रामपुर - गंगा जमुना तहज़ीब की राजधानी
दुधवा बाघ अभयारण्य की संरक्षित वन्यजीव प्रजातियाँ, पर्यटकों के लिए हैं एक खास आकर्षण
निवास स्थान
By Habitat
22-01-2025 09:35 AM
Rampur-Hindi
रामपुर के नागरिकों को यह तथ्य पता होगा कि हमारा शहर, उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में स्थित है। इसी संदर्भ में, दुधवा राष्ट्रीय उद्यान (Dudhwa National Park), जो इस तराई क्षेत्र में स्थित है, इंडो-गंगा क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता को प्रदर्शित करता है। यह वन्यजीव और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग है, जो लगभग 490 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और यह दुधवा बाघ अभयारण्य (Dudhwa Tiger Reserve) का हिस्सा है, जिसमें किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य और कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य भी शामिल हैं।
तो आज हम दुधवा बाघ अभयारण्य, इसके महत्वपूर्ण स्थान, वनस्पति और इस रिज़र्व से बहने वाली नदियों के बारे में विस्तार से जानेंगे।साथ ही, दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में पाई जाने वाली अद्वितीय वनस्पतियों और जीव-जंतुओं का भी पता लगाएंगे। रॉयल बंगाल टाइगर, एक सींग वाला गैंडा, और बारहसिंगा जैसे महत्वपूर्ण जानवर इस पार्क में पाए जाते हैं। अंत में, हम दुधवा बाघ अभयारण्य में कुछ लोकप्रिय पर्यटन स्थलों के बारे में भी चर्चा करेंगे।
दुधवा बाघ अभयारण्य का परिचय
दुधवा बाघ अभयारण्य, उत्तर प्रदेश में स्थित एक संरक्षित क्षेत्र है, जो मुख्य रूप से लखीमपुर खीरी और बहराइच जिलों में फैला हुआ है। इसमें दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य (Kishanpur Wildlife Sanctuary) और कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य (Katarniaghat Wildlife Sanctuary) शामिल हैं। इसका कुल क्षेत्रफल 1,284.3 किमी² (495.9 वर्ग मील) है। इस रिज़र्व, में तीन बड़े वनक्षेत्र मौजूद हैं, हालांकि इसके अधिकांश आसपास का परिदृश्य कृषि क्षेत्र से घिरा हुआ है। इसका उत्तर-पूर्वी सीमा नेपाल से जुड़ा हुआ है, जो मुख्य रूप से मोहन नदी द्वारा परिभाषित की गई है। यह क्षेत्र 110 से 185 मीटर (361 से 607 फीट) तक की ऊँचाई पर स्थित है, और रिज़र्व के भीतर कई जलधाराएँ उत्तर-पश्चिम से बहती हैं, जो समतल मैदान से होकर गुजरती हैं।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान और किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य को 1987 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत, दुधवा बाघ अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया था। कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य को 2000 में इस रिज़र्व में शामिल किया गया। यह भारत के 53 टाइगर रिज़र्वों में से एक है।
दुधवा बाघ अभयारण्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
स्थान: यह उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी जिले में स्थित है, जो भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है।
नदियाँ: शारदा नदी किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य के पास बहती है, गेरुआ नदी कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य से गुजरती है, और सुहेली और मोहन नदियाँ दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में बहती हैं, जो सभी घाघरा नदी की सहायक नदियाँ हैं।
वनस्पति: यहाँ की वनस्पति, उत्तर भारतीय नम सदाबहार प्रकार की है, जिसमें भारत के कुछ बेहतरीन साल के जंगल (Shorea robusta) पाए जाते हैं।
पौधे: यहाँ की वनस्पति मुख्य रूप से साल के जंगलों से बनी है, साथ ही इसके सहायक वृक्षों में साज (टर्मिनलिया अलाटा), असिधा (लेज़रस्ट्रोमिया पार्विफ़्लोरा), हल्दू (एडिना कॉर्डीफ़ोलिया), फाल्दू (मिट्रैगाइना पार्विफ़ोलिया), गहम्हर (गमेलिना आर्बोरिया), चिरोल (होलोप्टेलिया इंटीग्रिफ़ोलिया) आदि शामिल हैं।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण जानवर
1. रॉयल बंगाल टाइगर (Royal Bengal Tiger) - उत्तर प्रदेश का तराई क्षेत्र, रॉयल बंगाल टाइगर का घर है, जो पीलीभीत बाघ अभयारण्य (जो पीलीभीत, लखीमपुर खीरी और बहराइच के तीन जिलों में फैला है) और दुधवा बाघ अभयारण्य (दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य और कतर्नियाघाट का मिलाजुला क्षेत्र, दुधवा बाघ अभयारण्य बनाता है) में वितरित है। घने साल के जंगलों, घास के मैदानों और दलदली क्षेत्रों का मिश्रण इन धारियों वाले सुंदर जानवरों के लिए उपयुक्त आवास प्रदान करता है। नवम्बर से मार्च तक का समय इन पार्कों की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त है।
2. एक सींग वाला गैंडा (Greater one-horned rhinoceros)- जलवायु परिवर्तन, आवास की हानि और मानव हस्तक्षेप के कारण, गैंडे का क्षेत्र भारत में बहुत सीमित हो गया था। अब ये केवल असम के ब्रह्मपुत्र मैदानी क्षेत्र और पश्चिम बंगाल के डुआर्स में ही पाए जाते हैं, और गैंडे की जनसंख्या एक बहुत ही संवेदनशील स्थिति में थी। फिर 1984 में यह निर्णय लिया गया कि, गैंडों को उनके पहले के आवास, यानी उत्तर प्रदेश, में फिर से पेश किया जाए। एक गैंडा पुनर्वास परियोजना का संचालन किया गया, जिसमें असम के पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य से छह गैंडों को दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित किया गया। सफल पुनर्वास और प्रजनन कार्यक्रमों के बाद, दुधवा में गैंडों की वर्तमान संख्या निराशाजनक नहीं है।
3. बारहसिंगा या दलदल का मृग (Rucervus duvaucelii) - अपनी अनूठी सींगों और मांस के लिए प्रसिद्ध, बारहसिंगा की जनसंख्या में पहले भारी गिरावट आई थी। इसके साथ-साथ पर्यावरणीय कारणों, नदी की संरचना में बदलाव, घास के मैदानों और दलदली क्षेत्रों का कृषि भूमि में बदलना भी उनकी जनसंख्या में गिरावट का कारण बना। 1992 में, केवल 50 बारहसिंगा बंदी में थे, जो पांच चिड़ियाघरों में फैले थे। दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में 25-30 बारहसिंगा के झुंड को देखना सचमुच एक अद्भुत अनुभव हो सकता है ।
4. गिद्ध (Vulture)- गिद्धों की जनसंख्या को वैश्विक स्तर पर विलुप्त होने का ख़तरा है। दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में गिद्धों की सात प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें निवासी सफ़ेद-पीठ , पतली चोंच, लाल सिर वाला गिद्ध और मिस्र के गिद्ध के शामिल हैं |, इसके साथ, यहाँ सर्दियों में प्रवासी हिमालयी ग्रिफ़ॉन, युरेशियन ग्रिफ़ॉन और सिनेरियस गिद्ध भी दिखते हैं। सुहेलवा वन्यजीव अभयारण्य में हिमालयी और युरेशियन ग्रिफ़ॉन की घनत्व बहुत अच्छी है। सफ़ारी से लौटते समय हम एक गिद्धों के समूह को एक मृत शरीर पर शिकार करते हुए देख पाए, जो कुछ झोपड़ियों के बाहर था। मानव बस्तियों के पास इतने करीब शिकार करते गिद्ध यह साबित करते हैं कि फिलहाल कम से कम उन्हें आस-पास के लोगों से कोई तत्काल खतरा नहीं है। यह संरक्षण के संदर्भ में एक अच्छी खबर है।
5. बंगाल फ़्लोरिकन (Bengal florican) - हालाँकि दुधवा में रहते हुए इस प्रजाति को मैं नहीं देख पाया, फिर भी यह प्रजाति दुधवा के वन्य जीवन में एक बहुत दिलचस्प हिस्सा है।बंगाल फ़्लोरिकन या बंगाल बस्टर्ड को आई यू सी एन (IUCN) की रेड लिस्ट (Red List) में गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। ऊंचे तराई घास के मैदान इन पक्षियों के लिए आदर्श आवास हैं, लेकिन शिकार और घास के मैदानों के अत्यधिक विनाश के कारण इन्हें दुनिया का सबसे दुर्लभ बस्टर्ड होने का ख़िताब मिल गया है। इन सुंदर और दुर्लभ पक्षियों की रक्षा करने के लिए उनके आवास की सुरक्षा करना अत्यंत आवश्यक है।
दुधवा बाघ अभयारण्य में पर्यटकों के लिए आकर्षण
1.) बांके ताल: पार्क के भीतर स्थित एक सुंदर झील है जो विभिन्न जलपक्षियों को आकर्षित करती है और शांति भरे दृश्य प्रस्तुत करती है।
2.) थारू गांव: स्थानीय थारू समुदाय के साथ संवाद करें और उनकी पारंपरिक जीवनशैली और संस्कृति के बारे में जानें। थारू लोग पीढ़ियों से जंगल के साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से रहते आ रहे हैं और उनके पास एक अनूठा सांस्कृतिक दृष्टिकोण है।
3.) किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य: दुधवा बाघ अभयारण्य का यह हिस्सा, बाघों और पक्षी-दर्शन के लिए प्रमुख स्थल है। इस पार्क में ठहरने के लिए विभिन्न आवास विकल्प उपलब्ध हैं, जिनमें वन विश्राम गृह और कैम्पसाइट शामिल हैं। यहाँ ठहरकर, पर्यटक प्रकृति का आनंद ले सकते हैं और वन्य जीवन की शांति को महसूस कर सकते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/33myebvk
https://tinyurl.com/2tmcxzud
https://tinyurl.com/yh8xsb8f
https://tinyurl.com/2wsnkh9e
चित्र संदर्भ
1. दुधवा बाघ अभयारण्य में एक बाघ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. भारत-नेपाल सीमा पर स्थित दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में धुंध भरी सुबह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. दुधवा बाघ अभयारण्य में एक गैंडे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. दुधवा बाघ अभयारण्य में एक बाघ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बारहसिंगा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. बंगाल फ़्लोरिकन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
जानें, भारत में प्रयुक्त इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण व विकास में महिंद्रा समूह की भूमिका
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली
Architecture II - Office/Work-Tools
21-01-2025 09:22 AM
Rampur-Hindi
रामपुर में महिंद्रा एंड महिंद्रा, खासकर ऑटोमोटिव और कृषि क्षेत्रों में, नवाचार और विश्वसनीयता के प्रतीक के रूप में खड़ा है। महिंद्रा थार और बोलेरो जैसे मज़बूत वाहनों के लिए प्रख्यात, इस कंपनी ने कई रामपुर वासियों का विश्वास अर्जित किया है, जो व्यक्तिगत और व्यावसायिक उपयोग दोनों के लिए इन वाहनों पर भरोसा करते हैं। इसके अतिरिक्त, ट्रैक्टर और कृषि उपकरण उद्योग में, महिंद्रा की उपस्थिति ने स्थानीय किसानों को उत्पादकता में सुधार करने और संचालन को सुव्यवस्थित करने में मदद की है। गुणवत्ता और प्रदर्शन प्रदान करने की प्रतिबद्धता के साथ, महिंद्रा, रामपुर की अर्थव्यवस्था और जीवनशैली की वृद्धि और विकास में योगदान देना जारी रखता है। आज, हम महिंद्रा समूह के इतिहास के बारे में जानेंगे, तथा इसकी स्थापना से लेकर विभिन्न उद्योगों में, वैश्विक खिलाड़ी बनने की, इसकी यात्रा का पता लगाएंगे। इसके बाद, हम महिंद्रा समूह की धारणीय नीति पर ध्यान देंगे और स्थायी भविष्य के लिए कंपनी की हरित दृष्टि पर भी ध्यान केंद्रित करेंगे। फिर, हम भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन (ई वी) क्रांति को आगे बढ़ाने में महिंद्रा की महत्वपूर्ण भूमिका की जांच करेंगे, एवं पर्यावरण के अनुकूल परिवहन और नवाचार में इसके योगदान पर प्रकाश डालेंगे।
महिंद्रा समूह का इतिहास-
महिंद्रा समूह ने 1945 में, एक स्टील ट्रेडिंग कंपनी के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी। जगदीश चंद्र महिंद्रा, कैलाश चंद्र महिंद्रा और मलिक गुलाम मुहम्मद ने, इसकी स्थापना की थी। तब से, महिंद्रा समूह ने एक लंबा सफ़र तय किया है और विभिन्न उद्योगों में विविधता लायी है और एक प्रमुख व्यापारिक समूह बन गया है। समूह की वैश्वीकरण की शुरुआती वकालत के कारण, शिपिंग, टेलीकॉम, ट्रैक्टर और अन्य क्षेत्रों में इसकी साझेदारी हुई।
आनंद महिंद्रा, महिंद्रा एंड महिंद्रा के वर्तमान अध्यक्ष हैं। उन्होंने वाहन, कृषि व्यवसाय, सूचना प्रौद्योगिकी और विमानन जैसे क्षेत्रों में उद्यम करके कंपनी को विश्व स्तर पर विस्तारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आनंद महिंद्रा के नेतृत्व ने, उन्हें बैरन(Barron) की शीर्ष 30 सी ई ओ वैश्विक सूची (2016) और फ़ॉर्च्यून पत्रिका(Fortune Magazine) की दुनिया के 50 महानतम नेताओं (2014) में पहचान दिलाई। उन्हें 2016 में, फ़्रांसीसी गणराज्य के राष्ट्रपति द्वारा, नेशनल ऑर्डर ऑफ़ द लीजन ऑफ़ ऑनर(National Order of the Legion of Honour) में नाइट(Knight) के रूप में भी सम्मानित किया गया था।
1945 से, महिंद्रा समूह की यात्रा का अवलोकन:
- ➜ 1945 में, ‘महिंद्रा एंड मोहम्मद’ की स्थापना, एक स्टील ट्रेडिंग कंपनी के रूप में की गई थी।
- ➜ 1947 में, महिंद्रा ने संयुक्त राज्य अमेरिका के विलीज़ ओवरलैंड एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन(Willys Overland Export Corporation) के साथ साझेदारी के माध्यम से, जीप को भारत में पेश किया।
- ➜ 1950 में, महिंद्रा एंड मोहम्मद ने वैगन निर्माण के लिए, 5000 टन स्टील का उत्पादन करने हेतु, मित्सुबिशी(Mitsubishi) के साथ सहयोग किया।
- ➜ 1955 में, कंपनी सार्वजनिक हो गई और 1956 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज(Bombay Stock Exchange) में सूचीबद्ध हो गई।
- ➜ 1963 में, केशुब महिंद्रा ने, इसके अध्यक्ष की भूमिका निभाई।
- ➜ 1983 में, महिंद्रा, भारत का सबसे अधिक बिकने वाला ट्रैक्टर ब्रांड बन गया, जिसने तीन दशकों तक इस स्थिति को बरकरार रखा।
- ➜ 1986 में, महिंद्रा ने यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में ब्रिटिश टेलीकॉम(British Telecom) के साथ एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से, दूरसंचार सूचना प्रौद्योगिकी सेवा क्षेत्र में प्रवेश किया, जो बाद में ‘टेक महिंद्रा’ बन गया।
- ➜ 1991 में, मैक्सी मोटर्स फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़ लिमिटेड(Maxi Motors Financial Services Limited) की स्थापना की गई, जिसका नाम 1995 में ‘महिंद्रा एंड महिंद्रा फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़ लिमिटेड’ रखा गया।
