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अपने घर को सजाने के लिए हम विभिन्न वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। इन वस्तुओं में फर्श पर बिछाने वाली कालीन या कारपेट (Carpet) भी शामिल है जिसका उपयोग प्रायः हर घर में किया जाता है। भारत में कालीन की बुनाई को सबसे पहले 11वीं शताब्दी के दौरान मुगल शासकों गज़नवी और गौरी के द्वारा पेश किया गया था। 16वीं शताब्दी की शुरुआत में भी ये निश्चित तौर पर मौजूद थी। मुगलों के संरक्षण में, भारतीय शिल्पकारों ने फारसी तकनीकों और डिज़ाइनों (Designs) को अपनाया। पंजाब में बुने गए कालीनों में मुगल वास्तुकला में पाए जाने वाले रूपांकनों और सजावटी शैलियों का उपयोग किया गया।
मुग़ल सम्राट अकबर ने अपने शासनकाल के दौरान भारत में कालीन बुनाई की कला शुरू करने के लिए स्वीकृति दी ताकि भारत में फारसी शैलियों की कालीनों का निर्माण किया जा सके। मुगल सम्राटों ने अपने शाही दरबार और महलों के लिए फारसी कालीनों का चुनाव किया। इस अवधि के दौरान, मुगल शासकों द्वारा फ़ारसी कारीगरों को भारत में लाया गया। प्रारंभ में, बुने हुए कालीनों में उत्कृष्ट फ़ारसी शैली का उपयोग किया जाता था जोकि धीरे-धीरे भारतीय कला के साथ मिश्रित होने लगा। इस प्रकार उत्पादित भारतीय मूल के कालीन विशिष्ट बन गए और धीरे-धीरे इस उद्योग में विविधता आनी शुरू हो गई तथा यह पूरे उपमहाद्वीप में फैल गया। मुगल काल के दौरान, भारतीय उपमहाद्वीप में बने कालीन इतने प्रसिद्ध हो गए कि उनकी मांग विदेशों में भी बढ़ गई थी।
भारत में प्रायः विशेष रूप से हस्तनिर्मित कालीन का बहुत अधिक चलन है। विदेशी खरीददारों और समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप, भारतीय कारीगर किसी भी डिज़ाइन और रंग में हस्तनिर्मित कालीन का उत्पादन कर सकते हैं। भारत में घरों के लिए कम, मध्यम और उच्च गुणवत्ता वाली हस्तनिर्मित कालीनों का उत्पादन व्यापक रूप से किया जाता है। कालीनों को बनाने के लिए भारतीय कारीगर विभिन्न धागों के सम्मिश्रण के साथ अनेक प्रकार के कच्चे माल का उपयोग करते हैं। आधुनिक युग में अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को बनाए रखने के लिए आधुनिक डिज़ाइनों के कालीनों का व्यापक उत्पादन किया जा रहा है। पूरे भारत में कालीन विनिर्माण के प्रमुख क्षेत्र भदोही – मिर्ज़ापुर (उत्तर प्रदेश), आगरा (उत्तर प्रदेश), जयपुर-बीकानेर (राजस्थान), पानीपत (हरियाणा) और कश्मीर क्षेत्र हैं।
भारत में विभिन्न हस्तनिर्मित कालीनों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है जिनमें हाथ से बुनी हुयी ऊनी कालीन, हस्तनिर्मित ऊनी दरियां (Durries), शुद्ध रेशम कालीन, सिंथेटिक (Synthetic) कालीन आदि शामिल हैं। भारतीय हस्तनिर्मित कालीन उद्योग रोज़गार उपलब्ध कराने में बहुत सहायक है तथा लगभग 20 लाख से भी अधिक घरेलू बुनकरों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार प्रदान करता है। आज, हस्तनिर्मित कालीनों का बड़े पैमाने पर दूसरे देशों में निर्यात भी किया जाता है। हर साल, भारत कुल उत्पादित कालीनों का लगभग 85% से 90% हिस्सा दूसरे देशों में निर्यात करता है। भारत में भी कालीनों की मांग बहुत अधिक बढ़ती जा रही है। ऐसा अनुमान है कि 2021 तक कालीनों की मांग प्रति वर्ष 5.9% बढ़कर 12 करोड़ वर्ग मीटर हो सकती है। दुनिया भर में किसी भी अन्य देश के मुकाबले यह विस्तार बहुत तीव्र है। शहरीकरण और आधुनिकीकरण इस विस्तार में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Carpet#India
2. https://prn.to/37oKXYj
3. https://karpetsbyrks.com/an-insight-of-indian-handmade-carpet-industry/
4. https://bit.ly/365cxbu
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