विलुप्त होने की कगार पर है स्थानीय पक्षी - सारस

पंछीयाँ
16-11-2019 11:39 AM
विलुप्त होने की कगार पर है स्थानीय पक्षी - सारस

निवास स्थान की भारी क्षति के बावजूद, सारस आज भी रामपुर में पाए जाते हैं। सारस भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिणपूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में पाया जाने वाला एक बड़ा गैर-प्रवासी पक्षी है। यह उड़ने वाले पक्षियों में सबसे बड़ा क्रेन (Crane) है, और इसकी लंबाई 1.8 मीटर है। इसका पंख 2.4 मीटर और इसका वज़न 8.4 किलो तक हो सकता है। सारस लगभग 15 से 20 साल तक जीवित रहता है। यह खुले गीले मैदान पर रहना पसंद करते हैं। साथ ही वे अपने समग्र ग्रे रंग और विपरीत लाल रंग के सिर और ऊपरी गर्दन की वजह से दूसरी क्रेनों से भिन्न होते हैं। लंबी दूरी का प्रवास करने वाले कई अन्य क्रेन के विपरीत, सारस बड़े पैमाने पर गैर-प्रवासी हैं और कुछ ही अपेक्षाकृत कम दूरी के पलायन करते हैं।

सारस क्रेन आमतौर पर संरक्षित क्षेत्रों के बाहर, कम पानी की गहराई, दलदली और परती क्षेत्रों और कृषि क्षेत्रों के साथ प्राकृतिक आर्द्रभूमि में पाए जाते हैं। वे हानिकारक कीड़ों की आबादी को नियंत्रित करके पारिस्थितिक संतुलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और महत्वपूर्ण सांस्कृतिक महत्व रखते हैं। सारस सर्वाहारी होते हैं तथा ये मछली और कीड़ों, साथ ही जड़ों और पौधों का सेवन करते हैं।

हाल ही में वन विभाग के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि जिले में सारस की मामूली वृद्धि दर्ज की गई है, और इसे गौतमबुद्धनगर में भी देखा गया है। 25 जून 2019 को जिला वन विभाग की ग्रीष्मकालीन जनगणना ने गौतमबुद्धनगर में पांच वन श्रेणी और आर्द्रभूमि पर कुल 140 सारस क्रेन की उपस्थिति दर्ज की, जिनमें 114 वयस्क और 26 चूज़े थे।
यह क्रेन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाए जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार नेपाल, पाकिस्तान, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस और थाईलैंड के निचले इलाकों में लगभग 1,500 सारस रहते हैं, जबकि ये अब बांग्लादेश में विलुप्त हैं।

विश्व भर में सारस की आबादी में गिरावट ने इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के तहत अतिसंवेदनशील सूची में सूचीबद्ध किया है। मानव गतिविधियों, निवास स्थान में हानि, जंगली कुत्तों, नेवलों और सांपों द्वारा शिकार होना ये सब इन प्रजातियों के लिए प्रमुख खतरों के रूप में गिने जाते हैं। इन प्रमुख खतरों से सबसे बड़ा खतरा सारस के अंडों को होता है। इनके अंडों की सुरक्षा के लिए किसानों को ज़िम्मेदारी दी गई है। इसका परिणाम भी काफी बेहतर देखा गया है और विगत कुछ वर्षों में लगभग 90% की सफलता के साथ 650 से अधिक घोंसले स्थानीय लोगों को शामिल करके संरक्षित किए गए हैं। हालांकि ये खतरे अभी भी न केवल आर्द्रभूमि विनाश के रूप में मौजूद हैं, बल्कि कृषि क्षेत्रों में जल निकासी और कृषि के लिए रूपांतरण, कीटनाशकों का उपयोग और सारस के चूज़ों का शिकार और व्यापार, भोजन, औषधीय उद्देश्यों के लिए अंडे और चूज़ों को पकड़ना और फसलों के नुकसान को सीमित करने में विभिन्न उपायों का उपयोग करना आदि के कारण भी सारस विलुप्त होने की स्थिति में है।

संदर्भ:
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Sarus_crane
2.https://bit.ly/2pS6kkh
3.https://bit.ly/2CBXI3M

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