- ➜ 1999 में, महिंद्रा एंड महिंद्रा फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़ लिमिटेड, महिंद्रा एंड मोहम्मद की सहायक कंपनी बन गई।
- ➜ 2004 में, महिंद्रा सिस्टम्स एंड ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजीज़ (MSAT) सेक्टर की स्थापना की गई थी।
- ➜ 2008 में, महिंद्रा ने पुणे में, अपनी ऑटोमोटिव सुविधा शुरू करके दोपहिया वाहन क्षेत्र में कदम रखा।
- ➜ 2009 में, कंपनी ने विविधीकरण के लिए एयरोस्पेस सेगमेंट(Aerospace segment) में प्रवेश किया।
- ➜ 2013 में टेक महिंद्रा तथा महिंद्रा सत्यम का विलय हुआ।
1945 में एक स्टील ट्रेडिंग कंपनी के रूप में, अपनी मामूली शुरुआत से, महिंद्रा समूह तेज़ी से अरबों रुपये के समूह में विकसित हुआ। इस समूह का लक्ष्य ग्रामीण परिवर्तन, शहरीकरण, परिवहन, पर्यटन, डिजिटल परिवर्तन और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में अधिक अवसर तलाशना है।
महिंद्रा समूह की धारणीय नीति:
भविष्य के लिए एक हरित दृष्टिकोण-
महिंद्रा और महिंद्रा की हरित ऊर्जा शाखा – महिंद्रा सस्टेन(Mahindra Susten) लगभग 1,200 करोड़ रुपए की लागत से, 150 मेगावाट की हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा (सौर + पवन) परियोजना विकसित करेगी।
महिंद्रा सस्टेन, एक स्वतंत्र बिजली उत्पादक है, तथा प्रमुख वैश्विक निवेशक – ओंटारियो टीचर्स पेंशन प्लान बोर्ड(Ontario Teachers’ Pension Plan Board) के साथ 101 मेगावाट पवन क्षमता और 52 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करेगा। इससे 460 मिलियन किलोवाट ऊर्जा उत्पन्न होने की उम्मीद है, जिससे अनुमानित 420,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आएगी।
कंपनी के अनुसार, यह परियोजना वाणिज्यिक और औद्योगिक ग्राहकों को, स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने के लिए महाराष्ट्र में सबसे बड़ी सह-स्थित सौर व पवन हाइब्रिड परियोजनाओं में से एक होगी। यह परियोजना 80% से अधिक स्थानीय रूप से निर्मित घटकों को एकीकृत करेगी। महिंद्रा सस्टेन, वाणिज्यिक और औद्योगिक ग्राहकों को प्रतिस्पर्धी दरों पर स्वच्छ तथा हरित बिजली प्रदान करने के लिए, हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में, कंपनी के प्रवेश का प्रतीक है।
महिंद्रा के ऑटो और फ़ार्म व्यवसायों ने, इस परियोजना के भीतर 41.20 मेगावाट पवन और 25.90 मेगावाट सौर ऊर्जा की क्षमता का अनुबंध किया है, जो सालाना 197 मिलियन किलोवाट ऊर्जा उत्पन्न करेगी। इससे 184,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आने की उम्मीद है। इस परियोजना से कंपनी की नवीकरणीय ऊर्जा हिस्सेदारी, वित्त वर्ष 2026 में 60% होने की उम्मीद है।
भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन (ई वी) क्रांति में महिंद्रा की भूमिका-
भारत की इलेक्ट्रिक वाहनों की यात्रा की शुरुआत 1999 में महिंद्रा एंड महिंद्रा द्वारा बनाई गई, ‘बिजली’ नामक गाड़ी से हुई थी। यह पहल हालांकि, महिंद्रा समूह को अपनी ई वी यात्रा में बहुत आगे नहीं ले गई। लेकिन, इसने महिंद्रा एंड महिंद्रा के लिए, दो दशक बाद ई वी में अग्रणी के रूप में उभरने की दिशा तय की।
आज महिंद्रा, 2025 तक भारतीय सड़कों पर पांच लाख इलेक्ट्रिक वाहन चलाने के लक्ष्य के साथ, भारत के ई वी अभियान का नेतृत्व कर रहा है। भारत में इस व्यवसाय में, लगभग 1,700 करोड़ रुपये का निवेश पहले ही किया जा चुका है और एक नए अनुसंधान और विकास केंद्र के लिए अन्य 500 करोड़ रुपये अलग रखे गए हैं। महिंद्रा अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रिक वाहन रेस कार सर्किट – फ़ॉर्मूला ई(Formula E) का संस्थापक सदस्य है और उन्होंने यूरोप में बैटिस्टा(Battista) नामक एक सुपर-प्रीमियम लग्ज़री इलेक्ट्रिक वाहन का भी अनावरण किया है।
भारत में ई वी क्षेत्र की वृद्धि पिछले कई दशकों से धीमी रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसमें तेज़ी आई है। महिंद्रा समूह ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में, 14,000 से अधिक ई वी बेचीं, जो 2018-19 की तुलना में 40% अधिक थी। महिंद्रा का पहला लक्ष्य स्थानीय परिवहन की लागत में, 25% की कटौती करने के लिए ई वी का उपयोग करना है। यह मुख्य रूप से टैक्सियों और तिपहिया वाहनों जैसा “कनेक्टिंग ट्रांसपोर्ट(Connecting transport)” होगा, जिसका उद्देश्य अंतिम मील और पहले मील को बड़े पैमाने पर, तीव्र परिवहन प्रणालियों से जोड़ना होगा। नई महिंद्रा ट्रेओ(Mahindra Treo) द्वारा ड्राइविंग में दी गई आसानी के साथ, समूह ने देश भर में महिला ड्राइवरों के एक नए ग्राहक आधार का समर्थन किया है, जिससे उन्हें घरेलू आय बढ़ाने में मदद मिली है।
पारिस्थितिकी तंत्र में अग्रणी बनना-
महिंद्रा समूह, पूरे इलेक्ट्रिक पारिस्थितिकी तंत्र पर केंद्रित है, और ई वी में सबसे बड़ा भारतीय निवेशक है। महिंद्रा इलेक्ट्रिक मोबिलिटी लिमिटेड, 48 वोल्ट और 650 वोल्ट के बीच बैटरी रेंज के वाहनों पर काम कर रही है। अब लॉन्च किया गया – एम ई एस एम ए 48 थ्री-व्हीलर ई वी प्लेटफ़ॉर्म(MESMA 48 three-wheeler EV platform) विभिन्न खंडों में वाहनों की एक बड़ी श्रृंखला का समर्थन कर सकता है।
ई वी प्लेटफ़ॉर्म, मौजूदा ऑटोमोटिव प्लेटफ़ॉर्म से अलग होगा। हाल के दिनों में, वाहन विकास में सभी नवाचारों का लगभग 70% हिस्सा, एम्बेडेड सिस्टम और सॉफ़्टवेयर विकास पर केंद्रित रहा है। आगे चलकर, सॉफ़्टवेयर और एम्बेडेड सिस्टम, ई वी की कुल लागत का 32% योगदान देंगे। जबकि, आंतरिक दहन इंजन (Internal Combustion Engine) वाहन में केवल 18% का योगदान होगा। इससे बेंगलुरु में महिंद्रा इलेक्ट्रिक के आगामी अनुसंधान केंद्र – जी ई वी टेक (GEVtec) को ऐसे महत्वपूर्ण ई वी घटकों के विकास और विनिर्माण के लिए, वैश्विक ई वी केंद्र बनने में मदद मिलेगी।
महिंद्रा की ई वी यात्रा हमेशा से ही, इसके ग्राहकों के इर्द-गिर्द घूमती रही है, और उनका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों को विद्युतीकृत करना है, जो बड़े पैमाने पर ई-मोबिलिटी को लोकप्रिय बनाएगा। प्यूज़ो इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों(Peugeot electric two–wheeler) के साथ, फ़्रांसीसी राष्ट्रपति के बेड़े में शामिल होने से लेकर, महिंद्रा ट्रेओ के साथ महिला उद्यमियों का एक नया ग्राहक आधार खोलने तक; फ़ॉर्मूला ई रेस में जीत से लेकर वैश्विक ओ ईए म(OEM) को ई वी घटक प्रदान करने तक, महिंद्रा ने अद्वितीय ई वी की एक श्रृंखला की पेशकश की है। इलेक्ट्रिक शेयर्ड मोबिलिटी सेगमेंट में लाखों किलोमीटर के साथ, महिंद्रा ने ई वी के अर्थशास्त्र को बेहतर ढंग से समझा है, जिसके परिणामस्वरूप, महिंद्रा के ग्राहकों की कमाई बढ़ी है।
ई वी के लिए, चाकन, महाराष्ट्र में महिंद्रा समूह के आगामी संयंत्र का लक्ष्य, वैश्विक वाहन निर्माताओं के लिए घटकों की आपूर्ति करना होगा और भारतीय और वैश्विक दोनों बाज़ारों के लिए 350+ किलोमीटर की रेंज के साथ, एम ई एस एम ए 350 पावरट्रेन(MESMA 350 powertrain) का उत्पादन करेगा। अब उनका ध्यान, स्वच्छ और सुविधाजनक कनेक्टिविटी समाधान बनाने पर है, जो बड़े पैमाने पर परिवहन को पूरक करता है और देश की मल्टी-मॉडल परिवहन, साझा गतिशीलता, कर्मचारी आवागमन और व्यक्तिगत गतिशीलता खंड की आवश्यकता को पूरा करता है।
संदर्भ
चित्र संदर्भ
1. थार नामक महिंद्रा की एक प्रसिद्ध गाड़ी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. कांदीवली, मुंबई में स्थित महिंद्रा एंड महिंद्रा (Mahindra & Mahindra) के यूनिट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. महिंद्रा के नवीन वाहन को संदर्भित करता एक चित्रण (pixahive)
4. 2023 महिंद्रा XUV 400 EL EV को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
गंभीर रूप से लुप्तप्राय बटागुर बास्का कछुए, क्या कभी पनप पाएंगे स्वतंत्र रूप से ?
रेंगने वाले जीव
Reptiles
20-01-2025 09:39 AM
Rampur-Hindi
भारत के पश्चिम बंगाल में, सुंदरबन और ओडिशा में, भितरकनिका के तटीय मैंग्रोव और खाड़ियों में पाए जाने वाला, बटागुर बास्का कछुआ, जिसे आमतौर पर उत्तरी नदी टेरापिन (Northern river terrapin) के नाम से जाना जाता है, दक्षिण पूर्व एशिया में नदियों में पाए जाने वाले मूल निवासी कछुओं की एक प्रजाति है। कछुए की इस प्रजाति को 'अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ' (International Union for Conservation of Nature (IUCN)) की लाल सूची (Red List) में गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 2018 तक, इनकी अनुमानित आबादी केवल 100 परिपक्व कछुए ही थी। तो आइए, आज इस कछुए, इसके भौतिक विवरण, आवास, आहार, प्रजनन व्यवहार आदि के बारे में विस्तार से जानते हैं। इसके अलावा, हम इस कछुए की प्रजाति के लिए प्राथमिक खतरों पर कुछ प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम भारत में बटागुर बास्का को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों को समझने की कोशिश करेंगे।
बटागुर बास्का का परिचय:
बटागुर बस्का, एशिया के मीठे और खारे दोनों तरह के पानी में पाए जाने वाले सबसे बड़े कछुओं में से एक है, जिनकी लंबाई 60 सेंटीमीटर तक और अधिकतम वज़न 18 किलोग्राम तक होता है। इनका खोल, बीच में से थोड़ा सा उठा हुआ होता है और अपेक्षाकृत बड़ा होता है। इनका सिर अपेक्षाकृत छोटा होता है, इसकी थूथन नुकीली और ऊपर की ओर झुकी हुई होती है। इनके पैरों में शल्क होते हैं। खोल की ऊपरी सतह और मुंह एवं हाथ पैर जैसे मुलायम हिस्से आम तौर पर ज़ैतून -भूरे रंग के होते हैं, जबकि खोल का निचला हिस्सा पीले रंग का होता है। इनके सिर और गर्दन का निचला भाग, लाल रंग का होता है। प्रजनन काल के दौरान, नर का सिर और गर्दन काले, पृष्ठीय सतह एवं अगले पैर लाल या नारंगी रंग के हो जाते हैं। इस अवधि के दौरान पुतलियों का रंग भी बदल जाता है, महिलाओं में भूरा और पुरुषों में पीला-सफ़ेद।
प्राकृतिक आवास और व्यवहार:
यह प्रजाति, वर्तमान में बांग्लादेश और भारत के सुंदरबन में, कंबोडिया, म्यांमार, इंडोनेशिया और मलेशिया में पाई जाती है। हालांकि यह प्रजाति पहले सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम में भी पाई जाती थी, लेकिन अब यहां यह प्रजाति क्षेत्रीय रूप से विलुप्त है। ये कछुए मीठे पानी और खारे पानी; मध्यम और बड़ी नदियों के मुहाने के ज्वारीय क्षेत्रों में और मैंग्रोव आवास में भी पाए जाते हैं। यद्यपि बटागुर की प्राकृतिक पारिस्थितिकी और व्यवहार के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, मुख्य रूप से ये कछुए, मीठे पानी के आवासों को पसंद करते हैं और प्रजनन के मौसम में खारे पानी की नदियों के मुहाने पर चले जाते हैं। अंडे देने के बाद, ये वापस मीठे पानी में लौट आते हैं। इनको रेत के किनारों पर 50 से 60 मील तक बड़े पैमाने पर मौसमी प्रवास करने के लिए जाना जाता है। ये कछुए, पानी के किनारे के पौधे और क्लैम जैसे छोटे जानवर खाते हैं। ये कछुए बड़े पैमाने पर लोगों की नज़रों से दूर रहते हैं, सुंदरबन में पर्यटकों को शायद ही कभी उनकी झलक देखने को मिली हो।
प्रजनन:
आमतौर पर इनका प्रजनन समय, दिसंबर-मार्च के बीच होता है। प्रजनन काल के दौरान, एक मादा कछुआ, तीन बार में 10 से 34 अंडे तक देती है | जब वह अपने अंडे दे देती है तो वह घोंसले को रेत से ढक देती है और फिर उसके ऊपर बैठकर रेत को जमा देती है।
बटागुर बास्का के लिए प्राथमिक खतरा:
- शिकार और अंडे की कटाई।
- प्रदूषण और निवास स्थान की हानि, जिसमें घोंसले बनाने वाले समुद्र तट, मैंग्रोव वन और अन्य खाद्य स्रोत शामिल हैं।
- मछली पकड़ने के जाल में फंसने के कारण, दुर्घटनावश मृत्यु, साथ ही विद्युत नावों से दुर्घटनावश टकराकर मृत्यु होना।
- जलसंभर गतिविधियाँ जैसे लॉगिंग के कारण गाद और अवसादन।
- मछली पकड़ने की विनाशकारी प्रथाएँ।
भारत में बटागुर बास्का को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयास:
2018 में 'प्रकृति संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय संघ' (International Union for Conservation of Nature (IUCN)) द्वारा बटागुर बास्का को "गंभीर रूप से लुप्तप्राय" के रूप में वर्गीकृत किया गया था और उनकी कुल आबादी केवल 100 परिपक्व वयस्क होने का अनुमान था। हालाँकि, पश्चिम बंगाल वन विभाग और वन्यजीव अनुसंधान संस्थानों के निरंतर प्रयासों के कारण, अब इस समुद्री जीव की आबादी बढ़ने की उम्मीद है।
19वीं सदी के ब्रिटिश प्राणीशास्त्री एडवर्ड ब्लीथ (Edward Blyth) के अनुसार, औपनिवेशिक शासन के दौरान बटागुर बास्का को पाक व्यंजन माना जाता था, जिसके कारण अत्यधिक अवैध शिकार और बड़े पैमाने पर इनके अंडों के संग्रह के कारण इनकी आबादी कम होती चली गई। 2000 में, तेज़ी से लुप्त हो रही इस प्रजाति के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए डाक विभाग ने भुवनेश्वर में राष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी में बटागुर बास्का का एक टिकट जारी किया। 2008 में, सुंदरबन के सजनेखाली द्वीप पर एक तालाब में पांच मादा और सात नर बटागुर बास्का कछुए पाए गए थे, जिसके बाद इन कछुओं के माध्यम से संरक्षण प्रयास शुरू किए। 2012 में, इन्हीं कछुओं के साथ पहली बार सफलतापूर्वक अंडो के प्रजनन एवं सेनेका कार्य किया गया।
नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2024 तक, सजनेखाली, नेतिधोपानी और हरिखाली सहित सुंदरबन में सात कॉलोनियों में कुल 430 बटागुर बास्का कछुओं को निगरानी में रखा जा रहा है। वन विभाग का लक्ष्य कछुओं को पहले निगरानी में रखकर उनका प्रजनन कराना और फिर उन्हें जंगल में छोड़ना है। हालाँकि वन विभाग द्वारा इनकी आबादी को बचाने एवं बढ़ाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है, लेकिन एक गंभीर प्रश्न अभी भी बना हुआ है कि क्या बटागुर बास्का कछुओं के स्वतंत्र रूप से पनपने और प्रजनन के लिए अभी भी कोई प्राकृतिक आवास मौजूद है?
