मेरठ वासियों ने गांधीजी के साथ मिलकर निभाई स्वतंत्रता आंदोलन में गुप्त भूमिका

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
30-01-2024 08:59 AM
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मेरठ वासियों ने गांधीजी के साथ मिलकर निभाई स्वतंत्रता आंदोलन में गुप्त भूमिका

हम सभी जानते हैं कि 1857 में बंगाल सेना के एक बहादुर सिपाही मंगल पांडे ने पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में दो ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला करते हुए आजादी का बिगुल फूंक दिया था। इस घटना के करीब एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 के दिन हमारे मेरठ की छावनी में कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में भी बगावत शुरू हो गई थी। हालांकि जल्द ही अंग्रेजों ने इस उग्र प्रतिरोध का दमन कर दिया था, जिसके बाद अगले कई दशकों तक यह चिंगारी दबी रही! लेकिन 19वीं सदी में महात्मा गांधी, आजादी की इसी मशाल को लेकर पूरे जोश के साथ आगे बढ़े! हालांकि इस बार उन्होंने किसी सीधे विद्रोह के बजाय शांति का मार्ग चुना! दिलचस्प बात यह है कि गांधीजी ने भी कई बार स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों में जोश भरने के लिए हमारे मेरठ शहर को ही चुना। 1803 में, ब्रिटिश और मराठों ने सुरजी-अंजनगांव की संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसके परिणामस्वरूप मेरठ का क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। इसके बाद मेरठ के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत हो गई। अंग्रेजों ने मेरठ में उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी छावनियों में से एक “मेरठ छावनी” की स्थापना की। इस कदम के बाद मेरठ क्षेत्र का इतिहास हमेशा के लिए बदल गया।
मेरठ छावनी की स्थापना 1800 के दशक की शुरुआत में, विशिष्ट रणनीतिक हितों को ध्यान में रखकर की गई थी। दरअसल हमारा मेरठ शहर पहले भी भौगोलिक रूप से शाही राजधानी दिल्ली से निकटता और उपजाऊ गंगा-यमुना दोआब के भीतर स्थित होने के कारण महत्वपूर्ण माना जाता था। अंग्रेजों ने मेरठ छावनी की स्थापना के तुरंत बाद, मेरठ शहर को पहाड़ियों में गोरखाओं के खिलाफ और कुछ वर्षों के बाद पंजाब में सिखों के खिलाफ अभियान शुरू करने के लिए अपना आधार बनाया। इस प्रकार, कुछ ही समय में यह उत्तरी भारत के सबसे महत्वपूर्ण ब्रिटिश सैन्य स्टेशनों (British military stations) में से एक और भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े सैन्य स्टेशनों में से एक बन गया।
मई 1857 तक, मेरठ कैंट (Meerut Cantt) कई रेजिमेंटों का घर बन चुकी था। यहाँ की ब्रिटिश रेजिमेंट (British Regiment) में एक पैदल सेना रेजिमेंट, घुड़सवार सेना रेजिमेंट और एक तोपखाना रेजिमेंट शामिल थी। इसके अलावा यहां की नेटिव रेजिमेंट (Native Regiment) में दो पैदल सेना रेजिमेंट, 11वीं नेटिव इन्फैंट्री (11th Native Infantry) और एक घुड़सवार सेना रेजिमेंट शामिल थीं। इसके अतिरिक्त, ब्रिटिश तोपखाने के साथ काम करने वाले 123 देशी गोलंदाज भी थे। देशी सिपाहियों का यूरोपीय सैनिकों से अनुपात लगभग 50-50% था, जो किसी भी ईस्ट इंडिया कंपनी छावनी (East India Company Cantonment) में सबसे अधिक था। मेरठ में तैनात ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों की इस विशालकाय संख्या ने संभवतः 1857 की चिंगारी को फैलाने के लिए मेरठ को एक आदर्श स्थान बना दिया था, क्यों कि यहां पर बड़ी संख्या में मौजूद भारतीय सैनिकों तक अपनी बात पहुंचाना अधिक आसान रहा होगा। मेरठ का चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय "1857 की भारतीय क्रांति" से लेकर "गोवा मुक्तिसंग्राम" (15 अगस्त, 1955) तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनकहे अध्यायों विशेष रूप से गांधीवादी आंदोलनों के महत्व को लगातार उजागर कर रहा है। क्या आप जानते हैं कि इसी विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों ने 1857 के विद्रोह शरू होने के दिन को शहीद दिवस के बजाय “क्रांति दिवस” करने की सलाह दी थी।
आवाज संसद तक पहुंचाई गई। कड़े संघर्षों के परिणाम स्वरूप 10 मई 2002 के दिन विद्रोह के शुरुआत के दिन को शहीद दिवस से बदलकर क्रांति-दिवस कर दिया गया और इस दिन स्थानीय अवकाश घोषित किया गया। विश्वविद्यालय द्वारा 1989 से विभिन्न कार्यक्रमों आंदोलनों के माध्यम से विद्रोह के गुमनाम नायकों का सम्मान किया जा रहा है। मेरठ शहर आजादी पाने के लिए हिंसा और अहिंसा के दोनों मार्गों का उपयोग किये जाने के दृश्य का गवाह रहा है। उदाहरण के तौर पर मेरठ में स्थित गांधी आश्रम महात्मा गांधी के अहिंसा, एकता, सादगी और स्थानीय आत्मनिर्भरता के सिद्धांतों का प्रमाण है। गढ़ रोड, मेरठ में स्थित यह आश्रम एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल माना जाता है, जिसकी स्थापना 1920 में हुई थी।
आश्रम के लिए भूमि जमींदार रघुनाथ नारायण सिंह त्यागी द्वारा उदारतापूर्वक दान की गई थी यह आश्रम भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था, जिसने जवाहरलाल नेहरू, जेबी कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री और फ्रंटियर गांधी जैसी प्रमुख हस्तियों को आकर्षित किया था। ये सभी लोग यहां पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने प्रतिरोध की योजना बनाने के लिए एकत्र होते थे। आश्रम के कर्मचारियों और कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में गुप्त भूमिका निभाई। यहां तक की 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई लोग जेल भी गए। 1931 में अपनी आखिरी मेरठ यात्रा के दौरान स्वयं गांधी जी भी इस आश्रम में रुके थे। इस आश्रम में विविध गतिविधियां आयोजित की जाती थी, जहां लोग प्रतिष्ठित तिरंगे भारतीय झंडों सहित विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बनाने के लिए खादी कपड़ों की कताई, बुनाई और सिलाई किया करते थे। इस आश्रम में निर्मित एक ऐसे ही झंडे को 16 अगस्त, 1947 में भारत की स्वतंत्रता को चिह्नित करते हुए लाल किले पर फहराया गया था।

संदर्भ
http://tinyurl.com/mr2j3p93
http://tinyurl.com/3fze8e9w
http://tinyurl.com/5c76dvsu
http://tinyurl.com/mr2j3p93

चित्र संदर्भ
1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नेता महात्मा गांधी को 1946 में बंगाल में एक घर का दौरा करते हुए संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
2. मेरठ छावनी को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. 1920 के दशक के दौरान ब्रिटिश सैन्य अभ्यास को दर्शाता एक चित्रण (getarchive)
4. 1857 के विद्रोह को संदर्भित करता एक चित्रण (needpix)
5. मेरठ के गाँधी आश्रम के बाहर लगे बोर्ड को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
6. मेरठ के गाँधी आश्रम को दर्शाता एक चित्रण (youtube)

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