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जलवायु एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण बिंदु है पृथ्वी का, इसमें परवर्तन होने पर मात्र मानव जीवन में ही प्रभाव नहीं बल्कि आर्थिक प्रभाव भी पड़ते हैं। ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है जानना की आर्थिक जलवायु से किस प्रकार का और कैसा प्रभाव आर्थिक स्थित पर ,पड़ता है। हाल ही के एक रिपोर्ट के बाबत यह खबर आई की जलवायु परिवर्तन कैसे 22 विभिन्न क्षेत्रों को अलग अलग तरीके से प्रभावित कर सकता है। इस रिपोर्ट के माध्यम से यदि वैश्विक तापमान में करीब 4.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो यह करीब 520 बिलियन डॉलर का नुक्सान कर सकता है और यह अगर 2.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा तो यही आंकड़ा 224 दिलियाँ डॉलर तक पहुच जाएगा। एक अन्य आंकड़े के अनुसार जलवायु परिवर्तन पर भारत दूसरे स्थान पर है जो बहुत ही बड़ी आर्थिक नुकसान उठाने वाला देश है पहले पर संयुक्त राज्य अमेरिका है।
मॉर्गन स्टेनली के अनुसार पिछले तीन वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तरी अमेरिका को 415 बिलियन डॉलर का नुक्सान हुआ है जो की जंगल की आग और तूफ़ान आदि कारणों से हुयी है। 2018 के चौथे राष्ट्रीय जलवायु मूल्यांकन में प्रकाशित शोधों ने यह चेतावनी जाहिर की है की यदि ग्रीन हाउस गैस पर हम अंकुश नहीं लगाते हैं तो जलवायु परिवर्तन अमेरिका, भारत आदि जैसे देशों की अर्थव्यवस्था पर गहरी छाप छोड़ सकता है। गर्म तापमान, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, गर्म मौसम, संपत्ति के साथ किसी भी देश के बुनियादी ढाँचे को हिलाने में प्रभावित भूमिका का निर्वहन करेगा। भारत के परिपेक्ष्य में बात की जाए तो कृषि यहाँ का एक अहम हिस्सा है जो की अर्थ व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाता है और गर्म तापमान और जलवायु में परिवर्तन इसपर बहुत ही बुरा असर डालेगी। इसी साल के यदि रिपोर्ट को देखें तो निमाड़ क्षेत्र में ही कपास की फसल पर जलवायु के परिवर्तन का ऐसा असर पडा की फसल पूरी तरह से नष्ट हो गयी।
जलवायु परिवर्तन स्वास्थ को भी प्रभावित करता है जो की एक और अंग है जो की देश की आर्थिक व्यवस्था को गहरा चोट देने के लिए काफी है। ग्लोबल वार्मिग के लिए वो सबसे ज्यादा पीड़ित होंगे जिनका सबसे कम योगदान होता है जलवायु के परिवर्तनों में। ये देश मुख्य रूप से गरीब देश होते हैं और गर्म क्षेत्रों में स्थित हैं। अनियमित बारिश, सूखा, चक्रवात आदि ऐसे कारक हैं जो की जलवायु के परिवर्तन के कारण होते हैं। भारत की ही यदि हम बात करते हैं तो यहाँ पर जलवायु परिवर्तन इसकी आर्थिक प्रगति को 30 फीसद तक धीमा कर दिया है। यह धीमा पन कृषि से है कृषि भारत में स्थित कुल कार्यबल के आधे हिस्से को रोजगार देता है ऐसे में जब कृषि में जलवायु परिवर्तन के कारण नुकसान हुआ तो यह जाहिर सी बात है की आर्थिक प्रगति धीमी होगी ही। अकेले भारत को कृषि से ही करीब 9 से 10 बिलियन डॉलर की छती होती है जो की एक बहुत ही बड़ी रकम है। वहीँ भारत के महानगर जो की तटीय इलाकों पर स्थित हैं पर भी बड़ा प्रभाव पड़ता है। उड़ीसा की बात करें तो यहाँ पर चक्रवात से भीषण तबाही देखने को मिलती है और जिसका नुक्सान देश की आर्थिक व्यवस्था को ही होता है। विकाशशील देशों को जलवायु परिवर्तन के लिए सचेत होने की आवश्यकता है और यही एक कारक है जो की यहाँ की आर्थिक स्थिति को हो रहे घाटे को कम कर सकता है।
सन्दर्भ:-
1. https://bit.ly/2DrQPm6
2. https://bit.ly/2L8P2Xj
3. https://bit.ly/2rD8Xa8
4. https://blogs.ei.columbia.edu/2019/06/20/climate-change-economy-impacts/
5. https://bit.ly/2rqDYOL
6. https://www.un.org/press/en/2019/gaef3516.doc.htm
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