क्या प्राधिकरण, नगर नियोजन के लिए नगर निगम की जगह ले सकता है?

नगरीकरण- शहर व शक्ति
05-09-2024 09:28 AM
Post Viewership from Post Date to 06- Oct-2024 31st Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2615 90 2705
क्या  प्राधिकरण,  नगर नियोजन के लिए नगर निगम की जगह ले सकता है?
हम सभी जानते हैं कि यदि एक छोटा घर अच्छी तरह से व्यवस्थित और योजनाबद्ध हो, तो एक अव्यवस्थित बड़े महल की तुलना में कहीं अधिक अच्छा दिखता है। इसी तरह, एक शहर जो उचित रूप से नियोजित होता है, वह लोगों को अधिक आराम और सुविधा प्रदान करता है। किसी भी शहर में भूमि संसाधनों के प्रबंधन के माध्यम से नगर नियोजन का कार्य किया जाता है। नगर नियोजन की प्रक्रिया में मौजूदा और नए विकास पर नियंत्रण के साथ-साथ, भविष्य की आवश्यकताओं का प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए रणनीति तैयार करना शामिल है। यह एक गतिशील प्रक्रिया है, जो नीति विकास प्रस्तावों और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार बदलती रहती है। तो आइए, आज के इस लेख में, हम नगर नियोजन की आवश्यकता के बारे में जानते हैं और समझते हैं कि नगर नियोजन में नगर पालिका की क्या भूमिका होती है। अंत में, यह समझने का प्रयास करेंगे कि क्या 'नोएडा प्राधिकरण', नगर निगम का विकल्प है?
नगर नियोजन की आवश्यकता
नगर नियोजन से शहर के बुनियादी ढांचे और संसाधनों का उचित प्रबंधन करके लोगों के जीवन में सुधार किया जा सकता है।
उचित नगर नियोजन की आवश्यकता को निम्न प्रकार के उपायों और समाधानों से समझा जा सकता है:
1. प्रभावी सड़क प्रणाली का निर्माण: प्रभावी सड़क प्रणाली के निर्माण से लोगों को आवाजाही एवं परिवहन की सुविधा प्राप्त होती है। उचित नगर नियोजन के अभाव में, सड़क प्रणाली दोषपूर्ण हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप संकरी गलियों और सड़कों का निर्माण होता है। न केवल भारत बल्कि अधिकांश देशों में, ज्यादातर शहरों में दोषपूर्ण सड़क व्यवस्था एक आम समस्या है। इसका एक प्रमुख कारण यह है, कि कस्बों और शहरों की कभी योजना नहीं बनाई गई थी। आबादी के साथ-साथ, ये शहर धीरे-धीरे बढ़ते गए, जिसके परिणामस्वरूप खराब सड़क नेटवर्क ने खराब परिवहन नेटवर्क को जन्म दिया। उचित नगर नियोजन से इस समस्या से निपटा जा सकता है।
2. नियोजित एवं साफ सुथरी बस्तियों का विकास: नगर नियोजन के माध्यम से, लोगों की बसावट के लिए भूमि का उपयोग कुशलता पूर्वक किया जाता है, जिससे बस्तियों का निर्माण नियोजित रूप से होता है। नगर नियोजन के अभाव में, यदि भूमि उपयोग को कुशलतापूर्वक विनियमित नहीं किया जाता है, तो इसके परिणामस्वरूप मलिन बस्तियों और अवैध बस्तियों का निर्माण होगा जो अंततः नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता को खराब कर सकता है।
3. उद्योगों के लिए निश्चित स्थान: नगर नियोजन के माध्यम से, उद्योगों के लिए कस्बों और शहरों से दूर विशिष्ट औद्योगिक क्षेत्र आवंटित किए जाते हैं, ताकि अनुपयुक्त स्थानों पर अव्यवस्थित ढंग से बढ़ते उद्योगों से बचा जा सके।
4. यातायात प्रबंधन: नगर नियोजन के माध्यम से सड़क नेटवर्क को प्रभावित बनाकर भारी यातायात की समस्या से राहत मिल सकती है, जिससे लोगों का जीवन काफी आसान हो सकता है।
5. उद्यानों और खेल के मैदानों का प्रबंधन: उचित नगर नियोजन करके, शहर में उद्यानों और खेल के मैदानों के लिए पर्याप्त खुले स्थान रखे जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप नागरिकों के लिए स्वास्थ्यकर स्थितियां बनाई जाती है। वर्तमान में, अधिकांश शहरों में एक बड़ी समस्या, खुली जगह ढूँढना है। यदि खुली जगहें उपलब्ध होती हैं, तो बाद में उनका उपयोग अधिक घरों को डि ज़ाइन करने और अधिक इमारतों के निर्माण के लिए किया जा सकता है।
