नोबेल पुरस्कार के लिए साहित्यिक भाषा विवाद का कारण है

ध्वनि 2- भाषायें
23-05-2019 10:30 AM
नोबेल पुरस्कार के लिए साहित्यिक भाषा विवाद का कारण है

नोबेल पुरस्कार विश्व का सर्वोच्च सम्मान है जिसे इसके अंतर्गत आने वाली श्रेणियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दिया जाता है। साहित्य भी इसकी श्रेणी का ही एक हिस्सा है तथा उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले साहित्यकारों को यह पुरस्कार दिया जाता है।1901 से साहित्य क्षेत्र में 100 से भी अधिक नोबेल पुरस्कार दिए जा चुके हैं। केवल 1914, 1918, 1935, 1940, 1941, 1942 और 1943 में यह पुरस्कार साहित्य क्षेत्र के लिये नहीं दिया गया। चार बार यह पुरस्कार संयुक्‍त रूप से 1904 में फ्रैडरिक मिस्ट्रल, जोस एचेगाराय (Frédéric Mistral, José Echegaray),1917 में कार्ल गजलरुप, हेनरिक पोंटोपिडन (Karl Gjellerup, Henrik Pontoppidan),1966 में शमूएल एगन, नेल्ली सैक (Shmuel Agnon, Nelly Sachs) और 1974 में आईविंड जॉनसन, हैरी मार्टिंसन (Eyvind Johnson, Harry Martinson) को दिया गया।

साहित्य में नोबेल पुरस्कार के विजेता के चयन के लिए सर नोबेल द्वारा "आदर्शवादी" और "आदर्श" ( Ideals) पर जोर दिए जाने के मापदंड के कारण शुरु से ही यह पुरस्कार विवादग्रस्त रहा है। भारत से साहित्य के लिये अब तक केवल रवींद्रनाथ टैगोर को ही नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, जबकि हिंदी, उर्दू, या फारसी के लेखकों जैसे विभूति भूषण बंधोपाध्याय, मुंशी प्रेमचंद, कुवेम्पु, इस्मत चुगताई, आर के. नारायण, सुंदर रामस्वामी, आशापुर्णा देवी, वेकम मुहम्मद बशीर, अमृता प्रीतम आदि को नोबेल साहित्य पुरस्कार के लिये नामांकित तो किया गया लेकिन ये साहित्यकार खिताब से वंचित ही रहे। अरबी और तुर्की साहित्य को भी यह पुरस्कार मिल चुका है किंतु नोबेल पुरस्कार विजेताओं में अधिकतर संख्यां युरोपीय भाषाओं की ही है। नोबेल साहित्य पुरस्कार निम्न भाषाओं के साहित्यों को दिया गया है:

भारत में क्षेत्रीय भाषाओं में भी विविधतापूर्ण साहित्य लिखा गया किंतु यह दुनिया का ध्यान आकर्षित करने में विफल रहा। इसका प्रमुख कारण यह है कि इन कार्यों का अंग्रेजी और दुनिया की अन्य भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध नहीं है। नोबेल चयनकर्ताओं द्वारा इन उत्कृष्ट साहित्यकारों को अनदेखा करना साधारण विद्रोह भी हो सकता है। नोबेल पुरस्कार की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार स्वीडिश अकादमी साहित्‍य पुरस्कार विजेताओं का चयन करती है किंतु यदि बात की जाए साहित्‍यिक भाषा की तो यहां पक्षपात का प्रश्‍न उठ सकता है क्‍योंकि उम्‍मीदवार को चयनित करते समय चयनकर्ता किस भाषा में साहित्‍य को पढ़ते हैं यह कहना कठिन है। 1901 में साहित्‍य पुरस्‍कार की शुरूआत के बाद प्रारंभिक पांच साहित्‍य पुरस्‍कार गैर=यूरोपियों को दिए गए थे क्‍योंकि उन सभी के साहित्‍य अंग्रेजी भाषा में अनुवादित थे। चयनप्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी के बिना यह कहना असंभव है कि साहित्य का नोबेल पुरस्कार वैश्विक दर्शकों को आकर्षित करता है या नहीं।

रवींद्रनाथ टैगोर बंगाल के प्रसिद्ध साहित्यकार थे जिनका जन्म 7 मई 1861 में कलकत्ता में हुआ था। अपने गहन, संवेदनशील और सुंदर काव्य रचना (जिसे उन्होनें अंग्रेजी में स्वयं अपने शब्दों द्वारा अनुवादित किया था), के लिये 1913 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। रवींद्रनाथ टैगोर का लेखन में भारतीय और पश्चिमी दोनों परम्पराएं गहराई से निहित हैं। इनके इस साहित्य के कविता, गीत, कहानी और नाटक में कल्पना के अतिरिक्त आम लोगों के जीवन, साहित्यिक आलोचना, दर्शन और सामाजिक मुद्दों को भी चित्रित किया गया है। रवींद्रनाथ टैगोर ने मूलरूप से बंगाली में लिखा था, लेकिन बाद में अंग्रेजी में अपनी कविता को व्यापक रूप से पश्चिम देशों के दर्शकों तक पहुंचाया। जब उन्हेंखबर मिली कि उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए सम्मानित किया जा रहा है तो तब वे शांति निकेतन में थे। नोबेल पुरस्कार के रिकॉर्ड में पहली बार यह पुरस्कार गैरयूरोपीय व्यक्ति को दिया गया था।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2NG3dBQ
2. https://bit.ly/2X0oWJV
3. http://mulosige.soas.ac.uk/nobel-prize-non-european-languages/
4. https://bit.ly/2Jz4iNX
5. https://www.nobelprize.org/prizes/literature/1913/tagore/facts/
6. https://bit.ly/2JyzaOS

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