रज़ा लाइब्रेरी में मौजूद लखनऊ के ला मार्टिनियर से मिलती जुलती कला
raza library interior art similar to La Martiniere Lucknow
Rampur
04-12-2018 01:19 PM
भारत में सांस्कृतिक पारंपरिक और धार्मिक विविधता के साथ-साथ कला एवं कलाकारों में विविधता देखने को मिलती है। आज हम बात करने जा रहे हैं ऐसी ही एक कला के विचित्र स्वरूप की, जिसे जोसाइयः वेजवुड द्वारा तैयार किया गया तथा इसके कुछ नमूने आज भी भारत में संरक्षित हैं।
जोसाइयः वेजवुड ने 1795 में इंग्लैंड के बर्सलेम, स्टैफोर्डशायर में एक स्वतंत्र कुम्हार के रूप में अपना व्यवसाय शुरू किया और चिकनी मिट्टी का उपयोग कर उन्होंने कई परीक्षण किए, जिसमें उन्हें काफी कामयाबी भी मिली थी। अपने संपूर्ण जीवनकाल के दौरान उन्होंने कई वस्तुओं में चीनी मिट्टी से कला की, जिनमें से कुछ आज भी प्रसिद्ध हैं- क्वीन्स वेयर (Queen’s ware) (1762), ब्लैक बसाल्ट (Black Basalt) (1768) और जैस्पर (Jasper) (1774) आदि। वेजवुड का प्रसिद्ध जैस्परवेयर (Jasperware), एक मिट्टी का पात्र है, जिसका उपयोग विभिन्न विषयों में कला के लिए किया जाता है। 1770 में वेजवुड द्वारा जैस्परवेयर को विकसित किया गया, जिसे उन्होंने मैट फिनिश (Matte Finish) और विभिन्न रंगों में उत्पादित किया, जिसमें सबसे प्रसिद्ध एक तरह का नीला रंग, जिसे वेजवुड ब्लू (Wedgweood Blue) के नाम से भी जाना जाता है, हुआ।
भारत में वेजवुड के दो प्रसिद्ध नीले और सफेद जैस्परवेयर की कला लखनऊ और रामपुर में भी मौजूद है। एक तो लखनऊ के ला मार्टिनियर की चौथी मंजिल पर और दूसरा रामपुर के रज़ा पुस्तकालय की पहली मंजिल पर मौजूद है। लखनऊ के ला मार्टिनियर में म्यूज़ेज़ बावर (Muses’ bower) नाम के कमरे की छत को वेजवुड के कलाकारों द्वारा डिज़ाइन (Design) की गयी उभरी हुई नक्काशी से सजाया गया था। यहां पर जॉन फ्लेक्समैन (जॉन फ्लेक्समैन को वेजवुड ने अपनी कंपनी के लिए नियोजित किया था) द्वारा डिज़ाइन की जाने वाली नौ म्यूज़ेज़ और अपोलो का एक समूह सबसे लोकप्रिय छवियों में से एक है। वर्तमान में म्यूज़ेज़ बावर और उसके उपकक्ष ला मार्टिनियर कॉलेज के वरिष्ठ विद्वानों के लिए निजी अध्ययन कक्ष के रूप में उपयोग किये जाते हैं।
अब हम आपको बताते हैं कि ये नौ म्यूज़ेज़ क्या हैं? ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार नौ म्यूज़ेज़ प्रेरणा, कला, विज्ञान और अन्य सभी रचनात्मक कार्यों की देवियाँ हैं। और ऐसा माना जाता है कि इन नौ म्यूज़ेज़ में से किसी एक की सहायता और प्रेरणा के बिना कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता है। सभी म्यूज़ेज़ देवताओं के राजा ज़ीउस (Zeus) और स्मृति की देवी म्नेमोसाइन (Mnemosyne) की बेटियां थीं। इन नौ म्यूज़ेज़ के नाम और उनकी भूमिकाएं निम्न हैं:
1. कैलीओप (Calliope)-
कैलीओप महाकाव्य और गीति काव्य की देवी। चित्रण में कैलीओप को युवा और सुंदर, सर पर सोने के ताज और हाथ पर लेखन पुस्तक या होमर के ओडिसी ग्रंथ के साथ दर्शाया गया है।
2. क्लियो (Clio)-
क्लियो इतिहास की देवी। क्लियो को अक्सर बैंगनी वस्त्र पहने हुए और एक हाथ में ध्वजवाहक और दूसरे में उनकी इतिहास की पुस्तक पकड़े हुए दर्शाया गया है।
3. यूटरपे (Euterpe)-
यूटरपे, जिसे ‘खुशी की दाता’ भी कहा जाता है, संगीत की देवी। यूटरपे के सर पर लॉरेल-ताज, और हाथ पर अक्सर बांसुरी बजाते हुए या पकड़े हुए दर्शाया गया है।
