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क्या आपने कभी घास के हलवे या मछली के हलवे के बारे में सुना है? ये सुनने में थोड़ा सा आश्चर्यचकित करता है, लेकिन हाल ही में यूट्यूब (Youtube) के एक चैनल (Channel) द टाइमलिनर्स (The Timeliners) द्वारा एक वीडियो "रामपुर के हलवे" प्रकाशित किया गया था। जिसमें दिखाया गया कि कुणाल कपूर (रसोइये/बावर्ची/शाहकार) रामपुर के व्यंजनों के बारे में जानने के लिए रामपुर के भ्रमण पर निकलते हैं और तब इसमें देखा गया कि रामपुर में हलवे को केवल आटे का उपयोग करके ही नहीं बनाया जाता है, बल्कि और भी कई व्यंजनों का उपयोग करके बनाया जा सकता है। जी हाँ, रामपुर में घास; मछली; अदरक और आदि का हलवा भी बनाया जाता है।
रामपुर में विभिन्न और स्वादिष्ट व्यंजनों को बनाया जाता है, चूंकि अवधी और रामपुरी दोनों ही व्यंजन मुगल व्यंजनों का विस्तार हैं, इसलिए वे बहुत समान भी हैं। यदि अंतर है तो इस बात का कि रामपुर के व्यंजनों में गुलाब या केवड़ा पानी जैसे किसी भी इत्र का उपयोग नहीं किया जाता है। इसके अलावा मसालों का उपयोग भी अधिक सूक्ष्म किया जाता है। पिछले कुछ समय में रामपुरी भोजन वास्तव में लगभग गायब सा हो गया था, लेकिन इसे दोबारा पुनर्जीवित करने और बढ़ावा देने के लिए काफी प्रयास किया गया है। साथ ही काफी काम लोग इस बारे में जानते हैं कि वे रामपुर के खानसामे ही थे जिन्होंने सबसे पहले मटन को नरम करने के लिए पपीता और लौकी का उपयोग किया था। वहीं भोजन पर वरक का उपयोग भी रामपुर के खानसामों का आविष्कार था और रामपुर के प्रसिद्ध हलवे को सजाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। खानसामों द्वारा आज भी कई व्यंजन पकाने के लिए मिट्टी के बर्तन का उपयोग किया जाता है। अब सावाल यह उठता है कि रामपुर के व्यंजन मुगलई, अफगानी, लखनवी, कश्मीरी और अवधी व्यंजन से कैसे प्रभावित हैं? दरसल बरेली हारने के बाद, नवाब फैज़ुल्लाह खान ने 1774 में रोहिल्ला साम्राज्य के रूप में ब्रिटिश संरक्षण में रामपुर (पहले मुस्तफाबाद) की स्थापना की। हालाँकि संधि में यह कहा गया था कि नवाब और उनके उत्तराधिकारियों को कभी भी गौरव के इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिलेगी, लेकिन इसने कलाकारों के पलायन करने और समान रूप से संरक्षित होने के लिए रामपुर को एक सुरक्षित आश्रय स्थल बना दिया था। वहीं 1858 के बाद, रामपुर मुगल और अन्य शाही अदालतों में से अधिकांश शाही खानसामों के लिए 'भिन्नता' के रूप में प्रमुखता से उभरा, जो काम पाने में असमर्थ थे और शाही अदालत में उन्हें कलात्मक स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने दिया गया था। नवाबों के पास कई विशेष रसोइयों के होने से उन्होंने स्वयं के व्यंजनों को विकसित करना शुरू कर दिया, जो कि उस समय तक मुख्य रूप से पश्तून शैली के थे। रामपुर की शाही रसोई ने एक प्रारूप पर काम किया जो उन दिनों आदर्श था। जैसे चावल का एक विशेषज्ञ केवल चावल के व्यंजनों को पकाता था और वे मांस और अन्य व्यंजनों को नहीं बनाता था। उस समय नवाब अक्सर अपने खानसामों को नए व्यंजन बनाने के लिए प्रोत्साहित करते थे, जिससे कई नए व्यंजन उभर कर सामने आते थे, उदाहरण के लिए मीठे चवाल, दूधिया चावल आदि।संदर्भ:
1.https://bit.ly/2NDI26G
2.https://bit.ly/34ON71x
3.https://www.mydigitalfc.com/fc-supplements/elan/rampur-and-mahaseer
4.https://indianexpress.com/article/lifestyle/food-wine/the-rise-and-revival-of-the-ancient-rampuri-cuisine/
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