पर्यावास की हानि, बढ़ते जल स्तर और सुंदरबन डेल्टा में बढ़ती लवणता के कारण उनके अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण खतरा उत्पन्न हो गया है। 1998 में, मेचुआ द्वीप पर भी बटागुर बास्का के अंडे पाए गए थे, लेकिन तब से ही यहां के रेतीले तट भी बढ़ते जल स्तर के कारण लगातार डूब रहे हैं। बढ़ते जल स्तर के कारण कई द्वीप नष्ट हो गए हैं या आंशिक रूप से जलमग्न हो गए हैं, जिससे इन कछुओं का निवास स्थान और अधिक खतरे में पड़ गया है।
2021 में, राज्य वन विभाग द्वारा कृत्रिम ऊष्मायन के साथ अंडों के सेने की प्रक्रिया में उल्लेखनीय सफलता हासिल की गई, जिससे पहले बैच द्वारा दिए गए अंडों की परिपक्वता दर 95 प्रतिशत रही। विभाग की योजना 2030 तक हर साल इनमें से करीब 500 कछुओं को खुले पानी में छोड़ने की है। 2022 में, वन विभाग और एक गैर सरकारी संगठन 'टर्टल सर्वाइवल एलायंस' (Turtle Survival Alliance) द्वारा 10 बटागुर बास्का कछुओं के एक समूह को सुंदरबन डेल्टा में छोड़ा गया था। जंगल में जीवित रहने के लिए, उनके आदर्श वज़न, जल में उपयुक्त लवणता और पी एच (pH) स्तर का पता लगाने के लिए उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग करके उन पर 1 साल तक निगरानी रखी गई। यह पाया गया कि ये कछुए ताज़ा पानी पसंद करते हैं, और प्राकृतिक और साथ ही मानव निर्मित कारकों के कारण बढ़ते लवणता के स्तर ने इनके अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान से अंडों के लिंग अनुपात में गिरावट आ रही है, उच्च तापमान से अधिक मादाएं पैदा हो रही हैं, जिससे संभोग की संभावनाएं जटिल हो गई हैं। इस प्रकार प्राप्त आंकड़े इस गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति के लिए संभावित खतरों की पहचान करने में महत्वपूर्ण रूप से सहायक रहा है और इसका उपयोग, बटागुर बास्का के संरक्षण के संबंध में सुंदरबन में स्थानीय मछुआरों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए किया जा रहा है।
अक्सर "जल गिद्ध" कहे जाने वाले ये कछुए, अपने सर्वाहारी आहार के कारण मुहाना पारिस्थितिकी तंत्र को साफ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिसमें छोटे एवं मृत जानवर और पौधे शामिल होते हैं। इनकी यात्रा, हमारे ग्रह की जैव विविधता के संरक्षण में समर्पित संरक्षण प्रयासों के महत्वपूर्ण महत्व को रेखांकित करती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yk7vahcd
https://tinyurl.com/ykjc2f9r
https://tinyurl.com/rke33aab
https://tinyurl.com/4s92zcbb
चित्र संदर्भ
1. बटागुर बास्का कछुए को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बटागुर बास्का कछुए के लगभग एक सप्ताह, एक वर्ष और दो वर्ष के बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. पानी से सिर बाहर निकाले बटागुर बास्का कछुए को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ऊपर की ओर देखते एक बटागुर बास्का कछुए को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
आइए देखें, शंघाई मेट्रो जैसी विश्व की कुछ सबसे बड़ी मेट्रो प्रणालियों से जुड़े दृश्यों को
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
Locomotion and Exercise/Gyms
19-01-2025 09:27 AM
Rampur-Hindi
शंघाई मेट्रो (Shanghai Metro), जिसका, 1993 में उदघाटन किया गया था, 508 स्टेशनों के साथ, दुनिया की सबसे बड़ी मेट्रो प्रणाली है और कुल 831 किलोमीटर की लंबाई को आवरित करते हुए, ये विश्व की सबसे ज़्यादा उपयोग होने वाली मेट्रो भी है। सालाना, 3.7 बिलियन से अधिक यात्रियों को सेवाएं प्रदान करते हुए, यह बीजिंग सबवे (Beijing Subway) के बाद दुनिया की सबसे व्यस्त मेट्रो है। यह जानना दिलचस्प है, कि 2018 के आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली मेट्रो की वार्षिक सवारियाँ, 900 मिलियन से भी अधिक थीं। शंघाई मेट्रो, शंघाई की एक तेज़ परिवहन प्रणाली है, जो अपने 16 नगरपालिका ज़िलों में से 14 को शहरी और उपनगरीय परिवहन सेवाएँ प्रदान करती है। ये मेट्रो, लगभग 24 घंटे, सुबह 3 बजे से रात 11:30 बजे तक चलती है। ज़्यादातर लाइनों पर, अधिकतम ड्राइविंग गति, 80 किलोमीटर प्रति घंटा (50 मील प्रति घंटा) होती है। लाइन 11 और 17 की अधिकतम परिचालन गति 100 किलोमीटर प्रति घंटा (62 मील) है। लाइन 16 की अधिकतम परिचालन गति, 120 किलोमीटर प्रति घंटा (75 मील) है। तो आइए, आज हम, शंघाई मेट्रो प्रणाली के बारे में विस्तार से बात करते हैं। फिर, हम, इस मेट्रो के साथ साथ, दुनिया की अन्य सबसे बड़ी और व्यस्त मेट्रो प्रणालियों से संबंधित कुछ चलचित्र देखेंगे । इस संदर्भ में, हम बीजिंग सबवे, मॉस्को (Moscow) और मैड्रिड मेट्रो (Madrid Metro) के कुछ दृश्यों का आनंद भी लेंगे।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/4ukpcmua
https://tinyurl.com/yyy5ajax
https://tinyurl.com/vc8ypw4w
https://tinyurl.com/mrxtsa3h
https://tinyurl.com/ye7t3b63
https://tinyurl.com/2byvptrb
टीकाकरण अभियानों ने, भारतीय बच्चों को दिया है, एक सेहतमंद भविष्य
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
Thought II - Philosophy/Maths/Medicine
18-01-2025 09:23 AM
Rampur-Hindi
रामपुर के सभी लोगों से अनुरोध है कि अपने बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए टीकाकरण को प्राथमिकता दें। बचपन में लगाए जाने वाले टीके बच्चों को पोलियो, खसरा और डिप्थीरिया जैसी गंभीर बीमारियों से बचाते हैं। सही समय पर टीका न लगवाने के कारण, ये बीमारियाँ, बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकती हैं। टीकाकरण के ज़रिए आप अपने बच्चों को एक मज़बूत और स्वस्थ जीवन की शुरुआत करने में मदद कर सकते हैं। टीके न केवल बच्चों की जान बचाते हैं, बल्कि गंभीर बीमारियों को पूरे समुदाय में फैलने से भी रोकते हैं। इससे सभी के लिए एक सुरक्षित वातावरण तैयार होता है।
आज के इस लेख में, हम यह समझेंगे कि, टीकाकरण बचपन की बीमारियों को कैसे रोकता है, और यह छोटे बच्चों के लिए क्यों इतना ज़रूरी है। इसके अलावा, हम यह भी जानेंगे कि भारत सरकार पोलियो जैसी बीमारियों को खत्म करने के लिए क्या कदम उठा रही है। अंत में, उन सरकारी योजनाओं पर नज़र डालेंगे, जो टीकाकरण और अन्य मदद के ज़रिए बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में योगदान दे रही हैं।
आइए शुरुआत, बचपन की बीमारियों को रोकने में टीकाकरण की भूमिका को समझने के साथ करते हैं!
