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दिल्ली में स्थित हुमायूँ के मकबरे के पास लाल बलुए पत्थर के तल पर नज्मत-अल-क़ुद्स उभरा हुआ है। इस तारे के आठ कोने हैं और इसे जेरूसलम का सितारा भी कहते हैं। इसने अरबी कला और इस्लामी आस्था में अहम् योगदान दिया है, इसकी कारीगरी काफ़ी अद्भुत है और यहाँ सितारे के साथ-साथ कई भुगोलीय चित्र भी हैं। आठ कोनों वाला तारा नज्मत-अल-क़ुद्स इस्लामी चित्रकला के लिए अहम है, और यह केवल सजवाट के लिए नहीं है बल्कि यह बहुत सी वस्तुओं को दर्शाता है। यह सितारा रामपुर में रज़ा पुस्तकालय की ओर जाने वाले दरवाज़ों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर नज्मत-अल-क़ुद्स की अहमियत क्या है?
सबसे पहले इसकी आकृति को समझना होगा - यह सितारा 2 चौकोर को एक दूसरे के ऊपर रखकर बना है। इस सितारे की आकृति अरब में इस्लाम की खोज को दर्शाती है। जैसे 6 कोने वाला सितारा, नज्मत दाऊद दुनिया भर में प्राचीन संस्कृतियों में व्यापाक रूप से अलग-अलग व्याख्याओं के साथ दिखाई देता है और मध्यकालीन हिन्दुस्तान में दिल्ली सल्तनत के दोनों शासकों और बाद में गुर्कानियों द्वारा एक इंडो-इस्लामी वास्तुकला के रूप में इस्तेमाल किया गया था, उसी तरह से 8 कोने वाला सितारा भी विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों में मौजूद था। नज्मत-अल-क़ुद्स के पहले भी कई और डिज़ाइन थे जैसे - रुब-एल-हिज्ब, इसमें 2 तारे एक ही फ्रेम में मौजूद थे। यह इस्लामी दर्शन या फिलोसोफी को दर्शाता है; ऐसे तारे बहुत से मकबरों के ऊपर मौजूद हैं। इन्हें अल-क़ुद्स कहा जाता है, अल-क़ुद्स का मतलब अरबी में जेरूसलम होता है। दुनिया के अलग-अलग प्राचीन सभ्यताओं में बहुत सी भौगोलिक चित्रकलाएं पाई गई हैं, लेकिन तारे वाली वास्तुकला केवल मिस्र, यूनान, अरब और रोम में ही पाई गई है। हिन्दू धर्म में भी सितारे का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, विभिन्न भौगोलिक व नक्षत्रों के अध्ययन में इनका प्रयोग प्रदर्शित किया गया है।
1. http://farbound.net/najmat-al-quds-star-of-jerusalem-humayuns-mausoleum0nizzamuddin-east/
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