बापू का हिटलर को ख़त

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
05-03-2019 11:23 AM
बापू का हिटलर को ख़त

1940 के दशक में, जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था, वहीं शेष विश्व द्वितीय विश्व युद्ध की प्रलय को झेल रहा था। 1945 में इस युद्ध के समाप्त होने तक, हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम गिरने के साथ, हताहतों की संख्या कथित तौर पर 70 मिलियन तक पहुंच गई थी। इन वर्षों के दौरान दो अलग-अलग देशों में दो लोग उभरे जिन्होंने दुनिया को कई तरह से प्रभावित किया। इनमें से एक शांतिवादी विचारक थे जो धर्मनिरपेक्षता और मानवीयता में विश्वास करते थे। वहीं दूसरा नस्लीय अहंकारी था जिसने नस्लीय श्रेष्ठता के लिए लगभग आधी यूरोपीय आबादी को मिटा दिया। हम बात कर रहे है अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की और हिंसा के पुजारी अडोल्फ़ हिटलर की।

द्वितीय विश्व युद्ध के नरसंहार को रोकने के लिये गांधी जी ने हिटलर को दो बार पत्र लिखकर मानवता के वास्ते द्वितीय विश्व युद्ध रोकने की अपील की थी। रिकॉर्ड कहते हैं कि महात्मा गांधी ने हिटलर को दो पत्र लिखे थे। परंतु उन पत्रों में क्या लिखा था? इनको पढ़ कर हिटलर की क्या प्रतिक्रिया थी? आइए जानते है इन सभी सवालों के जवाब।

हिटलर को पत्र लिखकर युद्ध रोकने और नरसंहार के खिलाफ अपने मन को बदलने की अपील की थी बापू ने और उम्मीद की थी कि वे उनकी बात पर ध्यान देंगें। साथ ही साथ बापू ने हिटलर को सचेत किया था कि हिंसक रास्ते पर किसी का एकाधिकार नहीं होता और कोई दूसरी शक्ति अधिक व्यवस्थित होकर उन्हें परास्त कर सकती है। बापू ने हिटलर को दो पत्र लिखे थे। इसमें से पहला पत्र 23 जुलाई 1939 और दूसरा पत्र 24 दिसंबर 1940 को लिखा गया था। अपना पहला पत्र गांधी जी ने अपने कुछ दोस्तों और सहयोगियों के कहने पर नरसंहार को रोकने के लिये हिटलर को लिखा था, इस पत्र में गांधी जी ने हिटलर को अपने "दोस्त" के रूप में संदर्भित किया था, क्योंकि गांधी जी किसी को अपना दुश्मन नहीं मानते थे। उन्होंने हिटलर से निवेदन किया:

‘आज यह स्पष्ट है कि आप एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो इस युद्ध को रोक सकते हैं जिससे मानवता इस बर्बरता की स्थिति से उभर सकें। चाहे वो लक्ष्य आपको कितना भी मूल्यवान प्रतीत हो, क्या आप उसके लिए इतनी भारी कीमत चुकाना चाहेंगे? क्या आप एक ऐसे शख्स की अपील पर ध्यान देना चाहेंगे जिसने उल्लेखनीय सफलताओं के बावजूद जगजाहिर तौर पर युद्ध के तरीके को खारिज किया है।’

गांधी जानते थे कि हिटलर नाजीवादी अत्याचारी, नस्लवाद और झूठे अभिमान वाले व्यक्ति के अलावा कुछ नहीं था। उसके लिए केवल युद्ध ही अंतिम समाधान था। जब नॉर्वे, डेनमार्क, फ्रांस, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड और बेल्जियम में हिटलर की सैन्य गतिविधियाँ बढ़ गई थीं तब उस समय 24 दिसंबर 1940 को वर्धा से गांधी जी ने हिटलर को दूसरा पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने युद्ध के प्रति अपनी घृणा को भी दर्शाया और उनके कृत्यों की निंदा भी की। गांधी लिखते हैं कि: ‘वे नाजीवाद का लगभग उतना ही विरोध करते हैं जितना कि वे ब्रिटिश साम्राज्यवाद का विरोध करते हैं।’ उसी समय, उन्होंने दावा किया कि वे किसी भी जर्मन सहायता के साथ ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के इच्छुक नहीं है बल्कि इसके लिए अहिंसा का रास्ता अपना रहे हैं, यह बात सुभाष चंद्र बोस के लिये एक संकेत थी जो जर्मनी में धुरी शक्तियों के साथ गठबंधन कर रहे थे। साथ ही साथ गांधी ने हिटलर को चेतावनी दी कि:

‘आप अपने लोगों के लिए ऐसी कोई विरासत नहीं छोड़ रहे हैं जिस पर वे गर्व कर सकें। ब्रिटिश नहीं तो कोई भी अन्य शक्ति इस रास्ते पर और अधिक व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़कर आपको परास्त कर देगी। अगर आप युद्ध में जीत भी जाते हैं तो भी यह साबित नहीं होगा कि आप सही थे। इससे यही साबित होगा कि आपकी विधुवंसक क्षमता अधिक है। मैंने काफी पहले ब्रिटेन के सभी लोगों से अहिंसा के रास्ते को अपनाने की अपील की थी। आपसे भी यही अपील कर रहा हूं।’

परंतु हिटलर ने शायद कभी भी गांधी के पत्रों को नहीं पढ़ा। पहला पत्र ब्रिटिश हस्तक्षेप के कारण उसके पास तक कभी नहीं पहुंचा। ब्रिटिश अधिकारियों ने इसे जर्मनी तक पहुंचने से पहले ही रोक दिया था। विश्व युद्ध के दिनों में ब्रिटिश अधिकार के चलते जर्मनी में संदेश भेजना बहुत मुश्किल था। 1940 में गांधी के दूसरे पत्र को भी ब्रिटिशों द्वारा रोक दिया गया था और इसलिए कभी भी हिटलर तक गांधी जी का कोई भी पत्र नहीं पहुंच पाया।

गांधी जी नहीं जानते थे कि उनके पहले पत्र में शांति की स्थापना की सलाह पर हिटलर ने कैसे प्रतिक्रिया दी होगी। इसलिए, गांधी जी ने हिटलर को दो पत्र लिखे, फिर भी हिटलर ने कभी भी उनके पत्र का कोई भी जवाब नहीं दिया, देते भी कैसे क्योंकि उन्हें उनमें से कोई भी पत्र नहीं मिला था। दोनों पत्रों को अंग्रेजों ने रोक दिया था।

द्वितीय विश्व युद्ध 1940 के बाद भी जारी रहा, बड़े पैमाने पर विनाश हुआ, और इसकी त्रासदी को लगभग आधी सदी तक दुनिया भर में महसूस किया गया था, और शायद आज भी किया जा रहा है। जरा सोचिये कितना अलग इतिहास होता यदि हिटलर ने उन पत्रों को पढ़ा होता और महात्मा गांधी की सलाह का पालन किया होता। शायद तब इतने बड़े पैमाने पर नरसंहार नहीं हुआ होता।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2TftTRf
2. https://www.mkgandhi.org/letters/hitler_ltr.htm
3. https://www.mkgandhi.org/letters/hitler_ltr1.htm
4. https://www.quora.com/Did-Adolf-Hitler-Reply-to-Gandhis-letter

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