4. इरेटो (Erato)-
इरेटो गीति काव्य की देवी। इरेटो अक्सर हिना और गुलाब के पुष्प की माला पहने हुए दिखायी जाती हैं। और कभी-कभी हाथ में वीणा या बाण पकड़े हुए दर्शायी जाती है।
5. मेलपोमीन (Melpomene)-
मेलपोमीन त्रासदी की देवी। इन्हें आमतौर पर एक हाथ में त्रासिक अभिनेता का मुखौटा पकड़े हुए और दूसरे में चाकू या गदा पकड़े हुए दर्शाया जाता है।
6. पॉलीहिमिया (Polyhymnia)-
पॉलीहिमिया पवित्र भजन, ज्यामिति और कृषि की देवी। पॉलीहिमिया अक्सर अपने मुंह को एक उंगली के सहारे पकड़े हुए दर्शायी जाती है।
7. टर्पसीकोरी (Terpsichore)-
टर्पसीकोरी नृत्य की देवी। आश्चर्यजनक बात यहा है कि इन्हें अक्सर बैठे हुए दिखाया जाता है, शायद नृत्य के बाद विश्राम की अवस्था में दर्शाया जाता है।
8. थालिया (Thalia)-
थालिया हास्य और ग्रामीण कविता की देवी। इनके हाथों में हास्य मुखौटा देखने को मिलता है।
9. उरानिया (Urania)-
उरानिया नक्षत्र-विद्या की देवी। उरानिया के हाथों में ग्लोब (Globe) और कभी-कभी दिशा सूचक यंत्र या एक लकड़ी पकड़े हुए देखने को मिलता है।
वहीं अंसर-उद-दीन दो दशकों से लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों का नवीकरण करते आ रहे हैं। इतने सालों बाद लखनऊ के ला मार्टिनियर कॉलेज में कॉन्स्टेंटिया पैलेस का नवीकरण करने पर इन्होंने फ्रांसीसी विरासत को संरक्षित करने के लिए फ्रेंच सरकार से पुरस्कार भी जीता।
संदर्भ:
1.https://www.tornosindia.com/muses-in-la-martinieres-constantia-a-work-of-wedgwoods-neoclassical-art/
2.https://row.wedgwood.com/history
3.https://timesofindia.indiatimes.com/city/lucknow/French-honour-for-restoring-Constantia-Palace-in-Lucknow/articleshow/51591746.cms
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Jasperware
ज्यामिति और खगोल विज्ञान का एक स्वरूप वैदिक कालीन वेदियां
Ritual Geometry and Astronomy of Altars used for Vedic worship
Rampur
03-12-2018 05:25 PM
सनातन धर्म या हिन्दू धर्म का सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेदों को माना जाता है, उनमें से भी सबसे प्राचीन या पहला वेद ऋग्वेद है। वेदों में तत्कालीन समाज की जीवन शैली, धार्मिक कर्म-काण्ड, व्रत, अनुष्ठान इत्यादि का वर्णन किया गया है। साथ ही इनमें देवताओं की स्तुती का विशेष महत्व रहा है, जो यज्ञ, अनुष्ठान और मंत्रोच्चारण से संपन्न की जाती थी। यज्ञ और अनुष्ठानों को वेदी के माध्यम से पूर्ण किया जाता था, जिसका उपयोग हम आज भी देख सकते हैं। आज हम श्री सुभाष काक द्वारा लिखे गए पेपर 'एस्ट्रोनॉमी एंड इट्स रोल इन वैदिक कल्चर' (Astronomy and its Role in Vedic Culture) का अध्ययन कर इस विषय में थोड़ा और ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करेंगे।
वैदिक काल में तैयार की जाने वाली वेदियों में ज्यामिति और खगोल विज्ञान का विशेष ध्यान रखा जाता था अर्थात अनुष्ठान हेतु प्रयोग में लायी जाने वाली वेदियों में चन्द्र वर्ष और सूर्य वर्ष के मिलन की खगोलीय संख्याओं को प्रयोग किया जाता था। वेदों में उल्लिखित खगोलीय जानकारी ने आधुनिक खगोल शास्त्रियों के लिए एक पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाई है। तीन प्रकार की वेदियां संपूर्ण ब्रह्माण्ड (आकाश, अंतरिक्ष और पृथ्वी) को इंगित करती हैं, जिसमें पृथ्वी के लिए गोलाकार तथा आकाश के लिए वर्गाकार वेदियों का प्रयोग किया गया। एक आयताकार वेदी का वृत्तीय मान तथा एक वृत्ताकार वेदी (पृथ्वी) का आयताकार (आकाश) मान बराबर करना एक ज्यामितीय समस्या थी, जो प्राचीन ज्यामितीय की पहली समस्या भी मानी जाती है।
