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भारत से प्राप्त हुई पुरातात्विक खोजों से ज्ञात हो जाता है कि इसका इतिहास काफी समृद्धशाली रह चुका है। हड़प्पा सभ्यता इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है। भारतीय इतिहास के प्रत्येक काल की अपनी सभ्यता, संस्कृति और विशेषता रही है। रामपुर के निकट स्थित अहिच्छत्र लौह युग (1500 ईसा पूर्व से 1800 ईसा पूर्व) का एक प्रसिद्ध शहर था। जिसका उल्लेख महाभारत में पांडवों की राजधानी के रूप में कई बार किया गया है। वर्तमान समय में इसके अवशेष ही शेष रह गए हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि यहां चित्रित धूसर मृदभांड (पेंटेड ग्रे वेयर- Painted Grey Ware culture - PGW) संस्कृति को अपनाया गया था, जो लौह युग की प्रमुख विशेषताओं में से एक थी। यह लाल और काले मृदभाण्डों के बाद प्रचलन में आयी।
पी.जी.डब्ल्यू. संस्कृति गाँव और कस्बों, हाथी दांत पर किए जाने वाले कार्यों और लोह धातु विज्ञान के आगमन से जुड़ी है। अब तक 1100 से अधिक पी.जी.डब्ल्यू. स्थल खोजे जा चुके हैं। पुरातत्वविद् विनय कुमार गुप्ता के ताज़ा सर्वेक्षण बताते हैं कि मथुरा क्षेत्र में लगभग 375 हेक्टेयर में सबसे बड़ी पी.जी.डब्ल्यू. साइट (Site) थी। सबसे बड़े स्थलों में हाल ही में खोदा गया अहिच्छत्र भी शामिल है। अहिच्छत्र 16 महाजनपदों में से एक पांचाल की राजधानी था। यह उन पुरातात्विक स्थलों में से एक है, जिसने लगातार विद्वानों और शोधकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। प्रसिद्ध पुरातत्वविद कनिंघम, चीनी यात्री ह्वेन सांग के मार्ग का पता लगाते हुए, 1862-64 के दौरान यहां पहुंचे। इन्होंने इस क्षेत्र का गहनता से अध्ययन किया। अपने विवरण में इन्होंने बताया कि अहिच्छत्र रामनगर गांव के निकट स्थित एक क्षेत्र है, जो 30 से 35 फीट ऊँची प्राचीर से घिरा हुआ त्रिकोणीय आकृति का पश्चिम में 1,462 मीटर लंबा क्षेत्र है तथा पूर्व में यह 2,000 से अधिक मीटर तक फैला हुआ है।
अहिच्छत्र के रामगंगा और गंगा के बीच स्थित होने के बावजूद भी यहां पानी का कोई बारहमासी स्रोत नहीं था। यह भारत में सबसे बड़ा (क्षेत्रवार) और संभवत: सबसे लंबे समय (2000 ईसा पूर्व से 1100 ईस्वी) तक जीवित रहने वाला स्थल है। यहां की सबसे पहली ज्ञात संस्कृति गेरू रंग के बर्तनों की है। यहां के लोग पी.जी.डब्ल्यू. संस्कृति से प्रभावित थे। हालांकि अधिकांश पी.जी.डब्ल्यू. क्षेत्र छोटे खेती वाले गांव थे। इस संस्कृति में चावल, गेहूं, बाजरा और जौ आदि की खेती की जाती थी तथा भेड़, सूअरों और घोड़ों को पालतू पशु बनाया गया था। पी.जी.डब्ल्यू. संस्कृति गंगा के मैदान और भारतीय उपमहाद्वीप की घग्गर-हकरा घाटी तक फैली हुयी थी, जो संभवतः मध्य और उत्तर वैदिक काल से मेल खाती है। पी.जी.डब्ल्यू. संस्कृति के लोग कला और शिल्प के क्षेत्र में पारंगत थे। उनके द्वारा खूबसूरत आभूषण (टेराकोटा (Terracotta), पत्थर, मिट्टी और कांच से निर्मित), मानव और जानवरों की मूर्तियाँ (टेराकोटा से निर्मित) तथा सजी हुयी किनारियों और ज्यामीतिय आकृतियों वाली टेराकोटा के चक्र बनाए गए थे, जो संभवतः धार्मिक उद्देश्यों से संदर्भित रहे होंगे। अपने काल के अंतिम चरण में, पी.जी.डब्ल्यू. की कई बस्तियां उत्तरी ब्लेक पॉलिश वेयर (Northern Black Polished Ware -NBPW) अवधि के बड़े नगरों और शहरों में विकसित हुईं।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Painted_Grey_Ware_culture
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Ahichchhatra
3. http://www.draupaditrust.org/content/International%20con/Civilization/Bhuvan%20Vikram.pdf
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