रामपुरी अली बंधुओं और गांधीजी के रिश्तों की देन है गांधी टोपी

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
20-09-2024 09:22 AM
Post Viewership from Post Date to 21- Oct-2024 (31st) Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1862 68 1930
	 रामपुरी अली बंधुओं और गांधीजी के रिश्तों की देन है गांधी टोपी
1919-1924 के बीच चला ख़िलाफ़त आंदोलन, प्रथम विश्व युद्ध के बाद के वर्षों में, भारतीय राष्ट्रवाद से जुड़े भारतीय मुसलमानों द्वारा किया गया एक आंदोलन था। ख़िलाफ़त आंदोलन के नेताओं ने, ख़िलाफ़त के धार्मिक प्रतीक को लेकर पश्चिमी-शिक्षित भारतीय मुसलमानों और उलेमाओं के बीच पहला राजनीतिक गठबंधन बनाया गया था। गांधीजी ने भी ख़िलाफ़त आंदोलन का समर्थन किया था। परिणामस्वरूप, एक वास्तविक देशभक्तिपूर्ण विद्रोह हुआ, जिसमें मुस्लिम और हिंदू औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध सभी स्तरों पर एकजुट हो गए। तो आइए, आज इस आंदोलन के बारे में विस्तार से जानते हैं और इस आंदोलन में महात्मा गांधी की भूमिका और अली बंधुओं के साथ उनके रिश्ते के बारे में समझते हैं। इसके साथ ही, महात्मा गांधी की प्रसिद्ध सफ़ेद टोपी की उत्पत्ति के बारे में जानते हैं, जिसे हमारे रामपुर के मोहम्मद अली जौहर की मां आबिदा बेगम ने सिला था।
ख़िलाफ़त आंदोलन का परिचय: इसका उद्देश्य, युद्ध के अंत में, ऑटमन साम्राज्य (Ottoman Empire) के विकेंद्रीकृत होने के बाद, ब्रिटिश सरकार पर इस्लाम के ख़लीफ़ा के रूप में ऑटमन सुल्तान (Ottoman Sultan) के अधिकार को संरक्षित करने के लिए दबाव डालना था। इसके लिए, भारतीय मुसलमान, युद्ध के बाद संधि बनाने की प्रक्रिया को इस तरह से प्रभावित करना चाहते थे, कि केंद्रीय शक्तियों के सहयोगी तुर्कों की हार के बावजूद , ऑटमन साम्राज्य की 1914 की सीमाओं को बनाए रखा जा सके। भारतीय समर्थकों ने 1920 में अपने मामले की पैरवी के लिए, एक प्रतिनिधिमंडल लंदन भेजा, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने प्रतिनिधियों के साथ अखिल-इस्लामवादियों के रूप में दुर्व्यवहार किया, और तुर्कियों के प्रति अपनी नीति नहीं बदली। इस प्रकार सेव्रेस की संधि (Treaty of Sevres) के प्रावधानों को प्रभावित करने का भारतीय मुसलमानों का प्रयास विफल हो गया, और यूरोपीय शक्तियां, विशेष रूप से ग्रेट ब्रिटेन और फ़्रांस, क्षेत्रीय समायोजन के साथ आगे बढ़े, जिसमें पूर्व ऑटमन अरब क्षेत्रों पर शासनादेश की संस्था भी शामिल थी।
नेतृत्व: ख़िलाफ़त आंदोलन के नेताओं ने ख़िलाफ़त के धार्मिक प्रतीक को लेकर पश्चिमी-शिक्षित भारतीय मुसलमानों और उलेमाओं के बीच पहला राजनीतिक गठबंधन बनाया। इस नेतृत्व में दिल्ली के समाचार पत्र संपादक अली बंधु - मुहम्मद अली और शौकत अली, लखनऊ के फ़िरंगी महल के आध्यात्मिक मार्गदर्शक, मौलाना अब्दुल बारी, कलकत्ता के पत्रकार और इस्लामी विद्वान अबुल कलाम आज़ाद, और उत्तरी भारत के देवबंद में मदरसे के प्रमुख मौलाना महमूद उल-हसन शामिल थे। इन प्रचारक-राजनेताओं और उलेमाओं ने, ख़लीफ़ा के अधिकार पर यूरोपीय हमलों को इस्लाम पर हमले के रूप में देखा, और इस प्रकार ब्रिटिश शासन के तहत मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए इसे खतरा माना।
भारतीय राष्ट्रवाद और ख़िलाफ़त आंदोलन में महात्मा गांधी की भूमिका: ख़िलाफ़त मुद्दे ने भारतीय मुसलमानों के बीच, ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को और अधिक तीव्र कर दिया। ख़िलाफ़त नेता, जिनमें से अधिकांश को तुर्की समर्थन के कारण युद्ध के दौरान कैद कर लिया गया था, पहले से ही भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में सक्रिय थे। 