टीकाकरण हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है। यह बच्चों को खतरनाक बीमारियों से बचाने में मदद करता है। बचपन में टीकाकरण जन्म के तुरंत बाद शुरू हो जाता है और किशोरावस्था तक जारी रहता है। टीकाकरण कार्यक्रम, खासतौर पर खसरा, पोलियो, डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, रोटावायरस और न्यूमोकोकस जैसी बीमारियों के निदान पर ध्यान देते हैं। हर टीका कमज़ोर या मरे हुए कीटाणुओं या उनके विषाक्त पदार्थों से बनाया जाता है। इससे हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली इन कीटाणुओं को पहचानकर उनसे लड़ना सीखती है।
बचपन की बीमारियों को रोकने में टीके काफ़ी हद तक सफ़ल रहे हैं। उदाहरण के लिए, चेचक जैसी बीमारी अब पूरी तरह से खत्म हो गई है। पोलियो भी लगभग खत्म हो चुका है और केवल कुछ ही देशों में बचा है। खसरा, जो पहले कई बच्चों की जान ले लेता था, अब उन क्षेत्रों में बहुत कम हो गया है जहाँ बच्चों को नियमित रूप से टीके लगाए जाते हैं।
टीकाकरण का एक और फ़ायदा झुंड प्रतिरक्षा (Herd Immunity) भी है। जब एक समुदाय के ज़्यादातर लोगों को टीका लगाया जाता है, तो यह उन लोगों को भी सुरक्षा देता है, जिन्हें टीका नहीं लगाया गया है। यह नवजात शिशुओं, बुज़ुर्गों और कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों की सुरक्षा के लिए बहुत ज़रूरी है।
बचपन की बीमारियों को रोकने में टीकाकरण बहुत महत्वपूर्ण साबित होता है। टीकाकरण न केवल टीका लगवाने वालों की बल्कि पूरे समाज की सुरक्षा करता है। टीकाकरण की वजह से कई गंभीर बीमारियों को या तो नियंत्रित किया जा चुका है या इन्हें पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है। इससे बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर हुआ है। हमें टीकाकरण को बढ़ावा देना चाहिए, इससे जुड़ी चिंताओं को दूर करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर किसी को टीका मिल सके। इस तरह हम बच्चों को स्वस्थ और सुरक्षित बना सकते हैं।
भारत सरकार हर साल राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर पोलियो टीकाकरण अभियान चलाती है। ये अभियान सामुदायिक प्रतिरक्षा बनाए रखने में मदद करते हैं। सरकार पोलियो वायरस के किसी भी लक्षण पर कड़ी नज़र रखती है। इसके लिए सीवेज के नमूनों का पर्यावरणीय परीक्षण किया जाता है। यह काम मुंबई, दिल्ली, पटना, कोलकाता, पंजाब और गुजरात जैसे शहरों में होता है, ताकि वायरस के प्रसार का पता लगाया जा सके।
पोलियो के किसी भी प्रकोप का तुरंत सामना करने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रैपिड रिस्पांस टीम (Rapid Response Team) बनाई गई है। इसके साथ ही, सरकार ने आपातकालीन तैयारी और प्रतिक्रिया योजना तैयार की है। इस योजना में, पोलियो के मामलों से निपटने के लिए कई कदम बताए गए हैं।
पड़ोसी देशों से पोलियो के प्रवेश को रोकने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में टीकाकरण अभियान चलाए जाते हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और म्यांमार की सीमाओं पर विशेष टीकाकरण बूथ भी लगाए गए हैं। इन बूथों पर बच्चों को पोलियो के टीके लगाए जाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों के लिए भी सरकार द्वारा दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं। 1 मार्च, 2014 से, उन यात्रियों को पोलियो का टीका लगवाना ज़रूरी है, जो पोलियो प्रभावित देशों में जा रहे हैं। इनमें अफ़ग़ानिस्तान, नाइजीरिया, पाकिस्तान, इथियोपिया, कीनिया, सोमालिया, सीरिया और कैमरून शामिल हैं।
सरकार अपने पास पोलियो वैक्सीन (polio vaccine) का एक आपातकालीन स्टॉक भी रखती है। इस स्टॉक को जंगली पोलियोवायरस या वैक्सीन-व्युत्पन्न पोलियोवायरस के किसी भी मामले के लिए तैयार रखा जाता है। 2015 में, राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (NTAGI) ने डीपीटी की तीसरी खुराक के साथ एक अतिरिक्त खुराक के रूप में इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन (IPV) देने की सिफ़ारिश की थी।
13 जनवरी, 2011 के बाद से भारत में पोलियो का कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 24 फ़रवरी, 2012 को भारत को जंगली पोलियोवायरस वाले देशों की सूची से हटा दिया। भारत का पल्स पोलियो कार्यक्रम आज भी सफलतापूर्वक चल रहा है। इस कार्यक्रम में 2,40,000 टीका लगाने वाले और 1,50,000 पर्यवेक्षक शामिल हैं।
भारत सरकार ने बच्चों को बीमारियों से सुरक्षित रखने के लिए कई सरकारी पहलें भी शुरू की हैं, इनमें शामिल हैं:
मिशन इंद्रधनुष: मिशन इंद्रधनुष (MI) दिसंबर 2014 में शुरू हुआ। इसका उद्देश्य बच्चों को पूरी तरह से टीकाकरण कवरेज प्रदान करना और इस कवरेज को 90% तक बढ़ाना है। इस कार्यक्रम के तहत उन इलाकों पर ध्यान दिया जाता है, जहाँ टीकाकरण दर कम है या जहाँ तक पहुँचना मुश्किल है। इन क्षेत्रों में बिना टीकाकरण वाले या आंशिक रूप से टीकाकरण वाले बच्चों की संख्या अधिक होती है।
अब तक, मिशन इंद्रधनुष के छह चरण पूरे हो चुके हैं। इसमें भारत के 554 ज़िले शामिल हैं। यह मिशन ग्राम स्वराज अभियान का हिस्सा है, जिसमें 541 ज़िलों के 16,850 गाँव आते हैं। इसके अलावा, विस्तारित ग्राम स्वराज अभियान के तहत 117 आकांक्षी ज़िलों के 48,929 गाँवों को कवर किया गया है। मिशन इंद्रधनुष के पहले दो चरणों में, एक साल में पूर्ण टीकाकरण कवरेज में 6.7% की वृद्धि हुई। मिशन के पांचवें चरण में 190 ज़िलों में किए गए सर्वेक्षण से पता चला कि 2015-16 में हुए एनएफएचएस-4 सर्वेक्षण की तुलना में पूर्ण टीकाकरण कवरेज में 18.5% की बढ़ोतरी हुई।
सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यू आई पी): सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यू आई पी), भारत के सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है। यह कार्यक्रम हर साल लगभग 26.7 मिलियन नवजात शिशुओं और 29 मिलियन गर्भवती महिलाओं को कवर करता है। यह कार्यक्रम बहुत किफ़ायती साबित हुआ है और इसने बच्चों में टीके से रोकी जा सकने वाली बीमारियों से होने वाली मौतों को काफ़ी हद तक सीमित किया है।
यू आई पी के तहत, 12 बीमारियों के लिए टीके मुफ़्त में उपलब्ध कराए जाते हैं। इनमें 9 बीमारियों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर और 3 बीमारियों के लिए उप-राष्ट्रीय स्तर पर टीकाकरण किया जाता है।
राष्ट्रीय स्तर पर शामिल बीमारियाँ:
- डिप्थीरिया
- काली खांसी (पर्टुसिस)
- टेटनस
- पोलियो
- खसरा
- रूबेला
- बचपन में होने वाली टी बी के गंभीर रूप
- हेपेटाइटिस बी
- हीमोफिलस इन्फ़्लुएंज़ा टाइप बी के कारण होने वाला मेनिनजाइटिस और निमोनिया
उप-राष्ट्रीय स्तर पर शामिल अतिरिक्त बीमारियाँ:
- रोटावायरस डायरिया
- न्यूमोकोकल निमोनिया
- जापानी इंसेफेलाइटिस
रोटावायरस और न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन का कवरेज लगातार बढ़ रहा है। जापानी इंसेफ़ेलाइटिस का टीका केवल उन क्षेत्रों में दिया जाता है जहाँ यह बीमारी अधिक आम है। सरकार के इन प्रयासों से बच्चों को घातक बीमारियों से बचाने में बड़ी मदद मिल रही है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2d6clbjq
https://tinyurl.com/2763lspz
https://flyl.ink/EMesgR-
चित्र संदर्भ
1. टीका लगवाती एक स्कूल की छात्रा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अपने बच्चे को टीका लगवाती एक भारतीय महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. टीकाकरण के लिए तैयार होते स्वास्थ कर्मियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारतीय बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. कोवाक्सिन (Covaxin) BBV152 की एक शीशी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
पारंपरिक तौर से पिसे गेहूँ और पैकेज्ड आटे में से किसे चुनेंगे आप ?
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली
Architecture II - Office/Work-Tools
17-01-2025 09:40 AM
Rampur-Hindi
रामपुर के हर इंसान के लिए, गेहूँ उनके आहार का प्रमुख हिस्सा है। क्या आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के लोग पूरे देश के औसत से ज़्यादा गेहूँ खाते हैं? ग्रामीण इलाकों में, हर व्यक्ति औसतन हर महीने 4.288 किलोग्राम गेहूँ खाता है, जबकि शहरों में यह आंकड़ा 4.011 किलोग्राम है।
गेहूँ को खाने के लिए पहले इसे आटे में बदला जाता है। इसे पीसने से पहले डैम्पेनिंग (या टेम्परिंग/कंडीशनिंग नामक एक प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह प्रक्रिया, गेहूँ में सही मात्रा में नमी बनाए रखती है, जिससे उसे पीसना आसान हो जाता है। आज के इस लेख में, हम भारत की आटा मिलों में इस्तेमाल होने वाली अलग-अलग नमी काम करने की विधियों को समझेंगे। इसके बाद, पैकेज्ड आटे और पारंपरिक चक्की में पिसे आटे के बीच के अंतर को जानेंगे।
साथ ही, हम आधुनिक व्यावसायिक आटा चक्कियों में आने वाली समस्याओं पर भी चर्चा करेंगे। अंत में हम, उत्तर प्रदेश के प्रमुख आटा निर्माताओं की जानकारी हासिल करेंगे।
आइए, सबसे पहले भारत की आटा मिलों में गेहूँ की डैम्पेनिंग की सरल और प्रभावी विधियों के बारे में जानते हैं:
आटा मिलों में गेहूँ की डैम्पेनिंग एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है। इसके तहत गेहूँ को पीसने के लिए तैयार किया जाता है! साथ ही इससे आते की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। गेहूँ भिगोने या डैम्पेनिंग के तहत कई विधियाँ अपनाई जाती हैं।
आइए इन विधियों को आसान भाषा में सरल तरीके से समझते हैं:
1. ठंडे पानी में भिगोना (Conventional Dampening (Cold Dampening): इस विधि में गेहूँ को कमरे के तापमान पर पानी में भिगोया जाता है। इसकी समय अवधि 24 से 72 घंटे तक हो सकती है! यह अवधि गेहूँ की गुणवत्ता और पर्यावरण पर निर्भर करती है। इस विधि के तहत, गेहूँ तेज़ी के साथ पानी सोख लेता है, लेकिन पानी को पूरे अनाज में समान रूप से फैलने में समय लगता है।
2. गर्म पानी में भिगोना (Warm and Hot Dampening): यह विधि, प्रक्रिया को तेज़ करती है। इसके तहत, गेहूँ को 30°C से 46°C तापमान वाले पानी में रखा जाता है। इससे नमी तेजी के साथ अनाज में समा जाती है। यह प्रक्रिया लगभग 1 से 1.5 घंटे में पूरी हो सकती है। इसके बाद, गेहूँ को 24 घंटे तक यूँ ही छोड़ की सलाह दी जाती है, ताकि मिलिंग से पहले उसके गुण बेहतर हो सकें।
3. वाष्प नम करना: वाष्प नम करना एक आधुनिक तकनीक है, जो जर्मनी में शुरू हुई और अब अमेरिका और कनाडा में प्रचलित है। इसमें पानी को वाष्प के रूप में गेहूँ में मिलाया जाता है। इस विधि के तहत गेहूँ को समान रूप से नमी मिलती है। वाष्प का प्रभाव 20 से 30 सेकंड में ही दिखाई देने लगता है, जबकि सूखी हवा के उपयोग से यह प्रक्रिया 3 मिनट तक ले सकती है।
4. माइक्रोवेव से नमी कम करना: खाद्य उद्योग में, माइक्रोवेव का उपयोग से बढ़ रहा है। यह विधि डीफ़्रॉस्टिंग, सुखाने और पाश्चराइजेशन के साथ-साथ नमी प्रदान करने के लिए भी कारगर साबित होती है। अध्ययनों से पता चला है कि माइक्रोवेव तकनीक अनाज की नमी प्रक्रिया को तेज़ और कुशल बनाती है।
ये सभी विधियाँ गेहूँ से उच्च गुणवत्ता वाला आटा बनाने में मदद करती हैं। इनमें से हर विधि के अपने फ़ायदे होते हैं और यह आटा मिलिंग के लिए गेहूँ को बेहतर ढंग से तैयार करने में सहायक होती हैं।
आपने अक्सर लोगों को पारंपरिक चक्की के आटे और पैकेज्ड आटे के फ़ायदे नुकसान गिनाते हुए सुना होगा, चलिए आज जान ही लेते हैं कि इनमें से कौन से सा आटा आपके लिए फ़ायदेमंद होगा?
चक्की का आटा:
पोषण से भरपूर: चक्की के आटे में गेहूँ के चोकर, बीज और एंडोस्पर्म मौजूद रहते हैं। इसमें फ़ाइबर, विटामिन और खनिज भरपूर मात्रा में होते हैं। इस कारण यह एक सेहतमंद विकल्प बन जाता है।
आवश्यक तेल सुरक्षित रहते हैं: पारंपरिक चक्की में पत्थर से पीसने की प्रक्रियाके दौरान गेहूँ के आवश्यक तेल बने रहते हैं। इससे रोटियों में खास स्वाद और सुगंध आती है।
बनावट की बात: चक्की आटे की मोटी और दानेदार बनावट पारंपरिक रोटियों के शौकीनों को बहुत पसंद आती है।
पैकेज्ड आटा:
सुविधाजनक विकल्प: पैकेज्ड आटा आसानी से उपलब्ध होता है और इसका इस्तेमाल करना भी सरल है। यह बारीक पिसा हुआ होता है और इसके गूथना भी आसान होता है। लेकिन इसे आधुनिक मशीनों से बनाया जाता है, जिससे गेहूँ के चोकर और बीज की परतें हट जाती हैं। यही परतें पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं।
क्या चुनें?
