रामपुर - गंगा जमुना तहज़ीब की राजधानी
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अपने स्थानीय चेंबर ऑफ़ कॉमर्स में शामिल होकर, अपने व्यवसाय को बढ़ा सकते हैं आप
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
20-02-2025 09:27 AM
Rampur-Hindi
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क्या आप जानते हैं कि, 'चेंबर ऑफ़ कॉमर्स' एक ऐसा संगठन होता है, जिसमें स्थानीय व्यापार मालिक और उद्यमी शामिल होते हैं। चेंबर ऑफ़ कॉमर्स का प्राथमिक उद्देश्य व्यावसायिक समुदाय का समर्थन करना और नीतियों की वकालत करना है, जो एक स्वस्थ व्यावसायिक वातावरण के लिए अनुकूल हों। हालांकि, यह भी सत्य है कि, व्यवसायों के फलने-फूलने के लिए प्रोत्साहन के साथ-साथ विज्ञापन और प्रचार की आवश्यकता होती है। इसमें मुख्य भूमिका आती है शहर से संबंधित येलो पेज और ई-कार्ड्स की। आपको यह जानकर गर्व होगा कि भारत की पहली हिंदी येलो पेज और ई-कार्ड्स पहल की शुरुआत प्रारंग द्वारा की गई है। हमारे रामपुर के पोर्टल पर इनके उपयोग बारे में भी बताया गया है। यहां निःशुल्क खाता खोलने और शहर में अपने उत्पादों को साझा करने के लिए आपको बस एक मोबाइल नंबर की आवश्यकता है। हमारे शहर रामपुर के लिए आप इस लिंक पर क्लिक करके पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं:
https://www.prarang.in/yellow-pages/rampur
तो आइए, आज चेंबर ऑफ़ कॉमर्स के बारे में कुछ महत्वपूर्ण विवरण जैसे कि इनका सदस्यता शुल्क आदि के बारे में जानते हैं और समझते हैं कि, क्या गैर-व्यावसायिक व्यक्ति इन चेंबरों में शामिल हो सकते हैं या नहीं। इसके अलावा, हम यह भी जानेंगे कि कोई व्यक्ति अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए स्थानीय चेंबर ऑफ़ कॉमर्स का उपयोग कैसे कर सकता है। इसके साथ ही, हम भारत के सबसे पुराने चेंबरों में से एक बॉम्बे चेंबर ऑफ़ कॉमर्स (Bombay Chamber of Commerce) के इतिहास और भारत के व्यापार विकास के योगदान में इसकी भूमिका के बारे में जानेंगे। अंत में, हम इस चेंबर ऑफ़ कॉमर्स के कुछ महत्वपूर्ण प्रकाशनों का पता लगाएंगे।
| Source : Wikimedia
चेंबर ऑफ़ कॉमर्स में कौन शामिल हो सकता है:
किसी स्थानीय चेंबर ऑफ़ कॉमर्स में पात्रता के लिए विशिष्ट नियम हो सकते हैं, जैसे कि किसी निश्चित क्षेत्र के भीतर या किसी विशेष समूह से संबंधित होना। स्थानीय चेंबर में शामिल होने के लिए निर्धारित मानदंडों के बारे में जानकारी संबंधित वेबसाइट पर प्राप्त की जा सकती है।
क्या चेंबरचेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स केवल बड़े व्यवसायों के लिए हैं, या छोटे व्यवसाय भी इनसे लाभान्वित हो सकते हैं:
न केवल बड़े व्यवसाय बल्कि, छोटे व्यवसाय भी चेंबर ऑफ़ कॉमर्स में शामिल होकर, विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त कर सकते हैं। नेटवर्किंग के अवसरों और उत्पाद तथा सेवाओं पर छूट तक पहुंच के अलावा, चेंबर ऑफ़ कॉमर्स में शामिल होने से छोटे व्यवसाय स्थानीय नीतियों के बारे में अपनी चिंताएं व्यक्त कर सकते हैं या अतिरिक्त उपभोक्ता हित को आकर्षित करने के अवसरों की पहचान कर सकते हैं। इस प्रकार, व्यवसाय मालिक, अपने स्थानीय समुदाय के भीतर खुद के हितों की रक्षा कर सकते हैं।
क्या चेंबर ऑफ़ कॉमर्स में शामिल होने के लिए शुल्क लगता है ?अधिकांश चेंबर ऑफ़ कॉमर्स, अपने सदस्यों से सदस्यता शुल्क लेते हैं और धन जुटाते हैं। सदस्यता शुल्क चेंबर के आकार और स्थान के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। इन शुल्कों को आमतौर पर कर उद्देश्यों के लिए व्यावसायिक व्यय के रूप में लिखा जा सकता है।
क्या ऐसे व्यक्ति जो व्यवसाय के मालिक नहीं हैं, वे चेंबर ऑफ़ कॉमर्स का हिस्सा हो सकते हैं ?
हाँ। कुछ चेंबर ऑफ़ कॉमर्स, उन व्यक्तियों के लिए सदस्यता प्रदान करते हैं जो सामुदायिक भागीदारी में रुचि रखते हैं, लेकिन किसी व्यवसाय के मालिक नहीं हैं।
व्यवसाय को बढ़ाने के लिए, आप स्थानीय चेंबर ऑफ़ कॉमर्स का उपयोग कैसे कर सकते हैं ?
1.अन्य उद्यमियों के साथ नेटवर्क स्थापित करके: चेंबर ऑफ़ कॉमर्स में शामिल होने का एक मुख्य लाभ यह है कि, आप अन्य उद्यमियों के साथ नेटवर्क बना सकते हैं जो आपके लक्ष्यों, चुनौतियों और अवसरों को साझा करते हैं। आप इन मंडलों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों, कार्यशालाओं और बैठकों में भाग ले सकते हैं, जहां आप अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। अन्य सदस्यों के साथ संबंध स्थापित करके, आप अपने ग्राहक आधार का विस्तार कर सकते हैं, संभावित भागीदारों को खोज सकते हैं और सर्वोत्तम प्रथाओं से सीख सकते हैं।
2. अपने हितों की पैरवी करके: इन चेंबरों में शामिल होने का एक अन्य लाभ यह है कि, आप एक स्थानीय व्यवसाय स्वामी के रूप में अपने हितों की वकालत कर सकते हैं। ये चेंबर्स, स्थानीय सरकार, नियामकों और नीति निर्माताओं के सामने आपकी आवाज़ और चिंताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये उन नीतियों और पहलों की भी पैरवी करते हैं जो आपके आर्थिक विकास का समर्थन करते हैं।
3. स्वयं को और अपनी टीम को शिक्षित करके: किसी चेंबर ऑफ़ कॉमर्स में शामिल होने का तीसरा लाभ यह है कि, आप खुद को और अपनी टीम को विभिन्न विषयों और कौशलों पर शिक्षित कर सकते हैं, जो आपके व्यवसाय को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। ये चेंबर, आपको मार्केटिंग, वित्त, प्रौद्योगिकी, नेतृत्व और नवाचार जैसे विषयों पर प्रशिक्षण, सेमिनार, वेबिनार और कार्यशालाएं प्रदान करते हैं। आप विशेषज्ञों से परामर्श भी प्राप्त कर सकते हैं। अपने पेशेवर विकास और अपने कर्मचारियों में निवेश करके, आप अपने प्रदर्शन, उत्पादकता और लाभप्रदता में सुधार कर सकते हैं।
4. अपनी दृश्यता बढ़ाकर: चेंबर ऑफ़ कॉमर्स में शामिल होकर, आप अपने समुदाय में अपनी दृश्यता और विश्वसनीयता बढ़ा सकते हैं। ये मंडल, अपनी वेबसाइट, समाचार पत्र, निर्देशिका, सोशल मीडिया और घटनाओं के माध्यम से आपके व्यवसाय को बढ़ावा देते हैं। इससे आप अधिक ग्राहकों, निवेशकों और मीडिया का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं।
बॉम्बे चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (Bombay Chamber of Commerce and Industry):
देश के सबसे पुराने चेंबर ऑफ़ कॉमर्स में से एक, 'बॉम्बे चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री' का मुख्यालय भारत की औद्योगिक, वित्तीय और वाणिज्यिक राजधानी अर्थात मुंबई में स्थित है। इसकी स्थापना, 1836 में हुई थी और यह व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में, 184 वर्षों से निरंतर अपनी सेवा प्रदान कर रहा है। मुंबई शहर के साथ-साथ पूरे क्षेत्र के व्यापार, वाणिज्य और उद्योग के विकास में चेंबर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जबकि ' बॉम्बे चेंबर' नाम, एक ऐसे संगठन की छवि पेश करता है, जो विशेष रूप से शहर-आधारित सदस्यता का प्रतिनिधित्व करता है। वास्तव में, यह अत्यधिक प्रतिष्ठित और पेशेवर रूप से संचालित कंपनियों की एक विस्तृत सूची का प्रतिनिधित्व करता है जो मुंबई शहर में स्थित हैं, लेकिन जिनकी विनिर्माण सुविधाएं और वाणिज्यिक प्रभाव, न केवल पूरे देश में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी व्याप्त है।
भारत के व्यापार विकास में बॉम्बे चेंबर ऑफ़ कॉमर्स का योगदान:
वर्तमान में, बॉम्बे चेंबर का एक प्रमुख उद्देश्य, विनिर्माण वातावरण का विस्तार करना और आयातित उत्पादन के स्थान पर "आत्मानिरभर भारत" के तहत निर्मित उत्पादों को बढ़ावा देना है। इससे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम स्तर के व्यापारी, प्रतिस्पर्धा के द्वारा अपने व्यापारों के अस्तित्व को बनाए रख हुए हैं। भारत की प्रतिस्पर्धा में सुधार करने के अपने प्रयासों के रूप में, बॉम्बे चेंबर ने नीति-संबंधी विषयों पर कई सेमिनारों और व्याख्यानों की मेज़बानी की है। इस वर्ष चेंबर का मिशन, सरकारी और कॉर्पोरेट क्षेत्र को एक साथ लाकर वैश्विक दुनिया में भारत के लिए नए अवसर उत्पन्न करना है।
इस 'सहयोगात्मक विकास' के चार महत्वपूर्ण पहलू हैं:
1. डिजिटलीकरण को अपनाना
2. व्यापार के केंद्र में स्थिरता लाना
3. विविधता, समानता और समावेशन को बढ़ावा देना
4. व्यापार में आसानी बढ़ाना।
बॉम्बे चेंबर ऑफ़ कॉमर्स के कुछ महत्वपूर्ण प्रकाशन:
द रोड टु नेट ज़ीरो (The Road to Net Zero)
क्रिएटिंग ए फ़ाइव ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी (Creating A Five Trillion Dollar Economy)
इनेबलहर्स ऑफ़ चेंज (EnablHERS of Change)
स्थायी कॉर्पोरेट प्रशासन (Sustainable Corporate Governance)
डिजिटल लीडर्स विज़न (Digital Leader’s Vision)
संदर्भ
मुख्य चित्र का स्रोत: प्रारंग चित्र संग्रह
चलिए समझते हैं, कानपुर कैसे बना, भारत के चमड़ा उद्योग का एक प्रमुख केंद्र
स्पर्शः रचना व कपड़े
Touch - Textures/Textiles
19-02-2025 09:28 AM
Rampur-Hindi
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रामपुर के कुछ लोग, यह जानते होंगे कि, उत्तर प्रदेश, भारत के चमड़े उद्योग में एक प्रमुख स्थान रखता है।यहाँ कानपुर और आगरा को उनके चमड़े के वस्त्रों और जूतों के उत्पादन के लिए जाना जाता है।कानपुर का चमड़ा उद्योग, जिसमें चमड़ा पकाने वाले कारखाने और चमड़े के सामान बनाने वाले निर्माता शामिल हैं, कानपुर और उन्नाव ज़िलों में लगभग दस लाख लोगों को सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार प्रदान करती है।
तो आज हम भारत की चमड़े की उद्योग की वर्तमान आर्थिक स्थिति पर नज़र डालेंगे। इसके बाद, हम भारत में वस्त्र बनाने में इस्तेमाल होने वाले विभिन्न प्रकार के चमड़े के बारे में जानेंगे। फिर हम, भारत में चमड़े की जैकेट बनाने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से सीखेंगे। इसके बाद हम कानपुर की चमड़े की उद्योग पर कुछ प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम जानेंगे कि, कानपुर कैसे भारत में चमड़ा उत्पादन का केंद्र बन गया।
भारत के चमड़ा उद्योग की वर्तमान स्थिति
1.भारत का चमड़ा उद्योग, देश की अर्थव्यवस्था में एक अहम भूमिका निभाता है और यह विदेशी मुद्रा कमाने वाले शीर्ष दस क्षेत्रों में शामिल है। साल 2020-21 में, जूते, चमड़ा और इससे बने उत्पादों का निर्यात 3.68 अरब अमेरिकी डॉलर के करीब था।
2. भारत के पास, विश्व की 20% गाय-भैंस, 11% बकरियों और भेड़ों की आबादी है, जो इस उद्योग को कच्चे माल का बड़ा आधार प्रदान करती है। इसके साथ, कुशल कामगार, आधुनिक तकनीक, और अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण मानकों के पालन से यह उद्योग और मज़बूत हुआ है।
3.यहाँ के चमड़ा उद्योग में लगभग 4.42 मिलियन (44 लाख) लोग काम करते हैं, जिनमें से 30% महिलाएं हैं। भारत दुनिया में चमड़े के परिधानों (leather garments) का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। इसके अलावा, यह सैडलरी (saddlery) और हार्नेस ( harness) का तीसरा और चमड़े के सामानों का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है।
4. इस उद्योग के मुख्य उत्पादन केंद्र तमिलनाडु (चेन्नई, वेल्लोर), उत्तर प्रदेश (कानपुर, आगरा), पश्चिम बंगाल (कोलकाता), और महाराष्ट्र (मुंबई) जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। ये केंद्र, भारत को चमड़ा उत्पादन में वैश्विक स्तर पर एक मज़बूत स्थान दिलाते हैं।
5. भारत का चमड़ा उद्योग, लगातार बढ़ रहा है, जिसमें आधुनिक उत्पादन इकाइयां, पर्यावरण-अनुकूल चमड़ा तैयार करने की प्रक्रिया, और शोध, डिज़ाइन व विकास के लिए संस्थागत समर्थन शामिल हैं।
भारत में कपड़ों के निर्माण में उपयोग होने वाले चमड़े के प्रकार
भारत का चमड़ा उद्योग, अपनी कारीगरी और गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है। खासकर चमड़े की जैकेट्स की मांग बहुत अधिक है। कपड़ों की गुणवत्ता, टिकाऊपन और सुंदरता, उपयोग होने वाले चमड़े के प्रकार पर निर्भर करता है । यहाँ हम भारत में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले चमड़े के प्रकारों को आसान भाषा में समझेंगे।
1. फ़ुल-ग्रेन चमड़ा (Full grain leather)
फ़ुल-ग्रेन चमड़ा, चमड़े की दुनिया का सबसे अच्छा और मज़बूत प्रकार माना जाता है। इसे बिना रगड़े या साफ़ किए पूरे चमड़े से बनाया जाता है, जिससे इसका प्राकृतिक रूप और मज़बूती बनी रहती है।
फ़ुल-ग्रेन चमड़ा, बहुत टिकाऊ होता है और समय के साथ, इसका रंग और चमक में बेहतरी आती है। यह नमी से भी बचाव करता है। हालांकि, यह शुरुआत में थोड़ा सख़्त होता है और अन्य प्रकारों की तुलना में महंगा होता है।
इस चमड़े का उपयोग महंगे और लंबे समय तक चलने वाले कपड़ों में किया जाता है। यह लक्ज़री ब्रांड्स की पहली पसंद होता है।
2. टॉप-ग्रेन चमड़ा (Top grain leather)
टॉप-ग्रेन चमड़ा, फ़ुल-ग्रेन से थोड़ा कम गुणवत्ता वाला होता है, लेकिन फिर भी, यह काफ़ी अच्छा माना जाता है। इसकी सतह को साफ़ और चिकना बनाने के लिए रगड़ा और सुधार किया जाता है।
यह फ़ुल-ग्रेन से ज़्यादा नरम और लचीला होता है। इसका लुक एक समान और चमकदार होता है। हालांकि, यह थोड़ा कम टिकाऊ होता है और इसका प्राकृतिक रूप, समय के साथ ज़्यादा नहीं बदलता।
इसका उपयोग, मध्यम कीमत वाली जैकेट्स और उन कपड़ों में किया जाता है, जो गुणवत्ता और सस्ते दाम का मेल चाहते हैं।
3. जेन्यून चमड़ा (Genuine leather)
जेन्यून चमड़ा, चमड़े की निचली परतों से बनाया जाता है और इसे जोड़कर एक सामग्री का रूप दिया जाता है। यह फ़ुल-ग्रेन और टॉप-ग्रेन की तुलना में कम टिकाऊ होता है, लेकिन इसकी कीमत कम होती है।
यह किफ़ायती और आसानी से उपलब्ध होता है। हालांकि, यह ज़्यादा टिकाऊ नहीं होता और जल्दी ख़राब हो सकता है।
इस चमड़े का उपयोग उन कपड़ों में होता है, जो बजट में रहने वाले ग्राहकों के लिए बनाए जाते हैं।
4. स्वीड चमड़ा (Suede leather)
स्वीड चमड़ा, चमड़े की निचली सतह से बनाया जाता है। इसका मुलायम और अलग प्रकार का रेशेदार लुक इसे ख़ास बनाता है।
स्वीड, स्टाइलिश, मुलायम और लचीला होता है। यह ट्रेंडी और विंटेज डिज़ाइन्स के लिए बेहतरीन विकल्प है। हालांकि, यह आसानी से दाग-धब्बों और पानी से खराब हो सकता है। अन्य प्रकारों के मुकाबले यह कम टिकाऊ होता है।
स्वीड का इस्तेमाल कैशुअल जैकेट्स और फ़ैशनेबल कपड़ों में किया जाता है।
भारत में चमड़े की जैकिटें कैसे बनाई जाती हैं ?
