पवित्र नदियों के तट पर बने घाट, हिंदू धर्म में क्या अहमियत रखते हैं?

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
30-03-2024 09:05 AM
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पवित्र नदियों के तट पर बने घाट, हिंदू धर्म में क्या अहमियत रखते हैं?

हिंदू धर्म में नदियों की महत्ता से हम सभी भली-भाँति परिचित हैं। भारत में कई ऐसी नदियाँ हैं, जिनके बारे में माना जाता है, कि इनमें स्नान कर लेने मात्र से मनुष्य को जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति मिल जाती है। हालाँकि हमारे रामपुर में कोई भी प्रसिद्ध घाट नहीं है, लेकिन हमारे शहर के सबसे निकट में “कुशावर्त” जैसे कुछ घाट ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
यदि आप ध्यान दें तो पायेंगे कि भारत के अधिकांश प्राचीन शहर ऐतिहासिक रूप से नदियों के आसपास ही विकसित हुए हैं। शहरों से होकर बहने वाली भारतीय नदियों की एक उल्लेखनीय वास्तुशिल्प विशेषता इन नदियों के किनारे पर मौजूद “घाट” भी हैं। इन घाटों का निर्माण नदी के किनारों पर धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया गया। "घाट" शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द "घट्टा" से हुई है, जिसका अर्थ "उतरने का स्थान" होता है। घाटों में नदी के प्रवाह के समानांतर सीढ़ीदार संरचनाएं निर्मित होती हैं, जो पानी तक पहुँचने के लिये मार्ग प्रदान करती हैं। घाट मिट्टी की रोकथाम, नदी तट स्थिरीकरण, जल प्रवाह मार्गदर्शन और बाढ़ सुरक्षा सहित कई उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं।
भारत भर में पाए जाने वाले विभिन्न घाटों में से, गंगा नदी के तट पर बने घाटों को विशेष महत्व दिया जाता है। हिंदू धर्म में माँ गंगा को साक्षात देवी के रूप में पूजा जाता है, तथा इसके कई उपचार गुणों की सराहना पूरे विश्व में की जाती है। हिंदू परंपराओं में नवजात शिशु के अभिषेक और दीक्षा समारोह से लेकर विवाह और दाह संस्कार तक, जीवन के महत्वपूर्ण चरणों को गंगा नदी के किनारे या गंगा नदी के जल से ही संपन्न किया जाता है। उदाहरण के तौर पर हरिद्वार और वाराणसी शहर के कई घाट हिंदू दर्शन के अनुसार प्रतीकात्मक रूप से अस्तित्व की चक्रीय प्रकृति को दर्शाते हैं। अपने कई घाटों के अलावा, इतिहास, कला, धर्म और संस्कृति से परिपूर्ण हरिद्वार शहर, सनातनियों के हृदय में एक विशेष स्थान रखता है। इस स्थान को आध्यात्मिक शांति की खोज में निकले लोगों के लिए एक पसंदीदा गंतव्य माना जाता है। यहां, श्रद्धालु प्रार्थना कर सकते हैं, पवित्र जल में डुबकी लगा कर अपने पाप धो सकते हैं, और गहरी मानसिक शांति प्राप्त कर सकते हैं।
मान्यता है कि हरिद्वार नगरी को हिंदू त्रिमूर्ति के तीनों देवताओं: "ब्रह्मा, विष्णु और महेश" का आशीर्वाद प्राप्त है। हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे, भक्तों को परमात्मा से जुड़ने और आशीर्वाद लेने के लिए एक स्थान प्रदान करते हैं।
हरिद्वार अपने पांच प्रमुख तीर्थों "गंगाद्वार (हर-की-पौड़ी), कुशावर्त घाट, कनखल, बिलवा पर्वत (मनसा देवी), और नील पर्वत (चंडी देवी)" के लिए प्रसिद्ध है। इस स्थान पर साक्षात ईश्वर की अनुभूति होती है। हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे बने विभिन्न घाटों में से, कुशावर्त घाट सबसे प्रतिष्ठित घाटों में से एक है। यह पवित्र स्थल धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसमें दिवंगत आत्माओं के लिए किए जाने वाले श्राद्ध संस्कार भी शामिल हैं। हर दिन, हजारों भक्त और तीर्थयात्री पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने और अपने पूर्वजों के लिए प्रार्थना करने के लिए यहां एकत्र होते हैं। कुशावर्त घाट की उत्पत्ति 18वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई थी। इसका निर्माण बहादुर मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा करवाया गया था।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुशावर्त घाट पर दत्तात्रेय नामक महान ऋषि अक्सर आते रहते थे। उन्होंने इस घाट पर बहुत अधिक समय व्यतीत किया और यहाँ पर ध्यान भी किया। किंवदंतियों के अनुसार भगवान को प्रसन्न करने के लिए दत्तात्रेय ने हजारों वर्षों तक एक पैर पर खड़े होकर गहन तपस्या की थी। उनके आध्यात्मिक प्रयासों के कारण इस स्थान का महत्व और पवित्रता कई गुना बढ़ गई है। तीर्थयात्री और श्रद्धालु आसानी से कुशावर्त घाट तक पहुँच सकते हैं। यह घाट हर की पौड़ी से सिर्फ 500 मीटर दक्षिण में स्थित है। यहाँ से विष्णु घाट भी अधिक दूर नहीं है। हिंदू पवित्र ग्रंथों और धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार, किसी पवित्र नदी में स्नान करने या उसके जल में दिवंगत प्रियजनों की राख को विसर्जित करने से उन्हें मोक्ष या मुक्ति मिलजाती है। पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति को “मोक्ष” कहा जाता है, और इसके बाद आत्मा और परमात्मा का मिलन हो जाता है। मोक्ष और जीवन के संचित पापों से मुक्ति चाहने वाले लोगों के बीच वाराणसी (काशी) विशेष महत्व रखता है। मोक्ष प्राप्त करने का सरलतम मार्ग अपने जीवनकाल के दौरान गंगा नदी में डुबकी लगाना या प्रियजनों का अंतिम संस्कार उसी पवित्र नदी के किनारों पर करना होता है। इसके अलावा अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने के लिए उनकी अस्थियों को पवित्र नदियों में विसर्जित कर दिया जाता है।

संदर्भ

https://tinyurl.com/3795sy3f
https://tinyurl.com/2f8u2ttb
https://tinyurl.com/bdfrwusx
https://tinyurl.com/6f36kjj2

चित्र संदर्भ

1. कुशावर्त में सम्पन्न हो रहे धार्मिक अनुष्ठानों को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. हरीशचन्द्र घाट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. हरिद्वार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. प्राचीन कुशावर्त घाट को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. अस्थि विसर्जन की प्रक्रिया को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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