6. विद्युत, जल आपूर्ति और जल निकासी जैसी आवश्यक सुविधाओं का प्रभावी प्रबंधन: नगर नियोजन से नागरिकों की विद्युत, जल आपूर्ति और जल निकासी जैसी मूलभूत सुविधाओं को आसानी से पहुंचाया जा सकता है । नगर नियोजन के अभाव में, कस्बों और शहरों को अपने आप विकसित होने के लिए छोड़ दिया जाता है, जिसके परिणाम विद्युत, पानी की आपूर्ति, सीवरेज और जल निकासी प्रणालियों जैसी सुविधाओं के कुशल नेटवर्क की कमी सामने आती है। इसके परिणामस्वरूप नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
7. शांत एवं स्वच्छ वातावरण: कस्बों और शहरों को डिज़ाइन करते समय जनसंख्या घनत्व को ध्यान में रखा जाता है। यदि जनसंख्या शहर की खानपान क्षमता से अधिक बढ़ जाती है, तो अच्छे जीवनशैली मानकों को बनाए रखना असंभव हो जाता है। बहुत अधिक जनसंख्या बहुत अधिक यातायात और शोर को जन्म देती है जिससे शहरवासियों को असुविधा होती है और तनाव बढ़ता है।
8. शहर का नियंत्रित विकास: यदि शहर का ज़ोनिंग कुशलतापूर्वक किया जाए तो उसके विकास को नियंत्रित किया जा सकता है। यदि हम भूमि का इष्टतम उपयोग नहीं करते हैं, तो एक निश्चित समय पर संसाधन निश्चित रूप से समाप्त हो जाएंगे और हम ऐसी स्थिति में पहुंच जाएंगे जहां से वापसी संभव नहीं होगी।
नगर नियोजन में नगर निगम की भूमिका:
नगर निगम एक प्रकार का स्थानीय निकाय है जो शहरी क्षेत्रों को नियंत्रित और पर्यवेक्षित करता है। शहरों में अधिक आबादी के कारण, एक स्थानीय निकाय की आवश्यकता होती है, जो आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और कई अन्य क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान कर सके। ये स्थानीय निकाय अपने कार्यों को विशेष संगठित विभागों जैसे आवास विभाग, विद्युत विभाग, शिक्षा विभाग आदि में विभाजित करते हैं और योग्य व्यक्तियों द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं। भारत में, विभिन्न राज्यों में नगर निगमों को विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे उत्तराखंड, दिल्ली, झारखंड आदि राज्यों में नगर निगम, महाराष्ट्र और गोवा राज्यों में महानगर पालिका, असम में पौरा निगम, केरल में नगर सभा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों में नगर पालक संस्था आदि। नगर निगम द्वारा एक विशेष क्षेत्र की देखरेख की जाती है, जिसे नगरपालिका क्षेत्र कहते हैं। प्रत्येक नगरपालिका क्षेत्र को छोटी इकाइयों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें वार्ड के रूप में जाना जाता है। नगर निगम एक वार्ड समिति का गठन करता है और इस समिति के पास प्रत्येक वार्ड के लिए एक सीट आवंटित की जाती है। इस समिति के सदस्य पाँच वर्ष की अवधि के लिए चुने जाते हैं, जिन्हें नगरसेवक या पार्षद कहा जाता है। किसी विशेष नगरपालिका क्षेत्र में आवश्यक वार्डों की संख्या शहर की जनसंख्या के आधार पर निर्धारित की जाती है। नगर निगम के प्रमुख को मेयर (Mayor) कहते हैं, लेकिन भारत के अधिकांश राज्यों में नगर निगम की शक्तियां नगर आयुक्त के हाथों में होती हैं। मेयर का कार्य निगम की बैठकों एवं समारोहों का प्रबंधन करना है। मेयर उपमेयर की नियुक्ति करता है और दोनों का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। मेयर का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है। कार्यकारी अधिकारियों द्वारा, पार्षदों और मेयर की सलाह से, नगर निगम के विकास की योजना क्रियान्वित की जाती है। नगर और शहरी नियोजन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, अग्निशमन सेवाएँ, झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों का सुधार, स्ट्रीट लाइटों का रखरखाव और मरम्मत, सामाजिक विकास आदि नगर निगम के कार्यों में शामिल हैं। क्या “नोएडा प्राधिकरण”, नगर निगम का विकल्प है?
उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर ज़िले में स्थित नोएडा या 'न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण' (New Okhla Industrial Development Authority (NOIDA) की स्थापना 17 अप्रैल 1976 को औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम के तहत औद्योगिक विकास के उद्देश्य से की गई थी। तब से, यह शहर की नागरिक सुविधाओं और औद्योगिक विकास दोनों का प्रबंधन कर रहा है। वर्तमान में, शहर की आबादी में बेतहाशा वृद्धि हुई है। लगभग 30,000 की आबादी के साथ शुरू किए गए प्राधिकरण ने अब एक अच्छी तरह से विकसित शहर की आबादी के आंकड़े को छू लिया है। वर्तमान में, शहर की जनसंख्या, 1981 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या से पांच गुना अधिक है। तो अब यहां सवाल उठता है कि 'क्या लगभग 12 लाख से अधिक की आबादी वाले एक विकसित शहर में हर एक काम का प्रबंधन करने के लिए एक ही प्राधिकरण पर्याप्त है?'
अतीत में जब भी किसी ने यह सवाल उठाने की कोशिश की, तो जवाब यही आया कि 'नोएडा एक औद्योगिक टाउनशिप है'।खैर, उस मामले में, तार्किक रूप से शहर में औद्योगिक उपयोग के लिए अधिकतम क्षेत्र नियोजित होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। राज्य के औद्योगिक विकास के लिए शुरू में गठित प्राधिकरण ने निकट भविष्य में 36% भूमि का उपयोग आवासीय उद्देश्यों के लिए करने की योजना बनाई है, जबकि केवल 20% भूमि का औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करने की योजना बनाई है। इस प्रकार, औद्योगिक प्राधिकरण से शहर में परिवर्तन साफ तौर पर देखा जा सकता है। उत्तर प्रदेश राज्य सरकार, राज्य में औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम 1976 के अंतर्गत कई औद्योगिक विकास प्राधिकरणों का गठन किया गया है, जिनमें से नोएडा को अन्य सभी प्राधिकरणों की तुलना में बहुत विशेष और अलग उपचार दिया गया है। जबकि 'सतहरिया औद्योगिक विकास प्राधिकरण' (Satharia Industrial Development Authority (SIDA) और गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (Gorakhpur Industrial Development Authority (GIDA) की स्थापना नवंबर 1989 में एक ही अधिनियम के तहत हुई थी। जनगणना के अनुसार, इन्हें कोई विशेष दर्ज़ा नहीं मिला है, वहीं नोएडा को जनगणना शहर (Census Town (CT) का दर्ज़ा दिया गया है।
यहां ध्यान देने वाली एक दिलचस्प बात यह है कि संविधान के 73वें संशोधन के अनुसार, एक जनगणना शहर में एक नगर निगम होना चाहिए, लेकिन नोएडा में एक भी नहीं है। इसका गठन एक राज्य अधिनियम के तहत किया गया है और इस प्रकार, इसे एक अनिवार्य नगर निगम की आवश्यकता नहीं है, लेकिन भारत की जनगणना द्वारा दी गई स्थिति के अनुसार, इसमें एक होना चाहिए।
नोएडा के निवासियों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि कभी-कभी उन्हें पता नहीं होता कि मदद के लिए किससे संपर्क करना चाहिए। ऐसा इस तथ्य के कारण है कि प्राधिकरण केवल उस अधिनियम में उल्लिखित कार्य करता है, जिसके तहत इसकी स्थापना की गई थी। यह नागरिक सुविधाओं की देखभाल करता है लेकिन नगर निगम के सभी कार्यों को निष्पादित नहीं करता है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर दिल्ली के किसी निवासी को चिकित्सा सेवा या किसी अन्य बुनियादी ज़रूरत से संबंधित कोई समस्या आती है; तो वह MCD से संबंधित व्यक्ति से आसानी से संपर्क कर सकता है। लेकिन नोएडा के निवासी को ज़िले के संबंधित विभाग से संपर्क करना आवश्यक है क्योंकि प्राधिकरण सब कुछ नहीं संभाल सकता है। अपने अस्तित्व के 50 वर्षों के बाद भी नोएडा अभी भी एक प्राधिकरण द्वारा शासित है और शहर की नीतियों पर आम जनता का कोई प्रभाव नहीं है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/3d88zbpp
https://tinyurl.com/4x4sj9bb
https://tinyurl.com/y5hjm4vc

चित्र संदर्भ
1. रामपुर की एक गली को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. रामपुर में रज़ा पुस्तकालय के परिसर को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. नोएडा शहर के विस्तृत दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. रामपुर के एक बाज़ार को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
5. रामपुर में  गांधी जी की समाधि को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.