चमड़े की जैकेट बनाने की प्रक्रिया में कई चरण होते हैं। यहां हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि भारत में इसे कैसे बनाया जाता है:
1.) जैकेट डिज़ाइन - चमड़े की जैकेट बनाने वाले निर्माता, आमतौर पर डिज़ाइनरों को काम पर रखते हैं, जो पैटर्न बनाते हैं। इन पैटर्न्स के ज़रिए, कपड़े बनाए जाते हैं। कंप्यूटराइज़्ड मशीनें (computerised machines), डिज़ाइनों को सरकारी आकार तालिकाओं के अनुसार ग्रेड करती हैं, जो शरीर की ऊंचाई और वज़न के हिसाब से आकार तय करती हैं। फिर कंप्यूटर, उन डिज़ाइनों से अलग-अलग आकार के पैटर्न तैयार करता है।
2.) कटाई - तैयार चमड़े को चलने वाली टेबल्स पर रखा जाता है, जिनको स्प्रेडर्स (spreaders) कहते हैं। आधुनिक तकनीक से एक साथ कई परतों को काटा जा सकता है, लेकिन चमड़े को एक बार में एक परत ही काटा जाता है। पैटर्न को चमड़े पर रखा जाता है। इसे दो तरीकों से किया जाता है: या तो पैटर्न को चमड़े पर पिन किया जाता है, या फिर उसे टेलर की चॉक से चिन्हित किया जाता है।
3.) जैकेट के विभिन्न हिस्सों को जोड़ना - चमड़े की जैकेट को इस प्रकार जोड़ा जाता है: सबसे पहले साइडों को पीछे के हिस्से से, फिर आस्तीनों के नीचे के सीवे को जोड़ा जाता है और फिर उनको आर्महोल्स (armholes) से जोड़ा जाता है। जैकेट के डिज़ाइन के हिसाब से कॉलर, कफ़्स, बटनहोल्स, बटन, ज़िप्पर और पॉकेट्स को जोड़ा जाता है। पैच पॉकेट्स को पहले साइड पीस में सिला जाता है, फिर उन्हें बैक से जोड़ा जाता है। सामान्यतः जैकेट के हर हिस्से में लाइनिंग मटेरियल पहले जोड़ा जाता है और फिर उसे जैकेट में सिला जाता है।
4.) मोल्डिंग और प्रेसिंग - कई प्रेसिंग प्रक्रियाओं में हीट, स्टीम और ब्लॉकिंग का इस्तेमाल किया जाता है, जो चमड़े को एक जैकेट के रूप में बदलने में मदद करती हैं। बक प्रेस में कंट्रोल्स और गेज होते हैं, जो स्टीम और दबाव को नियंत्रित करते हैं। इससे जैकेट को अपनी खास आकृति मिलती है, चाहे वह बॉम्बर जैकेट हो या ब्लेज़र स्टाइल जैकेट। कॉलर और कफ़्स के आसपास, कर्व्ड ब्लॉक्स लगाए जाते हैं, फिर उन पर गर्मी दी जाती है। ब्लॉक्स हटाए जाते हैं और कॉलर और कफ़्स को एक खास आकार में ढाल लिया जाता है।
5.) अंतिम निरीक्षण - जैकेट को फ़ैक्ट्री से बाहर भेजने से पहले हर जैकेट का हाथ से निरीक्षण किया जाता है। फिर पूरी तरह से तैयार जैकेट को प्लास्टिक बैग में रखा जाता है, फिर उसे कार्टन में पैक किया जाता है और रीटेलर को भेजा जाता है।
इस प्रकार से चमड़े की जैकेट्स बनाई जाती हैं, जो एकदम सुंदर और मज़बूत होती हैं।
कानपुर के चमड़ा उद्योग का परिचय
कानपुर शहर, देश के चमड़ा उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है। ब्रिटिश शासन के दौरान, इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में सैनिकों की मौजूदगी के कारण विभिन्न चमड़े के उत्पादों की प्राकृतिक मांग पैदा हुई थी। फ़ैक्ट्रियों के बनने से पहले, गांव के कारीगर कुटीर उद्योग के रूप में चमड़े के सामान बनाते थे, जो स्थानीय ज़रूरतों को पूरा करते थे। ये उत्पाद, मुख्य रूप से गाड़ी, बैलगाड़ी के सामान, सवारी के सामान और बर्तन बनाने के काम आते थे।
कानपुर में कई प्रकार के चमड़े के उत्पाद बनते हैं, जैसे जूते, बेल्ट, पर्स, चप्पल, कपड़े और सवारी के सामान। यह शहर, भारत के कुल चमड़े और उससे संबंधित उत्पादों के निर्यात का 20 प्रतिशत से ज़्यादा योगदान देता है। यहां बने उत्पाद, कई देशों में निर्यात किए जाते हैं, जिनमें अमेरिका और यूरोपीय देशों के अलावा, कई अन्य देश भी शामिल हैं।
कानपुर कैसे बना भारत में चमड़ा उत्पादन का केंद्र ?
कानपुर, जिसे कभी ‘पूर्वी मैनचेस्टर’ के नाम से जाना जाता था, भारत में चमड़ा उद्योग का प्रमुख केंद्र है। 19वीं सदी के प्रारंभ में, जब ब्रिटिश सेनाओं ने कानपुर को अपना मुख्यालय बनाया, तो यहां चमड़े के उत्पादों की मांग बढ़ गई, जैसे जूते, पालकी और जीन. इससे कानपुर में दो महत्वपूर्ण उद्योग स्थापित हुए - सरकारी हार्नेस और सैडल कारखाना और कॉपर ऐलन एंड कंपनी, जिन्होंने ब्रिटिश सेनाओं को चमड़े के उत्पादों की आपूर्ति की और दोनों विश्वयुद्धों के दौरान, महत्वपूर्ण योगदान दिया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद, चमड़े के उत्पादों की मांग में कमी आई, लेकिन 1970 के दशक में, इस उद्योग का पुनरुद्धार हुआ। आज कानपुर में 400 से अधिक पंजीकृत टैनरी हैं, जिनमें से कई प्रकार के चमड़े का उत्पादन होता है। कानपुर का चमड़ा उद्योग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है। 2003-04 में कुल निर्यात 1636 करोड़ रुपये था, जो अगले दो वर्षों में बढ़कर 2000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया।
कानपुर के चमड़ा उत्पादन में 95% हिस्सा है, विशेष रूप से दोहन (harness) और काठी (saddle) में। यहां के प्रमुख इलाकों जैसे जाजमऊ में अधिकांश टैनरी स्थित हैं। कानपुर का चमड़ा उद्योग 2 लाख से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करता है, और इसके निर्यात का भारत में 15% हिस्सा है।
संदर्भ
मुख्य चित्र : धारावी, मुंबई में चमड़े की एक कार्यशाला (Wikimedia)
भारत में बढ़ते आध्यात्मिक पर्यटन व संयोजकता को बेहतर बनाने में, क्या है रेलवे की भूमिका ?
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
Locomotion and Exercise/Gyms
18-02-2025 09:27 AM
Rampur-Hindi
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रामपुर में मौजूद रेलवे प्रणाली, शहर को भारत के विभिन्न हिस्सों से जोड़ने तथा दैनिक आवागमन और क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों का समर्थन करने में, महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रामपुर जंक्शन शहर के सुस्थापित रेलवे नेटवर्क में एक प्रमुख स्टेशन है, जो लोगों और सामानों की आवाजाही की सुविधा प्रदान करता है। निवासियों के लिए, यह परिवहन का एक लागत प्रभावी और सुविधाजनक तरीका प्रदान करता है। जबकि, व्यवसायों के लिए, यह सुचारू रसद और व्यापार को सक्षम बनाता है। हमारे शहर की रेलवे ने, पर्यटन को बढ़ावा देने में भी मदद की है, क्योंकि, कई यात्री निकटवर्ती धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों की ओर जाने के लिए, रामपुर से होकर गुज़रते हैं। अर्थात, रेलवे प्रणाली रामपुर की संयोजकता और विकास का एक अनिवार्य हिस्सा बनी हुई है।
आज, हम भारतीय रेलवे और पर्यटन पर चर्चा करेंगे, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला जाएगा कि, रेल नेटवर्क पूरे भारत में यात्रा का समर्थन कैसे करता है। फिर, हम यह पता लगाएंगे कि रेलवे यात्रा, भारत में बढ़ते आध्यात्मिक पर्यटन के केंद्र में क्यों है। हम इस बात पर भी ध्यान केंद्रित करेंगे कि, रेलवे, प्रमुख तीर्थ स्थलों के लिए, एक आवश्यक लिंक कैसे प्रदान करती है। अंत में, हम देखेंगे कि, भारतीय रेलवे, विशेष ट्रेनों के साथ आध्यात्मिक यात्रा को बढ़ावा देने तथा आध्यात्मिक पर्यटकों की ज़रूरतों को पूरा करने हेतु विशेष ट्रेन सेवाओं को क्यों शुरू करती है।
भारतीय रेलवे और पर्यटन-
भारत में, पर्यटन, रेल यात्रा के बिना संभव नहीं हो सकता, क्योंकि यह देश में, सार्वजनिक परिवहन का आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला साधन है। भारत में रेलगाड़ियां, न केवल परिवहन का एक सस्ता और विश्वसनीय साधन हैं, बल्कि पर्यटन के लगभग सभी महत्वपूर्ण और सामान्य स्थानों को भी छूती हैं। वे स्थानीय और विदेशी पर्यटकों को भी, विभिन्न प्रचार योजनाएं, टूर पैकेज, विशेष ट्रेनें, चार्टर ट्रेनें, शानदार ट्रेनें और कोच की पेशकश करके, पर्यटन को प्रोत्साहित करती हैं।
पर्यटन के विकास के लिए, पर्यटन ढांचा बहुत आवश्यक है। पर्यटन ढांचे में पर्यटन उद्योग के सफ़ल संचालन के लिए, आवश्यक बुनियादी आवश्यकताएं और सेवाएं शामिल हैं। पर्यटन बुनियादी ढांचे के कुछ आवश्यक तत्व – परिवहन, आवास, भोजन और पेय पदार्थ सेवाएं हैं। गुणवत्तापूर्ण परिवहन की उपलब्धता, स्वच्छ भोजन, आवास, आगंतुक सुविधाएं, गाइड सेवाएं, खरीदारी और पर्यटकों का मनोरंजन कुछ ऐसे कारक हैं, जो पर्यटन उद्योग को ताकत देते हैं।
पर्यटन के तीन प्रमुख घटक – आकर्षण, पहुंच और आवास हैं। पर्यटन के सभी घटकों में से, अभिगम्यता, पर्यटन उद्योग के प्रमुख घटकों में से एक है। अभिगम्यता से तात्पर्य, उस तरीके से है, जिससे कोई पर्यटक किसी गंतव्य तक पहुंचता है। इसके लिए रास्ता, किसी भी प्रकार की परिवहन व्यवस्था हो सकता है। ए. के. रैना ने अपनी पुस्तक – ‘ टूरिज़्म इंडस्ट्री इन कश्मीर’ (Tourism Industry in Kashmir) में कहा है कि, “पर्यटन के लिए परिवहन नेटवर्क वही है, जैसा हमारे शरीर प्रणाली के लिए, नसें हैं।” परिवहन प्रणाली में तकनीकी क्रांति से, पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिला है। एक पर्यटक को हमेशा सुविधाजनक, आरामदायक, सस्ती और सुरक्षित परिवहन सुविधाओं की आवश्यकता होती है। इसके लिए ट्रेन से यात्रा करना, सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है। इतना ही नहीं, विमान और डिब्बों के विपरीत, रेलगाड़ियां तेज़, कुशल और विशाल होती हैं। ये एक ही यात्रा में बड़ी संख्या में लोगों को ले जा सकती हैं। हालांकि, पर्यटकों द्वारा परिवहन के साधन का चयन आय, स्थिति और लागत जैसे कुछ कारकों पर निर्भर करता है।
भारत में बढ़ते आध्यात्मिक पर्यटन के केंद्र में, ट्रेन यात्रा-
भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत ने हमेशा ही, दुनिया भर से आध्यात्मिक जिज्ञासुओं और तीर्थयात्रियों को आकर्षित किया है। राष्ट्रीय स्तर पर, देश में आध्यात्मिक पर्यटन आसमान छू रहा है, जो व्यक्तिगत आस्था के साथ-साथ बेहतर बुनियादी ढांचे और पहुंच से संभव हुआ है। इसके विकास के मूल में भारतीय रेलवे नेटवर्क का निरंतर विस्तार और आधुनिकीकरण रहा है, जिससे यात्रियों के लिए सांस्कृतिक क्षेत्रों का पता लगाना आसान हो गया है।
एक हालिया यात्रा डेटा से पता चलता है कि, आध्यात्मिक स्थलों के लिए, ट्रेन बुकिंग में पर्याप्त वृद्धि हुई है। अगस्त और सितंबर 2024 के बीच, अयोध्या, अमृतसर, वाराणसी और कटरा जैसे प्रमुख धार्मिक शहरों के लिए, ट्रेन बुकिंग में साल-दर-साल औसतन 65-70% की वृद्धि हुई। इसके अलावा, अयोध्या में ट्रेन बुकिंग में, सालाना आधार पर 137% की वृद्धि देखी गई, और हरिद्वार और कटरा में क्रमशः 81% और 105% की वृद्धि देखी गई। एक तरफ़, वाराणसी में ट्रेन बुकिंग में सालाना 80% की वृद्धि देखी गई। ‘प्रसाद योजना’ जैसी सरकारी पहल, जो धार्मिक केंद्रों को विकसित करने पर केंद्रित है, ने इस वृद्धि में बड़ी भूमिका निभाई है। नवीनतम बजट ने वित्त वर्ष 2025 में, रेलवे को 2,622 अरब रुपये आवंटित किए हैं। इसमें ‘पीएम गति शक्ति पहल’ के हिस्से के रूप में, तीन प्रमुख रेलवे कॉरिडोर बनाना शामिल है।
बोधगया में विष्णुपद मंदिर और महाबोधि मंदिर जैसे स्थलों के लिए नए गलियारे के विकास की घोषणा; साथ ही नालंदा, राजगीर और ओडिशा को प्रमुख धार्मिक और कल्याण पर्यटन केंद्रों के रूप में उभारना; आध्यात्मिक पर्यटन पर सरकार के मुख्य विचार को दर्शाता है। इसके साथ ही, अधिक आरामदायक और तेज़ यात्रा की पेशकश करते हुए, 40,000 से अधिक कोचों को वंदे भारत मानकों पर उन्नत करने की पहल की जा रही है। वंदे भारत ट्रेनों के विकास के साथ-साथ, अमृत भारत और नमो भारत ट्रेनों जैसी आगामी सेवाओं से भी, धार्मिक यात्रा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, रेल संयोजकता का विस्तार करने में मदद मिलेगी।