अग्नि वेदियां 21 पृथ्वी वेदी के, 78 अंतरिक्ष वेदी के, 261 आकाश वेदी के पत्थरों से घिरी होती हैं। इन्हीं संख्याओं को तीनों (पृथ्वी, अंतरिक्ष, आकाश) के प्रतीकात्मक रूप में व्यक्त किया गया। पृथ्वी और ब्रह्माण्ड के द्विभाजन को ध्यान में रखते हुए इसके लिए 21 और 339 संख्याएं इंगित की गयी हैं क्योंकि ब्रह्मांड में अंतरिक्ष और आकाश भी शामिल हैं। हजारों ईंटों से तैयार की जाने वाली इन पांच परतों की वेदी के निर्माण हेतु अनेक बीजगणितीय और ज्यामितीय समस्याओं से होकर गुजरना पड़ता था। इसलिए इसमें सामान्य और विशेष दो प्रकार की ईंटों का प्रयोग किया गया। वर्ष के 360 दिन तथा 36 अंतराल महीने को इंगित करने के लिए 396 विशेष ईंटों का प्रयोग किया गया। इसी प्रकार वेदी की परतों में प्रयोग होने वाली ईंटों की भिन्न-भिन्न संख्याओं का योग तिथियों, चन्द्र वर्ष के दिनों तथा एक वर्ष में मुहुर्तों की संख्या इत्यादि को दर्शाते हैं।
ऋग्वेद के अक्षरों की संख्या 4,32,000, चालीस वर्षों में आने वाले मुहूर्तों की संख्या के समान है, जो एक प्रतीकात्मक वेदी का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऋग्वेद के छंदों की गणना हम चालीस वर्षों में आकाश के दिवसों की संख्या या 261×40= 10,440 से कर सकते हैं और सभी वेदों के छंद की गणना 261×78= 20,358 से कर सकते हैं।
ऋग्वेद के 1,017 सूक्तों को 216 समूहों में दस पुस्तकों में विभाजित किया गया है। इन संख्याओं को ऋग्वेद के ब्राह्मणा में वर्णित पांच-परतों वाली वेदी के समान माना जाता है, इसमें प्रथम दो पुस्तकें पृथ्वी और आकाश के मध्य अंतरिक्ष के रूप में मध्यवर्ती की भूमिका निभाती हैं। अंतरिक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाली संख्या 78 को 3 गुणक के साथ तीनों लोक के लिए प्रयोग किया जाए तो यह 234 सूक्तों का निर्माण करती है, जोकि इन दोनों पुस्तकों की वास्तविक संख्या है। जैसा कि आप नीचे देख सकते हैं कि ऋग्वेद की पुस्तकों को पांच-परतों वाली वेदी की पुस्तकों के प्रतिनिधित्व के रूप में देखा जा सकता है:
वेदी की पुस्तकें
वहीं जब वेदी पुस्तकों में सूक्तों की संख्या का उपयोग किया जाता है तो हमें निम्न संख्याओं की प्राप्ति होती है:
इस क्रम का चुनाव सूक्तों में नियमितता को प्रेरित करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार सूक्तों की गणना दो कॉलमों में विकर्ण के रूप में अलग-अलग होती हैं। अतः हम ऋग्वेद में वर्णित वेदियों को एक आदर्श वेदी के रूप में इंगित कर सकते हैं।
संदर्भ:
1.Astronomy and its Role in Vedic Culture, Subhash Kak
पशुओं और मानवों में कुछ समानताएं
similarities between animals and humans
Rampur
02-12-2018 11:45 AM
मानव के विषय में अक्सर यह कहा जाता है की वह एक सामाजिक प्राणी है। यदि ध्यान लगाया जाए तो पशुओं और मनवों में काफी समानताएं देखी जा सकती हैं। आज हम आपके सामने दो विडियो के माध्यम से एक ऐसा ही नज़ारा प्रस्तुत करने जा रहे हैं।
