लघु चित्रकला के प्रसार में रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी ने निभाई है, अहम भूमिका

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
11-12-2024 09:25 AM
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लघु चित्रकला के प्रसार में रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी ने निभाई है, अहम भूमिका
रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी, दुनिया भर में कई कारणों से मशहूर है! इनमें से एक बड़ा कारण यह भी है कि यहाँ पर 5,000 से ज़्यादा लघु चित्रों का संग्रह मौजूद है। इस लाइब्रेरी में ढेरों दुर्लभ पांडुलिपियाँ, किताबें और इस्लामी सुलेख के नमूने भी हैं। रामपुर शहर, लंबे समय से कला और साहित्य का केंद्र रहा है। इस शहर को मुगल, फ़ारसी और स्थानीय प्रभावों के अपने अनूठे मिश्रण के लिए जाना जाता है। रामपुर शहर की कलात्मक परंपरा की नीवं, नवाबों द्वारा रखी गई थी। उन्होंने ही शाही जीवन, प्रकृति और आध्यात्मिक विषयों को दिखाने वाले विस्तृत लघु चित्रों के निर्माण को वित्तपोषित किया। ये पेंटिंग अपने बारीक विवरण और चमकीले रंगों के लिए जानी जाती हैं। आज के इस लेख में, हम लघु चित्रकला की रोमांचक दुनिया का गोता लगाएँगे। इसके बाद हम राजपूत चित्रकला की खोज करेंगे, जो स्थानीय परंपराओं को मुगल प्रभावों के साथ जोड़ती है।
आइए, सबसे पहले लघु चित्रकला के लोकप्रिय स्कूलों पर एक नज़र डालते हैं!
लघु चित्रकला में "स्कूल" शब्द का मतलब कला की एक खास शैली या परंपरा को कहा जाता है। यह शैली कुछ विशेष तकनीकों, विषयों और गुणों के आधार पर बनती है। हर स्कूल का विकास एक खास सांस्कृतिक या ऐतिहासिक संदर्भ में होता है।
चित्रकला के कुछ लोकप्रिय स्कूलों में शामिल हैं:
पाल स्कूल: पाल स्कूल 8वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। इस स्कूल को रंगों के प्रतीकात्मक उपयोग के लिए जाना जाता है। इसमें बौद्ध तांत्रिक अनुष्ठानों से जुड़े विषय दिखाए जाते हैं। इस शैली के कलाकार ताड़ के पत्तों पर पेंटिंग करते थे। एक पेंटिंग में कई अवधारणाएँ और शैलियाँ शामिल होती थीं। यह स्कूल बौद्ध धर्म और तांत्रिक विषयों के कारण भारत के बाहर भी लोकप्रिय हुआ। इसका प्रभाव श्रीलंका, नेपाल, बर्मा और तिब्बत में भी देखा जा सकता है। इस स्कूल की खासियत प्राकृतिक रंगों और दबाव की विविधता थी।

