आइए समझें, पंचमार्क सिक्कों के माध्यम से, प्राचीन भारत में व्यापार की प्रणाली को

धर्म का उदयः 600 ईसापूर्व से 300 ईस्वी तक
29-11-2024 09:16 AM
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आइए समझें, पंचमार्क सिक्कों के माध्यम से, प्राचीन भारत में व्यापार की प्रणाली को
पंचमार्क सिक्कों का उपयोग, प्राचीन समय में मुद्रा के रूप में किया जाता था। ये सिक्के, आमतौर पर चांदी या तांबे से बने होते थे, और इनमें विशिष्ट निशान या प्रतीक होते थे, जो उनके मूल्य और प्रमाणिकता को दर्शाते थे। पंचमार्क सिक्कों का उपयोग, मुख्य रूप से प्राचीन और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल में हुआ था | ये सिक्के, अपने क्षेत्र के आर्थिक व्यवहार को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन्हें भारत में सिक्कों के सबसे पुराने रूपों में से एक माना जाता है, जिनके सरल, लेकिन प्रभावी डिज़ाइन ने व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा दिया।
आज हम, इस लेख में बात करेंगे पंचमार्क सिक्कों के इतिहास से, जो प्राचीन भारत में उपयोग किए गए सबसे पुराने सिक्कों में से एक थे, जिनकी शुरुआत लगभग छठी सदी ईसा पूर्व में हुई। फिर हम इन सिक्कों पर पाए जाने वाले प्रतीकों पर ध्यान देंगे जो विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग होते थे और अक्सर जानवरों, ज्यामितीय पैटर्न और अन्य महत्वपूर्ण रूपांकनों को दर्शाते थे। अंत में हम पंचमार्क सिक्के बनाने की प्रक्रिया को समझेंगे, जिसमें धातु की पट्टियों पर मुहर या पंच से विशेष डिज़ाइन और निशान बनाए जाते थे, जो सिक्के के मूल्य और प्रमाणिकता को स्पष्ट करते थे।
पंचमार्क सिक्कों का इतिहास
पंचमार्क सिक्के, दुनिया के सबसे प्राचीन सिक्कों में से एक माने जाते हैं। ये सिक्के प्राचीन भारत में लगभग 6वीं सदी ईसा पूर्व में प्रचलित हुए थे। ये आमतौर पर चांदी या तांबे के मिश्र धातु से बनाए जाते थे और इनकी सतह पर विभिन्न प्रतीकों को ठोककर उकेरा जाता था।
इन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व, उनके व्यापार और वाणिज्य के साधन के रूप में है। इन्हें प्रारंभिक आर्थिक प्रणालियों में आदान-प्रदान के रूप में उपयोग किया जाता था और ये विभिन्न क्षेत्रों के बीच व्यापार को सरल बनाते थे। पंचमार्क सिक्कों का प्रसार भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर भी हुआ था।
समय के साथ पंचमार्क सिक्के और अधिक उन्नत सिक्का प्रणालियों में विकसित हो गए। यह मौद्रिक प्रणालियों और आर्थिक संरचनाओं के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम था।
पंचमार्क सिक्के का प्रतीक
पंचमार्क सिक्कों पर कई प्रकार के प्रतीक होते थे जो गहरे अर्थ रखते थे। ये प्रतीक, सिक्कों की सतह पर ठोककर उकेरे जाते थे और अक्सर शासक, धर्म या व्यापार से संबंधित होते थे।
पंचमार्क सिक्कों पर पाए जाने वाले सामान्य प्रतीकों में शामिल हैं:
⦿ सूर्य का प्रतीक:
जो सौर देवताओं या ब्रह्मांडीय शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता था।
⦿ अर्धचंद्र: जो चंद्र देवताओं और समय के चक्र से संबंधित होता था।
⦿ पशु रूपांकन: जैसे हाथी, घोड़े और बैल जो शक्ति या समृद्धि का प्रतीक होते थे।
⦿ ज्यामितीय आकार: जैसे वृत्त, वर्ग और त्रिकोण जो संभवतः टकसाल के निशान या क्षेत्रीय पहचान के रूप में होते थे।
⦿ मानव आकृतियाँ: जो शासकों, देवताओं या पौराणिक प्राणियों को दर्शाती थीं, जो अधिकार या दिव्य सुरक्षा का प्रतीक होती थीं।
ये प्रतीक न केवल सजावटी तत्व होते थे, बल्कि सिक्के के जारीकर्ता, उसकी मूल्य और उस सांस्कृतिक संदर्भ के बारे में भी महत्वपूर्ण संदेश देते थे, जिसमें यह सिक्का प्रचलित था।