ऊपर दिए गए विडियो की शुरुआत होती है एक बाघिन से जो कि अपने 10 दिन की उम्र के शिशु को चाटती हुई नज़र आती है। अधिकतर छोटे शिशु शुरुआती 6 हफ्ते तक बिना उजाला देखे अपनी गुफा में ही छिपे रहते हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि विडियो में दिखाए गए शिशु काफी असामान्य गतिविधि कर रहे हैं। अभी इनकी आँखें भी ढंग से नहीं खुली हैं इसलिए ये ठीक से देख भी नहीं सकते। इन्हें इधर से उधर ले जाने के लिए इनकी माँ इन्हें गले से अपने जबड़े में दबोचती है। परन्तु इसके लिए काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है क्योंकि इनका जबड़ा करीब 500 किलो की क्षमता के साथ काट सकता है और बच्चों के गले अभी भी काफी नाज़ुक हैं।
अधिकतर बाघ एक बार में दो से तीन बच्चों को जन्म देते हैं क्योंकि इससे अधिक मात्रा में उन्हें संभालना काफी मुश्किल हो जाता है जैसा की आप विडियो में देख सकते हैं। विडियो देखकर यह प्रतीत होता है की यह बाघिन बेशक एक बेहतरीन माँ साबित होगी परन्तु इसे अभी भी काफी कुछ सीखना बाकी है।
बच्चों का शिकार प्रशिक्षण:
ऊपर दिया गए विडियो में हम देख सकते हैं कि बच्चे अब बड़े हो चुके हैं और शिकार करने के लिए तैयार हैं। माँ को एक हिरण नज़र आता है। परन्तु एक बच्चा मूर्खता में दहाड़ लगाने की कोशिश कर बैठता है। हिरण को तुरंत आभास हो जाता है कि कुछ गड़बड़ चल रही है। माँ बच्चे को गुस्से में देखती है और बच्चे को शिकार का पहला सबक मिल जाता है। अब वे चुपचाप बैठकर अपनी माँ को शिकार करते देखते हैं। बाघिन रास्ता बदल बदलकर शिकार की और बढ़ती है। कैमरा ऑपरेटर (Camera Operator) के हाथी से सिर्फ 2 मीटर की दूरी पर वह अपने शिकार को दबोच लेती है। बाघ भी तेंदुओं की भाँती कई बार अपने शिकार को खाने से पहले उनके शरीर से सभी बाल हटाते हैं। बच्चे अपनी माँ को देख, यह भी तुरंत सीख जाते हैं।
तो इंतज़ार किस बात का, तुरंत विडियो पर क्लीक कीजिये और बनाइये इस रविवार को और भी रोमांचक।
सन्दर्भ:
1.https://www.youtube.com/watch?v=kXmqwRj0o4E
2.https://www.youtube.com/watch?v=5ThQLGbt8bM
रामपुर, एक प्राचीन शहर जो मुस्लिम शहर के मानकों के अनुरूप है
rampur Old City and its conformity to standards of an Islamic City
Rampur
01-12-2018 05:49 PM
यह बात जान कर आपको आश्चर्य होगा किइस्लाम एक ऐसा धर्म है जहां शिक्षण में शहरी व्यवस्था को बनाये रखने पर भीध्यान दिया जाता है।कई विद्वानों द्वारा इस्लाम को शहरी धर्म के रूप में देखा जाता है, जो व्यक्तिगत पूजा कीबजायसांप्रदायिक कार्यक्रमों का पक्ष लेता है।इस्लाम में शहर के रूप और डिज़ाइन (Design) पर विशेष ज़ोर दिया जाता है,ताकि समुदाय की सामाजिक,आर्थिक और सांस्कृतिक जरूरतों को अधिक कार्यक्षमता और प्रतिक्रियात्मकता के साथ पूरा किया जा सके। आज हम इसी विषय पर लिखे गए दो शोध पेपर (श्री नोमान खान और डॉ. रुबह सऊद द्वारा) का अध्ययन कर इसे अच्छे से समझेंगे।