चक्की आटा और पैकेज्ड आटा के बीच चुनाव आपकी प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। अगर आप पोषण को महत्व देते हैं, पारंपरिक स्वाद और बनावट पसंद करते हैं, तो चक्की आटा आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। लेकिन ध्यान रखें, चक्की के आटे में स्वच्छता और गुणवत्ता को लेकर अनियमितता हो सकती है। दूसरी ओर, अगर आप सुविधा चाहते हैं, तो पैकेज्ड आटा सही विकल्प रहेगा।
हालांकि देखा जाए तो आज के समय में पैकेज्ड आटे की मांग बहुत अधिक बढ़ रही है और देखा जाए तो जाने-अनजाने हम इसकी एक बहुत बड़ी कीमत चुका रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर, आधुनिक व्यावसायिक आटा चक्कियों से जुड़ी कुछ गंभीर समस्याओं में शामिल हैं:
बच्चों के लिए नुकसानदायक: व्यावसायिक आटे को बिजली की मिलों में संसाधित किया जाता है। इस प्रक्रिया में गेहूं का चोकर और पोषक तत्व निकल जाते हैं। नतीजतन, आटा मैदा में बदल जाता है, जिसमें विटामिन और फाइबर नहीं होते। ऐसे आटे से बनी चीज़ें, जैसे कि बिस्कुट और पिज़्ज़ा, बच्चों को भूख का एहसास जल्दी कराती हैं। क्योंकि इसमें फ़ाइबर की कमी होती है, यह पाचन को धीमा कर देता है और आंतों को नुकसान पहुँचा सकता है।
ताज़गी की कमी: पैकेज्ड आटे को लंबे समय तक स्टोर किया जाता है। इसे सुरक्षित रखने के लिए रसायनों और संरक्षकों का उपयोग किया जाता है। इस वजह से, आटा ताज़ा नहीं रहता और सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है। ताज़ा पिसा हुआ आटा पोषण के लिए बेहतर होता है।
पैकेजिंग में संदूषण: व्यावसायिक आटा तैयार होने के बाद भी लंबे समय तक पैक रहता है। इसमें क्या मिलाया गया है, यह जानना मुश्किल होता है। रसायनों और निम्न-गुणवत्ता वाले पदार्थों का उपयोग आटे की गुणवत्ता को खराब कर सकता है। ये प्रथाएँ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ पैदा कर सकती हैं।
असमय मशीनरी का उपयोग: आज की मिलों में उपयोग की जाने वाली मशीनरी पोषक तत्वों को संरक्षित नहीं करती। कई मिलें पारंपरिक तरीकों से आटा पीसने का दावा तो करती हैं, लेकिन वे स्टील या एमरी पत्थरों का उपयोग करती हैं। ये पत्थर आटे में हानिकारक पदार्थ छोड़ सकते हैं।
अत्यधिक रसायनों का उपयोग: व्यावसायिक आटा चक्कियों में अनाज से चोकर और रोगाणु को हटा दिया जाता है। यह प्रक्रिया पोषक तत्व, जैसे विटामिन बी और फाइबर, का 70% खत्म कर देती है। आटे को परिष्कृत करने और ब्लीच करने के लिए रसायनों का उपयोग किया जाता है। इस कारण, यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
इस प्रकार आधुनिक व्यावसायिक आटा चक्कियों की विधियाँ पोषण और सेहत पर बुरा प्रभाव डाल सकती हैं। आटा खरीदते समय, इन समस्याओं को ध्यान में रखना ज़रूरी है। ताज़ा और पोषक आटे का चुनाव करना आपके स्वास्थ्य के लिए बेहतर होगा।
उत्तर प्रदेश में कई बड़े गेहूं आटा निर्माता हैं। ये निर्माता विभिन्न प्रकार के आटे का उत्पादन करते हैं और अलग-अलग ज़रूरतों को पूरा करते हैं।
आइए, अब आपको उत्तर प्रदेश के प्रमुख गेहूं आटा निर्माताओं से रूबरू करवाते हैं:
1. आयशा एक्सपोर्ट्स, करुला, मुरादाबाद
न्यूनतम ऑर्डर (MOQ): 10 टन
आपूर्ति क्षमता: 10 टन प्रति सप्ताह
डिलीवरी का समय: 2-3 दिन
निर्यात बाज़ार : पश्चिमी और पूर्वी यूरोप, एशिया, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ़्रीका, मध्य अमेरिका और मध्य पूर्व।
2. मेसर्स मैकी गोल्ड, अमरोहा
न्यूनतम ऑर्डर: 500 किलोग्राम
उत्पाद का प्रकार: साबुत गेहूं का आटा
विशेषताएँ: बिना संरक्षक और ग्लूटेन-मुक्त आटा
3. श्री पारसनाथ ट्रेडिंग कंपनी, प्रेमपुरी, मुज़फ़्फ़रनगर
उत्पाद: कनक साबुत गेहूं आटा
पैकेजिंग का आकार: 5 किलो
कीमत: 155 रुपये प्रति पैक
न्यूनतम ऑर्डर: 100 पैक
पैकेजिंग प्रकार: प्लास्टिक बैग
आटे का प्रकार: गेहूं का आटा
ब्रांड नाम: कनक
उपयोग की अवधि: 8 महीने
4. वैभव शक्ति भोग फ़ूड्स, टटीरी ग्रामीण, बागपत
उत्पाद: सफ़ेद प्राकृतिक गेहूं का आटा
ग्रेड: खाद्य ग्रेड
कीमत: 34 रुपये प्रति किलोग्राम
न्यूनतम ऑर्डर: 1 टन
आटे का प्रकार: गेहूं का आटा
ये सभी निर्माता, उत्तर प्रदेश के गेहूं आटा उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। वे उपभोक्ताओं की अलग-अलग ज़रूरतों के अनुसार, आटे की आपूर्ति करते हैं। उनकी गुणवत्ता और विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए, इनसे आटा खरीदना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/23dvcfbn
https://tinyurl.com/2yec77u5
https://tinyurl.com/224a2ov3
https://tinyurl.com/25uu5yx5
https://tinyurl.com/2962tnrc
चित्र संदर्भ
1. पारंपरिक चक्की में पिसे हुए और पैकेज्ड आटे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक भारतीय आटा मिल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक पारंपरिक आटा चक्की को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मशीनों से लैस एक आटा चक्की को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. पैकेज्ड आटे की एक बोरी को ली जाते कर्मियों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
इंसानों की तरह, दुनिया को तर्क देना व समझना चाहता है, न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई
संचार एवं संचार यन्त्र
Communication and IT Gadgets
16-01-2025 09:27 AM
Rampur-Hindi
रामपुर में, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (ए आई) धीरे-धीरे रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन रहा है, जो हमारे दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं में दक्षता और सुविधा ला रहा है। ग्राहक सेवा को बेहतर बनाने के लिए, स्थानीय व्यवसायों में ए आई का उपयोग किया जा रहा है, जैसे कि चैटबॉट(Chatbot) के माध्यम से, जो प्रश्नों का उत्तर देते हैं और खरीदारी करने में सहायता करते हैं। इसके अतिरिक्त, ए आई, छात्रों को व्यक्तिगत शिक्षण अनुभव प्रदान करके शैक्षिक उपकरणों को बढ़ा रहा है, जिससे उन्हें अपने हिसाब से सीखने में मदद मिल रही है। ए आई में सबसे रोमांचक प्रगति में से एक, न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई(Neuro-Symbolic AI) है, जो एक ऐसा क्षेत्र है, जो प्रतीकात्मक तर्क के साथ तंत्रिका नेटवर्क(Neural networks) की शक्ति को जोड़ता है। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य, ऐसी मशीनें बनाना है जो न केवल डेटा से सीखें, बल्कि, इंसानों की तरह दुनिया को तर्क दे और समझ सकें। चूंकि, रामपुर ए आई को एकीकृत करना जारी रखता है, यह दैनिक जीवन को स्मार्ट, तेज़ और अधिक संयुक्त बनाने का वादा करता है। आज, हम न्यूरो-सिम्बोलिक आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की उत्पत्ति पर चर्चा करेंगे। फिर, हम न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई के प्राथमिक उद्देश्यों का पता लगाएंगे। इसके बाद, हम न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई के वास्तविक अनुप्रयोगों की जांच करेंगे। अंत में, हम बताएंगे कि, न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई क्या है। न्यूरो-सिम्बोलिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता की उत्पत्ति-
न्यूरो सिम्बोलिक ए आई की उत्पत्ति का पता, कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग से लगाया जा सकता है। सिम्बोलिक या प्रतीकात्मक काल, 1950 से 1980 के दशक तक फ़ैला था। यह प्रतीकात्मक तर्क पर केंद्रित प्रारंभिक ए आई अन्वेषण का काल था। जनरल प्रॉब्लम सॉल्वर(General Problem Solver) और लॉजिक थियोरिस्ट(Logic Theorist) जैसी प्रणालियां, मनुष्यों की समस्या-समाधान क्षमताओं को दोहराने के लिए विकसित की गईं। इन प्रणालियों ने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए, तार्किक सोच और नियमों को नियोजित किया। आवश्यक व्यापक ज्ञान आधार और वास्तविक दुनिया की परिवर्तनशीलता के कारण, हालांकि उसे बाधाओं का सामना करना पड़ा।
•1980 और 2010:
तंत्रिका नेटवर्क का उद्भव एवं कम्प्यूटेशनल क्षमताओं और एल्गोरिथम(Algorithm) में प्रगति से प्रेरित नेटवर्क में पुनरुत्थान ने, ए आई अनुसंधान को डेटा-केंद्रित दृष्टिकोण की ओर पुनर्निर्देशित किया। बैकप्रॉपैगेशन(Backpropagation) जैसी तकनीकों द्वारा नेटवर्क प्रशिक्षण में सुधार किया गया, जिससे उन्हें जटिल कार्यों और व्यापक डेटासेट का प्रबंधन करने की अनुमति मिली।
फिर भी, तंत्रिका नेटवर्क को अक्सर व्याख्यात्मकता में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। चुनौतियां तब उत्पन्न होती हैं, जब कर्तव्यों के लिए तर्क की आवश्यकता होती है।
2010 से वर्तमान तक, तंत्रिका दृष्टिकोण के लाभों के संयोजन में रुचि बढ़ रही है। शोधकर्ताओं ने ऐसे ढांचे और मॉडल विकसित किए हैं, जो अधिक मज़बूत और समझने योग्य ए आई सिस्टम बनाने के लिए तर्क को नेटवर्क के साथ जोड़ते हैं। इस समामेलन का उद्देश्य, प्रत्येक दृष्टिकोण की शक्तियों को पूंजी रूप में प्रयोग करने के साथ-साथ, उनकी कमियों को भी दूर करना है। न्यूरो-सिम्बोलिक या तंत्रिका–प्रतीकात्मक ए आई के प्राथमिक उद्देश्य-
1. अधिक जटिल समस्याओं का समाधान करना।
2. किसी एक विशिष्ट कार्य के बजाय, काफ़ी कम डेटा के साथ विभिन्न कार्य करना सीखना।
3. ऐसे निर्णय और व्यवहार अपनाना, जो समझने योग्य हों और हमारी क्षमता के भीतर हों।
4. आज के ए आई सिस्टम को प्रशिक्षित करने के लिए, आवश्यक डेटा का पैमाना बहुत बड़ा है। जब एक मानव मस्तिष्क कुछ उदाहरणों से सीख सकता है, तो ए आई, इंजीनियरों को ए आई एल्गोरिथम में, हज़ारों उदाहरण इनपुट करने होंगे। तंत्रिका-प्रतीकात्मक ए आई सिस्टम को, अन्य तरीकों के लिए आवश्यक केवल 1% डेटा के साथ प्रशिक्षित किया जा सकता है।
5. न्यूरो–सिम्बोलिक ए आई अनुसंधान में, स्वायत्त प्रणालियों के विकास में सहायता करने की क्षमता है, जो बाहरी इनपुट के बिना कार्यों को पूरा कर सकती है। यह औद्योगिक घटनाओं या प्राकृतिक आपदाओं जैसी गंभीर स्थितियों में सबसे महत्वपूर्ण है।
यह ए आई एक ऐसी तकनीक है, जो नेटवर्क की डेटा-संचालित सीखने की प्रक्रियाओं को ए आई के तर्क और नियम-आधारित सिस्टम के साथ जोड़ती है।
न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई प्रणाली के प्राथमिक घटक -
1. तंत्रिका नेटवर्क
2. प्रतीकात्मक तर्क इंजन
3. एकीकरण परत(Integration Layer): यह घटक, एक हाइब्रिड आर्किटेक्चर(Hybrid architecture) बनाने के लिए, प्रतीकात्मक तर्क इंजन और तंत्रिका नेटवर्क को एकजुट करता है। यह प्रतीकात्मक और तंत्रिका अभ्यावेदन को मैप करता है और दो तत्वों के बीच संचार की सुविधा प्रदान करता है।
4. ज्ञानकोष
5. स्पष्टीकरण जेनरेटर
6. उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस(User Interface): यह एक घटक है, जो मानव उपयोगकर्ताओं को न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई सिस्टम से इनपुट उत्पन्न करने और आउटपुट प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।
न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई के वास्तविक अनुप्रयोग-
१.बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण और व्याख्या करना-
न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई अमूर्त अवधारणाओं को संसाधित कर सकता है और निगमनात्मक निर्णय ले सकता है। इसमें प्रयुक्त तंत्रिका नेटवर्क, मानव मस्तिष्क के तर्क की “नकल” करते हैं और डेटा से सीख सकते हैं।
२.स्वायत्त वाहनों में निर्णय लेना-
निर्णय लेने तथा पारदर्शिता और सुरक्षा में सुधार के लिए, स्वायत्त वाहनों में न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई का लाभ उठाया जा सकता है। यह तंत्रिका नेटवर्क की पैटर्न पहचान क्षमताओं को, प्रतीकात्मक ए आई के नियम-आधारित तर्क के साथ जोड़ता है, जिससे वाहनों को अपने कार्यों की “व्याख्या” करने में, सक्षम बनाया जाता है।
३.कानूनी दस्तावेज़ विश्लेषण को स्वचालित करना-
तंत्रिका नेटवर्क की प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण क्षमताओं को, प्रतीकात्मक तर्क के नियम-आधारित तर्क के साथ जोड़कर, न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई का उपयोग स्वचालित कानूनी दस्तावेज़ विश्लेषण और अनुबंध समीक्षा के लिए किया जा सकता है।
४.संकट प्रबंधन के लिए, परिणामों का अनुकरण और प्रतिक्रियाएं सुझाना-
संकट प्रबंधन में बड़े व अक्सर अराजक डेटासेट की व्याख्या करना शामिल है। यह एक ऐसा कार्य है, जिसके लिए तंत्रिका नेटवर्क उपयुक्त हैं। साथ ही, औपचारिक निर्णय लेने वाले ढांचे और आकस्मिक योजनाओं को लागू करना, एक कार्य प्रतीकात्मक ए आई के लिए उपयुक्त है। न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई संभावित परिणामों का अनुकरण करने और वास्तविक समय डेटा को एकीकृत करके, रणनीतिक प्रतिक्रियाओं का सुझाव देने के लिए इन जटिलताओं को नेविगेट कर सकता है।
५.नैदानिक सटीकता में सुधार-
मेडिकल निदान में, न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई का लाभ उठाया जा सकता है। तंत्रिका नेटवर्क के पैटर्न की पहचान को प्रतीकात्मक ए आई के तर्क के साथ जोड़कर, यह नैदानिक सटीकता और व्याख्या में सुधार कर सकता है। न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई क्या है?
न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई, एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दो अलग-अलग क्षेत्रों से मेल खाता है। यह तंत्रिका नेटवर्क – जो डीप लर्निंग(Deep learning) का मूल है और प्रतीकात्मक ए आई – जो तर्क-आधारित और ज्ञान-आधारित प्रणालियों को शामिल करता है, से मेल खाता है। इस तालमेल को उनकी संबंधित कमज़ोरियों को दूर करने के लिए एवं प्रत्येक दृष्टिकोण की ताकत को पूंजीकृत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इससे ऐसी ए आई सिस्टम तैयार होती है, जो मानव जैसे तर्क के साथ तर्क कर सके और सीखने के माध्यम से नई परिस्थितियों के अनुकूल हो सके।
न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई का उद्देश्य ऐसे मॉडल बनाना है, जो प्रतीकों को समझ सकें और उनमें हेरफ़ेर कर सकें, जो मानव मस्तिष्क की तरह संस्थाओं, रिश्तों और अमूर्तताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये मॉडल उन कार्यों में माहिर हैं, जिनके लिए गहरी समझ और तर्क की आवश्यकता होती है, जैसे कि – प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण, जटिल निर्णय लेना और समस्या समाधान।
न्यूरो-सिम्बोलिक ए आई का तंत्रिका घटक, बड़ी मात्रा में असंरचित डेटा से सीखने के लिए डेटा-संचालित दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए, धारणा और अंतर्ज्ञान पर केंद्रित है।
तंत्रिका नेटवर्क, छवि और वाक् पहचान जैसे कार्यों में असाधारण हैं, जहां वे ऐसे पैटर्न और बारीकियों की पहचान कर सकते हैं, जिन्हें स्पष्ट रूप से कोड(Code) नहीं किया गया है। दूसरी ओर, इसके प्रतीकात्मक घटक, संरचित ज्ञान, तर्क और नियमों से संबंधित है। यह अपने निर्णयों के लिए तर्क करने और स्पष्टीकरण उत्पन्न करने के लिए, ज्ञान के डेटाबेस और नियम-आधारित प्रणालियों का लाभ उठाता है।
इन दो घटकों के बीच परस्पर क्रिया, वह जगह है, जहां न्यूरो-प्रतीकात्मक ए आई चमकता है। उदाहरण के लिए, यह एक जटिल छवि की व्याख्या करने के लिए, तंत्रिका नेटवर्क का उपयोग कर सकता है और फिर छवि की सामग्री के बारे में सवालों के जवाब देने, या उसके भीतर वस्तुओं के बीच संबंधों का अनुमान लगाने के लिए, प्रतीकात्मक तर्क लागू कर सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/bdepww9k
https://tinyurl.com/yc2juw3m
https://tinyurl.com/bddsjk62
https://tinyurl.com/bddsjk62
https://tinyurl.com/bddsjk62
चित्र संदर्भ
1. लोगों के साथ बात करती हुई सोफ़िया नामक रोबोट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मनुष्य के हाथ का स्पर्श लेते एक रोबोटिक हाथ को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
3. 3 अलग-अलग आरंभिक बिंदुओं के लिए ग्रेडिएंट अवरोहण के चित्रण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ट्यूरिंग परीक्षण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कृत्रिम बुद्धिमत्ता के एक उपसमूह के रूप में मशीन लर्निंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
आइए समझते हैं, भारत में एफ़िलिएट मार्केटिंग, इसके प्लेटफ़ॉर्मों और जोखिमों के बारे में
संचार एवं संचार यन्त्र
Communication and IT Gadgets
15-01-2025 09:28 AM
Rampur-Hindi
तो चलिए, आज हम समझते हैं कि भारत में एफ़िलिएट मार्केटिंग कैसे काम करती है। इसके बाद हम भारत में मौजूद अलग-अलग प्रकार की एफ़िलिएट मार्केटिंग प्लेटफ़ॉर्म्स प्लेटफ़ॉर्म्स के बारे में बात करेंगे। फिर, हम देश के सबसे अच्छे एफ़िलिएट मार्केटिंग प्रोग्राम्स पर नज़र डालेंगे। अंत में, हम उन खतरों और जोखिमों पर चर्चा करेंगे, जो एफ़िलिएट मार्केटिंग करने वाले लोगों को झेलने पड़ सकते हैं।
भारत में संबद्ध विपणन (affiliate marketing) कैसे काम करती है?
