खाद्य सुरक्षा में मिट्टी की भूमिका

भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)
06-12-2019 12:08 PM
खाद्य सुरक्षा में मिट्टी की भूमिका

मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाने और मिट्टी के संसाधनों के सतत प्रबंधन के लिए दुनियाभर में हर साल 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाया जाता है। खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने और बनाए रखने के लिए, वैश्विक स्तर पर स्थानीय स्तर पर नीति और निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, उचित स्तर पर गुणवत्ता-मूल्यांकन की जानकारी तक पहुंच की आवश्यकता होती है। मृदा पर अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ और सूचना केंद्र के रूप में, आईएसआरआईसी (ISRIC) ऐसी मिट्टी की जानकारी प्रदान करता है और समर्पित मिट्टी सूचना प्रणाली विकसित करने में सहायता प्रदान करता है।

आज, विश्व स्तर पर मिट्टी 7 अरब लोगों के लिए पर्याप्त भोजन प्रदान करती है। हालांकि यह उपलब्धता असमान रूप से वितरित है और 1 बिलियन लोग संरचनात्मक रूप से कम प्रभावित हैं। 2050 तक 9-10 बिलियन लोगों को भोजन प्रदान करने के लिए, जैव-खाद्य के साथ-साथ भोजन की सामाजिक-आर्थिक उपलब्धता और खाद्य उत्पादक क्षमता में भी अत्यधिक सुधार किया जा सकता है। वहीं मनुष्यों द्वारा मिट्टी का तेजी से दोहन करने की वजह से मिट्टी के रखरखाव की आवश्यकता बढ़ गई है। वहीं रामपुर जैसे विकसित जिले में कृषि जनसंख्या का मुख्य स्रोत है। इस क्षेत्र के आधार पर विभिन्न उपजाऊ प्रकार की मिट्टी को विभिन्न भू-आकृति इकाइयों में विकसित किया गया है। तराई पथ में महीन बनावट, कार्बनिक पदार्थ समृद्ध मिट्टी होती है। दोमट मिट्टी का विकास उप्र में मौजूद है और सिल्टी मिट्टी छोटे जलोढ़ मैदानों में होती है। यहाँ भूमि उपयोग के पैटर्न को तय करने में मिट्टी के प्रकार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि मृदा प्रदूषण राष्ट्रीय स्तर पर एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, लेकिन मृदा प्रदूषण के मूल्यांकन पर समन्वित प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर अनुपस्थित है।

मानव निर्मित कचरे की उपस्थिति के कारण मिट्टी दूषित हो जाती है। प्रकृति से उत्पन्न अपशिष्ट जैसे कि मृत पौधे, जानवरों के शव और सड़े हुए फल और सब्जियां केवल मिट्टी की उर्वरता को जोड़ती हैं। हालांकि यह अपशिष्ट उत्पाद रसायनों से भरे हुए हैं जो मूल रूप से प्रकृति में नहीं पाए जाते हैं और मिट्टी के प्रदूषण को जन्म देते हैं।

मृदा प्रदूषण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं :-
1. औद्योगिक गतिविधि :-
पिछली सदी में मृदा प्रदूषण की समस्या के लिए औद्योगिक गतिविधि का सबसे बड़ा योगदान रहा है, खासकर जब से खनन और विनिर्माण की मात्रा में बढ़ोतरी हुई है। अधिकांश उद्योग पृथ्वी से खनिज निकालने पर निर्भर हैं चाहे वह लौह अयस्क या कोयला उप-उत्पाद हो, इन सभ का सुरक्षित निपटान न होने के कारण से औद्योगिक अपशिष्ट मिट्टी की सतह में लंबे समय तक रहते हैं जो मिट्टी को अनुपयुक्त बना देते हैं।
2. कृषि गतिविधियाँ :- वर्तमान समय में रासायनिक (आधुनिक कीटनाशक और उर्वरक) का उपयोग बहुत बढ़ गया है। ये रसायन प्रकृति में उत्पन्न नहीं होते हैं और इस वजह से ये टूट नहीं सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे पानी के साथ मिश्रित हो कर जमीन में रिसते हैं और धीरे-धीरे मिट्टी की उर्वरता को कम कर देते हैं।
3. आकस्मिक तेल का गिराव :- तेल रिसाव रसायनों के भंडारण और परिवहन के दौरान हो सकता है और यह अधिकांश ईंधन स्टेशनों (stations) पर देखा जा सकता है। ईंधन में मौजूद रसायन मिट्टी की गुणवत्ता को खराब करते हैं और उन्हें खेती के लिए अनुपयुक्त बना देते हैं। ये रसायन मिट्टी के माध्यम से भूजल में प्रवेश कर सकते हैं और पानी को भी दूषित कर सकते हैं।
4. अम्ल वर्षा :- अम्लीय वर्षा तब होती है जब हवा में मौजूद प्रदूषक वर्षा के साथ मिल जाते हैं और वापस जमीन पर गिरते हैं। प्रदूषित पानी मिट्टी में पाए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को नष्ट करता है और मिट्टी की संरचना को बदल देता है।

वहीं मृदा प्रदूषण कई अनेक कारणों से होता है और इसके प्रभाव भी काफी भयवीय होते हैं, जिन्हें हम निम्नलिखित पंक्तियों से पहचान सकते हैं :-
1. मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रभाव :-
मनुष्यों का मिट्टी से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में सामना होता ही है। वहीं दूषित मिट्टी में उगाए जाने वाले फसलें और पौधे, मिट्टी से प्रदूषण को बड़ी मात्रा में अवशोषित करती है और इनका सेवन हमारे द्वारा ही किया जाता है।
2. पौधों की वृद्धि पर प्रभाव :- मिट्टी के व्यापक प्रदूषण के कारण किसी भी प्रणाली का पारिस्थितिक संतुलन प्रभावित होना स्वाभाविक है, जब मिट्टी की रसायन इतने कम समय में मौलिक रूप से बदल जाती है तो इसका प्रभाव अधिकांश पौधों पर ही होता है।
3. जहरीली धूल: - भरावक्षेत्र से निकलने वाली जहरीली और गंदी गैसों का उत्सर्जन पर्यावरण को प्रदूषित करता है और कुछ लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है।
4. मृदा संरचना में परिवर्तन: - मृदा में कई मृदा जीवों (जैसे केंचुए) की मृत्यु से मृदा संरचना में परिवर्तन हो सकता है। इसके अलावा, यह अन्य शिकारियों को भोजन की तलाश में दूसरे स्थानों पर जाने के लिए भी मजबूर कर देता है।

संदर्भ :-
http://cgwb.gov.in/District_Profile/UP/Rampur.pdf
http://bareilly.kvk4.in/district-profile.html
https://link.springer.com/chapter/10.1007/978-981-10-4274-4_11
https://www.conserve-energy-future.com/causes-and-effects-of-soil-pollution.php
https://www.isric.org/utilise/global-issues/food-security

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