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भारतीय इतिहास में आए उतार-चढ़ाव का संपूर्ण विवरण हमें तत्कालीन लेखकों की रचनाओं से मिलता है। जो हमें भारतीय शासकों और उनकी शासन प्रणाली को करीब से जानने का अवसर प्रदान करते हैं। यह मात्र हिन्दू राजाओं का ही नहीं वरन मुस्लिम शासकों का भी लेखा जोखा प्रदान करते हैं। मध्यकालीन भारत में मुस्लिम शासकों का ही आधिपत्य रहा है, जिनका केन्द्र दिल्ली था। दिल्ली सल्तनत की शुरूआत के साथ या इससे पूर्व अनेक इतिहासकार मध्य एशिया से भारत आए, तथा उन्होंने अपने समकालीन शासकों का विवरण लिखना प्रारंभ किया। आज यही स्त्रोत हमें तत्कालीन शासकों तथा उनकी शासन प्रणाली को जानने में सहायता करते हैं, हालांकि इनकी रचानाओं से वास्तविकता और कल्पनात्मकता का भेद करना थोड़ा कठिन है, फिर भी ये तत्कालीन समाज का दृश्य प्रस्तुत करने में काफी सहायक सिद्ध हुए हैं।
कुछ प्रमुख ऐतिहासिक स्त्रोत इस प्रकार हैं :
चचनामा : चचनामा नामक पुस्तक मुख्यतः अरबी भाषा में लिखी गयी थी, जिसका फारसी में अनुवाद नसीर-उद-दीन कुब्ह के शासन काल के दौरान मुहम्मद अली-बिन-अबू बक्र कुफी द्वारा किया गया था। इसमें सिन्ध तथा चच राजवंश का इतिहास और अरबों द्वारा सिंध पर विजय (711-12 ईस्वी के दौरान) का वर्णन किया गया है।
तहकीक-ए-हिंद : यह पुस्तक अलबरूनी द्वारा अरबी भाषा में लिखी गयी थी,जो मुख्यतः ख़्वारिज्म के थे। वे उच्च शिक्षित थे और विभिन्न विषयों जैसे कि धर्मशास्त्र, दर्शन, तर्क, गणित, खगोल विज्ञान और ज्योतिष के विशेष ज्ञाता थे। यह मुहम्मद गजनवी के भारत आक्रमण के दौरान यहां आए तथा भारत के संस्कृत साहित्यों तथा भारतीय समाज का गहनता से अध्ययन कर ‘तहकीक-ए-हिंद’ नामक पुस्तक लिखी। जिसका बाद में अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया। यह पुस्तक भारत की सामाजिक-धार्मिक परिस्थितियों और उसकी सांस्कृतिक विरासत के बारे में जानकारी का एक प्रामाणिक प्राथमिक स्रोत मानी जाती है। उन्होंने हिंदुओं की हार के कारणों का भी विश्लेषण किया तथा अपने दृष्टिकोण को साबित करने के लिए संस्कृत स्रोतों का उपयोग किया। इन्होंने भारत के प्रबल तथा दुर्बल दोनों ही पक्षों को बड़ी गहनता से लिखा है।
तारिख-ए-यामिनी या किताब-उल-यामिनी: यह अबू नसर बिन मुहम्मद अल जब्बरल उतबी द्वारा लिखा गया था, जिसमें सुबुक्तगीन और महमूद गजनी के शासन का वर्णन किया गया है। पर्याप्त तिथियों के अभाव के कारण यह इतिहास से ज्यादा साहित्य के निकट प्रतीत होता है।
कामिल-उत-तवारीख: इस पुस्तक के लेखक शेख अब्दुल हुसैन (उफ्र इब्न-उल-असिर) मेसोपोटामिया से थे। इनकी पुस्तक 1230 में पूरी हुयी, इसमें भारत पर मुहम्मद गोरी की विजय का वर्णन किया गया है। पुस्तक में दी गई तिथियां सही हैं, किंतु फिर भी इसे किवदंतियों पर आधारित माना जाता है।
ताज-उल-मासीर: हसन निज़ामी इस पुस्तक के लेखक हैं और उन्होंने 1192 से 1228 तक की अवधि का उल्लेख किया है। इसे कुतुब-उद-दीन ऐबक की प्रगति और इल्तुतमिश के शुरुआती वर्षों की जानकारी के लिए एक विश्वसनीय स्त्रोत माना जाता है। हसन निजामी इन दोनों शासकों के समकालीन थे, इन्होंने अपनी पुस्तक में अपने संरक्षकों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। ताज-उल-मासीर पहला ऐतिहासिक आख्यान है जो दिल्ली सल्तनत के इतिहास पर प्रकाश डालता है। इस पुस्तक में काल्पनिकता और वास्तविकता का समिश्रण देखने को मिलता है।
तबकत-ए-नासीरी : मिन्हाज-ओउन-दीन अबू उमर बिन सिराज-उदल-दीन जुजानी (उफ्र मिन्हाज-उस-सिराज), इस पुस्तक के लेखक हैं। इनकी पुस्तक 1260 में पूरी हुई। उन्होंने नासिर-उद-दीन महमूद के नेतृत्व में दिल्ली में मुख्य 'काज़ी' का पद संभाला। मिन्हाज को आमतौर पर निष्पक्ष लेखक नहीं माना जाता है, क्योंकि इनका बलबन की ओर ज्यादा झुकाव था। फिर भी इनकी पुस्तक को दिल्ली सल्तनत के शुरुआती इतिहास पर एक महत्वपूर्ण स्त्रोत माना जाता है।