भारतीय रेलवे: विशेष ट्रेनों के साथ आध्यात्मिक यात्रा को अपनाना-
भारत में रेलवे परिवहन के एक साधन से अधिक, एकता का प्रतीक भी हैं, जो जीवन के सभी क्षेत्रों और देश के सभी कोनों के लोगों को जोड़ता हैं। इन विशेष ट्रेनों के साथ, भारतीय रेलवे ने एक बार फिर बदलते समय के साथ, तालमेल बिठाने की अपनी क्षमता साबित की है, जो न केवल यात्रा का साधन, बल्कि जीवन भर की आध्यात्मिक यात्रा की पेशकश करती है। इस आध्यात्मिक पुनर्जागरण का नेतृत्व करने वाली तीन ऐसी विशेष रेलगाड़ियां – प्रतिष्ठित पैलेस ऑन वील्स (Palace on Wheels) हैं, जो अब उत्तर प्रदेश के पवित्र भारतीय शहरों की शोभा बढ़ा रही हैं। साथ ही, चार धाम रेलवे परियोजना का उद्देश्य राजसी हिमालय में बसे चार पवित्र तीर्थस्थलों तक संयोजकता में सुधार करना है। इसके अतिरिक्त, मानसखंड एक्सप्रेस, कुमाऊं के 16 मानसखंड मंदिरों को जोड़ने वाली एक अनूठी यात्रा प्रदान करती है।
पैलेस ऑन वील्स-
वैश्विक स्तर पर शीर्ष दस शानदार ट्रेन यात्राओं में से एक के रूप में प्रसिद्ध, यह ट्रेन भारतीय रेलवे एवं राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा संयुक्त रूप से लॉन्च की गई हैं। इस रेलवे ने अपने अद्वितीय आतिथ्य, विलासी केबिन और विशेष यात्राओं के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रशंसा अर्जित की है। दिल्ली से शुरू होते हुए, वाराणसी, प्रयागराज, मथुरा और वृन्दावन से होते हुए, अयोध्या में इसकी यात्रा समाप्त होगी।
मानसखंड एक्सप्रेस-
उत्तराखंड पर्यटन विभाग और ‘भारतीय रेलवे खानपान और पर्यटन निगम’ ने, एक विशेष पर्यटक ट्रेन शुरू करने के लिए, एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इसे अब मानसखंड एक्सप्रेस – भारत गौरव पर्यटक ट्रेन, में बदल दिया गया है। इस ट्रेन के वर्तमान 10 रात्रि व 11 दिनों के पैकेज में, टनकपुर, चंपावत या लोहाघाट, चौकोरी, अल्मोडा, नैनीताल और भीमताल में स्टॉप शामिल हैं, जो एक व्यापक यात्रा कार्यक्रम की पेशकश करता है। इसमें आध्यात्मिक और ऐतिहासिक स्थलों से लेकर, प्राकृतिक आश्चर्यों के अनुभवों की भी एक श्रृंखला शामिल है।
चार धाम रेलवे-
मौजूदा सड़क नेटवर्क द्वारा उत्पन्न चुनौतियों को पहचानते हुए, चार धाम रेलवे परियोजना का उद्देश्य, इस क्षेत्र में यात्रा में क्रांति लाना है। वर्तमान में, यात्रियों और तीर्थयात्रियों को संकीर्ण घाट सड़कों पर चलना पड़ता है, जिसमें हमेशा जोखिम रहता है। इन चार धामों के लिए, भारतीय रेलवे संयोजकता की शुरूआत, यात्रा को अधिक सुरक्षित, आरामदायक, पर्यावरण अनुकूल और किफ़ायती बनाने का वादा करती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र: दार्जिलिंग रेलवे स्टेशन पर खड़ी दो ट्रेनें : (Wikimedia)
प्राचीन काल से ही मिलता है, नीम व शतावरी के औषधीय उपयोगों का प्रमाण
पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें
Trees, Shrubs, Creepers
17-02-2025 09:27 AM
Rampur-Hindi

रामपुर में अभी चल रही कड़ाके की ठंड, आपके स्वास्थ्य के लिए कठिन हो सकती है। लेकिन, नीम और शतावरी जैसी जड़ी–बूटियां, आपको ऐसे समय में मज़बूत और स्वस्थ रहने में मदद कर सकती हैं। नीम, शरीर को शुद्ध करने और त्वचा को ठंड के कारण होने वाली शुष्कता और जलन से बचाने की क्षमता के लिए जाना जाता है। यह उन संक्रमणों को रोकने में भी मदद करता है, जो सर्दियों में आम होते हैं। दूसरी ओर, शतावरी, आपकी प्रतिरक्षा को बढ़ाने और ठंड के महीनों के दौरान आपकी ऊर्जा को बनाए रखने के लिए, बहुत अच्छी है। इन्हें अपने दैनिक आहार में शामिल करने से, आप पूरे सर्दियों में स्वस्थ रह सकते हैं।
आज, हम नीम के बारे में चर्चा करेंगे, जो एक बहुमुखी पेड़ है। यह अपने कई स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है। हम नीम के औषधीय उपयोगों का पता लगाएंगे, जिसमें इसके जीवाणुरोधी, एंटीवाइरल (Antiviral) और एंटी-इंफ़्लेमेटरी गुण (Anti-inflammatory) शामिल हैं। ये गुण त्वचा के स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा का समर्थन करते हैं। इसके बाद, हम शतावरी, जो एक औषधीय जड़ी बूटी है, के बारे में जानेंगे। फिर हम, शतावरी के औषधीय उपयोगों का पता लगाएंगे, जिसमें हार्मोन को संतुलित करना, प्रजनन क्षमता को बढ़ाना, और पाचन स्वास्थ्य को बढ़ावा देना शामिल है।
नीम–
नीम (अज़ाडिरैक्टा इंडिका – Azadirachta indica), एक सदाबहार पेड़ है, जिसने दुनिया में सबसे शक्तिशाली औषधीय वनस्पति होने के लिए, अच्छी प्रतिष्ठा अर्जित की है। नीम के पेड़ को आयुर्वेद में प्रकृति की औषधि के रूप में जाना जाता है। यह पेड़ मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में उगता है। लेकिन, अब दुनिया भर में, इसके लिए उचित जलवायु क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है, क्योंकि, लोग इसकी उपयोगिता को पहचानने लगे हैं।
नीम की पत्तियां, छाल, जड़ एवं फ़ल का उपयोग–
नीम का पेड़, रासायनिक यौगिकों से भरपूर होता है, जो बेहद फ़ायदेमंद पाया गया है। नीम की छाल से लेकर नीम की पत्तियों, फूल, फ़ल, बीज और जड़ का भी विभिन्न बीमारियों के इलाज में व्यापक उपयोग पाया गया है। एक स्थापित शोध के अनुसार, एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidants) का एक समृद्ध स्रोत होने के कारण, नीम में कई सफ़ाई के गुण होते हैं। यह कोशिका संकेतन मार्गों (Cell signaling pathways) के विनियमन के माध्यम से, कैंसर के प्रबंधन में भी प्रभावी है। नीम, साइक्लोऑक्सीजिनेज़ (Cyclooxygenase) और लिपोक्सीजिनेज़ एंज़ाइमों (Lipoxygenase enzymes) सहित, प्रो- इंफ़्लेमेटरी एंज़ाइम गतिविधियों के नियमन के माध्यम से, एक सूजन-रोधी पदार्थ के रूप में भी भूमिका निभाता है।
नीम का औषधीय उपयोग-
आयुर्वेद के अनुसार, नीम ‘सभी औषधीय जड़ी बूटियों का राजा’ है। मूलभूत आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णन किया गया है कि, कैसे नीम त्वचा विकारों एवं बालों की समस्याओं का इलाज करता है; भूख बढ़ाता है; पाचन को बढ़ावा देता है; पेट में जठराग्नि बढ़ाता है; सांस लेने में सुधार करता है; मधुमेह की स्थिति को प्रबंधित करने में मदद करता है; घावों को भरने में सहायता करता है और मतली से राहत देता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा, नीम को “21वीं सदी का वृक्ष” घोषित किया गया है। यू एस नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंस (US National Academy of Science) ने भी 1992 की अपनी रिपोर्ट – “नीम: वैश्विक समस्याओं को हल करने के लिए एक पेड़” में, नीम के औषधीय महत्व को मान्यता दी थी। यहां नीम के कुछ प्रमुख औषधीय उपयोग दिए गए हैं:
1.सुरक्षा – त्वचा की सुरक्षा के लिए नीम की पत्तियां
परंपरागत रूप से, नीम की पत्तियों का उपयोग, सिर की जूं, त्वचा रोगों, घावों या त्वचा के अल्सर (Ulcer) के इलाज के लिए किया जाता है। मच्छर निरोधक के रूप में, नीम का बाहरी प्रयोग भी उपयोगी है। नीम संभवतः दुनिया का सबसे पुराना, त्वचा को मुलायम करने वाला पदार्थ है, और इसका उपयोग सहस्राब्दियों से इस उद्देश्य के लिए किया जाता रहा है। नीम की पत्तियों को पानी में उबाला जा सकता है, और इस पानी को छानकर, त्वचा पर मलहम के रूप में उपयोग के लिए, संग्रहित किया जा सकता है।
2.सफ़ाई – सफ़ाई के लिए नीम के बीज
नीम के बीज में सफ़ाई के गुण होते हैं, और इसका उपयोग पेट के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है। रस निकालने के लिए बीजों को दबाया जाता है, जिसे बाद में ग्रहण किया जाता है। नीम के बीज का यह रस, आंतों के कीड़ों और आंत्र पथ में मौजूद अन्य अवांछित परजीवी जीवों को नष्ट करने में प्रभावी है।
3.औषधीय गुण – दंत रोगों को ठीक करने के लिए नीम की छाल
नीम के पेड़ की छाल, दांतों के मैल से लड़ने और मुंह में मौजूद बैक्टीरिया की मात्रा को कम करने की अपनी क्षमता के लिए जानी जाती है। परंपरागत रूप से, नीम के पेड़ की टहनियों का उपयोग, इसी कारण से टूथब्रश के रूप में किया जाता है। नीम के पेड़ की छाल, अपने एंटीसेप्टिक और कसैले गुणों के कारण, मौखिक गुहा में घावों को ठीक करने में भी मदद करती है।
4.शुद्धिकरण – शुद्धिकरण के लिए नीम की जड़ें
नीम के पेड़ के अन्य सभी भागों की तरह, नीम की जड़ें भी एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होती हैं। 2011 में किए गए एक अध्ययन के नतीजों से पता चला कि, नीम की जड़ की छाल के अर्क ने, 27.3 μg/mL पर, 50% सफ़ाई गतिविधि के साथ उच्च मुक्त कण सफ़ाई प्रभाव प्रदर्शित किया। इस अर्क की कुल एंटीऑक्सिडेंट गतिविधि, मानक एस्कॉर्बिक एसिड (Ascorbic acid) की 0.58 mM पाई गई।
5.नीम के फ़ल का उपयोग
नीम के पेड़ के फ़ल को दबाकर उसका तेल निकाला जाता है, जिसे बाद में रूसी को हटाने के लिए, सिर की त्वचा पर लगाया जा सकता है। इसका उपयोग, रूसी के खिलाफ़ निवारक उपाय के रूप में भी किया जाता है। इस तेल का उपयोग एक प्रभावी मच्छर निरोधक के रूप में भी किया जा सकता है। साथ ही, आमतौर पर, यह कई व्यावसायिक रूप से उपलब्ध रूम फ़्रेशनर में एक घटक के रूप में भी पाया जाता है।
6.नीम के फूल का उपयोग
नीम के पेड़ का फूल, एक एंटीसेप्टिक के रूप में जाना जाता है, जिसका सेवन करने पर यह प्रणाली को साफ़ भी कर सकता है। यह एक कारण है कि, कुछ दक्षिण भारतीय व्यंजनों में नीम के फूलों को शामिल किया जाता है। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में पारंपरिक नव वर्ष, ‘उगादी पचड़ी’ नामक एक अनोखे व्यंजन के साथ मनाया जाता है। यह व्यंजन गुड़ और नीम की पत्तियों से बनाया जाता है। आयुर्वेद में नीम के फूल को शीतलता देने वाला बताया गया है, और गर्मी से राहत पाने के लिए गर्मियों के व्यंजनों में, इसे शामिल करने की सलाह दी गई है।
शतावरी–
शतावरी, पौधे की एक प्रजाति है, जिसका उपयोग भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा में कई शताब्दियों से किया जाता रहा है। शतावरी को सतावरी, सतावर, या शतावरी रेसमोसस (Asparagus racemosus) के रूप में भी जाना जाता है। यह प्रजनन क्षमता, विशेषकर महिला प्रजनन प्रणाली के कार्य को बढ़ावा देने और कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है।
इस जड़ी-बूटी को एडाप्टोजेनिक (Adaptogenic) माना जाता है, जिसका अर्थ है कि, यह शरीर की प्रणालियों को विनियमित करने और तनाव के प्रतिरोध में सुधार करने में मदद कर सकती है।
यह एक शक्तिशाली जड़ी बूटी है, जिसके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए कई आश्चर्यजनक लाभ हैं। यह एक सूजन रोधी एजेंट भी है जो चिंता और अवसाद से राहत दिलाने में मदद कर सकता है।
यह पौधा, शतावरी परिवार का है। इसमें एक समान पाइन सुइयां होती हैं, और सफ़ेद फूल और काले-बैंगनी जामुन पैदा होते हैं। शतावरी की खेती, भारत में बहुत लोकप्रिय है, क्योंकि यह महिला प्रजनन स्वास्थ्य के लिए, उपयोग की जाने वाली सबसे शक्तिशाली आयुर्वेदिक दवाओं में से एक है। ऐसा अनुमान है कि, भारत में औषधियां तैयार करने के लिए प्रतिवर्ष 500 टन शतावरी जड़ों का उपयोग किया जाता है।
शतावरी के औषधीय उपयोग-
