यूरोप में इंसानों को जानवरों की तरह चिड़ियाघरों व सर्कस में क्यों प्रदर्शित किया जाता था?

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
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यूरोप में इंसानों को जानवरों की तरह चिड़ियाघरों व सर्कस में क्यों प्रदर्शित किया जाता था?

आपने सर्कस या चिड़ियाघर में इंसानों को जानवरों को करतब कराते हुए जरूर देखा होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस प्रकार आज चिड़ियाघरों में आप अनोखे और विदेशी जानवरों को देखने के लिए जाते हैं, ठीक उसी प्रकार पहले के समय में अमेरिका और यूरोप के चिड़ियाघरों और सर्कस में पूरी दुनियां के अलग-अलग देशों से लाये गए इंसानों को प्रदर्शित किया जाता था। मानव चिड़ियाघर (Human Zoo) ऐसे स्थान होते थे, जहां दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए लोगों को असभ्य और अपमानजनक तरीके से जनता को दिखाया जाता था। ये तरीका 1800 और 1900 के दशक में बहुत आम हुआ करता था। इन चिड़ियाघरों में भारत,अफ्रीका और चीन सहित दूसरे देशों के लोगों की संस्कृति का मज़ाक उड़ाया जाता था, इन्हें यूरोप और अमेरिका के लोगों की तुलना में कम स्मार्ट (Less Smart) और अधिक "जंगली" कहा जाता था। जर्मन साम्राज्य के समय और पूरे 1930 के दशक में, इंसानों को चिड़ियाघरों में प्रदर्शनियों की तरह प्रदर्शित किया जाता था। इन प्रदर्शनियों को "नृवंशविज्ञान प्रदर्शनी (Ethnographic Exhibition)" के रूप में जाना जाता है। ये बेहद नस्लभेदी हुआ करती थी। यहां पर जिज्ञासु दर्शकों के लिए इंसानों को एक दुर्लभ जानवर की तरह प्रदर्शित किया जाता था। ये मानव चिड़ियाघर 1930 के दशक तक जर्मनी में मौजूद थे, और उस समय पूरे देश में इनकी संख्या लगभग 400 थी।
इस तरह के प्रदर्शनों में दूर-दराज के देशों के विभिन्न नस्लों के इंसानों को प्रदर्शित किया जाता था। ये लोग प्रत्येक दिन कई प्रस्तुतियाँ देते थे, और जिज्ञासु आगंतुक उन्हें देखने के लिए एकत्रित होते थे। इस तरह की प्रदर्शनी में लोग दूर-दराज के स्थानों के मनुष्यों को करीब से देख सकते थे। लेकिन पर्दे के पीछे की जिंदगी बिल्कुल भी ग्लैमरस (Glamorous) नहीं थी। इस तरह की प्रदर्शनियों में शामिल होने वाले कई कलाकारों को अपने परिचित परिवेश से दूर, घर की याद आ रही होती थी। यहाँ तक की टीकाकरण की कमी के कारण कुछ लोगों की जान तक चली गई। उदाहरण के लिए, 1880 में हैम्बर्ग और बर्लिन (Hamburg And Berlin) में प्रदर्शन करने के दौरान प्रदर्शनी का हिस्सा रहा एक इनुइट परिवार (Nuit Family) चेचक से पीड़ित हो गया। इसी तरह, अमेरिका की एक मूल अमेरिकी आदिवासी जनजाति सिओक्स भारतीयों (Sioux Indians) के एक समूह को चक्कर, खसरा और निमोनिया का सामना करना पड़ा। हालांकि कई लोगों ने इस प्रकार के मानव चिड़ियाघरों को अनैतिक, मतलबी और अनुचित माना। पहली प्रमुख नृवंशविज्ञान प्रदर्शनी जंगली जानवरों के एक जर्मन व्यापारी कार्ल हेगेनबेक (Carl Hagenbeck,) द्वारा आयोजित की गई थी, जिन्होंने न केवल जानवरों को बल्कि मनुष्यों को भी प्रदर्शित किया था। लोग भी इन "विदेशी लोगो के" प्रदर्शनों से आकर्षित होते थे, क्यों कि उस दौरान टेलीविजन और रंगीन फोटोग्राफी उपलब्ध नहीं थी। 1874 में, हेगेनबेक ने पहली प्रमुख नृवंश विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन किया। टेलीविजन और रंगीन फोटोग्राफी से पहले, यूरोपीय लोगों के लिए दूर के तटों से मानवता की एक झलक पाने का यही एकमात्र तरीका था। थियोडोर वोन्जा माइकल (Theodore Vonja Michael,), जिन्होंने इन नृवंशविज्ञान संबंधी प्रदर्शनों को सामने से देखा, वह जर्मनी में नस्लवाद के अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि कैसे 1920 और 30 के दशक में उन्हें 'अफ्रीकियों' की यूरोपीय धारणा का प्रतीक बनाया गया और उन्हें राफिया स्कर्ट (Raffia Skirts) पहने अशिक्षित जंगली लोगों के रूप में चित्रित किया गया था। उसे स्पष्ट रूप से याद है कि अजनबी उसके घुंघराले बालों को छूते थे, उसकी प्रामाणिकता की पुष्टि करने के लिए उन्हें सूँघते थे, और टूटी-फूटी जर्मन भाषा में या इशारों के माध्यम से उसके साथ संवाद करते जब 1825 में पहला सर्कस अमेरिका में आया, तो यहाँ पर एशिया और अफ़्रीका के लोगों, विशेषकर मुसलमानों की तस्वीरें दिखाई गईं। पहले सर्कस कलाकारों में से एक इटली का एक व्यक्ति था, जिसने भारत का हिंदू जादूगर होने का नाटक किया था। उसने एक विशेष पोशाक पहनी और गेंदों, चाकू, फूलदान और गोली से करतब दिखाए। कई वर्षों तक इस तरह की सर्कस परेड में एशिया और अफ्रीका के विभिन्न प्रकार के लोगों को दिखाया जाता रहा था। हालांकि उन्होंने अमेरिकियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अफ्रीका एक ऐसी जगह है, जहां मुस्लिम और गैर-मुस्लिम एक साथ रहते हैं। 1800 के दशक के अंत में, अमेरिकी मोरक्को, अरब, भारत और मिस्र जैसे स्थानों की रंगीन और रहस्यमय संस्कृतियों से मोहित हो गए थे।
उन्हें विदेशी जानवरों, बहादुर योद्धाओं और इन देशों की खूबसूरत महिलाओं वाले शो देखना पसंद था। इन मंचनों में अरेबियन नाइट्स (Arabian Nights) की कहानियाँ बहुत लोकप्रिय थीं।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद कई मानव चिड़ियाघरों का संचालन बंद हो गया। हेगेनबेक ने 1931 में अपना अंतिम "विदेशी लोग" शो आयोजित किया, लेकिन इससे भेदभाव का अंत नहीं हुआ।

संदर्भ
http://tinyurl.com/2dn9wyf8
http://tinyurl.com/3bp2eudt
http://tinyurl.com/2azsx3y3
http://tinyurl.com/y6h58rty

चित्र संदर्भ
1. मानव चिड़ियाघर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
2. आदिवासी समुदाय को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
3. नृवंशविज्ञान प्रदर्शनी के पोस्टर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
4. 1897 ब्रुसेल्स अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में कांगोलेस गांव को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. नृवंशविज्ञान प्रदर्शनी में एक आदिवासी परिवार को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
6. 1913 में टेनोजी पार्क, ओसाका में भव्य औपनिवेशिक प्रदर्शनी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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