क्या आपको पता है इस्लामी शहर के घरों के आंगन, छत,सड़कें और यहां तक कि उद्यानों को भी इस प्रकार बानाया जाता है कि वे प्राकृतिक परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम हों। इस्लाम धर्म में शहरीकरण का यह सबसे पहला सिद्धांत है, जिसमें प्राकृतिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर शहर को डिज़ाइन किया जाता है। इन शहरों में अक्सर मस्जिद को केंद्र में स्थापित किया जाता है, यहां तक कि सड़कों और गलियों को भी इस प्रकार बनाया गया है की निजी जीवन में सार्वजनिक क्रियाओं का खलल ना पड़ सके और सारे स्थान आसानी से एक दूसरे से जुड़े रहें तथा सुरक्षा के लिहाज से शहरों को दीवार से घेरा जाता है। ये दीवार विभिन्न दरवाज़ों के साथ शहर को चारों ओर से घेरे हुए रहती है।यहशहर समाजिक संगठन समूह, जातीय मूल और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को साझा करने वाले सामाजिक समूहों पर आधारित है। इसलिए इन सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करते हुए शहर का विकास किया गया था। शहरों में मुख्य मस्जिद के बाहर स्थित सूक (बाज़ार) में आर्थिक गतिविधियां होती हैं।
भारत में इस्लाम धर्म का आगमन करीब 7वीं शताब्दी में हुआ था और तब से यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक अभिन्न अंग बन गया है। वर्षों से, सम्पूर्ण भारत में मुस्लिम संस्कृतियों का प्रभावदेखने को मिला है। यदि हम बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी के शहर रामपुर की ही बात करेंतो आपको इस शहर की बनावट में इस्लामी अवधारणासाफ-साफ नज़र आ जाएगी।इसकी स्थापना नवाब फैज़ुल्लाह खान ने की थी। उन्होंने 1774-1794 तक यहाँ शासन किया।उन्होंनेअपने शासन मेंराज्य में शिक्षा के मानकों को बढ़ाने के लिए बहुत से कार्य किये।यदि आप रामपुर की बनावट पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि इस शहर की बनावट भी काफी हद तक इस्लामी शहरों से मिलती है:
1. मुख्य मस्जिद:
हर इस्लामिक शहर की तरह रामपुर में भी जामा मस्जिद केंद्र में स्थित है, ये मुख्य मस्जिद शहर केकेंद्र में स्थित मानी जाती है और ये चारों ओर से बाज़ार से घिरी हुई है। यदि यह मस्जिद शहर के भौगोलिक केंद्र में न भी हो तो यह ज़रूर शहर के सांस्कृतिक केंद्र में स्थित होती है।
2. बाज़ार:
सभी बाज़ार मुख्य मस्जिद से बाहर की ओरस्थितहैं, और यदिमुख्य बाज़ारकी बात करें तो यह जामा मस्जिद और महल परिसर की आसपास की सड़कों परस्थित हैं।
3. ऐतिहासिक इमारतें और किले:
रामपुर में ज्यादातर ऐतिहासिक इमारतें और किले आपको मुख्य मस्जिद के पास स्थित मिल जाएंगे।यदि आप रामपुर का किला देखंगे तो पाएंगे कि ये जामा मस्जिद के नज़दीक है और चारों ओर से दीवारों से घिरा हुआ है जिसमें शाही महल, कार्यालय, अदालतें, ऊंची इमारतें, इमामबाड़ा आदि स्थित हैं।
4. सड़कें और आवासीय निकटता:
रामपुर में सड़कों का जाल हर कहीं फैला हुआ है, इन सड़कों का निर्माण व्यक्तिगत संबंधों, आम हितों और नैतिक एकता को मज़बूत करने के लिए किया गया था। ये सड़केंआवासीय क्षेत्रों में संकीर्ण और सार्वजनिक स्थानों में बड़ी होती हैं।
5.दीवार से घिरा शहर:
अन्य इस्लामी शहरों की भाँती रामपुर भी चारों ओर से दीवार से घिरा हुआ है जिसमें प्रवेश करने के लिए शहर के कुछ द्वार मौजूद हैं, जैसे- हज़रतपुर गेट,बिलासपुर गेट,पहाड़ी गेट,बरेली गेट,शाहबाद गेट,नवाब गेट, आदि।
संदर्भ:
1.http://www.muslimheritage.com/article/introduction-islamic-city
2.https://www.academia.edu/5785534/RAMPUR_CITY_Its_Islamic_Concept
3.https://goo.gl/mEuzRx
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Rampur,_Uttar_Pradesh
कहीं आप घर की पुरानी चीज़ों के साथ कोई मूल्यवान प्राचीन वस्तु तो नहीं फेंक रहे?