शतावरी का उपयोग, आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा कई वर्षों से किया जाता रहा है। इसे एक एडाप्टोजेनिक जड़ी बूटी कहा जाता है। ऐसी जड़ी-बूटियां, आपके शरीर को शारीरिक और भावनात्मक तनाव से निपटने में मदद करती हैं। आइए, शतावरी के विभिन्न चिकित्सीय उपयोगों को समझते हैं।
•एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं:
शतावरी में सैपोनिन (Saponins) का उच्च प्रतिशत हिस्सा होता है। सैपोनिन में एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं, और वे मुक्त कणों से होने वाले नुकसान को रोकने में मदद करते हैं।
•प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने में मदद करता है:
शतावरी में मौजूद सैपोनिन, शक्तिशाली प्रतिरक्षा उत्तेजक हैं। यह प्रतिरक्षा से लड़ने वाली कोशिकाओं के उत्पादन को उत्तेजित करता है, जिससे संक्रमण पैदा करने वाली कोशिकाओं की कुल आबादी कम हो जाती है।
•पाचन स्वास्थ्य में सुधार:
शतावरी पाचन में सुधार करने में बहुत प्रभावी है। इस जड़ी बूटी के सेवन से पाचन एंज़ाइम लाइपेज़ (Lipase) और एमाइलेज़ (Amylase) की गतिविधि बढ़ जाती है। लाइपेज़, वसा के पाचन में सहायता करता है और एमाइलेज़, कार्बोहाइड्रेट के पाचन में सहायता करता है।
•खांसी से राहत दिलाने में मदद करता है:
भारत के पश्चिम बंगाल में, वर्ष 2000 में किए गए एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया कि, शतावरी की जड़ का रस, खांसी के लिए, एक प्राकृतिक उपचार के रूप में काम करता है। इस अध्ययन ने खांसी से राहत दिलाने में, इसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया, और परिणामों से पता चला कि, शतावरी जड़ का अर्क डॉक्टर द्वारा बताई गई खांसी की दवा जितना ही प्रभावी था।
•रक्त शर्करा को बनाए रखने में मदद करता है:
शतावरी, टाइप 2 मधुमेह (Type 2 Diabetes) से पीड़ित लोगों के लिए बहुत फ़ायदेमंद है। यह देखा गया है कि, इस जड़ी-बूटी का सेवन शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है। जर्नल ऑफ़ एंडोक्रिनोलॉजी (Journal of Endocrinology) में प्रकाशित इस अध्ययन में, अध्ययन किया गया है कि, शतावरी इंसुलिन (Insulin) के स्तर को बनाए रखने में कैसे मदद करती है।
•कामोत्तेजक के रूप में कार्य करता है:
शतावरी को महिलाओं के लिए एक प्राकृतिक कामोत्तेजक कहा जाता है। पुरुषों के लिए, अश्वगंधा के साथ मिलाने पर यह अच्छा काम करता है।
•पुरुषों के यौन स्वास्थ्य में सहायता: पुरुषों में, शतावरी टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) के स्तर को बढ़ाती है; शुक्राणु उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती है और प्रजनन प्रणाली में सूजन को कम करती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3e5zufch
मुख्य चित्र: बाएं में नीम और दाएं में शतावरी का पौधा (Wikimedia)
आइए, अपने रामपुर के कुछ ऐतिहासिक और प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षणों पर एक नज़र डालें
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
Sight III - Art/ Beauty
16-02-2025 09:14 AM
Rampur-Hindi
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इस बात में कोई संदेह नहीं है कि हमारा रामपुर, मुख्य रूप से, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। इसके साथ ही, यहाँ की अनूठी पाक-कला विशेषताएँ, जैसे "दूधिया बिरयानी" और "अदरक का हलवा" आदि व्यंजन भी बहुत प्रसिद्ध हैं। फ़ैजुल्लाह ख़ान (शासनकाल 1748 - 1793), जो कि रामपुर के पहले नवाब थे, ने रामपुर रज़ा लाइब्रेरी की स्थापना की। इस अद्भुत पुस्तकालय के शानदार संग्रह में दुर्लभ और अमूल्य पांडुलिपियाँ, प्राचीन पुस्तकें और कलाकृतियाँ शामिल हैं, जिसका श्रेय, उनके वंशजों को भी जाता है जो कला, संस्कृति और साहित्य के महान संरक्षक थे। विशेष रूप से अपनी अरबी और फ़ारसी पांडुलिपियों, सुलेख कार्यों और लघु चित्रों के लिए प्रसिद्ध, यह पुस्तकालय, हमारे शहर में एक भव्य महल में स्थित है और अब यह भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय के नियंत्रण में है। चूंकि फ़ैजुल्लाह ख़ान और अन्य सभी रामपुर नवाब, संगीत, कला और साहित्य के संरक्षक थे, इसलिए इस पुस्तकालय को अत्यधिक महत्व दिया गया और इसका संग्रह, लगातार बढ़ता गया। रामपुर में मौजूद महात्मा गांधी का स्मारक, ‘गांधी समाधि’, उनके उन संघर्षों को दर्शाती है, जो महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के लिए किए थे। अपनी इन अमूल्य धरोहरों के अलावा, हमारा शहर, अपनी पाक कला के लिए भी प्रसिद्ध है। रामपुर के लोकप्रिय स्ट्रीट फ़ूड जैसे कचौरी, चपली कबाब, नल्ली निहारी आदि को लोग बहुत पसंद करते हैं। तो आइए, आज कुछ चलचित्रों के माध्यम से, हम अपने शहर के ऐतिहासिक और प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षणों जैसे रज़ा लाइब्रेरी, ज़ामा मस्ज़िद, गांधी समाधि आदि के बारे में विस्तार से जानें। इसके बाद हम, अपने पूरे शहर का दौरा करेंगे। साथ ही हम, दूधिया बिरयानी और अदरक के हलवे जैसे अपने शहर के कुछ प्रसिद्ध व्यंजनों से संबंधित दृश्यों का आनंद लेंगे। साथ ही हम, रामपुर के लोकप्रिय स्ट्रीट फ़ूड जैसे कचौरी, चपली कबाब, नल्ली निहारी आदि के बारे में भी जानेंगे। अंत में हम समझेंगे कि, हमारे शहर का एक और प्रसिद्ध व्यंजन, 'तार कोरमा', कैसे बनाया जाता है।
संदर्भ:
जानिए, गोखर पर्वत के इतिहास और यहाँ प्राप्त होने वाली आध्यात्मिकता के अद्भुत संगम को
पर्वत, चोटी व पठार
Mountains, Hills and Plateau
15-02-2025 09:23 AM
Rampur-Hindi
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हमारे शहर रामपुर से नैनीताल की पहाड़ियाँ, बारिश के मौसम में, उत्तर दिशा में दिखाई देती हैं। अब बात करें पहाड़ों की, तो उत्तर प्रदेश के महोबा ज़िले में स्थित गोखर पहाड़ियाँ अपनी अनोखी चट्टान संरचनाओं के लिए
प्रसिद्ध हैं, जो गुफ़ाओं और झरनों के आसपास घुमावदार तरीके से फैली होती हैं।ये पहाड़ियाँ, पिकनिक और रॉक क्लाइम्बिंग (rock climbing) के लिए एक लोकप्रिय जगह हैं।हर साल, यहां स्थानीय और विदेशी पर्यटकों की भीड़ लगती है।
तो आज हम, गोखर पहाड़ियों के बारे में और उनके प्रसिद्ध होने के कारणों को विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे।इसके बाद, हम महोबा ज़िले और गोखर पहाड़ियों के पास कुछ प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में भी जानेंगे,जैसे कि कीरत सागर,
विजय सागर पक्षी विहार, मान्या देवी मंदिर आदि।फिर हम, इन पहाड़ियों की सैर करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण टिप्स और जानकारियों पर प्रकाश डालेंगे।अंत में, हम यह जानेंगे कि गोखर पहाड़ियों तक हवाई मार्ग, रेलवे और सड़क द्वारा कैसे पहुंचा जा सकता है।
गोखर पर्वत का परिचय
गोखर पर्वत, महोबा ज़िले में स्थित है, जो बांदा शहर से लगभग 1 किमी (1 km) और महोबा से 31 किमी (31 km) दूर है।यह स्थल, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक महत्व और आध्यात्मिक धरोहर के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध है।यहां की चट्टानों, गुफ़ाओं और जलप्रपातों का दृश्य एक साथ मिलकर इस स्थान को एक आदर्श पर्यटन स्थल बनाता है।
गोखर पर्वत की संरचना, भूवैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद रोचक है।यह क्षेत्र, प्राचीन समय से ही साधना और ध्यान के लिए उपयुक्त माना जाता है।इस पर्वत की विशेषता यह है कि, यह न केवल धार्मिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां के ऐतिहासिक स्थल और प्राकृतिक
दृश्य भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
गोखर पहाड़ियों और महोबा के पास कुछ प्रसिद्ध पर्यटक स्थल
1. कीरत सागर: कीरत सागर को कर्तिवर्मन द्वारा 1060 से 1100 ईस्वी के बीच बनवाया गया था | इसमें सुंदर किनारे हैं जिनमें ग्रेनाइट की सीढ़ियाँ बनी हैं। मदन सागर, जिसे मदन वर्मा ने 1128 ईस्वी से 1165 ईस्वी के बीच बनवाया, बहुत ही सुंदर है। इसके अलावा, कल्याण सागर, विजय सागर और रहीला सागर भी प्रसिद्ध झीलें हैं।
2. मान्या देवी मंदिर: मान्या देवी मंदिर, चंदेलों की इष्ट देवी का मंदिर है और यह मदन सागर के किनारे किले के पास स्थित है। इस मंदिर के सामने, एक विशाल ग्रेनाइट का खंभा है, जिसकी ऊँचाई 18 फ़ीट है और आधार की चौड़ाई 1.75 फ़ीट है। इसके पास एक मज़ार भी है, जो पीर मुबारक शाह का है, जो 1252 ईस्वी में अरब से आए थे।
3. विजय सागर पक्षी विहार: विजय सागर पक्षी विहार, एक पक्षी अभयारण्य है, जो शहर से 5 किमी दूर स्थित है। यह पक्षी अभयारण्य विजय पाल चंदेला द्वारा बनाए गए विजय सागर के किनारे विकसित किया गया है (1035-1060 ईस्वी)।
4. चंडीका देवी मंदिर: चंडीका देवी, जिन्हें छोटी चंडी और बड़ी चंडी देवी के रूप में पूजा जाता है, शक्ति की देवी के रूप में
पूजी जाती हैं। वे राक्षसों का संहार करने वाली और भक्तों की रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं। महोबा शहर में दो मंदिर हैं, एक छोटी चंडी का मंदिर और दूसरा बड़ी चंडी का मंदिर। इन दोनों मंदिरों में से छोटी चंडी का मंदिर, महोबा शहर के बागेश्वर से लगभग आधे किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इसे
महोबा का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है।
5. करमनाथ मंदिर: करमनाथ मंदिर, जो मदन सागर झील के एक द्वीप पर स्थित है, महोबा ज़िले के भगवान विष्णु के मंदिर के
पास स्थित है। यह मंदिर, नाथ पंथ के अनुयायियों द्वारा पूजित है।इस पंथ की स्थापना, बाबा गोरखनाथ ने की थी, जिन्होंने अपने शिष्यों के साथ गोखर पहाड़ी में एक आश्रय बनवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला, खजुराहो के मंदिरों से मिलती-जुलती है और इसकी मूर्तिकला चंदेला शैली की याद दिलाती है।
गोखर पहाड़ियों की यात्रा से पहले जानने लायक ज़रूरी बातें
गोखर पहाड़ियाँ, पूरे साल घूमने के लिए एक शानदार जगह हैं, लेकिन मानसून और सर्दियों के दौरान, यहाँ की खूबसूरती अपने
चरम पर होती है। इस समय, झरने और हरियाली देखने लायक होती है।यहाँ आप फ़ोटोग्राफ़ी, प्रकृति के नज़ारे और रॉक क्लाइम्बिंग जैसी रोमांचक गतिविधियाँ कर सकते हैं।
यहाँ घूमने के लिए, आसपास कई दिलचस्प जगहें भी हैं, जैसे विजय सागर पक्षी विहार, मान्या देवी मंदिर और चंडिका देवी मंदिर। इन स्थलों का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व आपकी यात्रा को और खास बना देगा। गोखर पहाड़ियों तक पहुँचना भी आसान है। खजुराहो हवाई अड्डा, महोबा रेलवे स्टेशन और आसपास के शहरों से जुड़ी सड़कों द्वारा आप यहाँ तक पहुँच सकते हैं। ग्वालियर, चित्रकूट और प्रयागराज जैसे शहरों से यहाँ तक का सफ़र बेहद सुगम है।
यात्रा के दौरान, अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें। झरनों और चट्टानों के पास सतर्क रहें और साथ में पानी, हल्का भोजन और प्राथमिक चिकित्सा सामग्री ज़रूर रखें। यहाँ के स्थानीय व्यंजनों और संस्कृति का आनंद लेना न भूलें। गोखर पहाड़ियाँ, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और रोमांच के कारण हर उम्र के लोगों के लिए एक यादगार गंतव्य हैं। अपनी यात्रा को खास बनाने के लिए, इन सुझावों का ध्यान रखें और यहाँ की हर खूबसूरत पल का आनंद लें।
गोखर पहाड़ियों तक कैसे पहुँचें?