खाज़ा-इन-उल-फतुह: इस पुस्तक के लेखक अमीर खुसरो थे। यह दिल्ली के शासक जलाल-उद-दीन खिलजी से लेकर मुहम्मद बिन तुगलक तक के समकालीन रहे। इन्होंने अला-उद-दीन को अपना आश्रयदाता बताया है। फारसी में लिखा गया इनका कार्य वास्तव में सहरानीय है।
तारिख-ए-फ़र्ज़वशिल: ज़िया-उद-दीन बरनी इस किताब के लेखक हैं। बरनी गयासुद्दीन तुग़लक़, मुहम्मद बिन तुगलक और फिरोज तुगलक के समकालीन थे। इनकी पुस्तक बलबन के शासन के साथ प्रारंभ हुई और फिरोज तुगलक के शासन के छठे वर्ष तक चली। यह 1359 में पूरी हुई। इसने कालानुक्रमिक व्यवस्था पर विशेष ध्यान नहीं दिया है। यह पुस्तक उपाख्यानों से भरी पड़ी है।
फतवा-ए-जहाँदारी: यह किताब जिया-उद-दीन बरनी द्वारा भी लिखी गई है। इस पुस्तक में, इन्होंने बरनी शासन की नीतियों में धर्म और धर्मनिपेक्षता पर अपना दृष्टिकोण अभिव्यक्त किया है। बरनी ने एक मुस्लिम शासक के अनुसरण के लिए इस राजनीतिक संहिता को आदर्श माना।
किताब-इन-रेहला : प्रसिद्ध मॉरिशस यात्री इब्न बतूता इस पुस्तक के लेखक हैं। इसमें यात्रावृतांत का उल्लेख किया गया है, जिसमें बहुत सारी ऐतिहासिक जानकारियां संकलित हैं। इब्न बतूता ने 1325 में अपनी यात्रा शुरू की और उत्तरी अफ्रीका, अरब, ईरान और क़ुस्तुंतुनिया दौरा किया। तत्पश्चात वे भारत आए और सितंबर 1333 में सिंध पहुँचे। उन्होंने भारत में लगभग 9 साल बिताए, उन्हें मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा दिल्ली का 'काजी' नियुक्त किया गया तथा वे 8 साल तक इस पद पर बने रहे। भारत में रहने के दौरान, वह दरबार के काफी निकट थे तथा इन्होंने देश की स्थितियों का बड़ी गहनता से अध्ययन किया था। अरबी में लिखी गई उनकी पुस्तक को मुहम्मद तुगलक के शासनकाल का एक अच्छा स्त्रोत माना जाता है।
फतुहत-ए-फिरोजशाही: फिरोज शाह तुगलक की एक छोटी सी आत्मकथा, इसे उनके शासनकाल की महत्वपूर्ण घटनाओं और नीतियों का एक स्त्रोत माना जाता है।
तारिख-ए-फिरोजशाही: शम्स-ए-सिराज द्वारा लिखित इस पुस्तक में फिरोज तुगलक के शासन का वर्णन किया गया है। शम्स-ए-सिराज स्वयं फिरोजशाह के दरबार का हिस्सा थे। यह पुस्तक तबकत ए नसीरी का हिस्सा है, यह वहीं से प्रारंभ होती है जहां पर ‘तबकत ए नसीरी’ समाप्त होती है। इस पुस्तक में तत्कालीन राजनीतिक घटनाओं के अलावा, प्रशासन, समाज, अर्थव्यवस्था और न्याय का वर्णन किया गया है। इसमें कई स्थानों पर हिन्दुओं के विपक्ष में बातें लिखी गयीं हैं, किंतु मुस्लिम समुदाय की किसी भी कमी को उजागर नहीं किया है। फिर भी इसे इतिहास का एक अच्छा स्त्रोत माना जाता है।
तारीख-ए-सलातीन-ए-अफगाना: इस पुस्तक के लेखक अहमद यादगर हैं। यह लोदी और सूरियों के उत्थान और पतन का लेखा-जोखा देता है। यह किताब अकबर के शासनकाल के दौरान लिखी गई थी।
सल्तनत काल के ऊपर लिखी गयी अधिकांश पुस्तकें फारसी भाषा में लिखी गयी थी। फ़ारसी भाषा का उपयोग ज्यादातर शाही उद्देश्यों के लिए किया गया था। यह मुख्यतः कुलीन वर्ग को समर्पित थी तथा अधिकांश इतिहास लेखकों को तत्कालीन सुल्तानों का भी संरक्षण प्राप्त था। जिस कारण उनके लेखों में आश्रयदाता के प्रति झुकाव देखने को मिल जाता है। फिर भी वे सल्तनत काल का स्पष्ट उल्लेख प्रस्तुत करते हैं।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/31kLPJP
2. cec.nic.in/wpresources/module/History/PaperII/2.20.2/e.../Academ%202.20.2.doc
3. https://www.academia.edu/31775583/Historiography_of_the_Delhi_Sultanate
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