1919 में अपनी रिहाई के बाद, उन्होंने ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में अखिल भारतीय राजनीतिक स्तर पर मुस्लिमों को एकजुट करने के एक साधन के रूप में ख़िलाफ़त आंदोलन का समर्थन किया था। ख़िलाफ़त आंदोलन को भी राष्ट्रवादी उद्देश्य के लिए युद्ध के दौरान विकसित हुए हिंदू-मुस्लिम सहयोग से लाभ हुआ, जिसकी शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच 1916 के लखनऊ समझौते से हुई और जो 1919 में 'रोलेट विरोधी राजद्रोह बिल' के विरोध में अपने चरम पर पहुंच गया। महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय कांग्रेस ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़, अहिंसक असहयोग का आह्वान किया। गांधीजी ने भी ख़िलाफ़त आंदोलन का समर्थन किया। मुसलमानों को एहसास हुआ, कि हिंदू नेताओं और जनता के समर्थन के बिना, वे ब्रिटिश सत्ता को चुनौती नहीं दे सकते। इसलिए जब गांधीजी ने ख़िलाफ़त के मुद्दे को उचित घोषित किया और अपना समर्थन दिया, तो उन्होंने गांधीजी को 1919 में स्थापित 'अखिल भारतीय ख़िलाफ़त समिति' में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। गांधीजी ने कुछ समय तक इसके अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। परिणामस्वरूप, एक वास्तविक देशभक्तिपूर्ण विद्रोह हुआ, जिसमें मुस्लिम और हिंदू औपनिवेशिक, ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सभी स्तरों पर एकजुट हो गए।
आंदोलन का महत्व और पतन: ख़िलाफ़त और असहयोग आंदोलन (Non Cooperation Movement) दोनों एक साथ आने पर, यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ पहला अखिल भारतीय आंदोलन बन गया था। इसमें हिंदू-मुस्लिम सहयोग की पराकाष्ठा देखी गई। इस आंदोलन में भारतीय जन समूह की आवाज़ से ब्रिटिश भारतीय सरकार हिल गई। 1921 के अंत में, सरकार आंदोलन को दबाने के लिए आगे बढ़ी। नेताओं को गिरफ़्तार किया गया, मुकदमा चलाया गया और जेल में डाल दिया गया। वहीं चौरी-चौरा कांड के बाद, गांधीजी ने 1922 की शुरुआत में असहयोग आंदोलन को निलंबित कर दिया। तुर्की राष्ट्रवादियों ने भी 1922 में ऑटमन सल्तनत और 1924 में ख़िलाफ़त को समाप्त करके, ख़िलाफ़त आंदोलन को पूरी तरह समाप्त कर दिया।
क्या आप जानते हैं कि महात्मा गांधी जी की प्रसिद्ध सफ़ेद टोपी भी ख़िलाफ़त आंदोलन के तहत हुए हिंदू मुस्लिम सहयोग का परिणाम है, जिसका सीधा-सीधा ताल्लुक़ हमारे रामपुर शहर से है। ख़िलाफ़त आंदोलन के दो दिग्गज राजनीतिक नेता, मोहम्मद अली जौहर और उनके भाई शौकत अली रामपुर के रहने वाले थे। 1920 में, मोहम्मद अली जौहर की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए महात्मा गांधी मुरादाबाद आए, जो उस समय रामपुर का एक हिस्सा था। जैसे ही विवाह समारोह समाप्त हुआ, महात्मा गांधी ने रामपुर के नवाब से मिलने का फ़ैसला किया। उस समय, नवाब सैय्यद हामिद अली ख़ान बहादुर, रामपुर के नवाब थे, जिन्होंने 1889 से 1930 तक 41 वर्षों तक रामपुर पर शासन किया। बताया जाता है कि गांधी जी को नवाब के दरबार में उनसे मिलना था। लेकिन उस समय रामपुर में परंपरा थी कि कोई भी सिर ढके बिना अथवा सिर पर कुछ रखे बिना नवाब के सामने पेश नहीं होता था। गांधी जी के पास कोई टोपी नहीं थी। इसलिए उनके साथ आए लोग एक उपयुक्त टोपी लेने के लिए बाज़ार गए। लेकिन उन्हें गांधी जी के सिर के लिए, कोई उपयुक्त टोपी नहीं मिली थी। इसलिए जौहर की मां, अबादी बेगम ने गांधी जी के लिए स्वयं अपने हाथों से एक टोपी बनाई, जिसके लिए उन्होंने एक मोटे घरेलू कपड़े 'गारा' का इस्तेमाल किया था। गारा, खादी से भी अधिक खुरदुरा होता है। बताया जाता है कि महात्मा गांधी को यह टोपी इतनी पसंद आई, कि उन्होंने रियासत में अपने प्रवास के दौरान, इसे पूरे समय पहने रखा था। महात्मा गांधी की यह टोपी आगे चलकर जनता के बीच गांधी टोपी के रूप में लोकप्रिय हो गई थी ।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2mwfp3ee
https://tinyurl.com/y9fb6dvn
https://tinyurl.com/yhhm9sb8

चित्र संदर्भ
1. गाँधी टोपी पहने एक व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. ख़िलाफ़त आंदोलन के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. गाँधी जी की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. गाँधी टोपी पहने लोगों की भीड़ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.