Are you throwing out valuable old antiques from your house
Rampur
30-11-2018 02:31 PM
भारत विविधताओं से भरा एक ऐसा देश है जिसमें प्रत्येक शहर व गाँव दशकों पुरानी भारतीय परम्पराओं को संजोए हुए हैं। यहां बहुत से लोगों के पास उनके घरों में मूल्यवान प्राचीन वस्तुएं होती हैं जिनमें से कई लोगों को उसके महत्व के बारे में पता भी नहीं होता। उन्हे यह ज्ञात ही नहीं होता है कि वे वस्तुएं कितनी कीमती और बहुमूल्य हैं। हममें से कई लोग इन पुरानी बहुमुल्य वस्तुओं को फेंक देते हैं या आधुनिक वस्तुओं को उनके बदले घर में रख लेते है। अब आप सोच रहे होंगे कि केवल 100 साल से पुरानी वस्तुएं ही एंटीक (संग्रहणीय) होती हैं या जो वस्तु पुरानी सी दिख रही हो वो ही एंटीक है, परंतु ऐसा नहीं है।
सिर्फ पुराने दिखने से कोई भी वस्तु एंटीक नहीं हो जाती। एंटीक वस्तु वे होती हैं जो पुरानी तो होती ही हैं परंतु जिनमें दुर्लभता के साथ-साथ उस दौर का ऐतिहासिक महत्व भी छिपा होता है। यहां तक की आपके घर में रखा हुआ एक टाइपराइटर भी एंटीक वस्तुओं में शामिल है। वर्तमान में इन पुराने टाइपराइटरों की कीमत 200 से 560 अमेरिकी डॉलर तक आसानी से मिल जाती है। ये कीमत उसकी आयु, स्थिति, रंग आदि पर निर्भर करती है। 70 के दशक के कुछ पात्रों (जिनको आप आज टि.वी. में देखते है) पर आधारित कॉमिक बुक का संग्रह भी कुछ लोगों के द्वारा किया जाता है। हाल में ही ब्लैक पैंथर कॉमिक बुक की एक श्रृंखला की नीलामी 150 अमेरिकी डॉलर से अधिक में हुई थी। यह तो कुछ भी नहीं है पुरानी कॉमिक बुकों की कीमत कुछ सौ से लेकर 1000 डॉलर तक पहुंच जाती है।
सिर्फ इतना ही नहीं आपके घरों में मिलने वाले रेट्रो वीडियो गेम, विंटेज विज्ञापन संकेत, पोकिमोन कार्डस, विंटेज हि-मैन (HE-MAN), और ट्रांसफॉर्मर्स (TRANSFORMERS) खिलौने, प्राचीन संगीत वाद्य यंत्र, पुरानी इत्र की बोतलें, प्राचीन किताबों का प्रथम संस्करण, विंटेज कंप्यूटर, प्राचीन पेंटिग, पुराने पेन तथा पोस्टकार्ड आदि का संग्रह भी आज के दौर में कुछ लोगों के द्वारा किया जाता है और वे इनके लिये कोई भी कीमत देने को तैयार हो जाते हैं। उपरोक्त विवरण से तो आप समझ ही गये होंगे कि पुरानी चीजों को संभालकर रखने की जरूरत है। इन्हें बेकार समझकर फेंकने की गलती न करें क्योंकि क्या पता कब, कौन सी चीज आपको मालामाल बना दे। आज के समय में पुरानी चीजों का मूल्य ब्रैंडेड (Branded) और प्रचलित वस्तुओं से भी कहीं ज्यादा है। इस प्रकार के संग्रह के क्रय-विक्रय के लिए एक बाजार होता है, जहाँ से आप उन धूल वाले पुराने खिलौने और दादी माँ के पुराने जंग लगे पायरेक्स कैसरोल बर्तन से सैकड़ों रुपये ला सकते हैं।