हवाई मार्ग से: गोखर पहाड़ियों के सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा, खजुराहो हवाई अड्डा है, जो यहाँ से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा, सतना हवाई अड्डा भी पास में है, जो यहाँ से लगभग 131 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग से: महोबा-खजुराहो रेल लाइन, वर्ष 2008 में शुरू की गई थी।यहाँ से दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों के लिए कई ट्रेनें गुज़रती हैं, जिससे गोखर पहाड़ियों तक पहुँचना काफ़ी आसान हो
जाता है।
सड़क मार्ग से: महोबा शहर, राष्ट्रीय राजमार्ग 76 (National Highway 76) से जुड़ा हुआ है।यह राजमार्ग, महोबा ज़िले के अन्य गाँवों और कस्बों, जैसे सुपा और कुलपहाड़, को जोड़ता है।सड़क मार्ग से यात्रा करना भी काफ़ी सुगम और आरामदायक है।
गोखर पहाड़ियों तक पहुँचने का हर मार्ग, न केवल सुविधाजनक है, बल्कि रास्ते में आपको प्रकृति के खूबसूरत नज़ारे भी
दिखाएगा । तो चलिए, अपनी यात्रा का आनंद लें !
संदर्भ
https://tinyurl.com/yxy6jr83
मुख्य चित्र: चरखारी का किला, महोबा और एक भारतीय योगी (Wikimedia)
विश्व के हृदय रोगियों के इलाज हेतु, उनकी पहली पसंद बन रहा है, भारत !
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
Thought II - Philosophy/Maths/Medicine
14-02-2025 09:20 AM
Rampur-Hindi
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विश्व के हृदय रोगियों के इलाज हेतु, उनकी पहली पसंद बन रहा है, भारत !
भारत में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जो हृदय से संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। लेकिन हाल के वर्षों में भारत ‘दक्षिण-पूर्व एशिया में हृदय उपचार के क्षेत्र में एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा है।’ विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग यहां आकर हृदय रोगों का इलाज करवा रहे हैं। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी - क्रिसिल के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में चिकित्सा हेतु भारत आने वाले पर्यटकों की संख्या लगभग 7.3 मिलियन होने का अनुमान है! यह संख्या, 2023 के अनुमानित 6.1 मिलियन से अधिक है। इसमें से एक बड़ी संख्या हृदय रोगियों की है। इसलिए आज विश्व जन्मजात हृदय दोष जागरूकता दिवस (World Congenital Heart Defect Awareness Day) के अवसर पर हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि भारत दुनिया भर से इतने हृदय रोगियों को क्यों आकर्षित कर रहा है। इसके तहत, हम भारत में हृदय उपचार की लागत की तुलना अन्य विकसित देशों से करेंगे। साथ ही, भारतीय चिकित्सा पर्यटन उद्योग में हाल के वर्षों में आई तेज़ी पर भी चर्चा करेंगे। इसके अलावा, भारत में हृदय रोगियों के निदान और उपचार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ उन्नत तकनीकों पर भी प्रकाश डालेंगे। अंत में, यह भी जानेंगे कि 3डी प्रिंटिंग तकनीक जन्मजात हृदय रोग के इलाज में कैसे सहायक हो रही है।
जानकारों के अनुसार भारत में कम उपचार लागत और उच्च विशेषज्ञता स्तर ने इसे पश्चिम एशियाई और अफ़्रीकी देशों के लोगों के लिए हृदय उपचार का प्रमुख गंतव्य बना दिया है। यहाँ हृदय उपचार की दरें अमेरिका और ब्रिटेन की तुलना में 1/10 से 1/15 तक कम हैं। भारत में इलाज कराने वाले लोग पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के साथ-साथ बल्कि नाइजीरिया, कीनिया, युगांडा, कज़ाकिस्तान, ईरान, इराक, यमन और ओमान जैसे दूरस्थ देशों से भी आते हैं। वैश्विक मानकों की तुलना में भारत में किसी भी प्रकार की हृदय सर्जरी की लागत बहुत कम है। उदाहरण के लिए, कोरोनरी एंजियोग्राफ़ी (Angiography (एक प्रक्रिया जिसमें कोरोनरी धमनियों का आंतरिक भाग दिखाने के लिए डाई और विशेष एक्स-रे का उपयोग किया जाता है)) भारत में मात्र 10,000 से 15,000 रुपये में हो जाती है। वहीं, अमेरिका में इसकी लागत लगभग 500 डॉलर (32,000 रुपये) होती है। बच्चों में हृदय रोग के उपचार की लागत भी यूरोपीय देशों की तुलना में यहाँ 10 से 15 गुना कम है।
विदेशी रोगियों के बीच सबसे लोकप्रिय उपचार क्या हैं?
विदेशी रोगियों के बीच भारत आकर किये जाने वाले सबसे लोकप्रिय उपचारों में एंजियोप्लास्टी (Angioplasty) शामिल है। इसमें कोरोनरी धमनी में रुकावट को खोलने और स्टेंट लगाने का काम किया जाता है। इसके अलावा, ओपन हार्ट सर्जरी भी प्रमुख है, जिसमें हृदय के छिद्र बंद किए जाते हैं और संकीर्ण वाल्व खोले जाते हैं। इसके साथ ही धीमी हृदय गति के इलाज के लिए कृत्रिम पेसमेकर लगाना भी काफी प्रचलित हो गया है।
हाल के वर्षों में भारतीय चिकित्सा पर्यटन उद्योग में वृद्धि के कारण निम्नवत दिए गए हैं:
1) विश्व स्तरीय चिकित्सा सुविधाएँ: भारत में अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं का एक बड़ा और उन्नत नेटवर्क है। यह नेटवर्क अमीर देशों के अस्पतालों की बराबरी कर सकता है। यहाँ के कई अस्पतालों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता और प्रमाणन प्राप्त है। यह प्रमाणन उनकी उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा देखभाल को साबित करता है। भारत में अंतरराष्ट्रीय मरीज़ों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आधुनिक तकनीक, अत्याधुनिक बुनियादी ढाँचा और योग्य चिकित्सा कर्मी आसानी से उपलब्ध हैं।
2) किफायती उपचार: भारत में चिकित्सा सेवाएँ बेहद किफ़ायती हैं। यहाँ ऑपरेशन, अंग प्रत्यारोपण और दंत चिकित्सा जैसी प्रक्रियाएँ बहुत कम लागत पर हो जाती हैं। साथ ही, उपचार की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जाता। पश्चिमी देशों की तुलना में, यहाँ चिकित्सा सेवाएँ एक अंशमात्र कीमत पर उपलब्ध हैं।
3) कुशल चिकित्सा पेशेवर: भारत में उच्च शिक्षित और अनुभवी डॉक्टरों, सर्जनों और चिकित्सा विशेषज्ञों की बड़ी संख्या है। यहाँ के कई डॉक्टरों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संस्थानों से प्रशिक्षण और शिक्षा ली है। उनके कौशल और अनुभव ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मरीज़ों के लिए एक भरोसेमंद चिकित्सा गंतव्य बना दिया है।
4) भाषा की सुविधा: भारत में अंग्रेज़ी व्यापक रूप से बोली और समझी जाती है। इस कारण विदेशी मरीज़ों के साथ संवाद आसान हो जाता है। जिन देशों में भाषा की बाधा होती है, वहाँ यह एक बड़ी समस्या बन सकती है। लेकिन भारत में यह समस्या नहीं होती, जिससे मरीज़ बिना किसी रुकावट के अपनी चिकित्सा सेवा ले सकते हैं।
इन सभी कारणों ने, भारत को चिकित्सा पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र बना दिया है। यहाँ कम लागत, उन्नत सुविधाएँ और अनुभवी डॉक्टर अंतरराष्ट्रीय मरीज़ों के लिए एक सुरक्षित और भरोसेमंद विकल्प प्रदान करते हैं।
आइए, अब भारत में हृदय रोगियों के निदान और उपचार के लिए उपलब्ध उन्नत तकनीकों के बारे में विस्तार से जानते हैं:
बाएं मुख्य कोरोनरी धमनी ( left main coronary artery) के ओस्टियम (ostium)की एक इंट्रावास्कुलर अल्ट्रासाउंड छवि | Source: Wikimedia
1) इंट्रावैस्कुलर अल्ट्रासाउंड (IVUS): इंट्रावैस्कुलर अल्ट्रासाउंड (आई वी यू एस) एक अत्याधुनिक तकनीक है, जिसका उपयोग हृदय रोगों के निदान और उपचार में किया जाता है। यह तकनीक, विशेष रूप से परक्यूटेनियस कोरोनरी इंटरवेंशन (Percutaneous coronary intervention (PCI)) के दौरान उपयोगी साबित होती है। आई वी यू एस से कोरोनरी धमनियों की अंदरूनी छवियाँ उच्च-रिज़ॉल्यूशन में प्राप्त होती हैं। इसके लिए एक विशेष कैथेटर का उपयोग किया जाता है, जिसे अल्ट्रासाउंड जांच के साथ धमनी में डाला जाता है। इस तकनीक से डॉक्टर वास्तविक समय में धमनी की दीवारों, प्लाक बिल्डअप और स्टेंट की स्थिति को देख सकते हैं।
2) बायोएब्जॉर्बेबल पॉलीमर ड्रग-एल्यूटिंग स्टेंट (DES): यह तकनीक हृदय उपचार में एक बड़ी प्रगति का प्रतीक है। बायोएब्जॉर्बेबल पॉलीमर स्टेंट धमनी में रक्त प्रवाह को सामान्य करता है और रेस्टेनोसिस (धमनियों के फिर से संकीर्ण होने) को रोकता है। ये स्टेंट दवा छोड़ते हैं, और दवा निकलने के बाद उनका पॉलीमर कुछ महीनों में अवशोषित हो जाता है। इससे धमनी तेज़ी से ठीक होती है और मरीज़ को बेहतर परिणाम मिलते हैं।
3) ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट: ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट, महाधमनी वाल्व रोग से ग्रस्त रोगियों के लिए एक क्रांतिकारी प्रक्रिया है। यह उन मरीज़ों के लिए ख़ासतौर पर उपयोगी साबित होती है, जिन्हें ओपन-हार्ट सर्जरी का जोखिम अधिक होता है। इस प्रक्रिया में एक कोलैप्सिबल वाल्व को कैथेटर के माध्यम से महाधमनी वाल्व में लगाया जाता है। यह तकनीक सर्जरी की तुलना में बहुत कम आक्रामक है। इससे बहुत कम समय में मरीज़ की रिकवरी हो जाती है और शारीरिक आघात भी कम होता है। ऐसे मरीज़, जिनके पास अन्य विकल्प नहीं होते, उनके लिए यह प्रक्रिया जीवन रक्षक सिद्ध होती है।
4) सबक्यूटेनियस इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफ़िब्रिलेटर और हृदय की लय प्रबंधन: पारंपरिक इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफ़िब्रिलेटर (एस आई सी डी) को हृदय में रक्त वाहिकाओं और कक्षों के अंदर डाला जाता है। हालांकि यह प्रभावी है, लेकिन इसमें संक्रमण और लीड से जुड़ी जटिलताओं का खतरा रहता है। इसके विपरीत, सबक्यूटेनियस इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफ़िब्रिलेटर एक कम आक्रामक विकल्प प्रदान करती है।
5) अचानक कार्डियक अरेस्ट (Sudden cardiac arrest) की रोकथाम में एस आई सी डी: अचानक कार्डियक अरेस्ट (SCA) एक खतरनाक स्थिति होती है, जिसमें हृदय अचानक धड़कना बंद कर देता है। एसआईसीडी ख़तरनाक अतालता का तुरंत पता लगाकर उसे ठीक करता है। यह तकनीक उच्च जोखिम वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करती है। इसके कारण मरीज़ अपने हृदय स्वास्थ्य की चिंता किए बिना बेहतर और संतोषजनक जीवन जी सकते हैं।
6) 3D प्रिंटिंग: 3D प्रिंटिंग एक अत्याधुनिक तकनीक है, जो जन्मजात हृदय रोग (Congenital Heart Disease (सी एच डी) ) के उपचार में मदद कर रही है। यह तकनीक चिकित्सा देखभाल के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को सुधारने में सक्षम है। इसका उपयोग सर्जरी की योजना बनाने और सटीक सिमुलेशन करने के लिए किया जा सकता है। इसका उपयोग सर्जरी के दौरान जटिलताओं को कम कर सकता है, जिससे प्रक्रिया अधिक सटीक बनती है।
इस तकनीक का एक और लाभ यह है कि यह प्रशिक्षण में सहायक होती है। 3D मॉडल, डॉक्टरों को प्रक्रियाओं का अभ्यास करने का अवसर देते हैं। इससे सीखने की प्रक्रिया तेज़ होती है और डॉक्टर अधिक कुशल होते हैं। इसके अलावा, यह बहु-विषयक चिकित्सा टीमों के बीच संचार को भी बेहतर बनाता है, जिससे चिकित्सा त्रुटियाँ कम हो सकती हैं। 3D प्रिंटिंग मॉडल मरीज़ों और उनके परिवारों को भी इलाज की प्रक्रिया में शामिल कर सकते हैं। इससे वे बेहतर तरीके से इलाज के निर्णय में भाग ले सकते हैं। इसके माध्यम से, साझा निर्णय लेने में मदद मिलती है, जिससे मरीज़ का इलाज और अधिक प्रभावी हो सकता है।
अंततः, 3D मॉडल, चिकित्सा अनुसंधान में भी योगदान करते हैं। ये मॉडल बुनियादी विज्ञान, अनुवाद और नैदानिक जांच को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। हालांकि, इन लाभों को पूरी तरह से मापने के लिए और अधिक डेटा की आवश्यकता है। शुरुआत में जो परिणाम मिले हैं, वे बहुत सकारात्मक हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2bg7l2fk
https://tinyurl.com/2d35q4pg
https://tinyurl.com/28mrvo84
https://tinyurl.com/249djk6l
मुख्य चित्र स्रोत: Wikimedia
भारत में कृषि करने के तरीके को बेहतर बना रही हैं, अंतरिक्ष आधारित प्रौद्योगिकियां
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
13-02-2025 09:33 AM
Rampur-Hindi
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हमारे देश में, 1980 के दशक की शुरुआत से ही, 'कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय' (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare), कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहा है। यह मंत्रालय, विभिन्न परियोजनाओं को वित्त पोषित कर रहा है, जिसके तहत 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (Indian Space Research Organization (ISRO)) द्वारा फ़सल उत्पादन पूर्वानुमान के लिए कई पद्धतियां विकसित कीं गई हैं। इनमें से एक है रिमोट सेंसिंग तकनीक, जो सैटेलाइट के माध्यम से मिट्टी, बर्फ़ के आवरण, सूखे और फ़सल विकास की निगरानी के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करती है। अंतरिक्ष-आधारित तकनीक रामपुर के किसानों के लिए भी अत्यंत उपयोगी एवं मूल्यवान है। इस प्रकार के अनुसंधान से एक साथ उत्पादन और लाभप्रदता दोनों को बढ़ाया जा सकता है। तो आइए, आज भारत के कृषि क्षेत्र के लिए, अंतरिक्ष अनुसंधान की आवश्यकता के बारे में समझते हैं और कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए, भारत द्वारा उपयोग की जाने वाली अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम इस बात पर कुछ प्रकाश डालेंगे कि, अंतरिक्ष आधारित प्रौद्योगिकियां कृषि करने के तरीके को कैसे बदल रही हैं।
भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान की आवश्यकता:
खाद्यान्नों का वितरण और भंडारण, सरकारी नीतियों के निर्माण, मूल्य निर्धारण, खरीद और खाद्य सुरक्षा आदि से संबंधित निर्णय लेने जैसे उद्देश्यों के लिए फ़सल आंकड़ों की जानकारी आवश्यक है। भारत में 'कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय' द्वारा ऐसे निर्णय लेने के लिए, सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग (Satellite remote sensing) जैसी तकनीकों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाता है। रिमोट सेंसिंग डेटा के पारंपरिक तरीकों की तुलना में कई फ़ायदे हैं, विशेष रूप से समय पर निर्णय लेने, स्थानिक चित्रण और लागत प्रभावशीलता आदि के संदर्भ में। अंतरिक्ष डेटा का उपयोग कई महत्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित करने में किया जाता है, जैसे, फ़सल क्षेत्र, फ़सल की उपज और उत्पादन का अनुमान, फ़सल की स्थिति एवं मिट्टी की जानकारी प्राप्त करना, फ़सल प्रणाली का अध्ययन आदि।
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कृषि क्षेत्र को बढ़ाने के लिए भारत में उपयोग की जाने वाली अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियां:
'कृषि, सहयोग और किसान कल्याण विभाग' ने फ़सल उत्पादन पूर्वानुमान के लिए इसरो में विकसित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संचालन के लिए 2012 में 'महालनोबिस राष्ट्रीय फ़सल पूर्वानुमान केंद्र' (Mahalanobis National Crop Forecast Centre) नामक एक केंद्र की स्थापना की। इस विभाग में 'भारतीय मृदा एवं भूमि उपयोग सर्वेक्षण' नामक एक और केंद्र है, जो मृदा संसाधनों के मानचित्रण के लिए सैटेलाइट डेटा का उपयोग करता है।वर्तमान में, विभाग द्वारा अपने विभिन्न कार्यक्रमों/क्षेत्रों, जैसे, 'अंतरिक्ष, कृषि-मौसम विज्ञान और भूमि आधारित अवलोकन का उपयोग करके कृषि उत्पादन का पूर्वानुमान' (Forecasting Agricultural Output using Space, Agro-meteorology and Land based Observations (FASAL)) परियोजना, भू-सूचना विज्ञान का उपयोग करके बागवानी मूल्यांकन और प्रबंधन पर समन्वित कार्यक्रम (Coordinated programme on Horticulture Assessment and Management using geoiNformatics (CHAMAN)) परियोजना, राष्ट्रीय कृषि सूखा आकलन और निगरानी प्रणाली (National Agricultural Drought Assessment and Monitoring System (NADAMS)), चावल-परती क्षेत्र का मानचित्रण और सघनीकरण (Rice-Fallow Area Mapping and Intensification), फ़सल बीमा का उचित कार्यान्वयन आदि, के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है।
'कृषि, सहयोग और किसान कल्याण विभाग' ने अक्टूबर 2015 में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और भू-सूचना विज्ञान का उपयोग करके किसान [सी (के) रोप बीमा] (KISAN [C(K)rop Insurance]) परियोजना शुरू की थी। इस परियोजना में इष्टतम फ़सल के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन रिमोट सेंसिंग डेटा के उपयोग की परिकल्पना की गई थी। इस परियोजना के तहत, 4 राज्यों - हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश - के 4 ज़िलों में पायलट अध्ययन आयोजित किए गए। इस अध्ययन में उपयोगी जानकारी जैसे, उपज़ अनुमान, फ़सल काटने की इष्टतम संख्या आदि प्राप्त हुई।
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इसके अलावा, 2019-20 के दौरान, 9 फ़सलों के लिए 15 राज्यों के 64 ज़िलों में 12 एजेंसियों के माध्यम से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों की परिकल्पना करते हुए पायलट अध्ययन आयोजित किए गए थे। 2020-21 के दौरान, खरीफ़ 2020 में धान की फ़सल के लिए 7 एजेंसियों की मदद से पायलट अध्ययन को देश के 9 राज्यों में 100 ज़िलों तक बढ़ाया गया। ग्राम पंचायत स्तर पर उपज़ अनुमान प्राप्त करने के लिए अध्ययन में विभिन्न प्रौद्योगिकियों जैसे सैटेलाइट, यूएवी, सिमुलेशन मॉडल और ए आई/एम एल तकनीकों का उपयोग किया गया। इन अध्ययनों के निष्कर्षों के आधार पर, 2023 से धान और गेहूं की फ़सल के लिए प्रौद्योगिकी आधारित उपज़ अनुमान शुरू किया गया। इसके अलावा, 2022-23 के दौरान गैर-अनाज फ़सलों जैसे सोयाबीन, कपास, ज्वार, बाजरा, चना, सरसों, मक्का और ग्वार के लिए प्रौद्योगिकी आधारित फ़सल उपज अनुमान के लिए पायलट अध्ययन भी शुरू किया गया है।
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियाँ हमारे भोजन उगाने के तरीके को कैसे बदल रही हैं:
परिशुद्ध कृषि और सैटेलाइट प्रौद्योगिकी: उत्तम फ़सल प्रबंधन के लिए, उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग करके, किसान अब स्पष्ट छवियों और वास्तविक समय के डेटा तक पहुंच प्राप्त कर सकते हैं, जिससे वे आवश्यकतानुसार अपनी खेती की निगरानी और अनुकूलन कर सकते हैं। सैटेलाइट-आधारित रिमोट सेंसिंग मिट्टी की नमी, पोषक तत्वों के स्तर और पौधों के स्वास्थ्य का सटीक मूल्यांकन करने में सक्षम बनाती है, जिससे किसानों को सूचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। इस सटीकता से बर्बादी कम होती है, पैदावार बढ़ती है और पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है, जिससे कृषि का टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित होता है। इसके अलावा, यह तकनीक, छोटे पैमाने के किसानों के लिए, उन्नत कृषि उपकरणों तक पहुंच को संभव बनाती है।
फ़सल प्रबंधन के लिए जलवायु और मौसम का पूर्वानुमान: अंतरिक्ष-आधारित मौसम निगरानी से, किसान बेहतर योजना बनाने और पर्यावरणीय परिस्थितियों में उतार-चढ़ाव पर प्रतिक्रिया करने में सक्षम हो गए हैं। सटीक मौसम, पूर्वानुमान से किसान रोपण, सिंचाई और कीट नियंत्रण के बारे में शिक्षित निर्णय ले सकते हैं, जिससे अंततः फ़सल की पैदावार बढ़ती है और अप्रत्याशित मौसम की घटनाओं के कारण होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
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संसाधन प्रबंधन और सतत कृषि पद्धतियाँ: सैटेलाइट छवियों और डेटा विश्लेषण से किसान अपने संसाधनों की अधिक कुशलता से निगरानी और प्रबंधन कर सकते हैं, जिससे अधिक टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के लिए, उपग्रह डेटा का उपयोग सिंचाई कार्यक्रम को अनुकूलित करने, पानी बचाने और उर्वरक के उपयोग को कम करने के लिए किया जा सकता है। ये लाभ किसानों के लिए परिचालन लागत कम करते हैं और टिकाऊ खेती को आर्थिक रूप से अधिक व्यवहार्य बनाते हैं।
कम संसाधनों के साथ नियंत्रित पर्यावरण कृषि (Controlled Environment Agriculture (CEA)): नियंत्रित पर्यावरण कृषि से एक बंद संरचना के भीतर फ़सलों के लिए आदर्श बढ़ती परिस्थितियों का निर्माण और रखरखाव संभव है। इसके तहत, पौधों के लिए उचित पोषक तत्व और एलईडी प्रकाश की इष्टतम अवधि और तीव्रता प्रदान की जाती है। इसमें सूखे या कीटों का कोई ख़तरा नहीं होता है, फसलें ऊर्ध्वाधर उगाई जा सकती हैं, जिससे प्रत्येक वर्ग इंच और एकड़ का अधिकतम लाभ उठाया जा सकता है। आज, निजी कंपनियाँ इस वर्टिकल फ़ार्म ढांचे को नई ऊँचाइयों पर ले जा रही हैं। आज सी ई ए, अवसरों से परिपूर्ण एक बढ़ता हुआ उद्योग है।
खेती को अधिक सटीक और कुशल बनाने के लिए वैश्विक नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (Global navigation satellite systems (GNSS)): जी एन एस एस, सैटेलाइटों का एक समूह है, जो पृथ्वी पर स्थिति, नेविगेशन और समय संबंधी सेवाएं प्रदान करते हैं। खेती को और अधिक कुशल बनाने के लिए, जी एन एस एस-सक्षम कार्यक्रमों और अनुप्रयोगों का आज तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है। नेविगेशन से सुसज्जित कृषि मशीनरी को इष्टतम मार्गों पर चलने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। इससे किसानों को अपने समय का सदुपयोग करने में मदद मिलती है और साथ ही, ईंधन की खपत भी काफ़ी कम हो जाती है। किसान, खेत के नक्शे भी अपलोड कर सकते हैं और केवल उन्हीं क्षेत्रों में उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग कर सकते हैं, जहां उनकी आवश्यकता होती है।
अन्य अनुप्रयोगों में फ़सल निगरानी, पशुधन ट्रैकिंग और ऑटो-मार्गदर्शन शामिल हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र: सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग : (Wikimedia)
भारत में पुरुषों में मुंह व फेफड़ों तथा महिलाओं में, स्तन व ग्रीवा कैंसर हैं सबसे आम
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
Thought II - Philosophy/Maths/Medicine
12-02-2025 09:23 AM
Rampur-Hindi
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'विश्व स्वास्थ्य संगठन' (World Health Organization (WHO)) के अनुसार, कैंसर विश्व स्तर पर बीमारी से होने वाली मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है । 2020 में, विश्व में लगभग 10 मिलियन लोगों ने कैंसर से अपनी जान गवाईं। वहीं वर्ष 2020 में, भारत में कैंसर के 13.92 लाख मामले सामने आए थे। कैंसर, एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर की कुछ कोशिकाएं, नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं और शरीर के अन्य भागों में फैल जाती हैं। शरीर में, कोशिका प्रसार और गुणन की प्रक्रिया कभी-कभी विकृत हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप क्षतिग्रस्त या विकृत कोशिकाएँ बढ़ने लगती हैं जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। कैंसर कारक-ऊतक इन कोशिकाओं से विकसित हो सकते हैं। कैंसरग्रस्त ऊतक नए ऊतक बनाने के लिए शरीर के अन्य भागों में फैलते हैं, और वे आस-पास के ऊतकों पर भी आक्रमण कर सकते हैं। भारत में स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और मुंह का कैंसर सबसे आम कैंसर है। तो आइए, आज भारत में सबसे ज़्यादा प्रचलित कैंसर के प्रकारों के बारे में जानते हैं और देखते हैं कि, उत्तर प्रदेश में, हाल के वर्षों में कैंसर के कितने मामले सामने आए हैं। इसके साथ ही, हम भारत में सबसे अधिक कैंसर के मामलों वाले राज्यों पर प्रकाश डालेंगे और भारत में विभिन्न कैंसर उपचार प्रक्रियाओं की लागत पर ध्यान केंद्रित करेंगे। अंत में, हम भारत में कैंसर के मामलों से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों के बारे में जानेंगे।
भारत में सबसे आम कैंसर:
स्तन कैंसर: भारत में स्तन कैंसर, तेज़ी से युवा महिलाओं को प्रभावित कर रहा है। शहरी क्षेत्रों में स्तन कैंसर से पीड़ित आधे से अधिक महिलाओं की आयु 50 वर्ष से कम है। इसके प्रमुख कारणों में देर से विवाह और बच्चे का जन्म, सीमित स्तनपान प्रथाएं और अन्य जीवनशैली विकल्प शामिल हैं। आनुवंशिक प्रवृत्ति भी एक प्रमुख कारण है। स्तन कैंसर केवल पीड़ित महिला को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि उनके परिवार और पूरे समाज पर गहरा प्रभाव डालता है।
मुँह का कैंसर: पूरे विश्व में, भारत में मुँह का कैंसर सबसे अधिक होता है, जिसका मुख्य कारण तम्बाकू और शराब का बड़े पैमाने पर सेवन है। यहां गुटका और पान मसाला जैसे धुआं रहित तंबाकू का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है जो 90% मुँह के कैंसर का कारण बनता है। मुंह की उचित स्वच्छता आदतों की कमी और फलों और सब्जियों की कम मात्रा वाला आहार समस्या को और बढ़ा देता है।
ग्रीवा कैंसर: ग्रामीण भारत में महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर सबसे अधिक देखा जाता है, जिसका मुख्य कारण जागरूकता और स्वच्छता की कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं तक सीमित पहुंच और अपर्याप्त स्क्रीनिंग कार्यक्रम हैं। लगातार एच पी वी (Human Papillomavirus (HPV)) संक्रमण, प्रारंभिक यौन गतिविधि, एकाधिक साथी और एचपीवी के खिलाफ टीकाकरण की कमी से इसकी घटनाएं अधिक सामने आती हैं।
