अंडे देने और सेने से लेकर, चूज़ों के उड़ने तक, पालन-पोषण करते हैं, पक्षी अपने बच्चों का

शारीरिक
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अंडे देने और सेने से लेकर, चूज़ों के उड़ने तक, पालन-पोषण करते हैं, पक्षी अपने बच्चों का
पक्षियों का दुनिया में नया जीवन लाने का तरीका एकदम अद्भुत एवं अविश्वसनीय है, जिसकी शुरुआत अंडे देने से होती है। माँ सावधानी से अंडों को एक सुरक्षित, अच्छी तरह से छिपे हुए घोंसले में रखती है, जबकि पिता अक्सर अंडों की सुरक्षा और उन्हें गर्म रखने में मदद करते हैं। कई दिनों या हफ्तों तक सावधानीपूर्वक ऊष्मायन के बाद, अंडे फूटते हैं और उनमें से छोटे-छोटे चूज़े बाहर निकलते हैं। माता-पिता चूज़ों का पालन-पोषण तब तक करते हैं जब तक कि वे घोंसला छोड़ने और उड़ान भरने के लिए पर्याप्त मज़बूत नहीं हो जाते। अंडे देने और पालन-पोषण की यह प्रक्रिया प्रकृति की रचना का एक सुंदर उदाहरण है, जो पक्षियों के अस्तित्व और उनकी प्रजातियों की निरंतरता को सुनिश्चित करती है। तो आइए आज, पक्षियों में प्रजनन की प्रक्रिया के बारे में जानते हुए देखते हैं कि पक्षी कैसे प्रजनन करते हैं और अपने बच्चों का पालन-पोषण कैसे करते हैं। इसके साथ ही, हम पक्षियों में अंडे सेने की प्रक्रिया पर भी प्रकाश डालेंगे।
पक्षियों में प्रजनन-
हम जानते हैं कि मुर्गियाँ अंडे देती हैं। लेकिन आपके मन में एक प्रश्न अवश्य उठता होगा कि वे ऐसा कैसे करती हैं? यह सब एक साथी को आकर्षित करने के उद्देश्यपूर्ण व्यवहार से शुरू होता है। नर पक्षी आमतौर पर मादा पक्षी को आकर्षित करने के लिए नृत्य, हवाई उड़ानें, या पूंछ को हिलाना जैसे प्रदर्शन करते हैं। अधिकांश नर पक्षी मादाओं को आकर्षित करने के लिए एक प्रकार का गीत भी गाते हैं। सरीसृपों (Reptiles) की तरह, पक्षियों में भी शुक्राणु, अंडे और अपशिष्ट के लिए एकल निकास और प्रवेश द्वार के रूप में एक अवस्कर गुहा होती है। पक्षी आंतरिक निषेचन द्वारा प्रजनन करते हैं। जब मादा के अंदर एक अंडा निषेचित होता है, तो मादा पक्षी अपने शरीर के अंदर एक ज़र्दी बनाती हैं जिसे नर अवस्कर गुहा के माध्यम से शुक्राणु प्रवाहित करके निषेचित कर सकता है। ज़र्दी एक कठोर खोल वाले अंडे में विकसित होती है जिसे पक्षी (आमतौर पर घोंसले में) देता है। निषेचित अंडों में एक पतली, तरल पदार्थ से भरी झिल्ली विकसित होती है जिसे उल्ब (Amnion) कहा जाता है। उल्ब से एक बंद थैलीनुमा संरचना बनती है, जिसमें भ्रूण होता है। निषेचित अंडे का भ्रूण एक शिशु पक्षी के रूप में विकसित होता है।
पक्षियों द्वारा अपने अंडों की देखभाल:
क्या आपने कभी सोचा है कि अंडे इतने अलग-अलग रंगों में क्यों आते हैं? जो पक्षी खुले में घोंसला बनाते हैं उनके अंडे समान वातावरण के रंग के अनुरूप होते हैं। इससे अंडों को शिकार से सुरक्षा मिलती है। अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रजाति के पक्षी अलग-अलग तरह के घोंसले बनाते हैं। हमिंगबर्ड (Hummingbird) से लेकर शुतुरमुर्ग तक, सभी प्रकार के पक्षी घोंसले बनाते हैं। पक्षियों के घोसले कई प्रकार के होते हैं, जिनका आकार कप, गुंबद, प्लेट, टीले या बिल जैसा हो सकता है। हालाँकि, गिलिमट (guillemot) जैसे कुछ पक्षी घोंसले नहीं बनाते हैं। इसके बजाय, वे अपने अंडे खुले स्थानों या चट्टानों पर देते हैं। पेंगुइन (Penguin) भी कोई घोंसला नहीं बनाते; वे अंडे सेने से पहले उन्हें गर्म रखने के लिए उन पर बैठते हैं, इस प्रक्रिया को ऊष्मायन कहा जाता है। हालाँकि, अधिकांश पक्षी अपने अंडों को शिकारियों से बचाने के लिए छिपे हुए क्षेत्रों में अपने घोंसले बनाते हैं।
पक्षियों में, 90% से 95% प्रजातियाँ एकसंगमनी होती हैं, जिसका अर्थ है कि नर और मादा कुछ वर्षों तक प्रजनन के लिए या एक साथी के मरने तक एक साथ रहते हैं। तोते से लेकर चील और बाज़ तक सभी प्रकार के पक्षी एकसंगमनी होते हैं। आमतौर पर, माता-पिता, बारी-बारी से अंडे सेते हैं। बहुसंगमनी (Polygamous) पक्षी प्रजातियों में, केवल माता-पिता ही ऊष्मायन का सारा काम करते हैं। जंगली टर्की बहुसंगमनी पक्षी का उदाहरण है। माता-पिता की देखभाल की अवधि और प्रकार पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों में व्यापक रूप से भिन्न होता है। मुर्गी जैसे दिखने वाले मैगापोड (Megapode) नामक पक्षियों के समूह में, माता-पिता अंडे सेने के बाद चूज़ों की देखभाल करना बंद कर देते हैं। नवजात चूज़ा, माता-पिता की मदद के बिना ही घोंसले से बाहर निकल आता है और तुरंत अपनी देखभाल कर सकता है। इन पक्षियों को प्रीकोशियल (precocial) कहा जाता है। अन्य प्रीकोशियल पक्षियों में घरेलू मुर्गी, बत्तख और गीज़ की कई प्रजातियाँ शामिल हैं। दूसरी ओर, कई समुद्री पक्षी लंबे समय तक अपने बच्चों की देखभाल करते हैं। उदाहरण के लिए, ग्रेट फ़्रिगेटबर्ड (Great Frigatebird) अपने चूज़ों की छह महीने तक, या जब तक वे उड़ने के लिए तैयार नहीं हो जाते, गहन देखभाल करते हैं, इसके बाद भी, माता-पिता द्वारा अतिरिक्त 14 महीने तक अपने चूज़ों को भोजन दिया जाता है। इस मामले में इन पक्षियों का व्यवहार प्रीकोशियल पक्षियों के विपरीत होता है और इसलिए इन्हें सहायापेक्षी कहा जाता है। अधिकांश पक्षियों में, माता-पिता, दोनों के द्वारा देखभाल बहुत आम है। अक्सर ये दोनों घोंसला स्थल की रक्षा करते हैं, ऊष्मायन का कार्य करते हैं और चूज़ों के भोजन की व्यवस्था भी मिलकर करते हैं।
पक्षियों में अंडे सेने की प्रक्रिया-
सभी पक्षियों में, अंडे देने और सेने की प्रक्रिया लगभग समान होती है। लेकिन पक्षी अंडे सेने का कार्य तभी शुरू करते हैं, जब वे अंडे के विकसित होने के लक्षण देख लेते हैं, जब उनके जीवित रहने की अच्छी संभावना होती है। एक बार, निषेचित अंडे देने के बाद, उन्हें निश्चित दिनों तक स्थिर तापमान पर रखने की आवश्यकता होती है। ऊष्मायन अवधि अलग-अलग प्रजातियों में अलग-अलग होती है, लेकिन अधिकांश पक्षियों के लिए, औसतन 12 से 15 दिन होती है | उल्लू और खेरमुतिया जैसे बड़े पक्षियों के लिए, यह अवधि दोगुनी होती है। ऐसे कई कारक हैं जो अंडे को सेने के समय को प्रभावित करते हैं। श्वेताक्ष बाज़ के लिए 9 दिनों से लेकर शाही अल्बाट्रॉस के लिए 80 दिनों तक की ऊष्मायन की अवधि के बाद नवजात चूज़े खोल के अंदर से चोंच मारकर, अंडों से बाहर निकलते हैं।