आइए समझते हैं कि भारत में एफ़िलिएट मार्केटिंग का काम कैसे होता है। जब भी कोई ग्राहक आपके द्वारा साझा किए गए लिंक पर क्लिक करके कोई उत्पाद खरीदता है, तो आपको उस पर कमीशन मिलता है। यह कमीशन पूरी तरह से आपके प्रदर्शन पर आधारित होता है, यानी जब कोई ग्राहक आपके लिंक पर क्लिक करके कोई कार्रवाई करता है, तभी आपको भुगतान किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि, आप एक ऑनलाइन व्यवसाय के मालिक हैं और आपकी वेबसाइट पर हर महीने अच्छी-खासी ट्रैफ़िक आती है। अब अन्य ब्रांड आपसे संपर्क करते हैं और अपने उत्पाद को आपकी वेबसाइट पर प्रचारित करने की बात करते हैं। आप उनके उत्पादों के एफ़िलिएट लिंक अपनी वेबसाइट के विभिन्न हिस्सों में आसानी से जोड़ सकते हैं।
जब भी कोई व्यक्ति आपके लिंक पर क्लिक करता है, तो एक कुकी उनके ब्राउज़र पर बनती है और स्टोर हो जाती है। अगर वह व्यक्ति उस लिंक के माध्यम से कोई कार्रवाई करता है, तो आपको स्वचालित रूप से एफ़िलिएट कमीशन मिल जाता है।
कुकी का काम क्या है?
कुकी (Cookie) यह सुनिश्चित करती है कि कौन सा एफ़िलिएट यानी विक्रेता, उस उत्पाद को बेचने में शामिल था और उसी आधार पर कमीशन दिया जाता है। यहां तक कि अगर ग्राहक तुरंत उत्पाद नहीं खरीदता है, लेकिन कुकी की वैधता अवधि के भीतर खरीदता है, तो भी आपको उसका कमीशन मिलेगा। कुकी की वैधता अवधि अलग-अलग हो सकती है और हर एफ़िलिएट मार्केटिंग कार्यक्रम का अपना अलग व्यापार मॉडल होता है।
भारत में एफ़िलिएट मार्केटिंग प्लेटफ़ॉर्म्स प्लेटफ़ॉर्म्स के प्रकार
भारत में एफ़िलिएट मार्केटिंग के विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म्स का उपयोग किया जाता है। आइए जानते हैं इनके बारे में:
1. कूपन प्लेटफ़ॉर्म्स
लोग हमेशा छूट (डिस्काउंट) और सीजनल सेल्स (सालाना चलने वाली सेल्स) को पसंद करते हैं, खासकर जब प्रोडक्ट या सेवाएं महंगी हों। इसीलिए, कूपन प्लेटफ़ॉर्म्स के साथ साझेदारी करना भारत में 2025 के सर्वश्रेष्ठ एफ़िलिएट प्रोग्राम्स का लाभ उठाने का एक शानदार तरीका हो सकता है। यह नए प्रकार के दर्शकों को आकर्षित करने, छूट और कूपन के जरिए बिक्री बढ़ाने और ग्राहकों को लुभाने में मदद करता है।
2. रिव्यू वेबसाइट्स और ऐप्स
अगर आपकी सेवाएं और प्रोडक्ट्स ऐसे दर्शकों के लिए हैं जो हमेशा रिव्यू चेक करते हैं, तो रिव्यू प्लेटफ़ॉर्म्स एक और महत्वपूर्ण एफ़िलिएट प्रोग्राम का प्रकार हैं। ये वेबसाइट्स या ऐप्स ऐसी सामग्री पेश करते हैं जहां दर्शकों से प्रोडक्ट्स और सेवाओं के रिव्यू मांगे जाते हैं। आप इन रिव्यू साइट्स के साथ साझेदारी कर सकते हैं और देख सकते हैं कि क्या आपके प्रोडक्ट्स और सेवाओं का एफ़िलिएट रिव्यू आपके लिए लाभदायक है।
3. सोशल मीडिया इन्फ़्लुएंसर
सोशल मीडिया इन्फ़्लुएंसर मार्केटिंग आपके प्रोडक्ट्स या सेवाओं को प्रचारित करने में मदद कर सकती है। यह भारत में शीर्ष एफ़िलिएट प्रोग्राम्स के लिए एक लोकप्रिय और प्रभावी तरीका है। जरूरी है कि आप उन इन्फ़्लुएंसर को चुनें, जो आपके व्यवसाय के समान डोमेन में काम कर रहे हों। उनके फॉलोअर्स के जरिए आप अपने लक्षित दर्शकों तक पहुंच सकते हैं। शुरुआत में धीमी गति से काम शुरू करें और फिर मांग के अनुसार इसे बढ़ाएं।
4. सर्च एफ़िलिएट्स
सर्च एफ़िलिएट्स का मॉडल पेड विज्ञापन (Paid Advertising) पर आधारित होता है। सर्च एफ़िलिएट्स आपको किसी प्लेटफ़ॉर्म के सर्च
रिज़ल्ट्स में ऊपर दिखाने के लिए शुल्क लेते हैं। यह सोशल मीडिया विज्ञापनों की तरह है, लेकिन यहां विश्वसनीय लोग आपके प्रोडक्ट्स और सेवाओं को प्रमोट करते हैं।
5. ईमेल मार्केटिंग
आज के समय में ईमेल मार्केटिंग एक सूक्ष्म और अभिनव विपणन उपकरण है। अब कंपनियां ईमेल के ज़रिए सीधे अपने प्रोडक्ट्स और सेवाएं नहीं बेचतीं, बल्कि उन्हें प्रचार के लिए उपयोग करती हैं। ईमेल का उपयोग करते समय उसकी फ़्रीक्वेंसी और कंटेंट का ध्यान रखें। यह आकर्षक, प्रभावशाली और समय आधारित होना चाहिए।
इन सभी प्लेटफ़ॉर्म्स का सही और संतुलित उपयोग करके एफ़िलिएट मार्केटिंग से अधिकतम लाभ कमाया जा सकता है!
भारत के सर्वश्रेष्ठ एफ़िलिएट मार्केटिंग प्रोग्राम्स
भारत में एफ़िलिएट मार्केटिंग के लिए कई शानदार प्रोग्राम उपलब्ध हैं जो आपको नियमित कमाई करने का मौका देते हैं। यहां कुछ बेहतरीन एफ़िलिएट प्रोग्राम्स की जानकारी दी गई है:
1. अर्न करो (EarnKaro)
अर्न करो, भारत की सबसे भरोसेमंद और लोकप्रिय एफ़िलिएट मार्केटिंग वेबसाइटों में से एक है। यह एक डील-शेयरिंग (सौदा या लेन-देन करना) प्लेटफ़ॉर्म है, जो आपको जल्दी से पैसे कमाने की सुविधा देता है। आप (Flipkart), मिंत्रा (Myntra), नायका (Nykaa), टाटा क्लिक (Tata Cliq) जैसे वेबसाइटों से डील शेयर कर सकते हैं। जब आपके मित्र, रिश्तेदार या नेटवर्क में लोग आपके एफ़िलिएट लिंक के माध्यम से खरीदारी करते हैं, तो आपको कमीशन मिलता है।
- भुगतान सीमा (पेयमेंट थ्रेशोल्ड): ₹10
- भुगतान का तरीका: डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर
2. वी-कमिशन (vCommission)
vCommission एक तेजी से बढ़ता हुआ एफ़िलिएट नेटवर्क है। यह शुरुआती लोगों के लिए एक बेहतरीन प्लेटफ़ॉर्म है क्योंकि यह 18,000 से अधिक एफ़िलिएट्स को शीर्ष व्यवसायों से जोड़ता है। vCommission ने मिंत्रा, अलीएक्सप्रेस, अगोड़ा, स्नैपडील और होमशॉप18 जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म्स के साथ साझेदारी की है। यह हर महीने आपको भुगतान करता है।
- भुगतान सीमा: ₹1,000
- भुगतान का तरीका: केवल NEFT/RTGS (बैंक ट्रांसफर)
3. आई एन आर डील्स (INRDeals)
आई एन आर डील्स, एक ऑनलाइन परिचित की तरह काम करता है और आपको मोबाइल रिचार्ज, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, जूते और लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स पर अतिरिक्त छूट प्रदान करता है। यह फ़्लिपकार्ट, मिंत्रा, जबोंग, टाटा क्लिक, पे टी एम, मेक माई ट्रिप आदि के साथ जुड़ा हुआ है। आपको प्रोमो कोड, डिस्काउंट कूपन, डील्स, कैश इंसेंटिव, गिफ़्ट वाउचर्स और प्रमोशनल कोड्स के जरिए अतिरिक्त छूट मिलती है।
भुगतान सीमा: ₹500
भुगतान का तरीका: चेक, बैंक ट्रांसफर या पेटीएम
4. क्यू-लिंक्स (Cuelinks)
क्यू-लिंक्स एक सामग्री मुद्रीकरण (कंटेंट मॉनेटाइज़ेशन ) नेटवर्क है, जो आपके ब्रांड लिंक को ऑटोमेटिक रूप से एफ़िलिएट लिंक में बदल देता है। साइन अप करने पर आपको कुछ जावास्क्रिप्ट कोड दिए जाते हैं, जिन्हें आप अपने ब्लॉग में पेस्ट कर सकते हैं। जब भी कोई पाठक आपके लिंक पर क्लिक करता है और खरीदारी करता है, तो आपको कमीशन मिलता है। क्यू-लिंक्स एफ़िलिएट मार्केटिंग को आपके लिए आसान बना देता है।
- भुगतान सीमा: ₹500
- भुगतान का तरीका: डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर
इन एफ़िलिएट प्रोग्राम्स का उपयोग करके, आप अपने नेटवर्क और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के जरिए अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं।
एफ़िलिएट मार्केटिंग संबंधित प्रमुख खतरे और चुनौतियां
एफ़िलिएट मार्केटिंग एक प्रभावी आय का माध्यम हो सकता है, लेकिन इसके साथ कई जोखिम और धोखाधड़ी की संभावनाएँ भी जुड़ी होती हैं। नीचे एफ़िलिएट मार्केटिंग में प्रचलित खतरों और कमज़ोरियों का वर्णन किया गया है:
1. एफ़िलिएट धोखाधड़ी (Affiliate Fraud)
एफ़िलिएट धोखाधड़ी उन सभी अवैध गतिविधियों को संदर्भित करता है, जिनका उद्देश्य व्यापारियों, एफ़िलिएट्स, या ग्राहकों को धोखा देकर लाभ प्राप्त करना होता है।
इसके मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं:
- ट्रैफ़िक चोरी (Traffic Diverting): इसमें धोखेबाज वैध एफ़िलिएट साइट्स से ट्रैफ़िक को चुराने के लिए “परजीवी साइट्स” (Parasite Sites) का उपयोग करते हैं।
- आवेदन धोखाधड़ी (Application Fraud): यह तब होती है, जब धोखेबाज किसी वित्तीय उत्पाद के लिए फ़र्ज़ी जानकारी देकर आवेदन करते हैं।
- लेन-देन धोखाधड़ी (Transaction Fraud): इसमें चोरी की गई भुगतान जानकारी (जैसे क्रेडिट कार्ड या बैंक खाते की जानकारी) का उपयोग करके लेन-देन पूरा किया जाता है।
2. शुल्क आधारित नेटवर्क (Pay-to-Play Networks)
कुछ एफ़िलिएट नेटवर्क ऐसे होते हैं, जो अपनी सेवाओं का उपयोग करने के लिए सदस्यता शुल्क मांगते हैं। नए एफ़िलिएट्स यह सोच सकते हैं कि उन्हें कमीशन कमाने के लिए पहले निवेश करना होगा। यह अक्सर एक धोखाधड़ी होती है, क्योंकि वैध एफ़िलिएट प्रोग्राम्स में ऐसे शुल्क नहीं होते।
3. कुकी स्टफ़िंग (Cookie Stuffing)
कुकी स्टफिंग वह प्रक्रिया है, जिसमें धोखेबाज़ वेब कुकीज़ का उपयोग करते हुए व्यापारियों को यह विश्वास दिलाते हैं कि बिक्री उनके माध्यम से हुई है। कभी-कभी, यह वैध एफ़िलिएट की बिक्री को रद्द करके अपने नियंत्रण में ला सकता है और उनका कमीशन छीन लेता है। कुछ मामलों में, यह बिक्री पूरी तरह से फ़र्ज़ी होती है, क्योंकि ग्राहक वेबसाइट तक अपनी मर्जी से पहुँचते हैं।
4. नकली उत्पाद (Fake Products)
धोखेबाज़ नकली उत्पादों का प्रचार करने के लिए विज्ञापन या वेबपेज बनाते हैं और उन्हें किसी प्रतिष्ठित कंपनी से जोड़ने का प्रयास करते हैं। ग्राहक और एफ़िलिएट्स वैध ब्रांड के नाम और प्रतिष्ठा पर भरोसा कर लेते हैं और धोखे का शिकार हो जाते हैं। यहाँ तक कि बड़ी कंपनियाँ भी इससे अछूती नहीं हैं। उदाहरणस्वरूप, 2021 में अमेज़न ने 30 लाख से अधिक नकली उत्पादों की पहचान की।
5. छद्म धोखेबाज़ (Spoof Traffic)
यह धोखाधड़ी का प्रकार है, जिसमें धोखेबाज झूठे इंप्रेशन्स और क्लिक दिखाते हैं। यह ऐसा आभास देता है कि व्यापारी के लिए वैध ट्रैफिक उत्पन्न हो रहा है। हालांकि, व्यापारी को वित्तीय नुकसान होता है, और धोखेबाज़ इन झूठे क्लिक से कमीशन प्राप्त करते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/29dh8fmd
https://tinyurl.com/39hwr7ac
https://tinyurl.com/2f7y7dfm
https://tinyurl.com/4mx3sdxs
चित्र संदर्भ
1. लैपटॉप पर काम करते दो भारतीय युवाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
2. नेटवर्क विस्तार को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
3. मिश्रित कॉस्मेटिक उत्पादों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
4. प्रख्यात सोशल मीडिया मंचों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. लैपटॉप और मोबाइल का उपयोग करते लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
पंचांग की 12 संक्रांतियों में से, सबसे शुभ मानी जाती है मकर संक्रांति
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
14-01-2025 09:23 AM
Rampur-Hindi
मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है?
