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भारत में शक्तिपीठों का विशेष महत्व है। यह शक्तिपीठ माता सती के अवशेषों पर बनाये गये हैं जो भारत ही नहीं वरन् बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान की भूमि पर भी गिरे। इन सभी स्थानों पर माता के मंदिर स्थापित किये गये हैं जिन्हें हम शक्तिपीठों के नाम से जानते हैं। इन शक्तिपीठों के पीछे जुड़ी है एक ऐतिहासिक कहानी:
किंवदंती के अनुसार सती के पिता दक्ष द्वारा ‘बृहस्पति सर्व’ नामक यज्ञ रखवाया गया था, जिसमें उन्होंने शिव और सती को नहीं बुलाया था। भगवान शिव और सती को यज्ञ में ना बुलाने का कारण यह था कि एक बार भूल में भगवान शिव द्वारा दक्ष का अपमान हो गया था, जिस से दक्ष उनसे क्रोधित थे। भगवान शिव से बदला लेने के लिए उन्होंने भगवान शिव और सती को यज्ञ में नहीं बुलाया, परंतु भगवान शिव के लाख मना करने के बाद भी माता सती यज्ञ में गईं। यज्ञ में पहुंचने पर उनका वहाँ किसी ने स्वागत नहीं किया और साथ ही यज्ञ में दक्ष द्वारा शिव का अपमान सति द्वारा सहन नहीं हो पाया और उन्होंने क्रोध में यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।
वहीं भगवान शिव को जब इस बात का पता चला तो वे क्रोधित हो उठे और माता सती के देह को उठाकर तांडव करने लगे। ऊपर दिए गए चित्र में भगवान शिव को अपने त्रिशूल पर सती को उठाये देखा जा सकता है। साथ ही उनके वीरभद्र के अवतार द्वारा दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर उसका सिर काट दिया गया। लेकिन भगवान शिव के तांडव से सृष्टि का विनाष होने लगा। देवताओं की प्राथना पर विष्णु भगवान द्वारा अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के देह के टुकड़े कर दिए गये जो भारतीय उपमहाद्वीप के कई स्थानों पर गिरे और वह शक्ति पीठों के रूप में स्थापित हुए।
दक्ष यज्ञ और माता सती का आत्मत्याग का इतिहास प्राचिन संस्कृत साहित्य को आकार देने और भारत की संस्कृति को प्रभावित करने में काफी महत्व रखता है। इसने शक्ति पीठों की अवधारणा को विकसित किया और इस प्रकार शक्तिवाद को भी मज़बूत किया। पुराणों और अन्य हिंदू धार्मिक पुस्तकों में बतायी गयी कई कहानियों में दक्ष यज्ञ को उनकी उत्पत्ति का कारण बताया गया है। यह शैववाद में भी एक महत्वपूर्ण प्रसंग है, जिसके माध्यम से माता पार्वति की उत्पत्ति हुई और शिव जी एक गृहस्थश्रम (घर धारक) बन गए, और फिर गणेश और कार्तिकेय की उत्पत्ति हुई।
ऐसा माना जाता है कि इन शक्ति पीठों में शक्ति की उपस्थिति के साथ-साथ माता सती का आशीर्वाद भी है। ये 51 शक्ति पीठ संस्कृत के 51 वर्णमाला से जुड़े हैं। प्रत्येक मंदिर में शक्ति और कालभैरव के लिए एक पवित्र स्थान मौजूद होता है, और विभिन्न शक्ति पीठों में अधिकांश शक्ति और कालभैरव के अलग-अलग नाम होते हैं। 51 शक्ति पीठों की सूची निम्न है:
संदर्भ:
1.https://blog.astrogeography.com/2016/03/03/astrology-sacred-sites-shakti-peetha-shrines/
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Shakti_Peetha
3.https://www.speakingtree.in/blog/about-shakthi-peetams
4.https://www.speakingtree.in/allslides/did-you-know-there-is-a-durga-shakti-peeth-in-pakistan
5.https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A0
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