फेफड़ों का कैंसर: फेफड़ों के कैंसर का मुख्य कारण धूम्रपान की आदत है। वहीं ग्रामीण इलाकों में भोजन पकाने के ईंधन से पर्यावरण प्रदूषकों और और शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से जोखिम और बढ़ जाता है। बड़ी संख्या में फेफड़ों के कैंसर के ऐसे रोगी सामने आए हैं, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है। अनुमान है कि, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR Region) में, एक व्यक्ति रोज़ाना औसत 15 से 20 सिगरेट पीने के बराबर पर्यावरण प्रदूषण झेलता है।
कोलोरेक्टल कैंसर: भारत में कोलोरेक्टल कैंसर तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसका कारण आहार में प्रसंस्कृत या जंक फ़ूड की ओर झुकाव और फ़ाइबर का कम सेवन है। इसके अलावा, निष्क्रिय जीवनशैली, मोटापा और आनुवंशिक प्रवृत्ति अन्य योगदान कारक हैं।
सिर और गर्दन का कैंसर: सिर और गर्दन का कैंसर भी मुंह के कैंसर के समान खराब मौखिक स्वच्छता, धूम्रपान, तंबाकू चबाना, पान और बार-बार शराब के कारण फैलता है।
प्रोस्टेट कैंसर: प्रोस्टेट कैंसर, मूल रूप से बुज़ुर्ग भारतीय आबादी में होने वाली बीमारी है। प्रोस्टेट कैंसर का पता लगाने के लिए, विशेष रूप से रात में बार-बार पेशाब आने या मूत्र प्रवाह में कमी की जांच की जानी चाहिए।
हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश में कैंसर रोगियों की स्थिति:
हाल ही के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में 14,26,447 कैंसर के मामले दर्ज किए गए थे। जबकि 2021 और 2020 में ये आंकड़े, 14,61,427 और 13,92,179 थे। भारत में सभी राज्यों में, उत्तर प्रदेश 2.10 लाख नए मामलों के साथ शीर्ष पर है, जबकि 2020 में मामलों की संख्या 2.01 लाख से अधिक थी। महाराष्ट्र 1,21,717 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है और क्रमशः 113581, 109274, और 93,536 मामलों के साथ पश्चिम बंगाल बिहार और तमिलनाडु का स्थान इसके बाद है। कैंसर से होने वाली मृत्यु में वृद्धि भी मामलों के अनुरूप है। 2022 में भारत भर में दर्ज किए गए कुल मामलों में से 8,08,558 लोगों की मृत्यु हो गई, जिससे मृत्यु दर 55% से अधिक हो गई। इसका अर्थ यह है कि 2023 में कैंसर से पीड़ित हर दूसरा व्यक्ति जीवित नहीं रह सका। यहां भी 1,16,818 मौतों के साथ उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है। उत्तर प्रदेश में मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत के समान थी। विशेषज्ञों का मानना है कि ये आकड़ें वास्तविक स्थिति से बेहद कम हो सकते हैं और वास्तविक स्थिति इससे भी खराब हो सकती है।
भारत में कैंसर के इलाज की लागत:
कैंसर का इलाज़ | भारत में लागत (रुपए में) |
शल्य चिकित्सा | अंग-विशिष्ट कैंसर का उपचार, आमतौर पर 2,80,000 से 10,50,000 रुपये तक होता है। कैंसर के स्थान और चरण के आधार पर, ये कीमत, भिन्न हो सकती है। |
रोबोटिक शल्य चिकित्सा
| रोबोटिक शल्य चिकित्सा की औसतन लागत, लगभग 5,25,000 रुपये होती है। |
कीमोथेरेपी | भारत में कैंसर की गंभीरता के आधार पर, कीमोथेरेपी की औसतन लागत, लगभग 18,000 रुपये प्रति सत्र होती है।
|
विकिरण चिकित्सा | भारत में रेडियोथेरेपी उपचार की कोई निश्चित लागत नहीं है क्योंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी को इसकी कितनी आवश्यकता है। आंतरिक और बाह्य विकिरण के लिए अनुमानित राशि इस प्रकार है:
|
रोगक्षमता चिकित्सा
| इसकी लागत, 4,41,000 रुपये से 4,55,000 रुपये के बीच होती है। यह लागत कम से कम दो वर्षों की अवधि में महीने में एक बार आती है। |
अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण
| रक्त कैंसर के उपचार के मामलों में अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। इसकी लागत, आमतौर पर, 15,00,000 रुपये से 48,00,000 रुपये तक होती है। |
लक्षित थेरेपी | यह थेरेपी, आमतौर पर कीमोथेरेपी के साथ दी जाती है; इसकी कीमत, लगभग 2,00,000 रुपये से लेकर 2,50,000 रुपये तक होती है। |
हार्मोन थेरेपी
| हार्मोन थेरेपी की लागत, आमतौर पर कैंसर की गंभीरता पर निर्भर करती है, लेकिन आमतौर पर, इसकी लागत, 3,22,845 रुपये से शुरू होती है। |
भारत में कैंसर से संबंधित आंकड़े:
- भारत में कैंसर से पीड़ित लोगों की अनुमानित संख्या, लगभग 2.5 मिलियन है।
- हर साल, पंजीकृत होने वाले नए कैंसर मरीज़ों की संख्या, 7 लाख से अधिक है।
- हर साल, कैंसर से लगभग 5,56,400 लोगों की मृत्यु हो जाती है।
- भारत में, हर 8 मिनट में, एक महिला की, सर्वाइकल कैंसर से मृत्यु हो जाती है।
- भारत में स्तन कैंसर से पीड़ित प्रत्येक 2 महिलाओं में से एक महिला की मृत्यु हो जाती है।
- भारत में तंबाकू से संबंधित बीमारियों के कारण, प्रतिदिन 2,500 लोगों की मृत्यु हो जाती है।
- भारत में कैंसर से होने वाली 50% से अधिक मौतें, पुरुषों में मुंह और फेफड़ों और महिलाओं में, गर्भाशय ग्रीवा और स्तन के कैंसर के कारण होती हैं।
30-69 वर्ष के बीच आयु वर्ग में मृत्यु के आंकड़े:
- कुल: 3,95,400 (कैंसर से संबंधित सभी मौतों का 71%)
- पुरुष: 2,00,100
- महिलाएँ: 1,95,300
पुरुषों और महिलाओं में होने वाले निम्न शीर्ष पांच कैंसर, सभी कैंसरों का 47.2% हिस्सा साबित होते हैं:
पुरुष | महिलाएं |
होंठ, मुंह | स्तन |
फेफड़े | गर्भाशय ग्रीवा |
पेट | कोलोरेक्टल |
कोलोरेक्टल | अंडाशय |
ग्रसनी | होंठ, मुंह |
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : (Wikimedia)
छोटे-छोटे रंगमंचों से, बड़े-बड़े बदलाव लाती है, नौटंकी !
द्रिश्य 2- अभिनय कला
Sight II - Performing Arts
11-02-2025 09:27 AM
Rampur-Hindi
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नौटंकी, उत्तरी भारत का एक प्रसिद्ध एवं पारंपरिक लोक रंगमंच है। यह सिर्फ़, मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि सामाजिक संदेश देने और सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करने का एक सशक्त
साधन भी है।अपनी जीवंत कहानियों, संगीत और नृत्य के माध्यम से, नौटंकी सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता और नैतिक शिक्षा जैसे विषयों
पर प्रकाश डालती है। यह कला, कई पीढ़ियों के बीच सेतु का काम करती है। पारंपरिक कहानियों और सांस्कृतिक प्रथाओं को जीवित रखते हुए, नौटंकी समकालीन मुद्दों को भी संबोधित करती है। ग्रामीण और शहरी समुदायों से जुड़ने की इसकी क्षमता अद्भुत रही है। यही कारण है कि, नौटंकी का सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान बहुत बड़ा है। यह कला के माध्यम से एकता और जागरूकता को बढ़ावा देती है। इसलिए आज के इस लेख में, हम नौटंकी और ग्रामीण समुदायों में इसकी भूमिका पर चर्चा करेंगे। साथ ही, हम यह भी समझेंगे कि लोक रंगमंच, किस प्रकार सामाजिक मुद्दों को संबोधित करता है। अंत में, हम नौटंकी रंगमंच के विकास और इसके प्रभाव की भी जाँच करेंगे। जिसके तहत हम समय के साथ इसके स्वरूप में जो परिवर्तन आए, तथा कला, संस्कृति और समाज पर इसके स्थायी प्रभाव पर प्रकाश डालेंगे।
नौटंकी उत्तर भारत की एक प्राचीन और लोकप्रिय लोक नाट्य शैली है। इसमें नाटक, संगीत और नृत्य का समावेश होता है, जो इसे बेहद जीवंत और मनोरंजक बनाता है। रंगीन वेशभूषा और अतिरंजित हाव-भाव इसकी विशेषता हैं। नौटंकी की कहानियाँ आमतौर पर सामाजिक मुद्दों, पौराणिक कथाओं और नैतिक शिक्षाओं पर आधारित होती हैं। ग्रामीण समुदायों पर इस कला का गहरा प्रभाव है! यह आज भी कहानी कहने और सामाजिक संदेश देने का महत्वपूर्ण माध्यम
मानी जाती है।
आज भी नौटंकी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी हुई है और भारत की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। इसमें जीवंत संगीत, ऊर्जावान नृत्य और नाटकीय कहानी कहने के माध्यम से दर्शकों का दिल जीतने की ताकत है। यह न केवल, मनोरंजन करती है, बल्कि न्याय, समानता और नैतिक मूल्यों के संदेश भी देती है। यह शैली ग्रामीण और शहरी समुदायों को समान रूप से जोड़ती है और उनकी परंपराओं से जोड़ने का काम करती है।
उत्तर भारत के विभिन्न स्थानों पर आयोजित वार्षिक मेलों में नौटंकी का प्रदर्शन किया जाता था। मकनपुर, बहराइच, मेरठ, सोनपुर और राजगीर जैसे स्थानों पर नौटंकी आकर्षण का प्रमुख केंद्र हुआ करती थी। इन मेलों में हज़ारो तीर्थयात्री और दर्शक शामिल होते थे। नौटंकी का प्रदर्शन देवी सरस्वती और भगवान गणेश के आह्वान के साथ शुरू होता था। इसके पात्रों को साफ़ और स्पष्ट तरीके से प्रस्तुत किया जाता था, और घटनाएँ तेज़ गति तथा लयबद्ध तरीके से आगे बढ़ती थीं।
नौटंकी के शुरुआती दौर में कलाकार, अपनी आवाज़ को बिना माइक के भी दर्शकों तक पहुँचाने में सक्षम थे। यह शैली, किंवदंतियों, संस्कृत नाटकों, फ़ारसी कहानियों और पौराणिक कथाओं से प्रेरणा लेती थी। इसके कुछ लोकप्रिय नाटकों में राजा हरिश्चंद्र, लैला मजनूं,
शिरीं फ़रहाद, श्रवण कुमार और पृथ्वीराज चौहान शामिल थे।
नौटंकी, न केवल मनोरंजन का साधन थी, बल्कि नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक संदेशों को देने का माध्यम भी थी। इसके पात्र, जैसे सुल्ताना डाकू और डाकू मान सिंह, गरीबों की सेवा करने वाले नायक के रूप में प्रस्तुत किए जाते थे। वीरमती और बेकासुर बेटी जैसे नाटकों में, महिलाओं ने अन्याय के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी। राजा हरिश्चंद्र और पूरन भगत जैसे नाटक, सत्य और त्याग की शिक्षा देते थे।
कैथरीन हैनसेन (Kathryn Hansen) जैसी सांस्कृतिक इतिहासकारों के अनुसार, नौटंकी ने सामाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई। इसने मनोरंजन के साथ-साथ, समाज को जागरूक और शिक्षित करने का काम भी किया।
भारतीय समाज में निरक्षरता, बाल श्रम और घरेलू हिंसा जैसी कई सामाजिक समस्याएँ, ग्रामीण क्षेत्रों में गहराई से जमी हुई हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए, लोक रंगमंच एक सशक्त उपकरण के रूप में उभरता है। इसका कारण यह है कि, यह ग्रामीण दर्शकों के साथ गहराई से जुड़ता है और उनकी भाषा, भावनाओं और अनुभवों को
प्रतिबिंबित करता है।
लोक रंगमंच (folk theater) के प्रदर्शन, विशेष रूप से ग्रामीण समुदायों को ध्यान में रखकर तैयार किए जाते हैं। इन प्रदर्शनों में उन कहानियों और तकनीकों का उपयोग होता है जो ग्रामीण दर्शकों से सीधे जुड़ती हैं। ये कहानियाँ सामाजिक मुद्दों पर विचार करने और उनके समाधान खोजने के लिए प्रेरित करती हैं। लोक रंगमंच के माध्यम से, जटिल समस्याओं को सरल और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, ताकि दर्शक उन्हें
आसानी से समझ सकें।
लोक रंगमंच का मुख्य उद्देश्य, मनोरंजन करना ही नहीं, बल्कि लोगों को शिक्षित करना और सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूक
करना भी है। यह अक्सर सामाजिक बदलाव लाने और दर्शकों को सकारात्मक कार्य करने के लिए प्रेरित करने का माध्यम बनता है। इसकी प्रस्तुति में दर्शकों को शामिल करने का अनूठा तरीका, इसे और भी प्रभावी बनाता है।यह कला, उनकी संस्कृति से गहराई से जुड़ी होती है, इसलिए इसे पूरी तरह से स्वीकार किया जाता है।
इतिहास में, लोक रंगमंच ने सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक संदेशों को व्यक्त करने में अहम भूमिका निभाई है। नौटंकी जैसे लोक नाट्य रूपों ने धार्मिक और सामाजिक उपदेशों से प्रेरणा लेते हुए पौराणिक कथाओं को सामाजिक जागरूकता
के प्रदर्शनों में बदल दिया।
आधुनिक संदर्भ में भी लोक रंगमंच ने वयस्क शिक्षा और परिवार नियोजन जैसे मुद्दों को भीसंबोधित किया है।यह सामाजिक बदलाव का एक प्रभावी माध्यम है, जो परंपरा और समकालीनता के बीच, सेतु का काम करता है।लोक रंगमंच, न केवल मनोरंजन करता है, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का सशक्त माध्यम भी है।
नौटंकी मंडली में विभिन्न जाति, धर्म और पृष्ठभूमि के कलाकार शामिल होते थे। शुरुआत में केवल पुरुषों को ही नौटंकी मंडली में शामिल होने की अनुमति थी। लेकिन 1920 के दशक में महिलाओं ने भी मंच पर आना शुरू किया। ये महिलाएँ, मुख्य रूप से कालबेलिया, बेदिया और नट जैसे समुदायों से आती थीं। 1950 और 1960 के दशक में महिला नौटंकी कलाकारों की लोकप्रियता बढ़ी। इनमें से कुछ ने अपनी कंपनियाँ स्थापित कीं। उस दौर के प्रसिद्ध कलाकार गुलाब बाई ने ग्रेट गुलाब थिएटर कंपनी और कृष्णा बाई ने कृष्णा नौटंकी कंपनी की स्थापना की।
लेकिन समय के साथ सिनेमा के आगमन से नौटंकी पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसके कारण दर्शकों की रुचि कम हो गई। हालांकि, यह कला, उत्तर प्रदेश के हाथरस, मथुरा, उन्नाव और बीघापुर के ग्रामीण इलाकों में आज भी जीवित है। भारत के महानगरों और प्रवासी भारतीय समुदायों में भी नौटंकी के प्रति रुचि धीरे-धीरे बढ़ रही है। मुख्यधारा के थिएटर में भी इसे अपनाया जा रहा है।