वेदों में बताया गया है कि, संक्रांति, सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है। एक वर्ष में 12 संक्रांतियां होती हैं। मकर संक्रांति को सभी 12 संक्रांतियों में सबसे शुभ माना जाता है और इसे 'पौष संक्रांति' भी कहा जाता है, क्योंकि यह उन कुछ हिंदू त्यौहारों में से एक है जो सौर चक्र के साथ संरेखित होते हैं। मकर संक्रांति का महत्व, केवल इसके धार्मिक महत्व तक ही सीमित नहीं है। वास्तव में,यह त्यौहार, फ़सल के मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है जब नई फ़सलों की पूजा की जाती है। यह त्यौहार, मौसम में बदलाव का भी प्रतीक है, क्योंकि इस दिन से, सूर्य देव दक्षिणायन (दक्षिण) से उत्तरायण (उत्तर) गोलार्ध में अपनी गति शुरू करते हैं, जो सर्दियों के आधिकारिक अंत का प्रतीक है।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन, भगवान विष्णु ने राक्षसों के सिर काटकर और उन्हें एक पहाड़ के नीचे गाड़ दिया था और इस प्रकार उनके आतंक को हराया था, जो नकारात्मकता के अंत का प्रतीक था। इसलिए, यह दिन साधना, आध्यात्मिक अभ्यास या ध्यान के लिए बहुत अनुकूल है, क्योंकि इस दिन वातावरण को 'चैतन्य', अर्थात 'ब्रह्मांडीय तेज़' से भरा हुआ माना जाता है। इसके अलावा, मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव के प्रति एक विशेष पूजा भी अर्पित की जाती है, जो अंधेरे पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। भक्त कृतज्ञता व्यक्त करने और समृद्ध फसल और उत्तरी गोलार्ध में सूर्य के प्रवेश के साथ, सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए, आशीर्वाद मांगने हेतु प्रार्थना और अनुष्ठान करते हैं। मकर संक्रांति को भारत के विभिन्न हिस्सों में उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है।
मकर संक्रांति का कृषि से संबंध:
मकर संक्रांति का त्यौहार, कृषि से जुड़ा है, क्योंकि यह कटाई के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। यह दिन, भारत में किसानों के लिए बहुत महत्व रखता है। कृषि का यह त्यौहार, भारतीय संस्कृति में कृषि के महत्व को प्रतिष्ठित करता है। इस शुभ दिन पर, भारत के विभिन्न हिस्सों के लोग, इसे अलग-अलग नामों से मनाते हैं। इस त्यौहार को तमिलनाडु में पोंगल, असम में बिहू, पंजाब में लोहड़ी, उत्तरी राज्यों में माघ बिहू और केरल में मकर विलाक्कू के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार, जिसे अक्सर 'फ़सल कटाई के त्यौहार' के रूप में मनाया जाता है, कृषि की प्रचुरता और भरपूर फ़सल के मौसम का प्रतीक है। हमारे देश के किसान, जो खेतों में लगन से काम करते हैं और फ़सलों के रूप में अपने खेतों में सोना उगाते हैं, मानते हैं कि, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तो यह सर्दियों के मौसम के अंत का प्रतीक होता है। यह आने वाले गर्म और लंबे दिनों की शुरुआत का भी प्रतीक है। यह खेतों में शीतकालीन फ़सलों के पकने के लिए भी अनुकूल समय होता है। इस त्यौहार से जुड़ी मुख्य फ़सल गन्ना है। इस त्यौहार के दौरान, तैयार किए जाने वाले कई पारंपरिक व्यंजनों में गुड़ का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है जो गन्ने से बनाया जाता है।
इस फ़सल उत्सव को मनाने के लिए, भक्त, पवित्र नदियों, मुख्य रूप से गंगा में डुबकी लगाते हैं और इसके किनारे बैठकर ध्यान करते हैं। माना जाता है कि, इस दिन लगाई गई यह डुबकी आत्मा को शुद्ध करती है और व्यक्ति के पापों को धो डालती है। फ़सल का यह त्यौहार, मौसम की पहली फ़सल की पूजा करके और रेवड़ी तथा पॉपकॉर्न बांटकर मनाया जाता है। इस त्यौहार की सबसे अनोखी बात यह है कि, यह लगभग हर साल, एक ही दिन अर्थात 14 जनवरी को मनाया जाता है। उत्तरायण काल, जो हिंदुओं के लिए, 6 महीने की शुभ अवधि है, की शुरुआत भी इसी दिन से होती है। मकर संक्रांति के दिन विशेष रूप से तिल, मूंगफली और गुड़ के लड्डू बनाए जाते हैं और लोगों के बीच वितरित किए जाते हैं, जो उनके बीच सद्भाव का प्रतीक है। बिहार में इस दिन लोग मुख्य रूप से खिचड़ी बनाते हैं।
पंचांग में 12 संक्रांतियां:
पंचांग (Hindu Calendar) में एक वर्ष में कुल बारह संक्रांतियां होती हैं। सभी बारह संक्रांतियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
अयन/अयनी संक्रांति: मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति दो अयनी संक्रांति हैं जिन्हें क्रमशः उत्तरायण संक्रांति और दक्षिणायन संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें पंचांग में शीतकालीन संक्रांति और ग्रीष्म संक्रांति के रूप में भी माना जाता है। जब सूर्य उत्तरी गोलार्ध में जाता है, तो छह महीने की समय अवधि को उत्तरायण कहते हैं और जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में जाता है, तो शेष छह महीने की समय अवधि को दक्षिणायन कहते हैं।
विषुव या संपत संक्रांति: मेष और तुला संक्रांति दो विषुव संक्रांति हैं जिन्हें क्रमशः वसंत संपत और शरद संपत के नाम से भी जाना जाता है। इन दोनों संक्रांतियों के लिए, संक्रांति से पहले और बाद की पंद्रह घटी के क्षणों को कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।
विष्णुपदी संक्रांति: सिंह , कुंभ , वृषभ और वृश्चिक संक्रांति, चार विष्णुपदी संक्रांति हैं। इन सभी चार संक्रांतियों के लिए संक्रांति से पहले के सोलह घटी क्षणों को कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।
षडशीतिमुखी संक्रांति: मीन , कन्या , मिथुन और धनु संक्रांति, चार षडशीत-मुखी संक्रांति हैं। इन सभी चार संक्रांतियों के लिए, संक्रांति के बाद के सोलह घटी क्षणों को कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/p2b9eck5
https://tinyurl.com/7ye2nv5p
https://tinyurl.com/2scrcrww
https://tinyurl.com/778c4wdj
चित्र संदर्भ
1. प्रयागराज में माघ मेले के दौरान, टीका लगवाते दुकानदार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मकर संक्रांति के उत्सव की झलकियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. पोंगल उत्सव पर समुद्र तट पर लगे मेला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मकर संक्रांति के दिन मूर्तियों के प्रदर्शन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
भारत में, पोल्ट्री उद्योग के व्यापक विस्तार के बावजूद, इसका विकास है ज़रूरी
पंछीयाँ
Birds
13-01-2025 09:24 AM
Rampur-Hindi
भारत के पोल्ट्री क्षेत्र का विस्तारित परिदृश्य-
भारत में पोल्ट्री उद्योग की वृद्धि, खर्च योग्य आय में वृद्धि और भोजन की आदतों में बदलाव के कारण हो रही है। प्रोटीन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, दालों पर बहुत अधिक निर्भर – पारंपरिक आहार से मांस, अंडे और डेयरी उत्पादों जैसे खाद्य उत्पादों में बदलाव, इस उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण सहायता कर रहा है। स्वास्थ्य और कल्याण के बारे में बढ़ती जागरूकता, प्रोटीन युक्त आहार की मांग को और बढ़ा रही है।
आर्थिक सर्वेक्षण (2022-23) के अनुसार, डेयरी, पोल्ट्री मांस, अंडे और मत्स्य पालन वाले पशुधन क्षेत्र में, 2014-15 से 2020-21 के दौरान (स्थिर कीमतों पर) 7.9% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सी ए जी आर) देखी गई, और कुल कृषि जीवीए (स्थिर कीमतों पर) में, इसका योगदान 2014-15 में 24.3% से बढ़कर 2020-21 में 30.1% बढ़ गया है।
पशुपालन और डेयरी विभाग की वार्षिक रिपोर्ट (2022-23) के अनुसार, भारत में पोल्ट्री उत्पादन ने पिछले चार दशकों में, एक सफ़र तय किया है, जो पारंपरिक कृषि पद्धतियों से लेकर अत्याधुनिक तकनीकी हस्तक्षेप के साथ, वाणिज्यिक उत्पादन प्रणालियों तक उभर रहा है।
देश में ब्रॉयलर(Broiler) मांस का उत्पादन, सालाना लगभग 5 मिलियन टन (MT,एम टी) होने का अनुमान है। एक बाज़ार अनुसंधान के अनुसार, भारत का पोल्ट्री बाज़ार, जिसका मूल्य वर्तमान में 28.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, 2024-2032 की अनुमानित अवधि में, 8.1% की सी ए जी आर (CAGR) से बढ़ने की उम्मीद है। यह 2032 तक, लगभग 44.97 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य तक पहुंच जाएगा। 2022-23 के दौरान, भारत ने 64 देशों को पोल्ट्री और पोल्ट्री उत्पादों का निर्यात किया, जिससे 134 मिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व देश को प्राप्त हुआ।
आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना, इस उद्योग के लिए मील का पत्थर था। उन्नत आहार निर्माण, आहार और तापमान नियंत्रण के लिए स्वचालित प्रणाली और अत्याधुनिक रोग प्रबंधन प्रथाओं ने, मुर्गीपालन में क्रांति ला दी। इन नवाचारों ने उत्पादन क्षमता को बढ़ाया है, जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई। 1990 के दशक के बाद से, जब भारत में आर्थिक उदारीकरण और शहरीकरण हुआ, तो आहार पैटर्न में उल्लेखनीय बदलाव आया। शहरी उपभोक्ताओं ने प्रोटीन के सुविधाजनक और आसानी से उपलब्ध स्रोतों की तलाश की। विशेष रूप से चिकन मांस और अंडों जैसे पोल्ट्री उत्पाद, प्रोटीन युक्त भोजन के रूप में किफ़ायती और सुलभ विकल्प के रूप में उभरे हैं।
भारत की तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या, पोल्ट्री उत्पादों की मांग का प्रत्यक्ष चालक है। अधिक लोगों को खिलाने के साथ, प्रोटीन (Protein) के किफ़ायती और पौष्टिक स्रोतों की निरंतर आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे आय बढ़ती है और जीवनशैली विकसित होती है, आहार संबंधी आदतें, प्रोटीन की खपत में वृद्धि की ओर स्थानांतरित हो जाती हैं। चिकन, मांस और अंडे को लाल–मांस के स्वास्थ्यवर्धक विकल्प के रूप में माना जाता है, जिससे इसकी मांग बढ़ रही है।
पोल्ट्री उत्पाद, अक्सर अन्य प्रोटीन स्रोतों की तुलना में अधिक किफ़ायती होते हैं, जिससे वे आबादी के व्यापक हिस्से तक पहुंच योग्य हो जाते हैं। पोल्ट्री उत्पादन, मौसमी कारकों से प्रभावित हो सकता है, जिसमें चरम मौसम की स्थिति भी शामिल है। इस उतार-चढ़ाव के कारण, अत्यधिक आपूर्ति और कमी की अवधि हो सकती है।
अंडा उत्पादन-
अंडा उत्पादन के मामले में, भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। पिछले चार दशकों में, भारत ने पोल्ट्री उत्पादन में एक लंबा सफ़र तय किया है, जो एक गैर-वैज्ञानिक कृषि पद्धति से आधुनिक कृषि संबंधी हस्तक्षेपों के साथ, वाणिज्यिक उत्पादन प्रणाली में उभरी है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन प्रभाग Publications Division of the Ministry of Information and Broadcasting) द्वारा प्रकाशित भारत 2024: एक संदर्भ वार्षिक (India 2024: A Reference Annual) नमक एक पुस्तक के अनुसार, भारत में अंडा उत्पादन, (2014-15) में 78.438 बिलियन (2014-15) से बढ़कर (2021-22) में 129.60 बिलियन (2021-22) हो गया था । 2014-15 के दौरान, अंडा उत्पादन की वार्षिक वृद्धि दर 4.99% थी। इसके बाद 2021-22 में इसके उत्पादन में 5.62% की वृद्धि दर्ज होकर उल्लेखनीय सुधार हुआ। इसी अवधि में अंडे की प्रति व्यक्ति उपलब्धता, 95 अंडे प्रति वर्ष थी।
मांस उत्पादन-
मांस उत्पादन के मामले में भारत विश्व में पांचवें स्थान पर है। देश में मांस उत्पादन 6.7 मिलियन टन (2014-15) से बढ़कर, 9.29 मिलियन टन (2021-22) हो गया। 2021-22 के दौरान, मांस उत्पादन की वार्षिक वृद्धि 5.62% थी। 2021-22 में मांस की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 6.82 (किलो/वर्ष) थी।
अंडा उत्पादन एवं पोल्ट्री मांस उत्पादन के प्रमुख राज्य-
१) अंडे-
आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र, देश में शीर्ष अंडा उत्पादक हैं।
आंध्र प्रदेश, भारत में शीर्ष अंडा उत्पादक है, जो हर साल 23 अरब अंडों का उत्पादन करता है। तमिलनाडु दूसरे स्थान पर है, जो सालाना 14 अरब अंडों का उत्पादन करता है। महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है, जहां हर साल 5 अरब अंडों का उत्पादन होता है। पंजाब चौथे स्थान पर है, जहां सालाना 4 अरब अंडों का उत्पादन होता है। केरल पांचवें स्थान पर है, जो हर साल 2 अरब अंडों का उत्पादन करता है।
२)कुक्कुट या पोल्ट्री मांस (Poultry Meat)-
भारत में पोल्ट्री मांस उत्पादन में हरियाणा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश अग्रणी हैं।
भारत में शीर्ष 5 पोल्ट्री मांस उत्पादक राज्य-
हरियाणा, भारत में सबसे बड़ा पोल्ट्री मांस उत्पादक है, जो सालाना, 352,000 मीट्रिक टन मांस का उत्पादन करता है। पश्चिम बंगाल दूसरा सबसे बड़ा पोल्ट्री मांस उत्पादक राज्य है, जो हर साल 328,000 मेट्रिक टन पोल्ट्री मांस का योगदान देता है। 270,000 मीट्रिक टन वार्षिक उत्पादन के साथ, उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर है। चौथे स्थान पर तमिलनाडु है, जो हर साल 226,000 मीट्रिक टन पोल्ट्री मांस का उत्पादन करता है। जबकि, 144,000 मेट्रिक टन के वार्षिक उत्पादन के साथ महाराष्ट्र पांचवें स्थान पर है।
पोल्ट्री क्षेत्र में चुनौतियां–
वर्तमान में, भारत में पोल्ट्री क्षेत्र निम्नलिखित चुनौतियों का सामना कर रहा है।
1. कम उत्पादकता-