यदि हम भारतीय प्राचीन वस्तुएं की बात करें तो हम आपको बता दें कि 18वीं और 19वीं सदी से पुरानी अधिकांश वस्तुएं भारतीय संग्रहालय का भाग हैं। कहते है संग्रहालय मानव इतिहास को संजोह कर रखते हैं, किसी भी देश की कला-संस्कृति और इतिहास को जानना, और देखना हो तो संग्रहालयों से बेहतर कोई जगह नहीं होती है। संग्रहालय सशक्त जरिया है हजारों साल पुराने कालखंड के चिह्नें को देखने का। भारतीय संग्रहालयों में उस दौर की वस्तुएं रखी गई है जब राजा-महाराजा शासन करते थें, जैसे कि – संदूक, कटोरे, एशियाई फर्नीचर, नक्काशीदार बर्तन , स्क्रॉल पेंटिंग, मूर्तियां, चाय का सेट, तलवार आदि। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण है हाथी हौदा (हाथी की पीठ पर कसा जाने वाला आसन), जिस पर राजा व उनकी रानी बैठ सफर किया करते थें। महाराजा और उनके दरबारों के सदस्यों द्वारा पहने जाने वाले गहने जोकि रत्नों के साथ बनाये जाते थे, पगड़ी में इस्तेमाल किये जाने वाले रत्न, अंगूठी, कंगन, हार, हीरे, नीलमणि, तथा रूबी आदि ये सभी भारतीय प्राचीन वस्तुएं का अभिन्न अंग है।
अगर आपमें भारतीय पुरानी चीजों के प्रति गहरा लगाव है या कीमती वस्तुओं को खोजने में दिलचस्पी है तो आपको भारत में ऐसी कई दुकाने मिल जाएंगी जहां पर पुरातन वस्तुओं जैसे फर्नीचर, आभूषण, पुस्तकें, फिल्में, संगीत एलबम, हस्तशिल्प, कांच की कलाकृतियां, पोशाकें, नक्काशीदार बर्तन, ऐतिहासिक महत्व के खिलौने और अन्य संग्रहणीय वस्तुएं आदि की खरीद व बिक्री होती है। भारत में बहुत से स्टोर और दुकानें हैं जो प्राचीन वस्तुओं से संबंधित हैं, जहाँ से आप अनेक तरह की संग्रहणीय वस्तुएं खरीद या बेच सकते हैं, जैसे- रॉयल ट्रेज़र (अलीबाग), दीवान ब्रदर्स (देहरादून), डैनी मेहरास कार्पेट्स (बेंगलुरु), एक्युरेट डिमोलिसर (बेंगलुरु), बालाजी एंटिक्स और कोलेक्टिब्ल्स (बेंगलुरु), मयूर आर्ट्स (उदयपुर), देवराजा बाजार (मैसूर), ज्यू स्ट्रीट (Jew Street) (कोच्चि), अंजुना फली मार्केट (गोवा) तथा चांदनी चौक (दिल्ली) आदि।
इन दुकानों पर आप 19वीं से 20वीं शताब्दी के मध्य के दुर्लभ कार्पेट, पौराणिक युग के फर्नीचर, कलाकृतियां लैंप, भंडारण बक्से, दक्षिण भारतीय घरों के वास्तुशिल्प स्तंभ, मुगल-युग की कलाकृतियां, विक्टोरियन लैंप, गिल्ड फ्रांसीसी शीशे, क्रिस्टलीय झूमर तथा 170 वर्षीय सत्सुमा फूलदान (Satsuma vase), इत्यादि को देख सकते और खरीद सकते हैं।
संदर्भ:
1.https://www.collectorsweekly.com/asian/indian
2.http://mentalfloss.com/article/533411/old-things-your-house-are-worth-fortune
3.https://www.popularmechanics.com/home/g2715/valuable-antiques-attic/
4.https://www.architecturaldigest.in/content/ads-guide-to-antiques-around-the-country/
5.https://timesofindia.indiatimes.com/travel/destinations/5-ancient-markets-in-india-that-have-survived-the-test-of-time/as65486476.cms
कहाँ से प्राप्त होती है चिकित्सकों को नई दवाओं के उप्योग की अनुमति?