महाजनपदों द्वारा जारी पंचमार्क सिक्के

"महाजनपद" शब्द उन सोलह शक्तिशाली और समृद्ध राज्यों को संदर्भित करता है, जो प्राचीन भारत में लगभग 6वीं सदी ईसा पूर्व से फले-फूले। इन राज्यों का विस्तार भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में था, और प्रत्येक महाजनपद की अपनी विशिष्ट संस्कृति, प्रशासन और आर्थिक व्यवस्थाएँ थीं। इतिहास में इन महाजनपदों का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था, जिसमें पंचमार्क सिक्कों का प्रचलन भी एक स्थायी छाप छोड़ गया।
महाजनपदों के पंचमार्क सिक्के आमतौर पर चांदी या तांबे से बनाए जाते थे। इन पर विभिन्न प्रतीकों को उकेरा जाता था, जैसे ज्यामितीय आकार, जानवरों के चित्र, और देवताओं या शासकों के प्रतीक। ये प्रतीक सिक्के की सतह पर धातु के पंच से ठोककर बनाए जाते थे; इसलिए इन्हें "पंचमार्क सिक्के" कहा जाता है।
ये सिक्के महाजनपदों के भीतर और बाहर व्यापार व वाणिज्य के लिए आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण माध्यम थे। इनसे बाजारों में लेन-देन, कर भुगतान, और अन्य आर्थिक गतिविधियाँ सुगम होती थीं। साथ ही, ये सिक्के जारीकर्ता की शक्ति और अधिकार का भी प्रतीक होते थे। दक्षिण एशिया में पुरातात्विक स्थलों पर पाए गए इन सिक्कों के प्रमाण यह दर्शाते हैं कि इनका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था और ये प्राचीन अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
प्राचीन पंचमार्क सिक्कों पर पाए जाने वाले प्रतीक
प्राचीन पंचमार्क सिक्कों पर पाए जाने वाले प्रतीक क्षेत्र के अनुसार भिन्न होते थे। कुछ सिक्कों पर एक ही पंच होता था, कुछ पर दो, कुछ पर चार और कुछ पर पाँच। पंच करने के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरण पर विभिन्न प्रतीक जैसे ज्यामितीय और पुष्प पैटर्न, पहाड़, पेड़, पक्षी, जानवर, सरीसृप और मानव आकृतियाँ आदि होते थे। यह पंचमार्क तकनीक बहुत ही अनोखी थी और इसी कारण इन सिक्कों को "पंचमार्क सिक्के" कहा जाता था।
⦿ बैल - बैल को सबसे शुभ प्रतीकों में से एक माना जाता है। यह कड़ी मेहनत और शक्ति का प्रतीक है। प्राचीन पंचमार्क सिक्कों पर बैल का प्रतीक सबसे सामान्य प्रतीकों में से एक है। इसे नंदी के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ "आनंद देने वाला" होता है। नंदी भगवान शिव का पवित्र बैल है, जो हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं।
⦿ छह मेहराब वाला पहाड़ - प्राचीन पंचमार्क सिक्कों पर मेहराबदार पहाड़ का प्रतीक बौद्ध चैत्य का प्रतीक माना जाता है। छह मेहराबों वाला पहाड़ भी प्राचीन पंचमार्क सिक्कों पर एक आम प्रतीक है। इस प्रतीक का प्रयोग मौर्य साम्राज्य के सिक्कों (तीसरी से दूसरी सदी ईसा पूर्व) में शुरू हुआ था।
⦿ हाथी - हाथी को युद्ध में उपयोग किए जाने वाले सबसे शानदार जानवरों में से एक माना जाता है। वह अपने बड़े आकार और शाही व्यवहार के कारण सराहा जाता है। हाथी को आमतौर पर शुभता और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। अधिकतर राजा हाथी की पीठ पर बैठकर युद्ध में जाते थे।
⦿ खाली क्रॉस का प्रतीक - खाली क्रॉस के प्रतीक के बारे में कई धारणाएँ हैं, और लोग इसके अर्थ को लेकर अलग-अलग राय रखते हैं। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह प्रतीक बौद्ध धर्म से संबंधित हो सकता है। कुछ इसे पवित्र अग्निकुंड या ‘अग्नि कुंड’ का प्रतीक मानते हैं, जबकि कुछ का सुझाव है कि यह बलि या यज्ञ करने का स्थान था।
पंचमार्क सिक्कों का निर्माण
पंचमार्क सिक्कों पर छोटे-छोटे प्रतीकों वाले पंच से ठप्पे लगाए जाते थे। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये पंचमार्क सिक्के कैसे बनाए जाते थे और इनकी टकसाल प्रक्रिया क्या थी? पंचमार्क सिक्कों की कहानी, आपको छठी सदी ईसा पूर्व में ले जाएगी। ये सिक्के, अनियमित आकार में काटे जाते थे और निर्धारित वज़न में होते थे। ऐसे सिक्के, महाजनपदों द्वारा ढाले जाते थे। कुछ सिक्कों पर केवल एक पंच होता था, जबकि कुछ पर कई पंच लगाए जाते थे। ये सिक्के उस समय की मानक चाँदी से बनाए जाते थे।
पहले धातु को एक क्रूसिबल, जिसे 'मूषा' कहा जाता था, में पिघलाया जाता था और फिर इसे क्षार के साथ शुद्ध किया जाता था। इसके बाद धातु को एक निहाई (अधिकर्णी) पर रखकर हथौड़े (मुष्टिका) से पीटा जाता था और पतली चादरों में ढाला जाता था। फिर इन चादरों को कतरनी (संदंश) से काटकर टुकड़ों में बांटा जाता था। अंत में, इन टुकड़ों पर प्रतीकों वाले पंचों और ठप्पों से मुद्रांकन किया जाता था। यदि वज़न सही नहीं होता था तो टुकड़ों को काटकर उचित वज़न में समायोजित किया जाता था।
पंचमार्क सिक्कों पर लेखन नहीं होता था, बल्कि उनके स्थान पर विभिन्न प्रतीकों का प्रयोग होता था। इन प्रतीकों में ज्यामितीय आकार, पुष्प पैटर्न, पशु, पक्षी, पेड़, पहाड़ और मानव आकृतियाँ शामिल होती थीं।

संदर्भ -
https://tinyurl.com/5958dh33
https://tinyurl.com/2dwju6sb
https://tinyurl.com/25rstu5m

चित्र संदर्भ
1. एक पंचमार्क सिक्के को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ढेरों पंचमार्क सिक्कों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. लगभग चौथी-दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के पंचमार्क सिक्कों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मौर्य सम्राट बिंदुसार के राज्य में उपयोग होने वाले 1 कार्षापण के चांदी के पंचमार्क सिक्कों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. चन्द्रकेतुगढ़ में खोजे गए पंचमार्क सिक्कों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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