जैन स्कूल: जैन स्कूल, 11वीं शताब्दी में शुरू हुआ। यह धर्म को केंद्र में रखता है! इसे अपनी सुनहरी रूपरेखा के लिए जाना जाता है। इस स्कूल के चित्रों में कलाकृतियों की बड़ी आँखें, नुकीली नाक और चौकोर हाथ दिखाई देते हैं। जैन स्कूल पहला स्कूल था, जिसने ताड़ के पत्तों से कागज़ पर पेंटिंग की शुरुआत की।
मुगल स्कूल: मुगल स्कूल 16वीं शताब्दी में सम्राट अकबर के समय में उभरा। इसमें भारतीय और फ़ारसी शैलियों का मिश्रण नज़र आता है। मुगल पेंटिंग बारीक और नाज़ुक होती हैं। इसमें शाही दरबार, युद्ध, शिकार और वन्य जीवन के दृश्य दिखाए जाते हैं। हर बदलते मुगल सम्राट के साथ इस शैली में भी बदलाव आया।
राजस्थान स्कूल: राजस्थान स्कूल मुगल शैली के पतन के बाद उभरा। इसमें मेवाड़, धुंदर और कुल्लू जैसे कई उप-स्कूल हैं। इस शैली की पेंटिंग में राजाओं और उनके शाही जीवन को दिखाया गया है। यह शैली अपने जीवंत रंगों और बोल्ड बैकग्राउंड के लिए प्रसिद्ध है। इस शैली के कलाकार, कीमती रत्नों और पत्थरों का उपयोग करते थे। ये पेंटिंग, कागज़, हाथीदांत और रेशम पर बनाई जाती थीं।
पहाड़ी स्कूल: पहाड़ी स्कूल उत्तर पश्चिमी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में विकसित हुआ। इस स्कूल की चित्रकला में मुगल और राजस्थानी प्रभाव देखने को मिलता है। इसके उप-स्कूल जैसे गुलेर, बसोहली और चंबा अपनी खास शैलियों के लिए जाने जाते हैं। इस शैली के चित्रों में हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता प्रमुख है। इस स्कूल में प्रयुक्त होने वाले नाज़ुक ब्रश स्ट्रोक मुगल शैली और भारी फ्रेम राजस्थानी शैली का संकेत देते हैं।
डेक्कन स्कूल: डेक्कन स्कूल की शुरुआत, 19वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में हुई। यह हैदराबाद, तंजौर और गोलकुंडा से जुड़ा है। इसमें ओटोमन, ईरानी और फ़ारसी प्रभाव दिखते हैं। इस स्कूल की पेंटिंग में बड़ी आँखों और लंबे माथे वाली आकृतियाँ प्रमुख हैं। गहरे रंग, विशेष रूप से लाल और नारंगी, इस शैली की पहचान हैं। हर पेंटिंग में समरूपता का ध्यान रखा गया। ये सभी स्कूल भारतीय चित्रकला की विविधता और गहराई को दर्शाते हैं।
आइए, अब लघु चित्रकला की दो अनूठी शैलियों के बारे में जानते हैं:
मुगल लघु चित्रकला: मुगल चित्रकला, लघु कला की एक शैली है। यह 16वीं शताब्दी में उत्तरी भारत में विकसित हुई और 19वीं शताब्दी के मध्य तक जारी रही। इस कला की पहचान इसकी विस्तृत तकनीकों और विविध विषयों से की जा सकती है। मुगल लघु चित्रकला ने भारतीय कला की बाद की शैलियों पर गहरा प्रभाव डाला। इसने भारतीय कला में अपना मज़बूत स्थान बनाया।
मुगल सम्राट, कला के बड़े समर्थक माने जाते थे। हर सम्राट ने अपने अलग स्वाद और रुचि के आधार पर कला के विकास में योगदान दिया। उन्होंने सुलेख, चित्रकला, वास्तुकला और पुस्तक निर्माण में रुचि दिखाई। वे कलाकारों को प्रोत्साहित करते और कला की नई शैलियों को बढ़ावा देते थे। इससे भारत का कला परिदृश्य समृद्ध हुआ। मुगल चित्रकला को समझने के लिए मुगल वंश के राजनीतिक इतिहास को जानना ज़रूरी है।
मुगल, लघु चित्रकला में स्थानीय विषयों को फ़ारसी और यूरोपीय प्रभावों के साथ जोड़ा गया। इस कला में विदेशी और स्थानीय विचारों का मिश्रण देखने को मिलता है। इस कला ने इस्लामी, हिंदू और यूरोपीय दृश्य संस्कृतियों को एक साथ लाने का काम किया। इस विविधता ने इसे पारंपरिक भारतीय और ईरानी कला से अलग बनाया। मुगल चित्रकला की पहचान इसके संरक्षकों के समर्पण और कलाकारों के कौशल में निहित है।
राजपूत चित्रकला: राजपूत चित्रकला 16वीं सदी के अंत और 17वीं सदी की शुरुआत में राजस्थान के राजपूत दरबारों में विकसित हुई। हर राजपूत साम्राज्य की अपनी अलग शैली हुआ करती थी, लेकिन इन सभी शैलियों में कुछ समानताएँ भी थीं। इस चित्रकला में (राजस्थानी और पहाड़ी) दो मुख्य स्कूल थे। राजस्थानी स्कूल में मेवाड़, जयपुर, बूंदी, कोटा, किशनगढ़, जोधपुर और बीकानेर शामिल थे। पहाड़ी शैली में बसोहली, कांगड़ा, गुलेर, चंबा और मंडी जैसे क्षेत्र आते थे।
राजस्थान की अधिकतर रियासतें मुगलों के अधीन थीं। इसलिए, राजपूत चित्रकला पर मुगलों का गहरा प्रभाव नज़र आता था। लेकिन औरंगज़ेब के शासन में, कला को प्रोत्साहन नहीं मिला। इससे कई मुगल कलाकार अन्य राजपूत दरबारों में चले गए, जिससे राजपूताना चित्रकला का विकास हुआ।
राजपूत चित्रकला के विषय विविध होते थे। इसमें शासकों के चित्र, धार्मिक कहानियाँ, रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य शामिल थे। इन चित्रों में भगवान राम और कृष्ण के जीवन की झलक भी मिलती थी। कुछ चित्रों में परिदृश्य, दरबार और रोज़मर्रा की जिंदगी दिखाई गई।
हालांकि मुगल और राजपूत चित्रकला में कई अंतर भी थे! मुगल चित्रकला अकादमिक, नाटकीय और वस्तुनिष्ठ होती थी। वहीं, राजपूत चित्रकला अधिक राजसी और जीवनशैली को दर्शाने वाली थी। मुगल कला में तकनीकी दक्षता पर ध्यान दिया जाता था, जबकि राजपूत कला में भावनाओं और परंपराओं का समावेश नज़र आता था।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2375hazg
https://tinyurl.com/2bbokao8
https://tinyurl.com/2agbcf84

चित्र संदर्भ
1. रज़ा लाइब्रेरी और एक पेंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. जैन स्कूल की पेंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक शासक की पेंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. डेक्कन पेंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. मुग़ल चित्रकला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. राजपूत चित्रकला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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