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आपको यह जानकर हैरानी होगी कि प्राचीन ग्रीस और बेबीलोन में, ‘भारत' शब्द को ‘कपास' का पर्याय माना जाता था। यानी वहां के लोगों के लिए “भारत का मतलब ही कपास होता था।” कपास को आज भी वैश्विक वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में एक अहम् उत्पाद माना जाता है। भारत में हजारों वर्षों से इसकी खेती की जा रही है। हमारा शहर रामपुर भी अपने कपास उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
हालांकि भारत के सबसे बड़े सूती कपड़ा केंद्र गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में स्थापित हैं। आज हम कपास की इसी रोमांचक और ऐतिहासिक यात्रा पर चलेंगे।
कपास को अपनी बहुमुखी प्रतिभा और व्यापक उपयोग के लिए जाना जाता है। यह कई पीढ़ियों से, कृषि की आधारशिला रहा है। कई देशों की अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य तथा संबंधों को कपास ने महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है।
प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) को कपास की खेती का उद्गम स्थल माना जाता है। यह अब आधुनिक पाकिस्तान और भारत की सीमाओं के भीतर है। यहां, पुरातत्वविदों ने कई स्थानों पर कपास के बीज और रेशे खोजे हैं। इससे हमें पता चलता है कि 3000 ईसा पूर्व भी कपास एक अच्छी तरह से स्थापित और महत्वपूर्ण फसल हुआ करती थी।
13वीं शताब्दी के दौरान भारत में कॉटन जिन (Cotton Gin) के निर्माण के साथ ही कपास प्रसंस्करण की यात्रा में भी महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई। कॉटन जिन को कपास के रेशों को उसके बीजों से अलग करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। कॉटन जिन ने एक नए युग की शुरुआत की, कपास प्रसंस्करण को सुव्यवस्थित किया और इसके उत्पादन में नाटकीय वृद्धि का कारण बना, जिससे कपास विनिर्माण के परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया गया।
भारत में कपास का इतिहास 327 ईसा पूर्व में सिकंदर के आक्रमण से भी पुराना माना जाता है।
इस प्राचीन शिल्प ने ग्रीक व्यापारियों के लिए भारत के साथ व्यापार शुरू करने के लिए मंच तैयार किया। कपास की अनुकूलनशीलता ने इसे अरब दुनिया में भी एक पसंदीदा कपड़ा बना दिया। यह इस्लामी सम्पचुअरी कानूनों (Islamic Sumptuary Laws) के भी अनुरूप हो गया और धीरे-धीरे लग्ज़री वस्त्र (Luxury Garment) से एक दैनिक कपड़े में परिवर्तित हो गया।
1000-1300 ई. तक, उत्तरी इटली में भी कपास की खेती, कताई और बुनाई के केंद्र विकसित होने लगे। इटालियन लोग नवोन्मेषी थे और उन्होंने कपास को ऊन के साथ मिलाकर विविध प्रकार के वस्त्रों का उत्पादन करना शुरू कर दिया।
लेकिन 1300 के बाद जैसे ही पूरे यूरोप में कपास का उत्पादन बढ़ा, इटली को जर्मन फस्टियन (German Fustian) उद्योग से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।
लगभग इसी अवधि में 1615 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) की स्थापना भी हुई, जिसने ब्रिटेन में मुद्रित कपड़ों का आयात करना शुरू कर दिया। इन आयातों ने वहां के स्थानीय ऊन उद्योग को प्रभावित करना शुरू कर दिया, जिसके कारण 1700 के दशक के अंत तक मुद्रित कैलिकौ
(Printed Calico) पहनने पर अस्थायी प्रतिबंध लगा दिया गया। इस बीच, फ्रांस और नीदरलैंड ने भी भारत के साथ मिलकर अपनी व्यापारिक कंपनियां स्थापित कीं। देखते ही देखते यूरोपीय बाजार भारत से निर्यात सस्ते, रंगीन मुद्रित सूती कपड़ों से भर गया।
1700 के दशक में यूरोप ने भारत के ज्वलंत मुद्रित सूती कपड़ों की नकल करने का प्रयास किया।
हालांकि इस बीच भारत ने खुद भी अधिक परिष्कृत डिजाइन बनाना जारी रखा। अंततः ब्रिटेन ने 1774 में मुद्रित कैलिकौ से प्रतिबंध हटा लिया, जिससे वहां पर किफायती मुद्रित कॉटन (Printed Cotton) के उद्योग को बढ़ावा मिला। हालांकि यूरोपीय अभिजात वर्ग अभी भी भारत से आयातित कपड़े को ही प्राथमिकता देता था। 1790 के दशक तक, ब्रिटेन ने सूती कपड़े के उत्पादन की कला में महारत हासिल कर ली थी।
