चपाती आंदोलन : 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में चपातियां बनी संदेशवाहक

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
14-12-2018 12:59 PM
चपाती आंदोलन : 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में चपातियां बनी संदेशवाहक

‘भोजन’ भोजन मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है, क्योंकि भोजन के बिना जीवन असम्भव है इसलिये मनुष्य के जीवन में भोजन का महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे भोजन में शामिल खाद्य पदार्थों ने ना केवल हमारी भूख मिटाई है बल्कि कुछ खास क्रांतियों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है। कई बार खानपान से जुड़ी चीजों ने स्वतंत्रता संग्रामों को हवा दी है और कई दफ़ा इन्होंने पूरे राष्ट्र को जाग्रत करने और एकता के सूत्र में पिरोने का काम भी किया है। चाहे वो सत्याग्रह आंदोलन में नमक की भूमिका हो या जंगे-आजादी में चपाती की, दोनों ने ही भारत को स्वतंत्रता दिलाने में एक अहम भूमिका निभाई है।

सत्याग्रह आंदोलन के बारे में तो आप सभी ने कभी न कभी तो सुना ही होगा परंतु बहुत कम लोग जानते है की 1857 में शुरू हुए भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में चपातियां (रोटियां) गांव-गांव में क्रांति की ज्वाला जगाने और गुप्त संदेश पहुंचाने का माध्यम थीं। तो चलिये जानते है इस ऐतिहासिक घटना में चपातियों की महत्वपूर्ण भूमिका का एक संक्षिप्त विवरण।

प्लासी के युद्ध के साथ ही भारत में अंग्रेजो की सत्ता का भी आरम्भ हुआ और इसके ठीक सौ साल पश्चात 1857 में भारत में पहली बार स्वाधीनता प्राप्ति की भावना जाग्रत हुई। ये वो ही समय था जब एक साधारण सी दिखने वाली चपाती, ब्रिटिश अधिकारियों के लिये परेशानी का सबब बन गई थी। 1857 में, ब्रिटिशों के खिलाफ भारतीय चुपचाप विद्रोह की योजना बना रहे थे। उस वर्ष फरवरी में, एक विचित्र घटना शुरू हुई। रात भर धावकों द्वारा हजारों अनगिनत चपातियां आस पास के गांवों के घरों और पुलिस चौकियों को वितरित कि जा रही थी। और जो लोग इसे स्वीकार कर रहे थे वे चुपचाप और भी अधिक दल बना रहे थे और चपातियों को आगे वितरित कर रहे थे।

इस घटना की जानकारी सर्वप्रथम मथुरा शहर के मजिस्ट्रेट मार्क थॉर्नहिल को मिली, फिर उन्होने जांच में पाया की चपातियों का वितरित रहस्यमय तरीके से हर रात 300 किलोमीटर तक किया जा रहा है। दक्षिण में नर्मदा नदी से लेकर नेपाल की सीमा के कई सौ मील उत्तर तक इन चपातियों का वितरण किया जा रहा है। उन्हें चपातियों को लेकर संदेह तो हुआ था, लेकिन वे कोई सबूत नहीं खोज पाए थे। चूंकि चपातियों पर ना ही कोई शब्द लिखा होता था और ना ही किसी के हस्ताक्षर हुए थे। हालांकि ब्रिटिशों आधिकारों को पूरा अंदेशा था कि इन चपातियों में जरूर कोई ना कोई गुप्त संदेश छिपा है, परंतु जांच करने पर भी उन्हे कुछ ना मिला। इस वितरण की प्रकिया में एक व्यक्ति जंगल के रास्ते आता था और गांव के पहरेदार को कई चपातियां दे कर कह जाता कि और अधिक चपातियां बना कर आस-पास के घरों और अन्य गांवों पहरेदारों को वितरित करें। इस प्रकार अक्सर ब्रिटिशों चपाती के मूल स्रोत के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। ऐसी खबरें भी थीं कि चपाती को कभी-कभी कमल के फूल और बकरी के मांस के साथ वितरित किया जा रहा था।

एक अंग्रेजी अख़बार “द् फ्रेंड ऑफ इण्डिया” (The Friend of India) ने 5 मार्च 1857 के संस्करण में बताया कि ब्रिटिश अधिकारियों को भ्रमित किया जा रहा था, और इन घटनाओं का असर इतना हो गया था की ब्रिटिश अधिकारी चौकियों में चपातियां आने से ही डर जाते थे। चपातियों की इस यात्रा ने जल्द ही एक आंदोलन का रूप ले लिया था और ये चपातियां देखते ही देखते 5 मार्च, 1857 तक फ़र्रूख़ाबाद से गुड़गांव तथा अवध से रोहिलखंड और दिल्ली तक फैल गयी थी। इस को देख कर ब्रिटिश अधिकारियों के बीच एक घबराहट सी फैल गई थी। उन्हे पता चल गया था की ये चपातियां क्षेत्र के हर गांव तक फैल गई है और इस गतिविधि में लगभग 90,000 पुलिसकर्मी भाग ले रहे है। वे हर बार सोचते थे कि इन चपातियों में किसी प्रकार का कोड (code) है, जो औपनिवेशिक शासन के खिलाफ विद्रोह करने के लिए एक आह्वान का जरिया है। परंतु उनके हाथ कोई भी साक्ष्य नही लगा।

इस चपाती आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ों को हिला कर रख दिया था। ब्रिटिश अधिकारी जानते थे कि उस क्षेत्र उनकी सैन्य क्षमता 100,000 पुरुषों की है और जन साधारण की आबादी 25 करोड़ है, यदि विद्रोह फैल गया तो वो इसे रोक नही पाएंगे। अंत में यह चपाती आंदोलन देश में प्रचलित हो गया और इसने एक विद्रोह वातावरण बना दिया। जिसके फलस्वरूप उसी वर्ष विद्रोह फूटा और 10 मई 1857 की क्रांति का जन्म हुआ। माना जाता है कि चपाती के वितरण से एक भ्रम पैदा किया और भूमिगत आंदोलन की योजना को गति प्रदान की।

1857 की क्रांति के सालो बाद जे डब्ल्यू शेरर ने अपनी पुस्तक में “लाइफ ड्युरिंग द् इण्डिअन म्‍यूटिनी” (Life During the Indian Mutiny) में स्वीकार किया की यदि इस रणनीति के पीछे का उद्देश्य एक रहस्यमय बेचैनी का वातावरण बनाना था, तो यह प्रयोग बहुत सफल रहा था। ये रणनीति औपनिवेशिक शासन के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध का एक प्रभावी हथियार बन गयी थी।

संदर्भ:

1. https://www.thebetterindia.com/59404/chapati-movement-india-revolt/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Chapati_Movement
3. https://www.scoopwhoop.com/The-Mysterious-Chapati-Movement-Of-1857/

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