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रामपुर एक सपनों का शहर है जिसे बड़ी शिद्दत के साथ यहाँ के नवाबों ने बसाया था। यहाँ पर उपस्थित विभिन्न महल, कोठियाँ, बड़े दरवाजे, किलेबंदी आदि रामपुर के इस पहलू पर प्रकाश डालते हैं कि किस तरह से नवाब फैजुल्लाह खान से लेकर के नवाब हामिद अली खान ने रामपुर को सजाया और संवारा। रामपुर में नवाबों ने अनेकों बगीचों का निर्माण करवाया था जिसमें उन्होंने अनेकों प्रकार के देसी-विदेशी फूलों को लगाया था। रामपुर की रज़ा पुस्तकालय के सामने आज भी ऐसे ही एक बगीचे को हम देख सकते हैं जहाँ से हम आज भी नवाबों द्वारा लगवाये गए पौधे की नस्ल को पाते हैं। जब यह बगीचा गुलजार हुआ करता था तब ये पौधे लगाए गए थे। रामपुर की कोठी ख़ास बाग़ को बड़े नाज़ों से बनवाया गया था जिसका प्रमाण यहाँ पर पाए जाने वाले विभिन्न बगीचे देते हैं।
सुबह के समय कोठी खास बाग़ पंछियों के कलरव से गुलजार हो जाता है। यहाँ पर अनेकों प्रकार के पंछी आते हैं। कोठी खास बाग़ में मुख्य रूप से 3 दरवाजे हैं जिनके सामने पहले बगीचा हुआ करता था। आज भी यदि कोई इन दरवाजों से सामने देखे तो इस कोठी से कुछ ही दूरी पर हमें अति विशालकाय फव्वारा दिखाई देता है। इसके अलावा करीब 100 मीटर आगे ही विभिन्न सीढ़ियाँ भी बनवाई गयी हैं जो संभवतः सायं काल में घूमने के दृष्टिकोण से बनवाई गयी होंगी। कोठी खास बाग़ के सामने का स्थान जो अभी वर्तमान में खेत के रूप में प्रयोग में लाया जाता है, के स्थान पर पगडंडियों आदि का भी निर्माण किया गया था जो कि बगीचे में चलने फिरने के लिए प्रयोग में लायी जाती थीं। इन पगडंडियों के साक्ष्य अभी भी मौजूद हैं।
कोठी खास बाग़ के सामने ही दायें हाथ पर हमें एक अजीब सी आकृति देखने को मिलती है जिसमें एक छोटे तालाब पर पत्थर की आकृति बनायीं गयी हैं। यह स्थान एक समय में जापानी बाग़ हुआ करता था। जैसा कि रामपुर में विभिन्न प्रकार के बगीचे हुआ करते थे, उन्ही में से यह जापानी बाग़ अत्यंत ही महत्वपूर्ण था। जापानी बाग़ में पत्थर, तालाब, विभिन्न प्रकार के पौधों को खास तरीके से लगाया व संवारा जाता था। आज यह बगीचा यहाँ पर स्थित नहीं है परन्तु इसकी झलकियाँ आज भी यहाँ दिखायी दे जाती हैं जैसा चित्र में दर्शाया गया है। एक समय ऐसा हुआ करता था जब इस कोठी खास बाग़ के सामने हजारों फव्वारे हुआ करते थे लेकिन आज वर्तमान में कोई 2 या 3 ही हमें दिखाई देते हैं। रामपुर के शायर लिखते हैं कि- “गुलाम गर्दिशें सूनी पड़ी हैं मुद्दत से, मगर परिंदे सुबह-ओ-शाम बोलते हैं” । यह शायर हैं गुलरेज़ जो कि कोठी खास बाग़ के ही एक कमरे में रहते हैं। इन्होंने यह शेर इन्हीं उजड़े बगीचे में टहलते हुए लिखा जिसमें रामपुर के इन उजड़े पड़े बगीचों की याद छुपी है।
1. http://espacepourlavie.ca/en/elements-japanese-garden
2. https://www.japan-guide.com/e/e2099_elements.html
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Japanese_garden
4. https://www.livemint.com/Leisure/RpjbeC3aq51fXrgFkg9aPP/Legacy--The-idea-of-Rampur.html
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