लेकिन 1920 के महत्वपूर्ण वर्ष में, गांधी जी ने भारत की संप्रभुता कायम रखने के लिए कपास के गहन महत्व को पहचान लिया था। उन्होंने खादी आंदोलन का नेतृत्व किया और जनता से ब्रिटिश वस्त्रों को छोड़कर घरेलू स्तर पर उत्पादित खादी को अपनाने का आग्रह किया। द्वितीय विश्व युद्ध की उथल-पुथल ने खादी की मांग में वृद्धि को और अधिक उत्प्रेरित किया, जिससे युद्धोत्तर भारत के आधुनिकीकरण और कपास उत्पादन को बढ़ाने के लिए मंच तैयार हुआ।
आज, कपास उद्योग का मूल्यांकन $425 बिलियन से अधिक हो गया है।
1818 से ही कपास, कृषि के साथ-साथ भारत के औद्योगिक परिदृश्य की भी आधारशिला रहा है। देश का सूती कपड़ा क्षेत्र चारों दिशाओं में फल-फूल रहा है।
कपास की व्यापक खेती के कारण मूल रूप से, भारत का कपास उद्योग राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात में विकसित हुआ। कच्चे माल की उपलब्धता, बाजार तक पहुंच, परिवहन के बुनियादी ढांचे, श्रम आपूर्ति और अनुकूल जलवायु जैसे कारकों ने इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
हालाँकि, 1947 मे भारत-पाकिस्तान विभाजन के परिणामस्वरूप कच्चे कपास की गंभीर कमी हो गई थी। लेकिन इसके बावजूद, 2011 तक, भारत में 1,946 कपास मिलें और इससे जुड़े कई छोटे उद्यम स्थापित हो चुके थे।
आधुनिक भारत में महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश, सूती कपड़ा उत्पादन के प्रमुख केंद्र के रूप में जाने जाते हैं, इनमे महाराष्ट्र अग्रणी रहा है।
चलिए इसे क्रमानुसार समझने का प्रयास करते हैं:
महाराष्ट्र: महाराष्ट्र अपने 39.38% मिल कपड़ा उत्पादन के साथ कपास उद्योग पर हावी है और लगभग 300,000 लोगों को रोजगार देता है।
गुजरात: विश्व स्तर पर दूसरे सबसे बड़े कपास उत्पादक के रूप में मान्यता प्राप्त, इस राज्य में भारत के मिल कपड़े का लगभग 33% कपड़े का उत्पादन किया जाता है।
मध्य प्रदेश: ग्वालियर, उज्जैन और इंदौर में उल्लेखनीय कपास उत्पादन केंद्रों के कारण इस राज्य को किफायती श्रम का केंद्र माना जाता है।
तमिलनाडु: तमिलनाडु दक्षिण भारत में एक महत्वपूर्ण भाग
है। अकेले कोयंबटूर में 200 मिलें स्थापित हैं।
उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के प्रमुख कपड़ा केंद्र, मुख्य रूप से मुरादाबाद, वाराणसी, आगरा और अन्य क्षेत्रों में स्थापित हैं।
आज भारत गर्व से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कपास उत्पादक के रूप में खड़ा है। हमारे पास कपास की खेती के लिए विश्व स्तर पर सबसे व्यापक क्षेत्र उपलब्ध है। यह स्थिति भारत को कम लागत वाले कपास उत्पादन में रणनीतिक लाभ प्रदान करती है। यहां पर श्रम लागत भी विकसित देशों की तुलना में लगभग 50-60% कम है, जो इसे वैश्विक आउटसोर्सिंग (Global Outsourcing) के लिए एक आकर्षक केंद्र बनाती है। आज भारत का कपड़ा निर्यात विभिन्न महाद्वीपों मे फैलते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) और श्रीलंका जैसे कई महत्वपूर्ण बाजारों में फ़ैल चुका है।
संदर्भ
Https://Tinyurl.Com/Tdeh9cb8
Https://Tinyurl.Com/Mws6chsv
Https://Tinyurl.Com/239z5ay7
चित्र संदर्भ
1. खेत जोतते एक भारतीय किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (Look and Learn)
2. कपास के खेतों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. हाथ में कपास को दर्शाता एक चित्रण (peakpx)
4. भारतीय बुनकरों को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
5. मुद्रित कॉटन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. कपास उत्पादन करते किसानों को दर्शाता एक चित्रण (2Fpixahive)
7. औरंगाबाद में कपास की खेती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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