रामपुर के खेतों में पाए जाने वाले टिड्डों और मधुमक्खियों को कितना जानते हैं आप?

तितलियाँ व कीड़े
02-12-2024 09:15 AM
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रामपुर के खेतों में पाए जाने वाले टिड्डों और मधुमक्खियों को कितना जानते हैं आप?
रामपुर के घास के मैदान, टिड्डे और मधुमक्खियों जैसे कई अनोखे कीटों का घर हैं। इन घास के मैदानों में आपको मधुमक्खियाँ और टिड्डे, अक्सर दिखाई दे जाएंगे। मधुमक्खियाँ, फूलों के परागण में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। घास के मैदानों में पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने के लिए, टिड्डे और मधुमक्खियाँ दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। इसलिए आज के इस लेख में, हम घास के मैदानों में कीटों और उनकी भूमिका को समझने का प्रयास करेंगे। इसके तहत, सबसे पहले, हम टिड्डों की विशेषताओं और इनके निवास स्थान के बारे में जानेंगे। अंत में, हम हमारे पारिस्थितकी तंत्र में मधुमक्खियों की भूमिका पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
कीट, घास के मैदानों में महत्वपूर्ण निर्माणकर्ता के रूप में कार्य करते हैं। हालांकि इनका आकार छोटा होता है, लेकिन इनकी भूमिका किसी भी बड़े जानवर के जितनी ही अहम् होती है। घास के मैदानों में कीड़े कई अलग-अलग भूमिकाएँ निभाते हैं। वे पौधों को खाने, फूलों को परागित करने, बीज़ फैलाने, मिट्टी को उपजाऊ बनाने, पोषक तत्वों को रिसाइकिल (Recyclable) करने और खाद्य जाल में पौधों तथा जानवरों के बीच की कड़ी के रूप में काम करते हैं। कीट, खुद भी कई जानवरों के लिए भी महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत होते हैं। पक्षी, चमगादड़, सरीसृप, स्तनधारी, उभयचर, मछली सहित कई अन्य कीड़े भी अपना पेट भरने के लिए कीटों पर ही निर्भर होते हैं। कीड़े वन्यजीवों के लिए आवास की संरचना को बदल सकते हैं। कीड़े परजीवी या रोग वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं। हालंकि दुर्भाग्य से आग, चराई, शाकनाशियों या कीटनाशकों जैसे रसायनों के उपयोग और आवास के नुकसान के कारण हो रहे घास के मैदानों में परिवर्तन, वन्यजीवों और कीड़ों दोनों को प्रभावित कर रहे हैं।
टिड्डों की गिनती, सबसे अधिक दिखाई देने वाले कीड़ों में होती है। टिड्डे, ऑर्थोप्टेरा नामक कीट वर्ग का हिस्सा होते हैं और कैलीफेरा उपसमूह से आते हैं। दुनियाभर में टिड्डों की 8,000 से ज़्यादा प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
कठिन परिस्थितियों के दौरान कुछ टिड्डे एक साथ बड़े समूहों में चलने लगते हैं। टिड्डे मुख्य रूप से घास, पत्तियाँ और झाड़ियाँ खाते हैं। कुछ प्रजातियाँ तो केवल खास पौधों पर निर्भर होती हैं, लेकिन ज़्यादातर टिड्डे, अपने पसंदीदा पौधों के खत्म होने पर अन्य खाद्य पदार्थों की तलाश कर लेते हैं। टिड्डे अपने शरीर को नम रखने के लिए सही भोजन का चुनाव करते हैं। वे गीला और सूखा, दोनों तरह का भोजन खाते हैं। अगर टिड्डा हाइड्रेटेड है, तो उसे कम पानी वाली पत्तियाँ पसंद आती हैं। वहीं, अगर वह निर्जलित है, तो वह ज़्यादा नमी वाली पत्तियों की खोज करता है। इन्हें घास, पत्ते और अनाज की फसलें खाना बहुत पसंद है। अगर ये खाद्य पदार्थ उपलब्ध नहीं होते, तो वे जीवित रहने के लिए अन्य उपलब्ध पौधों को भी खा लेते हैं।
टिड्डे कई अलग-अलग निवास स्थानों में पाए जा सकते हैं। आप इन्हें उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों, घास के मैदानों, वर्षावनों, पहाड़ों और यहाँ तक कि रेगिस्तानों में भी देख सकते हैं। हालांकि, टिड्डे मीठे पानी के दलदल और मैंग्रोव दलदल में नहीं दिखाई देते। इसका प्रमुख कारण यह है कि बाढ़ आने पर उनके द्वारा दिए गए अंडे मिट्टी में नष्ट हो सकते हैं। विषम परिस्थितियों के दौरान टिड्डे बड़ी संख्या में प्रवास कर सकते हैं। प्रवास के दौरान, वे एक दिन में 15 मील से अधिक की यात्रा कर सकते हैं।
टिड्डे और मधुमक्खियाँ दोनों ही इन्सेक्टा वर्ग से संबंधित हैं। वे एपिने उपपरिवार का हिस्सा हैं, जो शहद का उत्पादन और भंडारण करती हैं। इन्हें शहद बनाने और उसे संग्रहीत करने के लिए जाना जाता है। शहद एक मीठा तरल होता है, जिसे हम सभी पसंद करते हैं। इसके अलावा, ये श्रमिक मधुमक्खियाँ मोम का उपयोग करके बड़े घोंसले भी बनाती हैं। इनके शरीर के कई हिस्से होते हैं, जिनमें डंक, पैर, एंटीना, तीन वक्ष खंड और पेट के छह दृश्यमान खंड शामिल हैं।
मधुमक्खियाँ जंगली और मानव निर्मित दोनों तरह के वातावरण में रह सकती हैं। हालांकि, इन्हें फूलों से भरे स्थान जैसे बगीचे, जंगल, बाग और घास के मैदान आदि बहुत रास आते हैं। जंगल में, वे शिकारियों से बचने के लिए पेड़ों के छेदों या अन्य वस्तुओं के नीचे घोंसले बनाती हैं। कई लोग मानते हैं कि मधुमक्खियाँ मूल रूप से अफ़्रीका से आई थीं। फिर ये उत्तरी यूरोप, पूर्वी भारत, चीन और अमेरिका में फैल गईं। मनुष्यों ने इन्हें शहद उत्पादन के लिए पालतू बनाया है, इसलिए अब ये दुनिया के कई हिस्सों में पाई जाती हैं।
सर्दियों में, मधुमक्खियाँ, अपने द्वारा संग्रहित शहद का सेवन करती हैं। वे अपनी कॉलोनी को गर्म रखने के लिए अपने शरीर की गर्मी का भी उपयोग करती हैं। गर्म मौसम में, ये तरल को वाष्पित करके शीतलक के रूप में संग्रहित अमृत का इस्तेमाल करती हैं। ये सभी तरीके उन्हें मौसमी तापमान में बदलाव से बचाने और अपने घोंसलों को आरामदायक रखने में मदद करते हैं।

संदर्भ

https://tinyurl.com/2as4x7m5
https://tinyurl.com/27y5el5n
https://tinyurl.com/23rubpmm
https://tinyurl.com/ybnrwwe3

चित्र संदर्भ
1. एक टिड्डे और मधुमक्खी को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
2. एक पौधे पर बैठे कीटों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. हरे टिड्डे को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
4. पत्ते पर बैठे एक टिड्डे को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
5. छत्ते पर बैठी मधुमक्खियों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
6. लटकते हुए मधुमक्खी के छत्ते को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
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