Who decides in India whether a new medicine can be used by doctors on patients
Rampur
29-11-2018 01:44 PM
वर्तमान समय में भारत अग्रणी दवा उत्पादक राष्ट्रों में सम्मिलित हो गया है। भारत में इन दवाओं के उत्पादन के साथ-साथ उपभोग की मात्रा भी बढ़ी है, जिसने भारतीय चिकित्सा क्षेत्र को नई-नई दवाएं उत्पादित करने के लिए प्रोत्साहित किया है। किन्तु इन दवाओं के उत्पादन के साथ एक बड़ा प्रशन है इनकी प्रमाणिकता का निर्धारण। अर्थात यह जानना कि चिकित्सकों को रोगियों पर इन दवाओं के उपयोग की अनुमति का निर्धारण किसके द्वारा किया जाता है।
भारत में नयी औषधियों के आयात को केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization) द्वारा विनियमित किया जाता है। इसका मुख्यालय नयी दिल्ली में स्थित है और देश भर में फैले छः क्षेत्रीय कार्यालय, चार उप क्षेत्रीय कार्यालय, तेरह पोर्ट कार्यालय (Port offices) और सात प्रयोगशालाएं भी हैं। नई औषधियों के उत्पादन, बिक्री तथा संवितरण के लिए लाइसेंस जारी करने हेतु राज्य के लाइसेंसिंग प्रधिकारियों को सी.डी.एस.सी.ओ. (CDSCO) से पूर्वानुमति लेनी आवश्यक होती है।
आयातित दवाओं को प्राधिकरण के रूप में विनियमित करने के लिए, दवा तकनीकी सलाहकार बोर्ड और औषधीय सलाहकार समिति सी.डी.एस.सी.ओ. को सलाह देते हैं, वहीं केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला इन दवाओं का परीक्षण करती है। नई दवाओं, देश में नैदानिक परीक्षणों, दवाओं के मानकों को निर्धारित करने, आयातित दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण, राज्य औषधि नियंत्रण संगठन की गतिविधियों का समन्वय और औषधि एवं कॉस्मेटिक (Cosmetic) अधिनियम के प्रवर्तन में एकात्मकता लाने के विचार से विशेषज्ञ परामर्श प्रदान करना केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है। तथा राज्य प्रधिकारियों के लिए औषधि एवं कॉस्मेटिक अधिनियम 1940 और नियम 1945 गठित किया है।
केंद्रीय प्राधिकरण के कार्य:
• दवाओं, सौंदर्य प्रसाधन, निदानिकी और उपकरणों के मानकों को निर्धारित करना।
• नियामक उपायों, अधिनियमों और नियमों में संशोधन करना।
• नई दवाओं के बाज़ार प्राधिकरण को नियंत्रित करना।
• भारत में नैदानिक शोध को विनियमित करना।
• दवाओं की कुछ श्रेणियों (जैसे, ब्लड बैंकों (Blood Banks), टीके आदि) के लिए लाइसेंस (License) की स्वीकृति प्रदान करना।
• भारतीय औषधकोश का प्रकाशन करना।
• डी एंड सी (D and C) अधिनियम और नियमों में संशोधन करना।
• आयातित दवाओं के मानकों को नियंत्रित करना।
• सेंट्रल ड्रग्स लैब्स (Central Drugs Labs) द्वारा दवाओं का परीक्षण करना।
राज्य प्राधिकरणों के कार्य:
• दवा निर्माण और बिक्री संस्थानों को लाइसेंस देना।
• दवा परीक्षण प्रयोगशालाओं को लाइसेंस देना।
• दवा निर्माण के लिए फॉर्मूलेशन (Formulation) की स्वीकृति प्रदान करना।
• कानूनी प्रावधानों के उल्लंघन के संबंध में जांच करना।
• प्रशासनिक कार्यवाही करना।
• लाइसेंस प्रदान करने से पहले तथा उसके बाद निरिक्षण करना।
• घटिया दवाओं का खण्डन करना।
• राज्य इकाइयों द्वारा निर्मित एवं विपणन की गयी दवाओं और प्रसाधन सामग्री की गुणवत्ता की निगरानी करना।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Central_Drugs_Standard_Control_Organization
2.https://cdsco.gov.in/opencms/opencms/en/Home/
3.http://www.jli.edu.in/blog/roles-and-responsibilities-of-cdsco/
4.http://www.cdsco.nic.in/writereaddata/Pr.pdf