रामपुर की एक महिला ने किया था ख़िलाफ़त आन्दोलन में गाँधी जी का सहयोग

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
14-03-2019 09:00 AM
रामपुर की एक महिला ने किया था ख़िलाफ़त आन्दोलन में गाँधी जी का सहयोग

आजादी के बाद आज भी हमें लगता है कि देश आजाद कराने में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह जैसे महान पुरुषों का ही योगदान था। यदि हम आपको बताए कि भारत की आजादी की लड़ाई में महान पुरुषों के अलावा महान महिलाओं का भी अहम योगदान रहा है तो आप चौंक जाएंगे। हम अक्सर उन पुरुषों की बात करते हैं जो हमारे देश की आजादी के लिए लड़े थे, परंतु उन महिलाओं का जिक्र करना भूल गए जिन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया।

यह बात चौंकाने वाली जरूर है, लेकिन यह सच है कि आजादी में महिलाओं का भरपूर योगदान रहा है। इन्हीं महिलाओं में से एक है, बी अम्मा के नाम से मशहूर आबादी बानो बेगम। इनका विवाह रामपुर रियासत के अब्दुल अली खान से हुआ था और बी अम्मा ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी और अन्य खिलाफत नेताओं को नैतिक तथा सबसे महत्वपूर्ण रूप से वित्तीय सहायता प्रदान की थी। इसका जन्म 1852 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के अमरोहा गाँव में हुआ था। हालांकि इन्होंने अपने पति को कम उम्र में खो दिया था, परंतु फिर भी इन्होंने पुनर्विवाह नहीं किया। उनकी एक बेटी और पांच बेटे थे, जिनमें मौलाना मोहम्मद अली और मौलान शोकथ अली स्वतंत्रता सेनानियों में अली भाइयों के नाम से प्रसिद्ध थे। औपचारिक शिक्षा न मिलने के बावजूद भी आबादी बानो बेगम एक प्रगतिशील विचारक थीं। वह शिक्षा के महत्व को जानती थी और उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी।

आबादी बानो बेगम भारत की देशभक्ति आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण मुस्लिम महिला नेताओं में से एक थी। उन्होंने पूरी जिंदगी देश के लिये समर्पित कर दी और बुर्के के पीछे से ही उन्होंने घर से बाहर निकल एक विशाल समुदाय को संबोधित किया। जब ब्रिटिश सरकार ने भारतीय रक्षा विनियमों के तहत उनके बेटे की गिरफ्तार किया तो उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। आबादी बानो 1917 में पहली बार महात्मा गांधी से मिलीं। गांधी जी उन्हें हमेशा 'अम्मीजान' कहकर संबोधित करते थे। उन्होंने अखिल भारतीय दौरों के लिए महात्मा गांधी और अन्य खिलाफत नेताओं की आर्थिक रूप से मदद की और 1917 में कलकत्ता में आयोजित इंडियन नेशनल कांग्रेस तथा ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के सत्रों में भाग लिया। इन बैठकों में आबादी बानो बेगम ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता के माध्यम से ही स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है।

उन्होंने 1919 में खिलाफत और असहयोग आंदोलन में एक रचनात्मक भूमिका निभाई। यहाँ तक की ब्रिटिश सरकार के आधिकारिक रिकॉर्ड ने उन्हें 'खतरनाक व्यक्ति' के रूप में माना था जो औपनिवेशिक शासन को चुनौती दे सकता है। राजनीति में भाग लेने के अलावा उन्होंने पूरे भारत में कई महिला संगठनों का मार्गदर्शन भी किया। वह राजनीतिक सभा को संबोधित करने वाली पहली मुस्लिम महिलाओं में से एक थी जिसमें उन्होंने बुर्का पहना था। साथ ही साथ उन्होंने धन एकत्र किया, बैठकें आयोजित कीं और भारतीय महिलाओं से खादी का उपयोग करने तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने को कहा तथा तिलक स्वराज कोष में दान करने के लिए प्रोत्साहित किया जो बाल गंगाधर तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए स्थापित किया था। बी अम्मा ने जीवन भर संघर्ष किया ये देशभक्त और राष्ट्रवादी महिला थी जिन्होंने सदैव राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। 13 नवंबर, 1924 को उन्होंने वृद्धावस्था में अंतिम सांस ली और देशभक्ति आंदोलनों के इतिहास में कहीं खो गई।

संदर्भ:
1. http://heritagetimes.in/abadi-bano-begum/
2. https://bit.ly/2ESsUg2

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