भारत में पोल्ट्री, किसानों द्वारा अपनाई जाने वाली उत्पादन सुविधाएं और पद्धतियां अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं हैं। यहाँ के अधिकांश पोल्ट्री फ़ार्म, खुली इमारतें हैं, जिनमें कोई जलवायु नियंत्रण या संगरोध तंत्र नहीं है। ऐसा ढांचा पक्षियों को विभिन्न जलवायु भिन्नताओं के साथ-साथ संभावित बीमारियों और महामारियों के संपर्क में लाता है।
2. भंडारण, कोल्ड चेन और परिवहन की कमी-
भारत में उत्पादित 60% से अधिक ब्रॉयलर पक्षी (broiler chicken), 6 राज्यों (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और) में उत्पादित होते हैं। इसी प्रकार, भारत में उत्पादित 60% से अधिक अंडे 6 राज्यों (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना हरियाणा,महाराष्ट्र, पंजाब और तमिलनाडु) में उत्पादित होते हैं। वर्तमान में, पक्षियों का विभिन्न राज्यों के बीच स्थानांतरण किया जाता है है, जिसके कारण, उन्हें अमानवीय और कभी-कभी अस्वच्छ परिस्थितियों में ले जाया जाता है। परिवहन के दौरान, कई पक्षी मारे जाते हैं। शुष्क प्रसंस्करण और कोल्ड चेन सुविधाओं की कमी के कारण, भारत के भीतर अच्छी गुणवत्ता वाले पोल्ट्री उत्पादों का परिवहन करना एक दुःस्वप्न बन गया है।
3. गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न की आपूर्ति-
भारत में मुर्गी पालन करने वाले किसानों द्वारा, मुख्य आहार के रूप में सोयाबीन और मक्के का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। ये केवल न्यूनतम पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करते हैं, और उच्च गुणवत्ता वाले, स्वस्थ पक्षियों को पालने में मदद नहीं करते हैं। बाज़ार में गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न की कमी है, और गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न के उपयोग के लाभों के बारे में जानकारी का अभाव है। समस्या इस तथ्य से जटिल है कि, प्रोटीन का कोई वैकल्पिक स्रोत भी उपलब्ध नहीं है। इससे पोल्ट्री खाद्यान्न निर्माताओं और आहार अनुपूरक उत्पादकों के लिए, अपार अवसर खुलते हैं।
4. फ़ार्म प्रबंधन के लिए गुणवत्ता मानक-
भारत के कृषि प्रबंधन में सरकार या स्व-विनियमन उद्योग निकायों द्वारा निर्धारित, कोई गुणवत्ता मानक नहीं हैं। निर्यात बाज़ार के लिए, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप गुणवत्ता बनाए रखने को सुनिश्चित करने के लिए, सख्त गुणवत्ता मानक और नियमित ऑडिट लागू किए हैं। हालांकि, घरेलू बाज़ार में, खेतों, प्रसंस्करण और परिवहन में स्वच्छता बनाए रखने के लिए, व्यापक विनियमन प्राधिकरण का अभाव है। उन खेतों को लाइसेंस, नगर पालिका स्तर पर दिया जाता है जाता है, जिनके पास अक्सर गुणवत्ता मानकों को सख्ती से लागू करने के लिए ज्ञान, विशेषज्ञता और मानव संसाधनों की कमी होती है। अतः यूरोपीय और संयुक्त राज्य अमेरिका के पोल्ट्री उद्योग को प्रशिक्षण, सर्वोत्तम प्रथाओं, कौशल विकास आदि के रूप में, भारतीय पोल्ट्री उद्योग में बहुत योगदान देना है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2hffs48k
https://tinyurl.com/4c22xk8f
https://tinyurl.com/5n86jx7x
India 2024: A Reference Annual
चित्र संदर्भ
1. तमिलनाडु के नमक्कल में एक पोल्ट्री फ़ार्म को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मुर्गी के अंडो को एकत्र करती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. फ़्रांस के रुंगिस इंटरनेशनल मार्केट (Rungis International Market) में रखे पोल्ट्री उत्पादों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक पोल्ट्री फ़ार्म में मुर्गियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
आइए देखें, मकर संक्रांति से जुड़े कुछ चलचित्र
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
Thought I - Religion (Myths/ Rituals )
12-01-2025 09:27 AM
Rampur-Hindi
संदर्भ:
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https://tinyurl.com/2bwus89v
https://tinyurl.com/yahxrtrc
क्या है सामान नागरिक संहिता और कैसे ये, लोगों के अधिकारों में लाएगा बदलाव ?
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान
Concept II - Identity of Citizen
11-01-2025 09:23 AM
Rampur-Hindi
आज हम समान नागरिक संहिता के बारे में चर्चा करेंगे और इसके भारत में महत्व को समझेंगे। फिर हम समान नागरिक संहिता कानून को लागू करने के फ़ायदे और इसका व्यक्तिगत कानूनों से संबंध जानेंगे। उसके बाद हम विवाह और तलाक पर समान नागरिक संहिता के प्रभाव को संक्षेप में समझेंगे। अंत में, हम इसके ऐतिहासिक परिपेक्ष्य पर एक नज़र डालेंगे और इसके विकास के बारे में बात करेंगे।
समान नागरिक संहिता क्या है?
कानून को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है - अपराध कानून और नागरिक कानून। अपराध कानून वह शाखा है जो अपराधों से संबंधित है, यानी व्यक्ति के ऐसे कार्य या लापरवाही जो जेल या जुर्माने जैसी सज़ा दिलाते हैं। अपराध कानून को राज्य के ख़िलाफ़ माने जाते हैं। दूसरी ओर, नागरिक कानून नागरिक गलतियों से संबंधित है, जिनमें दंड के रूप में कोई आदेश, क्षतिपूर्ति आदि शामिल होते हैं। नागरिक गलतियां आम तौर पर व्यक्तियों या संस्थाओं के ख़िलाफ़ होती हैं।
इसलिए, नागरिक संहिता का मतलब है उन सभी कानूनों का संहिता बनाना जो नागरिक कानून के अंतर्गत आते हैं, जैसे संपत्ति कानून, अनुबंध कानून, पारिवारिक कानून, कॉर्पोरेट कानून आदि। एक समान नागरिक संहिता (यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (UCC)) का मतलब होगा एक ऐसा नागरिक संहिता जो सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू हो। भारत में, पारिवारिक कानून और संपत्ति कानून के कुछ तत्वों को छोड़कर, बाकी नागरिक कानून सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होते हैं (सिवाय इसके कि नागरिक और व्यक्ति के बीच फ़र्क़ किया गया हो)।
राजनीतिक दृष्टिकोण से, समान नागरिक संहिता का मतलब अब पारिवारिक कानून के विषयों - विवाह और तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने, भरण पोषण, आदि पर समान कानूनों से है, जो धर्म और जाति से परे हों। इस अर्थ में, भारत में समान नागरिक संहिता क़ानून पहले से मौजूद है (हालांकि इसे एक साथ संहिता के रूप में नहीं लिया गया) जैसे कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (जो विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह के उत्तराधिकार को सुरक्षा देता है)। विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत विवाह करना स्वैच्छिक है और इसलिए अधिकांश लोग इसे समान नागरिक संहिता नहीं मानते, हालांकि यह इसके तहत आता है।
भारत में समान नागरिक संहिता और व्यक्तिगत कानूनों के लाभ
1. सभी के लिए समानता और न्याय
समान नागरिक संहिता के पक्ष में सबसे प्रमुख तर्क भारतीय संविधान में निहित समानता और न्याय के सिद्धांतों से जुड़ा है। संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत राज्य को अपने नागरिकों के लिए इसे लागू करने की दिशा में काम करने का निर्देश दिया गया है। एक समान कानून यह सुनिश्चित करता है कि धर्म, जाति या लिंग के बावजूद सभी को एक जैसा व्यवहार मिले, जिससे एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना होगी।
2. महिलाओं के अधिकार और सशक्तिकरण
इस संहिता को लागू करने का एक मज़बूत कारण महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और उन्नति है। व्यक्तिगत कानूनों, खासकर विवाह, तलाक और उत्तराधिकार के मामलों में, अक्सर महिलाओं को नुक़सान होता है, जिससे उन्हें भेदभाव और शोषण का सामना करना पड़ता है। एक समान कानूनी व्यवस्था महिलाओं को समान अधिकार और अवसर प्रदान करेगी, जिससे उन्हें गरिमा और स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने का मौका मिलेगा।
3. कानूनी ढांचे का सामंजस्य
धार्मिक और सांप्रदायिक आधार पर विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों का अस्तित्व एक भ्रम और जटिलता पैदा करता है। एक समान विधिक ढांचा कानूनी परिदृश्य को सामंजस्यपूर्ण बनाएगा, प्रक्रियाओं को सरल करेगा और कानूनी स्पष्टता को बढ़ावा देगा। इससे न केवल न्यायिक प्रक्रिया सुगम होगी, बल्कि सभी नागरिकों के लिए न्याय तक पहुंच भी आसान होगी, चाहे उनका पृष्ठभूमि कोई भी हो।
4. राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा
भारत की विविधता में एकता उसकी सबसे बड़ी ताकत है, लेकिन यह राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में भी चुनौतियां पेश करती है। धर्म और जाति पर आधारित विखंडित कानूनी प्रणालियाँ सामाजिक विभाजन को गहरा सकती हैं। एक समान नागरिक अधिकार प्रणाली इन विभाजनों को पार करेगी, नागरिकों में समान पहचान और एकता का एहसास कराएगी, चाहे उनका सांस्कृतिक या धार्मिक जुड़ाव कुछ भी हो।
5. आधुनिकीकरण और प्रगति
आज की तेज़ी से बदलती दुनिया में, जहां सामाजिक मान्यताएँ और मूल्य तेज़ी से बदल रहे हैं, पुराने व्यक्तिगत कानून प्रगति के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न कर सकते हैं। यह कानूनी ढांचा, समकालीन सामाजिक मानकों और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करेगा, जिससे कानूनों को एक आधुनिक और प्रगतिशील राष्ट्र की भावना के साथ मेल खाएगा। यह सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देगा और एक समावेशी और समान समाज की दिशा में कदम बढ़ाएगा।
समान नागरिक संहिता और विवाह एवं तलाक
विवाह, तलाक, भरण-पोषण, अभिरक्षण, गोद लेने, उत्तराधिकार और वंशजता ये सभी “नागरिक संहिता” की परिभाषा के तहत आते हैं। वर्तमान में, भारतीय कानून के तहत इन सभी मुद्दों को धार्मिक परंपराओं या प्रत्येक धर्म से संबंधित संहिताओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
इसका मतलब है कि यदि भारत सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाती है, तो कई प्रकार की विधियों और प्रावधानों पर विचार करना होगा। इसके अलावा, राज्य-विशेष समुदायों, जातियों और जनजातियों की प्रथाओं को भी ध्यान में रखना होगा।
यह आयकर कानून, बाल संरक्षण कानून और अन्य कई विधियों पर भी प्रभाव डाल सकता है। यूरोपीय कानून की तरह, नागरिक कानून में लिंग और धर्म-निरपेक्ष प्रावधानों को लागू करने की कई मांगें की गई हैं।
विवाह और तलाक
2018 में, समान नागरिक संहिता पर अपनी रिपोर्ट में, 21वीं विधि आयोग ने यह उल्लेख किया था कि “विवाह और तलाक ने पारिवारिक कानून के सभी मुद्दों में से सार्वजनिक बहस में असंतुलित हिस्सा लिया है।” यह मुद्दा, समान नागरिक संहिता पर राजनीतिक बहस का मुख्य विषय है, जिसे “लिंग न्याय” और तलाक में महिलाओं के अधिकारों के संदर्भ में चर्चा की जाती है।
हालांकि, विभिन्न संहिताबद्ध कानूनों को देखें तो यह स्पष्ट होता है कि “विवाह” को परिभाषित करने, संपन्न करने, पंजीकरण करने और इसे समाप्त करने के तरीके में कुछ समानताएँ और अंतर हैं।
समान नागरिक संहिता का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) का विचार, भारतीय संविधान के अस्तित्व में आने से पहले से ही जटिल रहा है। यह मुद्दा, भारत में कई सदियों से गहन बहस और चर्चा का विषय रहा है। भारत की विविधता, अन्य कई बातों के साथ-साथ, इसकी भाषा और धर्म आधारित संस्कृति में निहित है। भारत, एक विविधतापूर्ण देश है, जिसके कारण यहाँ पर, वर्तमान में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए, अलग-अलग पारिवारिक कानून (व्यक्तिगत कानून) मौजूद हैं। ये पारिवारिक कानून, जो मुख्य रूप से प्राचीन धार्मिक रीति- रिवाजों और प्रथाओं पर आधारित हैं, लिंग आधारित भेदभाव के आरोपों का सामना करते हैं।
समान नागरिक संहिता का विचार, संविधान में व्यक्त किया गया था, ताकि सभी नागरिकों के लिए एक सामान्य कानून हो जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करे, चाहे उनकी धार्मिक पहचान कुछ भी हो। हालांकि, यह संविधान के अन्य प्रावधानों का उल्लंघन करता है, और इसी कारण समान नागरिक संहिता को लागू करना एक चुनौती बन गया है, जिसे कोई भी सरकार पार नहीं कर सकी है।
जब ब्रिटिश शासन ने भारत में कानूनों को संहिताबद्ध करना शुरू किया, तो उन्होंने मुख्य रूप से, अपराध और शासन से संबंधित कानूनों को संहिताबद्ध किया। हालांकि, वे धर्म, रीति- रिवाजों और सांस्कृतिक प्रथाओं में हस्तक्षेप करने में रुचि नहीं रखते थे। उन्होंने, इन क्षेत्रों में केवल तभी हस्तक्षेप किया जब संबंधित धर्मों के नेताओं से पहल और दबाव आया। उदाहरण के लिए, सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह आदि को कानून में शामिल किया गया, जब हिंदू समाज के नेताओं से इसके लिए पहल और दबाव आया।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5cp8f2x3
https://tinyurl.com/bd4bu4rj
https://tinyurl.com/ynnhccrn
https://tinyurl.com/4mz2tzuu
चित्र संदर्भ
1. कानून के हथौड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
2. न्याय के तराज़ू को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
3. भारत के नए संसद भवन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. साथ में हिंदू और मुस्लिम महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
संस्कृति 1941
प्रकृति 701