है किंतु यह प्रथा महिलाओं के लिए नहीं बल्कि पुरुषों के लिए है। महिलाओं को विद्युत उपकरणों तथा वैज्ञानिक तकनीकों की सहायता प्राप्त होती है जिससे वे बिना किसी श्रम के खेती और अन्य कार्य करने में सक्षम हैं। इसके साथ ही महिला वैज्ञानिकों ने ऐसे उपकरणों का भी आविष्कार कर लिया है जिससे वे सौर ऊर्जा का सही उपयोग और मौसम को नियंत्रित कर सकती हैं। यहां तकनीकी रूप से उन्नत भविष्य की कल्पना की गयी है जहां पुरूषों और महिलाओं की भूमिकाएं विपरीत हैं। इस समाज में पारंपरिक रूढ़िवादिताओं जैसे-पुरुषों में अधिक दिमाग होता है, और महिलाएं कमज़ोर होती हैं, आदि तर्कों को खारिज किया गया है। इस राज्य में क्योंकि महिलाएं प्रधान हैं इसलिए अपराध भी व्याप्त नहीं है। यहां प्रेम और सत्य ही धर्म हैं तथा ‘पवित्र संबंध’ ही व्याप्त हैं। लेखिका के अनुसार उनके पति, खान बहादुर सैयद सखावत हुसैन, एक सरकारी दौरे पर थे, तब उन्होंने यह कहानी मन बहलाने के लिए लिखी। उनके पति उनके प्रयासों की सराहना करते थे और उन्होंने ही लेखिका को अंग्रेजी में पढ़ने और लिखने के लिए प्रोत्साहित किया था। वे इस कहानी से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने लेखिका को इसे द इंडियन लेडीज़ मैगज़ीन में भेजने के लिए प्रोत्साहित किया जहां 1905 में पहली बार इस कहानी को प्रकाशित किया गया।
इस पूरी कहानी को आप निम्नलिखित लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं जोकि अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Sultana%27s_Dream
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Begum_Rokeya
3. https://bit.ly/2ucCSay
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.artsy.net/artwork/chitra-ganesh-sultanas-dream-2
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