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जल, वायु, और अग्नि की तरह मिट्टी भी हमारे पर्यावरण का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मुख्य रूप से धरती का वह भाग है जो अपनी सतह पर जैविक और अजैविक पदार्थों को खुद में संजोये हुए है। ये जैविक और अजैविक पदार्थ पेड़-पौधों के विकास के लिए आवश्यक हैं। मिट्टी को इनकी उपयोगिता, आकार, जल धारण क्षमता आदि के आधार पर कई वर्गों में विभाजित किया जाता है। तराई क्षेत्रों में बारीक और जैविक पदार्थ से भरपूर मिट्टी पायी जाती है। मिट्टियों के प्रकारों में एक मिट्टी दोमट भी है जो ऊंचे-ऊंचे क्षेत्रों में विकसित होती है। इसी प्रकार से सिल्टी (Silty) या गाद मिट्टी जलोढ़ मैदानों में पायी जाती है। मिट्टी के प्रकार क्षेत्र के भूमि उपयोग स्वरुप को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हमारा रामपुर क्षेत्र भी मिट्टी की कई विविधताओं को धारण करता है। यहां पायी जाने वाली मिट्टियों में बुल्ली या काली मिट्टी, दोमट मिट्टी और मटियार मिट्टी आदि प्रमुख हैं। काली मिट्टी को रेगुर मिट्टी भी कहा जाता है जोकि एक तेलुगू शब्द है। क्योंकि कपास इस मिट्टी में उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण फसल है इसलिए इसे काली कपास मिट्टी भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि हज़ारों साल पहले दक्कन के पठार में ज्वालामुखी फटने के कारण जो लावा (Lava) बड़े क्षेत्रों में फैला, उसके जमने से इस मिट्टी का निर्माण हुआ है। यह मिट्टी ऐसे स्थान पर है जहाँ वार्षिक वर्षा 50 से 80 से.मी. के बीच होती है तथा बारिश के दिनों की संख्या 30 से 50 के बीच होती है। भौगोलिक रूप से यह मिट्टी 5.46 लाख वर्ग कि.मी. (देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 16.6%) में फैली हुई है।
काली मिट्टी मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक के कुछ हिस्सों, आंध्र प्रदेश, गुजरात और तमिलनाडु में पाई जाती है। इसमें टाइटैनिफेरस मैग्नेटाइट (Titaniferous Magnetite) और लोहा मौजूद होता है जिस कारण इसका रंग काला होता है। यह मिट्टी गहरी काली, मध्यम काली व लाल और काले रंग का मिश्रण हो सकती है। इसकी महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें उच्च जल धारण क्षमता होती है जो पौधों को पर्याप्त पानी उपलब्ध कराने में सहायक है। इस मिट्टी में नमी की अच्छी मात्रा होती है। बरसात के मौसम में यह चिपचिपी हो जाती है तथा गर्म शुष्क मौसम में नमी वाष्पीकृत हो जाने से यह सिकुड़ जाती है। इस कारण इसमें व्यापक रूप से गहरी दरारें बन जाती हैं। मिट्टी में असाधारण उर्वरता भी होती है जो पौधों के लिए उपयुक्त है। इस मिट्टी के संघटन में 10% एल्यूमिना (Alumina), 9-10% आयरन ऑक्साइड (Iron oxide) और 6-8% चूना और मैग्नीशियम कार्बोनेट (Magnesium carbonate) शामिल हैं। संघटन में पोटाश (Potash) परिवर्तनशील है (0.5% से कम) जबकि फॉस्फेट (Phosphate), नाइट्रोजन (Nitrogen) और ह्यूमस (Humus) कम मात्रा में पाये जाते हैं। काली मिट्टी में उगाई जाने वाली कुछ प्रमुख फसलों में कपास, गेहूं, ज्वार, अलसी, तंबाकू, अरंडी, सूरजमुखी, बाजरा आदि शामिल हैं। इनमें चावल और गन्ना भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। काली मिट्टी में सब्जियों और फलों की बड़ी किस्में भी सफलतापूर्वक उगाई जाती हैं।
यह काफी रोचक बात है कि काली मिट्टी का उपयोग फसलों को उगाने के लिए ही नहीं बल्कि क्रिकेट पिच (Cricket pitch) बनाने के लिए भी किया जाता है। असम क्रिकेट एसोसिएशन (Assam Cricket Association) के 100 करोड़ रुपये की लागत वाले क्रिकेट स्टेडियम (Cricket stadium) की 810 वर्ग मीटर की पिच के शीर्ष 300 मि.मी. हिस्से को बनाने के लिए काली कपास मिट्टी का उपयोग किया गया है। यह राज्य में पहला स्टेडियम है जहां की पिच पर काली मिट्टी का उपयोग किया गया। आम तौर पर राज्य भर की पिचों के लिए रामपुर की चिकनी मिट्टी का उपयोग किया जाता है। काली कपास की इस मिट्टी में अधिकतम मात्रा चिकनी मिट्टी की होती है, जो विकेट (Wicket) को टूटने से रोकती है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2L0aaPR
2. https://bit.ly/2Zv2QQu
3. https://bit.ly/2HvsDSt
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