समयसीमा 234
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 960
मानव व उसके आविष्कार 744
भूगोल 227
जीव - जन्तु 284
प्राचीन काल में भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में दुनिया भर के अलग-अलग प्रकार के मनुष्य कई देशों में जाकर बस गए। ऐसी भी कई कहानियाँ इतिहास में दर्ज हैं जिनमें यह ज़िक्र है कि कई देशों के राजाओं ने कई पकवानों आदि को भी एक दूसरे देश से अपने देश में मंगवाया। रामपुर उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण जिला है। यह जिला अपनी इमारतों के साथ-साथ अपनी रंग बिरंगी पतंग और पकवानों के लिए भी जाना जाता है।
रामपुर में एक प्रकार का हलवा है जो कि बड़ी संख्या में लोगों द्वारा खाया जाता है। यह हलवा है हब्शी हलवा। हब्शी हलवा बनाने की पहल यहाँ के नवाबों ने की थी। यहाँ के नवाबों ने इसको बनाने के लिए अफ्रीका से रसोइयों को बुलवाया था। उस समय से लेकर आज तक यह हलवा यहाँ पर प्रचलित है। हब्शी हलवे का नाम हब्शी इस कारण से पड़ा क्यूंकि यह काले रंग का होता है।
भारत में अफ्रीकियों का प्रभाव या आगमन कोई मध्यकालीन गति नहीं है अपितु यह प्राचीन काल से होते आ रहे एक लम्बे इतिहास के झरोखे हैं। अफ्रीका के लोगों को सबसे पहले दासों के रूप में विभिन्न देशों में भेजा जा रहा था। अटलांटिक महासागर के माध्यम से बड़ी संख्या में दासों का व्यापार प्राचीन काल में होता था। भारत की जब हम बात करते हैं तो यहाँ पर शर्की सल्तनत को बनाने वाले मलिक सरवार को अफ़्रीकी ही माना गया है। मांडू में 13वीं शताब्दी के दौरान बड़ी संख्या में अफ़्रीकी दासों को बुलाया गया था।
इसका उदाहरण और साक्ष्य यहाँ पर पाया जाने वाला ‘मांडू की इमली’ का पेड़ या यूँ कहें कि ‘बाओबाब’ (Baobab) पेड़ है। यहाँ पर बड़ी संख्या में ऐसे खेल का भी अंकन ज़मीन पर किया गया है जो कि अफ़्रीकी मूल का है। महाराष्ट्र के परांदा किले पर भी ऐसे खेलों का अंकन किया गया है। भारत में इन दासों को ले आने का एक बड़ा कारण यह भी था कि ये दास लड़ाइयों में भी बड़ी संख्या में भाग लेते थे। ऐसा माना जाता था कि ये अच्छे योद्धा होने के साथ वफादार भी हुआ करते थे।
जब दासप्रथा का उन्मूलन हुआ तब ये अफ़्रीकी निवासी अपने देशों को नहीं लौट पाये और इन्होने यहीं पर अपना ठिकाना बना लिया। समय के साथ-साथ इन लोगों का जोड़ अफ़्रीकी वंश के विभिन्न पहलुओं से टूट गया और उनका वांशिक पहलू गायब हो गया और वे मेज़बान देश की संस्कृति के साथ ढल गए। कुछ लोगों में अभी भी अफ़्रीकी संस्कृति बनी हुयी है तथा ये आज भी अफ़्रीकी शैली में नृत्य आदि करते हैं। भारत में इन्हें ‘सिदी’ नाम से जाना जाता है। भारत में वर्तमान समय में इनकी आबादी करीब 25,000 है। ये लड़ाई में कुशल होने के कारण एक समय ऐसा भी आया जब इन्होंने जंजीरा पर शासन भी किया था।
संदर्भ:
1. https://www.jagran.com/uttar-pradesh/rampur-11808395.html
2. https://sidhujetha.wordpress.com/2018/05/03/habshi-halwa-recipe-with-condensed-milk/
3. https://thesidiproject.com/
4. https://www.economist.com/prospero/2013/04/05/poor-in-things-rich-in-soul
5. https://www.academia.edu/15717123/Bassein_fort_and_its_maritime_history_Vasai_fort_
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://i.ytimg.com/vi/c-KKkYbNN-s/maxresdefault.jpg
2. https://www.flickr.com/photos/nagarjun/16527297560
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.