नौटंकी ने लोकप्रिय संगीत को भी प्रभावित किया है। 1969 में हिज़ मास्टर्स वॉइस (His Master's Voice (HMV)) ने गुलाब जान द्वारा गाए गए नौटंकी संगीत के रिकॉर्ड जारी किए। नाटकों के गीतों का इस्तेमाल, हिंदी फ़िल्मों के मशहूर गानों में किया गया है। 2001 में आंध्र प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित थिएटर फेस्टिवल और 2004 में दिल्ली हिंदी अकादमी के नौटंकी फेस्ट में इस शैली को प्रमुखता मिली। कृष्णा कुमारी माथुर और उनकी कंपनी ने इन आयोजनों में अमर सिंह राठौर का प्रदर्शन किया। ग्रेट गुलाब थिएटर कंपनी आज भी विशेष अनुरोध पर नाटक प्रस्तुत करती है। 2010 में, नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर (Habitat Centre) में, उन्होंने सुल्ताना डाकू का प्रदर्शन किया।
पंडित राम दयाल शर्मा और देवेंद्र शर्मा जैसे कलाकारों ने, नौटंकी तकनीकों को अपने काम में शामिल किया है।हबीब तनवीर, सर्वेश दयाल सक्सेना, अतुल यदुवंशी और उर्मिल कुमार थपलियाल जैसे निर्देशकों ने भी इस शैली का उपयोग
किया। श्रीकृष्ण पहलवान और गुलाब बाई को क्रमशः 1968 और 1990 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।आज, नौटंकी का उपयोग, सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियाँ, सामाजिक जागरूकता फैलाने के लिए कर रही हैं। इसे सांस्कृतिक उत्सवों और पर्यटन स्थलों, जैसे कि सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले में प्रस्तुत किया जाता है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के थिएटर प्रोडक्शन्स में भी, इसका समावेश हो रहा है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/29u4dz7r
https://tinyurl.com/234b2cvd
https://tinyurl.com/2yy6sna7
मुख्य चित्र : दिव्य संत नारद के रूप में देवेन्द्र शर्मा (Wikipedia)
कुछ महत्वपूर्ण विधियों और बिंदुओं को ध्यान में रखकर, लाभ कमाएं, खीरे की खेती से
साग-सब्जियाँ
Vegetables and Fruits
10-02-2025 09:16 AM
Rampur-Hindi
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आप इस बात से सहमत होंगे कि, कोई भी दावत, सलाद के बिना पूरी नहीं होती और कोई भी सलाद, खीरे के बिना पूरा नहीं होता। खीरे में पानी की मात्रा अधिक होने के कारण, यह अविश्वसनीय रूप से हाइड्रेटिंग (hydrating) होता है। इसके अलावा, खीरे में कैलोरी (calorie) की मात्रा भी कम होती है। घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ारों में खीरे की उच्च मांग होने के कारण, भारत में खीरे की खेती कृषि का एक अनिवार्य हिस्सा है। खीरे की फ़सल को विभिन्न तकनीकों और प्रथाओं का उपयोग करके उगाया जाता है। सही दृष्टिकोण के साथ, खीरे की खेती, भारत में किसानों के लिए, एक लाभदायक व्यवसाय हो सकती है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में, भारत में, खीरे के उत्पादन में, 103,740 टन के साथ, उत्तर प्रदेश का हिस्सा 6.45% था, जिससे हमारा राज्य, भारत का छठा सबसे बड़ा खीरा उत्पादक राज्य बन गया। आइए आज, भारत में उगाई जाने वाले खीरे की विभिन्न किस्मों के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही हम यह भी सीखेंगे कि खीरे के बीज कैसे और कब बोये जाते हैं। इस संदर्भ में, हम बुवाई की विभिन्न विधियों जैसे लो टनल तकनीक, ड्रिब्लिंग विधि, बेसिंग विधि आदि, खीरे की खेती के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं जैसे उपयुक्त जलवायु एवं मिट्टी, भूमि की तैयारी, बीज उपचार आदि पर चर्चा करेंगे। अंत में, घर पर खीरे उगाने की विधि के बारे में जानेंगे।
भारत में उगाई जाने वाली खीरे की विभिन्न किस्में:
भारत में खीरे की कई किस्में उगाई जाती हैं, जिनमें पॉइन्सेट (Poinsett), एशले (Ashley), स्ट्रेट एट (Straight Eight) और मार्केटमोर (Marketmore) शामिल हैं। प्रत्येक प्रकार की किस्म की अलग-अलग विशेषताएं होती हैं, जैसे फल का आकार, आकृति और स्वाद। पॉइन्सेट खीरे का उपयोग, मुख्य रूप से अचार बनाने के लिए किया जाता है | इसके फल का आकार छोटा होता है, जबकि एशले खीरे का उपयोग, सलाद के लिए किया जाता है और इसके फल का आकार बड़ा होता है। स्ट्रेट एट खीरा भी, सलाद के लिए एक अच्छा विकल्प है और इसका फल चिकनी त्वचा वाला और लंबा होता है। मार्केटमोर खीरा, बेलनाकार आकार और हरे रंग के साथ अधिक उपज देने वाली किस्म है।
खीरे की बुवाई का समय और विधि:
मैदानी इलाकों में मानसूनी या बरसाती फ़सलों के लिए, इसकी बुआई जून-जुलाई में और पहाड़ी इलाकों में अप्रैल में की जाती है। ग्रीष्मकालीन फ़सलों के लिए, इसकी बुआई जनवरी से फ़रवरी के अंत तक की जाती है। इसके बीज बोने के लिए लगभग 2.5 मीटर चौड़ी क्यारी या मेड़ बनाई जाती है और एक साथ दो बीज बोए जाते हैं। बीजों के बीच, 60 सेंटीमीटर की दूरी होना चाहिए। ये बीज, 2-3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोए जाते हैं।
लो टनल तकनीक: इस तकनीक का उपयोग, गर्मियों की शुरुआत में खीरे की अच्छी और जल्दी उपज प्राप्त करने के लिए किया जाता है। ठंड के मौसम अर्थात दिसंबर और जनवरी के में, महीनों यह विधि फ़सल को ठंड से बचाने में मदद करती है। दिसंबर माह में 2.5 मीटर चौड़ी क्यारियों में बीज बोए जाते हैं। बीजों को क्यारी के दोनों ओर 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बोया जाता है। बुआई से पहले, 45-60 सेंटीमीटर लंबाई की सहायक छड़ें मिट्टी में गाड़ दी जाती हैं। समर्थन छड़ों की सहायता से खेत को 100 गेज मोटाई की प्लास्टिक शीट से ढका जाता है। प्लास्टिक शीट को मुख्यतः फ़रवरी के महीने में हटा देना चाहिए, जब बाहर का तापमान उपयुक्त हो। इसके अलावा, खीरे की खेती डिबलिंग विधि, बेसिंग विधि और रिंग विधि से भी की जाती है।
जलवायु:
खीरे की खेती के लिए नम और गर्म जलवायु परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। यह सब्ज़ी, पाला सहन नहीं कर पाती। इसकी बेहतर वृद्धि के लिए, 4 महीने तक पाला नहीं पड़ना चाहिए। इसलिए, इसे प्लास्टिक शीट से ढका जाता है। इसकी खेती के लिए उपयुक्त तापमान 20-32° सेल्सियस है।
मिट्टी:
खीरे को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। लेकिन यह अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी तरह उगता है।
मिट्टी की तैयारी:
इसकी खेती के लिए, उपयुक्त मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए 6-7 जुताई के बाद हैरो से जुताई करनी चाहिए। मिट्टी का पी एच स्तर (pH level), 6.5-7.5 के बीच होना चाहिए। सब्ज़ियों की बेहतर पैदावार और अच्छी गुणवत्ता के लिए, मिट्टी को समृद्ध बनाने के लिए कार्बनिक पदार्थ या खाद मिलानी चाहिए।
बीज दर:
सामान्यतः खीरे की खेती के लिए, प्रति हेक्टेयर, 3.5 - 6 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है।
बीज उपचार:
बुआई से पहले, प्रति किलो बीजों को, 10 ग्राम स्यूडोमोनास फ़्लोरेसेंस (Pseudomonas fluorescens) या 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडे (Trichoderma Viridae) या 2 ग्राम कार्बेन्डाज़िम (Carbendazim) से उपचारित करना चाहिए।
घर पर बीज से खीरा कैसे उगाएं?
खीरे को घर पर उगाना आसान है। खीरे को एक बार रोपने के बाद अधिक ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती है। आप इन्हें गमलों, किचन गार्डन, छत और यहां तक कि घर के अंदर भी उगा सकते हैं। खीरे के पौधे, दो रूपों में आते हैं - झाड़ी और लताएँ। झाड़ीदार खीरे के पौधे, घर के अंदर और कंटेनरों में उगाने के लिए सबसे अच्छा विकल्प हैं।
खीरे को ऐसे किचन गार्डन में आसानी से उगाया जा सकता है, जहां प्रतिदिन कम से कम 6-8 घंटे धूप आती हो। कंटेनरों में उगाते समय, ऐसा गमला चुनें, जिसमें 2-3 पौधों को रखने के लिए न्यूनतम 12-20 किलोग्राम की मिट्टी भरी जा सके। लताओं को सहारा देने के लिए, एक जाली बनाने की आवश्यकता होती है। खीरे को मटर, और कद्दू के पास उगाया जा सकता है, लेकिन इसे जड़ी-बूटियों और आलू के साथ नहीं उगाना चाहिए।
- खीरे के बीज बोने से पहले, अपने पास मौजूद जगह का आकलन कर लें। छोटे बगीचों में खीरे उगाने के लिए, ऊर्ध्वाधर बागवानी करना सबसे अच्छा विकल्प है।
- खीरे उगाने का सबसे अच्छा तरीका, सीधी रोपाई है।
- इनके पौधों को धूप और रोशनी की आवश्यकता होती है। इसलिए, बर्तन या कंटेनर को धूप में रखें।
- इनके बीजों को मिट्टी में कम से कम 1 इंच गहराई में और 4 इंच की दूरी पर बोयें। बीजों को अंकुरित करने के लिए उन्हें नियमित रूप से पानी दें।
- अंकुरण प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए, बीजों को गीले कागज़ या तौलिये में भिगोएँ, या बीजों को 24 घंटे के लिए पानी में भिगोएँ।
संदर्भ
मुख्य चित्र: खीरे की खेती (Wkimedia)
आइए नज़र डालें, कैसे उस्ताद ज़ाकिर हुसैन की तबले पर थिरकती उंगलियां ग्रैमी के साथ ही रुकीं
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि
Sound I - Vibration to Music
09-02-2025 09:21 AM
Rampur-Hindi

भारत की भूमि पर कई शताब्दियों से संगीत को एक विरासत के तौर पर संजोया गया है। हज़ारों वर्षों पूर्व, भारतीय भूमि में संगीत के जो बीज बोए गए थे, वे आज एक फलदार वृक्ष बन चुके हैं। आज वैश्वीकरण के कारण भारतीयों के साथ-साथ, पश्चिमी संगीत प्रेमियों को भी संगीत के इस मधुर फल को चखने का मौका मिला है। भारत के सबसे प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन (Zakir Hussain) की उंगलियां, जब तबले की ताल पर थिरकती थीं, तो इन्हें सुनने वाला हर इंसान मंत्रमुग्ध हो जाता था। ज़ाकिर हुसैन को भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में सन् 1988 में पद्मश्री तथा सन् 2002 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। अपने शानदार प्रदर्शन के लिए ज़ाकिर हुसैन को कई ग्रैमी पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
2009 ग्रैमी पुरस्कार: 8 फ़रवरी 2009 को आयोजित 51वें ग्रैमी पुरस्कारों में, डॉ. ज़ाकिर हुसैन ने प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त किया। उन्होंने मिकी हार्ट, सिकिरू एडेपोजू और जियोवानी हिडाल्गो के साथ मिलकर बनाए गए एल्बम ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट के लिए "समकालीन विश्व संगीत एल्बम" श्रेणी में ग्रैमी पुरस्कार जीता।
2024 ग्रैमी पुरस्कार: 4 फ़रवरी 2024 को आयोजित 66वें वार्षिक ग्रैमी पुरस्कारों में, हुसैन को एक नहीं, बल्कि तीन पुरस्कार मिले।
उन्हें पहला ग्रैमी "पश्तो" के लिए मिला। यह रचना, अमेरिकी बैंजो वादक बेला फ़्लेक, (Béla Fleck) अमेरिकी बासिस्ट एडगर मेयर (Edgar Meyer) और भारतीय बांसुरी वादक राकेश चौरसिया (Rakesh Chaurasia) के साथ मिलकर लिखी और रिकॉर्ड की गई थी।
दूसरा ग्रैमी, "सर्वश्रेष्ठ समकालीन वाद्य एल्बम" (Best Contemporary Instrumental Album) श्रेणी में मिला। उन्होंने यह पुरस्कार फ़्लेक, मेयर और चौरसिया के साथ मिलकर बनाए गए एल्बम ऐज़ वी स्पीक (As We Speak) के लिए जीता, जो उदार शास्त्रीय संगीत और जैज़ का अनोखा संगम था।
उनकी तीसरी जीत, "दिस मोमेंट" (This Moment) नामक एल्बम के लिए थी। यह एल्बम प्रसिद्ध विश्व-फ्यूजन बैंड शक्ति की शानदार वापसी को दर्शाता है। समीक्षकों द्वारा इसकी खूब सराहना की गई।
आइए अब ज़ाकिर हुसैन और उनकी लोकप्रिय संगीत कृतियों का लुफ़्त उठाते हैं:
हम शुरुआत करेंगे उनकी 'ऐज़ वी स्पीक' एल्बम के प्रसिद्ध गाने पश्तो से जिसकी वीडियो ऊपर दी गई है
कलाकार: ज़ाकिर हुसैन, बेला फ्लेक, एडगर मेयर, राकेश चौरसिया
पुरस्कार: ग्रैमी पुरस्कार
ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट – ताल वाद्यों की एक क्रांतिकारी प्रस्तुति
"ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट", ज़ाकिर हुसैन, मिकी हार्ट और अन्य महान कलाकारों का एक अनूठा संगीतमय सहयोग है, जिसमें विभिन्न संस्कृतियों के तालवाद्य समाहित हैं।
🎶 बाबा (Baba) – एक शक्तिशाली ताल संगम:
🎵 मिनियापोलिस में ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट का लाइव प्रदर्शन:
2019 में, बर्कली कॉलेज ऑफ़ म्यूज़िक (Berkeley College of Music) ने उस्ताद ज़ाकिर हुसैन को मानद डॉक्टरेट प्रदान किया। इस अवसर पर आयोजित "ज़ाकिर हुसैन मीट्स बर्कली" समारोह में उनकी संगीतमय यात्रा को दर्शाया गया, जिसमें विभिन्न शैलियों, वाद्ययंत्रों और प्रस्तुतियों का संगम देखने को मिला।
🎵 ज़ाकिर हुसैन का तबला सोलो (Zakir Hussain Tabla Solo at Berklee):
संदर्भ:
https://tinyurl.com/t3bp596n
https://tinyurl.com/477akuet
https://tinyurl.com/bdh9yzzx
https://tinyurl.com/yj5my7sh
https://tinyurl.com/2dhuyd2g
संस्कृति 1966
प्रकृति 707