रामपुर और खिलाफत आंदोलन

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
03-04-2018 11:39 AM
रामपुर और खिलाफत आंदोलन

भारत के स्वतंत्रता के तरफ बढ़ाये गए कदमों में खिलाफत आंदोलन एक ठोस कदम था। यह धर्म प्रतीकों का इस्तेमाल कर राजकीय संगठन को स्वतंत्रता संग्राम की तरफ ले जाने वाला एक लम्बा आंदोलन था जो सन 1919 से लेकर 1924 तक (5 साल) चला। यह राजनैतिक मुस्तद्दी का भी एक अलग प्रमाण था। गांधीजी ने और अली भाईयों ने खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन को एक साथ जोड़ दिया था ताकि हिन्दू और मुस्लिम तथा सारे भारतवासी इस में शामिल हो एकता का प्रदर्शन करें और ब्रितानी शासकों पर दबाव ला सकें।

खिलाफत आंदोलन के सबसे प्रभावशाली और मुख्य नेता थे दो भाई मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली जौहर। यह दोनों भी काफी पढ़े लिखे थे और इस आंदोलन के दरमियाँ उन्होंने पश्चिमी तालीम में पढ़े-लिखे मुस्लिम बांधवों को और उलेमा के अंतर्गत पढ़े मुस्लिम बंधवो को तथा राष्ट्रवादी लोगों को एक साथ लाने का काम किया। इन दोनों का जन्म रामपुर रियासत में हुआ था। उनके पिताजी रामपुर रियासत के जमींदार थे जो महिना 1,250 रुपये कमाते थे तथा उनके सभी भाई रामपुर दरबार में अलग अलग हौदे पर काम करते थे।

जब मोहम्मद अली 5 साल के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया लेकिन परिस्थिती से ना डरते हुए उन्होंने अपनी शिक्षा पूर्ण की। लिंकन कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड से शिक्षा पूर्ण करने पर वे रामपुर में आकर बसे तथा यहाँ पर रामपुर राज्य के शिक्षा निदेशक का कार्यभार संभाला। उनके भाई मौलाना शौकत अली, जिन्हें मान्यता है कि गांधीजी राजनीती में लाये, असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए अपने समर्थन (1919-1922) के लिए गिरफ्तार कर लिये गये थे और वे सन 1923 तक कैद में थे। मोहम्मद अली जौहर की पत्नी अमजादी बानो बेगम भी खिलाफत आंदोलन में सक्रीय रीति से शामिल थी।

खिलाफत आंदोलन की शुरुवात और मकसद तुर्क के ओटोमन खलीफा के पद की पुनर्स्थापना के लिए अंग्रेजों पर दबाव लाना था और साथ ही पूरे भारत के मुस्लिम समाज को एक साथ लाना भी। इसके अलावा गांधीजी और अली भाईयों के संगठन के अनुसार इसे राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में भी देखा गया जहाँ असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन को एक साथ कर दिया गया जिसके तहत दोनों ने एक दूसरे के कार्य में भरपूर सहकार्य किया। सन 1921 में ब्रितानी शासकों ने खिलाफत और असहयोग आंदोलन के कार्यकताओं पर बड़े पैमाने पर बेरहमी से कार्यवाही की जिसके चलते दोनों आंदोलन बंद किये गए। सन 1922 में तुर्की राष्ट्रवादियों ने ओटोमन राज और खलीफा का पद सन 1924 में बंद कर दिया जिसकी वजह से खिलाफत आंदोलन ने पूरी तरह दम तोड़ दिया।

यह बड़ी अनूठी बात है कि जो रामपुर भारत के आज़ादी की लड़ाई में कभी सक्रीय नहीं था उसने देश को धर्म और राजनैतिक बंधन में संगठित करने वाले दो भाई दिए।

1. https://encyclopedia.1914-1918-online.net/article/khilafat_movement
2. द खिलाफत मूवमेंट: रिलीजियस सिम्बोलिज्म एंड पोलिटिकल मोबिलाइजेशन इन इंडिया- गेल मिनौल्ट
3. सेपरेटिज्म अमोंग इंडियन मुस्लिम्स: द पॉलिटिक्स ऑफ़ यूनाइटेड प्रोविन्सेस मुस्लिम्स 1860-1923- फ्रांसिस रोबिनसन

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