अफ्रीका में चिम्पैंज़ी पर लेडी गुडॉल के अध्ययन, हमें मेरठ की वानर सेना को समझने में मदद करेगा

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02-01-2024 09:40 AM
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अफ्रीका में चिम्पैंज़ी पर लेडी गुडॉल के अध्ययन, हमें मेरठ की वानर सेना को समझने में मदद करेगा

शहरी परिवेश में मनुष्यों और बंदरों के आपसी टकराव के कारण, दोनों के लिए असुविधाएं और कई विवाद उत्पन्न हो रहे हैं। हाल के वर्षों में हमारे शहर, मेरठ में भी बंदरों से संबंधित उपद्रवों में वृद्धि देखी गई है। हालाँकि इंसानों और बंदरों या वानरों की विभिन्न प्रजातियों के बीच कई बार अटूट बंधन भी देखने को मिलता है।
उदाहरण के तौर पर अफ्रीका में लेडी जेन गुडॉल (Lady Jane Goodall) द्वारा वानरों पर आधारित व्यापक शोध हमारे लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। जेन गुडॉल, एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी प्राइमेटोलॉजिस्ट (primatologist), चरित्रशास्त्री और मानवविज्ञानी हैं। उनके 60 वर्षों के समर्पित अध्ययन के कारण उन्हें विश्व स्तर पर चिंपांजियों के अग्रणी विशेषज्ञ के रूप में मान्यता प्राप्त है। उनका अभूतपूर्व कार्य 1960 में तंज़ानिया के गोम्बे स्ट्रीम नेशनल पार्क (Gombe Stream National Park, Tanzania) में शुरू हुआ, जहाँ उन्होंने पहली बार चिम्पांज़ियों को देखना शुरू किया। आज वह गैर मानवाधिकार परियोजना के बोर्ड में कार्यरत हैं, और उन्हें अप्रैल 2002 में संयुक्त राष्ट्र शांति दूत नामित किया गया था। जेन गुडॉल ने सुदूर अफ़्रीकी वर्षावन में, एक वैज्ञानिक अवलोकन किया जिसे आधुनिक समय के सबसे महत्वपूर्ण अवलोकनों में से एक माना जाता है।
डॉ. गुडॉल ने बंदरों और चिंपैंज़ी के व्यवहार के संबंध में कई तुलनात्मक दावे सामने रखे हैं।
नीचे उनके कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष दिए गए हैं, जो उनके व्यापक वर्षों के अवलोकन अनुसंधान से प्राप्त हुए हैं:
1."चिंपैंज़ी के मस्तिष्क की शारीरिक संरचना मनुष्य से बहुत अलग नहीं होती है। हालांकि, मनुष्यों के बीच संचार के आगमन ने हमारे मस्तिष्क के विकास को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है, जिससे हम तेज़ी से जटिल कार्यों को पूरा करने में सक्षम हो गए हैं। लेकिन चिंपैंज़ी भी विभिन्न प्रकार के कार्य करने में सक्षम होते हैं, जिनमें उपकरण बनाना, अमूर्त सोच और सामान्यीकरण जैसे कार्य शामिल हैं। पहले ऐसा माना जाता था कि इन कामों को केवल मनुष्य ही कर सकते हैं। इतना ही नहीं चिंपैंज़ी, भाषा (विशेष रूप से सांकेतिक भाषा) भी सीख सकते हैं , और संकेतों का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकते हैं।
2. चिंपैंज़ी के संचार करने के अपने तरीके होते हैं, जिसमें गले लगाना, थपथपाना और आंखों से संपर्क करना जैसी शारीरिक क्रियाएं शामिल हैं। संचार के लिए वे विभिन्न प्रकार की ध्वनियों का भी प्रयोग करते हैं। हालाँकि, उनमें मनुष्यों की तरह चर्चा में शामिल होने की क्षमता नहीं होती है। भले वे इंसानों की तरह ध्वनियों से शब्द नहीं बना सकते हैं, लेकिन वे सांकेतिक भाषा सीख सकते हैं और संकेतों को विशिष्ट ध्वनियों के साथ जोड़कर इसका प्रभावी ढंग से उपयोग कर, संचार कर सकते हैं।
3. जब आईक्यू (IQ) द्वारा मापा जाता है, तो सबसे बुद्धिमान चिंपैंज़ी की बुद्धि, एक मानव बच्चे के बराबर होती है। चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) ने पहली बार अपनी पुस्तक "द एक्सप्रेशन ऑफ इमोशन इन मैन एंड एनिमल्स (The Expression of Emotion in Man and Animals)" में प्रस्तावित किया था कि विभिन्न प्रजातियों में चेहरे का प्रदर्शन एक जैसा होता है। चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन, एक अंग्रेजी प्रकृतिवादी, भूविज्ञानी और जीवविज्ञानी थे। उन्हें विकासवादी जीव विज्ञान के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। डार्विन ने प्रस्तावित किया कि सभी जीवन रूप एक ही पूर्वज से उत्पन्न हुए हैं, यह सिद्धांत अब व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है और विज्ञान में मौलिक माना जाता है।
डार्विन को मानव इतिहास में सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक माना जाता है। उन्होंने मनुष्यों और जानवरों के चेहरे के व्यवहार की तुलना करते हुए सुझाव दिया कि वे संभवतः समान भावनाओं से प्रेरित होते हैं। डार्विन का लक्ष्य यह साबित करना था कि सभी प्रजातियों में मानसिक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ निरंतर चलती रहती हैं, जो उस समय एक विवादास्पद विचार था। उनके काम ने मानव चेहरे के व्यवहार के विकास के बारे में हमारी समझ को प्रभावित किया है। डार्विन का मानना था कि चेहरे के भाव जैसे व्यवहार आंतरिक स्थितियों की प्रत्यक्ष अभिव्यक्तियाँ हैं। चिंपैंज़ी की तुलना में बंदर कम समझदार नज़र आते हैं। शायद इसीलिए हमारे मेरठ शहर में बंदरों के आतंक से जनता परेशान हो चुकी है। हालांकि नगर निगम के प्रभारी नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने वन विभाग के अधिकारियों से वार्ता कर, लोगों को बंदरों से निजात दिलाने की बात कही। चूँकि बंदर एक वन्य जीव है, जिसे पकड़ने के लिए पहले वन विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है, और इस प्रक्रिया में समय लगता था। बंदरों को पकड़ने के लिए शहर में जाल लगाए जाएंगे, और इसकी ज़िम्मेदारी नगर निगम के कर्मचारी और वन विभाग के कर्मचारियों को सौंपी जाएगी।

संदर्भ
http://tinyurl.com/yk5dbnp5
http://tinyurl.com/mrx6454z
http://tinyurl.com/4dwsfy6w
http://tinyurl.com/ywenkjyu
http://tinyurl.com/3vbvayk3

चित्र संदर्भ
1. बंदरों को भगाती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix, wikimedia)
2. लेडी जेन गुडॉल को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. अपने बच्चे को गले लगाते चिंपैंज़ी को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
4. नटखट बंदरों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)

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