विश्व के शुरूआती सर्कसों से जुड़ा है भारत का अतीत

द्रिश्य 2- अभिनय कला
05-11-2018 02:14 PM
विश्व के शुरूआती सर्कसों से जुड़ा है भारत का अतीत

बच्चे हों या फिर जवान, सर्कस का नाम सुनकर सबके मन में एक अलग खुशी महसूस होने लगती है। सर्कस में दिखाए जाने वाले करतब, जानवरों और इंसानों का तालमेल हम सब के मन को काफी भाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं, इन सर्कसों की उत्पत्ति ने भारत के औपनिवेशिक युग में एक भयानक इतिहास को पीछे छोड़ रखा है, जिसे शायद ही हम में से कोई जानता हो।

विश्व में सबसे पहला सर्कस औपनिवेशिक युग में इंग्लैंड और यू.एस.ए. में शुरू हुआ था। इन सर्कसों में विदेशी जानवरों और लोगों का आयात एक बड़े पैमाने में जर्मन आपूर्तिकर्ता कार्ल हेगेनबेक द्वारा किया जाता था। 1880 और 1915 के बीच, हेगेनबेक द्वारा भारत के हजारों जंगली जानवरों और कई सड़क-प्रदर्शन करने वाले लोगों को यूरोप और यू.एस.ए. ले जाया गया था। हेगेनबेक द्वारा ले जाए जाने वाले जानवरों और इंसानों की संख्या काफी चौंका देने वाली है। उसने अपने व्यापार के शुरुआती 20 वर्षों में कम से कम 1,000 शेरों, 300 से 400 बाघ, 600 से 700 तेंदुए, विभिन्न किस्मों के 1,000 भालू और लगभग 800 लकड़बग्घों को बेचा था। 300 हाथियों का वो व्यापार कर चुका था। साथ ही 17 गैंडों, जिनमें से 3 भारत के और 9 अफ्रीका के थे। वहीं 150 जिराफ़ और 600 दुर्लभ, बड़े और खूबसूरत विविध प्रजातियों के हिरनों का कंपनी द्वारा व्यापार किया गया।

1870 के दशक के मध्य तक, विदेशी जानवरों का व्यापार थोड़ा ढीला हो गया था, तो उसने इंसानों के आयात की ओर रुख मोड़ लिया। हेगेनबेक द्वारा 30 बारहसिंगा और उनके साथ लैपलैंडर्स (Laplanders) के एक परिवार को उनके तंबु और हथियार समेत लाया गया था। और वहीं 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, हेगेनबेक द्वारा सर्कस का भी काफी प्रचार किया गया। 1907 में हेगेनबेक द्वारा जर्मनी के हैम्बर्ग (Hamburg) के एक गांव में एनिमल पार्क (Animal park) खोला गया। उन्होंने अपने सारे व्यवसाय को इस पार्क के माध्यम से एकीकृत कर दिया। हेगेनबेक द्वारा जंगली जानवरों और इंसानों को पिंजरों से बाहर निकाल प्राकृतिक भूमि में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने यह जानवरों और इंसानों को कैद करने का एक नया तरीका खोजा था। उनके इस व्यापार की योजना ने जानवरों और इंसानों को पिंजड़े की कैद से मुक्ति दिलायी थी।

आधुनिक सर्कस को वास्तव में फिलिप एस्टली (Philip Astley) (1742-1814) द्वारा 1768 में इंग्लैंड में बनाया गया था। उन्हें सर्कस के पिता होने का श्रेय भी दिया जाता है। 1770 में उन्होंने कलाबाजों, रस्सी पर चलने वालों, जादूगरों और एक जोकर को किराए में लेकर अपने प्रदर्शन को विकसित किया। वहीं उनके अगले पचास वर्षों के दौरान उनका प्रदर्शन काफी महत्वपूर्ण रूप से विकसित हुआ, और उनके द्वारा दिखाया गया नाटकीय युद्ध उनके प्रदर्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। 1782 में एस्टली द्वारा पेरिस में पहला ‘एम्फीथिएटर एंग्लोइस’ (Amphitheatre Anglois) सर्कस खोला गया। इसके बाद विभिन्न सर्कस खुले, और उनके द्वारा देश विदेश में जाकर प्रदर्शन किया गया, और इस माध्यम से सर्कस ने पूरे विश्व में अपना एक अलग स्थान बना लिया।

भारत और श्रीलंका (पूर्व सिलोन) से मानव चिड़ियाघर की कालक्रम सूची :

  • 1885 - इंडियन विलेज एट दि अल्बर्ट पैलेस (Indian Village at the Albert Palace)
  • 1886 - कार्ल हेगेनबेक सिलोनीज़ एग्ज़ीबिशन (Carl Hagenbeck’s Ceylonese Exhibition)
  • 1887 - सिंघेलेसेन कास्सेल (Singhalesen Kassel)
  • 1898 - कार्ल हेगेनबेक इंडियन (Carl Hagenbeck’s Indien)
  • 1900/1901 – जे. एंड जी. हेगेनबेक मालाबारेन-ट्रूपे (J. & G. Hagenbeck’s Malabaren-Truppe)
  • 1904 – जे. एंड जी. हेगेनबेक इंडियन ऑसटलंग (J. & G. Hagenbeck’s ind. Ausstellung)
संदर्भ:

1. http://www.circopedia.org/SHORT_HISTORY_OF_THE_CIRCUS
2. https://www.ft.com/content/d351de76-d2ca-11e6-b06b-680c49b4b4c0
3. https://jhupbooks.press.jhu.edu/content/savages-and-beasts
4. http://www.humanzoos.net/?page_id=764

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