तापमान विनियमन में सहायता के लिए, सेने वाले पक्षी के पेट पर एक पंख रहित क्षेत्र विकसित होता है, जिसे "ऊष्मायन क्षेत्र" (brood patch) कहा जाता है, जो रक्त वाहिकाओं से भरा होता है और सेने वाले अंडों को अतिरिक्त गर्मी प्रदान करने के लिए, अनुकूलित किया जाता है। ऊष्मायन या तो अकेले माँ द्वारा किया जाता है, या माता-पिता दोनों द्वारा बारी-बारी से, या दुर्लभ मामलों में, केवल नर पक्षी द्वारा किया जाता है।पर्याप्त रूप से सेने के बाद, जब अंडे के अंदर का भ्रूण जीवित रहने के लिए पूरी तरह से विकसित हो जाता है, तो अंडे सेने का पहला बाहरी संकेत दिखाई देता है, तब अंडे के छिलके पर एक छोटी सी दरार या छेद दिखाई देता है, जो अंडे से निकलने वाले बच्चा बाहरी आवरण में गोलाकार गति में अपनी चोंच से मारकर बनाता है। धीरे-धीरे अंडे के छिलके में दरार चौड़ी हो जाती है, जिससे चूज़े के बाहर निकलने का स्थान बन जाता है। पहले पक्षी का सिर बाहर आता है, उसके बाद उसके शरीर का बाकी हिस्सा बाहर आ जाता है। कुछ प्रजातियों में, इस चरण में 12 घंटे से अधिक समय लग सकता है। अंडों से निकलने के दौरान, आम तौर पर, बच्चों को किसी सहायता की आवश्यकता नहीं होती है। एक बार, जब बच्चे, पूरी तरह से अंडों से बाहर आ जाते हैं, तो बढ़ते हुए चूज़ों के लिए रहने की जगह खाली करने के लिए, माता, घोंसले से सभी अंडों के छिलके निकाल कर घोंसले को खाली करती है।
सफल ऊष्मायन के लिए उचित तापमान, आर्द्रता, और गैसीय वातावरण जैसे आवश्यक भौतिक कारक अत्यंत आवश्यक हैं। संतोषजनक परिणाम के लिए इष्टतम और समान तापमान बहुत आवश्यक है। कम तापमान से भ्रूण का विकास धीमा हो जाता है और इष्टतम से अधिक तापमान से भ्रूण का विकास तेज़ हो जाता है। जब असामान्य तापमान की स्थिति, लंबे समय तक बनी रहती है, तब, या तो भ्रूण की मृत्यु हो जाती है या चूज़े कमज़ोर और विकृत होते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/bd4vwkpz
https://tinyurl.com/2dc36my9
https://tinyurl.com/42x55zu3

चित्र संदर्भ

1. अंडों से निकलते तोते के बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. प्रणय नृत्य करते हुए गैलापागोस वेव्ड अल्बाट्रॉस (Galapgos Waved Albatross) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. अंडे से निकले एक चूज़े को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. अंडो को सेते कबूतर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. अंडे से निकलते पेकिन बैंटम (Pekin Bantam) मुर्गी  के चूज़े को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)

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