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महात्मा गांधी ने जिस चरखे से सूत कातकर देशवासियों में स्वराज और आजादी की ज्वाला जगाई थी, उन्होंने इसे आत्मनिर्भरता और ग्रामीण आबादी के लिए आय के स्रोत के प्रतीक के रूप में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान चरखे को बढ़ावा दिया। आज यह चरखा वैश्वीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भीड़ में कहीं पीछे छूट गया है, लेकिन महात्मा गांधी का यह चरखा आज भी प्रासंगिक है और बेरोजगारी से जूझ रही बड़ी आबादी को रोजगार मुहैया करा सकता है।
इस अद्भुत चरखे का इतिहास भी इसकी तरह रोचक है। चरखे का आविष्कार किसने और कब किया इसके बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि भारत में कताईचरखा 500 या 1000 ईसा के बीच में आया था। कई शोध से यह पाया गया है की इसका आविष्कार चीन में हुआ और उसके बाद ये चीन से इरान और फिर वहाँ से भारत और भारत से युरोप में पहुंचा। जो निश्चित परिणाम मिलता है, वह यह है कि मध्य युग के उत्तरार्ध और प्रारंभिक पुनर्जागरण के दौरान यह चरखा पाया गया था।
समय के साथ इस कताई चक्र में भी काफी विकास हुआ, सन् 1764 में ब्रिटिश जेम्स हर्ग्रेव्स (बढ़ई और बुनकर) ने हाथ से संचालित होने वाली अनेक कताई मशीनों का आविष्कार किया, जो पहला वास्तविक मशीनीकृत आविष्कार था। इसके बाद लोगों के मध्य इसकी मांग में काफी बढ़ोतरी हो गयी, और इससे कताई चक्र औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई। कताई चक्र के संस्करण इस प्रकार हैं:
1) ग्रेट पहिया:- ग्रेट पहिया सबसे पहला कताई चक्र है। यह पहिया कताई के दौरान एक लंबी खिंचाई करने में लाभदायी है, इसके लिए सिर्फ एक हाथ का सक्रिय रहना जरूरी होता है, जबकि दुसरे हाथ से पहिये को बदला जाता है। इससे कपास और रेशम की कताई के बाद महीन धागे में परिवर्तित किया जाता है।
2) सैक्सोनी पहिया:-सैक्सोनी पहिया अमेरिका में इस्तेमाल होने वाला सबसे प्रसिद्ध कताई चक्र है। यह ग्रेट पहिया की तुलना में काफी छोटा है। यह तीन पायो पर खड़ा है और इसमें पहिया घुमाने के लिए हाथों का नहीं फुट पैडल का इस्तेमाल किया जाता है। सैक्सोनी पहिया का अमेरिका को ब्रिटिश से आजादी दिलाने में काफी योगदान रहा है।
3) चरखा:- चरखा पहिया ग्रेट पहिया के समान कार्य करता है, बस इसमें इतना फर्क है कि इसका इस्तेमाल फर्श में या मेज में रखकर कर सकते हैं। चरखे का भारत की आजादी में भी काफी योगदान रहा है। ब्रिटिश द्वारा भारत से कपास को इंग्लैंड भेजा जाता था, वहाँ इनसे कपड़े बनाये जाते थे। और वापिस भारत में लाकर उच्च कीमत में भारतीयों को बेचे जाते थे, जिसे खरीदने में कई भारतीय समर्थ नहीं थे। ब्रिटिशों की इस प्रक्रिया के खिलाफ गांधी जी ने आवाज उठाई और भारतीयों को बुनाई करने और स्वइदेश निर्मित कपड़े पहनने और खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया। कई बार गांधी जी द्वारा लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए सार्वजनिक बुनाई भी की जाती थी। चूंकि परंपरागत चरखा आमतौर पर भारी होने के कारण स्थानांतरण में काफी कठिनाई देता था। इस समस्या का निस्तारण करने के लिए गांधी जीने ठोस, वहनीय और किफायती चरखा बनाने की प्रतियोगिता का आरंभ किया, जिसमें बॉक्स डिजाइन वाले चरखे ने प्रतियोगिता जीती। फिर लोगों द्वारा आराम से बुनाई होने लगी और उन्होंने खादीका इस्तेमाल कर कपास का उत्पादन को बंद कर दिया, जिससे ब्रिटिश के कपड़ों का व्यपार बंद हो गया।
महात्मा गांधी की समाधि वैसे तो दिल्ली के राजघाट में है, लेकिन 11 फरवरी 1948 को बापू की अस्थियां रामपुर में लायी गयी थी। तब इनकी अस्थियों का कुछ हिस्सा कोसी नदी में विसर्जित कर दिया गया और शेष अस्थियों को चांदी के कलश में रखकर समाधी में दफना दिया गया। जो आज रामपुर में स्थित है।
संदर्भ:
1.https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/rampur/gandhi-samadhi-in-rampur-hindi-news (just give a small brief on this and mainly focus on the charkha)
2.http://www.charkhafiberbook.com/history.html
3.http://www.gandhitopia.org/group/mgnd/forum/topics/variations-of-the-invention-of-the-spinning-wheel
4.https://www.thoughtco.com/spinning-wheel-evolution-1992414
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