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मेरठ में भूजल की उपलब्धता दिन-ब-दिन कम होती जा रही है। सन 2007 में भूजल विभाग के अनुसार भूजल देने वाले कुल खण्डों में से 37 खंड अति-शोषित हैं, 13 खंड विकट अवस्था में हैं तथा 88 खंड अर्ध-विकट अवस्था में हैं और 675 खंड सुरक्षित श्रेणी में हैं। राज्य में 2.13 मिलियन हेक्टेयर मीटर भूजल उपलब्ध है जिसमें से 1.95 मिलियन हेक्टेयर मीटर सिंचाई के लिए इस्तेमाल होता है। मात्र आज यह अवस्था और भी ज्यादा ख़राब हो गयी है। मेरठ ज़िले के तीन खंड खरखौदा, राजपुरा और माछरा संवेदनशील घोषित कर दिए गए हैं तथा माछरा को तो अति-संवेदनशील बताया गया है क्यूंकि यहाँ के भूजल की उपरी सतह पीने लायक नहीं रही। बढ़ती आबादी और बेतरतीब प्रदूषण की वजह से मेरठ की पानी की समस्या गंभीर होती जा रही है। मान्यता है कि अगर ऐसी ही हालत रही तो सन 2030 में मेरठ तीव्र जल संकट का सामना करेगा।
मेरठ का भूजल प्रतिसाल 68 से.मी. के हिसाब से कम होते जा रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में दाखिल एक आर.टी.आई. के जवाब के मुताबिक मेरठ के बहुत से गाँवों में भी पानी दूषित है जिसकी वजह से वह पीले रंग का दिखता है। भूजल पीने के पानी का प्रमुख स्त्रोत है। प्रस्तुत चित्र एक कूए का है जिसमे पानी की सतह कितनी नीचे जा चुकी है यह साफ़ दिख रहा है।
सरकार एवं कई संस्थाओं द्वारा इस समस्या को हल करने के लिए कोशिश की जा रही है जिसके तहत प्रदूषण नियंत्रित के लिए परियोजनाएं, नलकूप आदि का निर्माण, बारिश के पानी का संग्रहण करने के लिए प्रशिक्षण और बारिश पानी संग्रहण केंद्र शुरू किये जा रहे हैं। इसके साथ ही जवाहरलाल नेहरु नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन के अंतर्गत मेरठ पानी रसद परियोजना मंजूर हुई थी तथा उपरी गंगा नहर से पानी की उपलब्धता की योजना भी प्रमोचित की गई थी।
सरकार तो अपना कार्य करते रहेगी, उसी तरह विविध संस्थाएं भी मात्र कहती हैं कि “परोपकार घर से आरंभ होता है” इसीलिए नागरिकों को भी इस कार्य में जमकर हिस्सा लेना चाहिए और पानी की बचत में पूर्ण योगदान देना चाहिए।
1. सी-डेप 2007
2. मेरठ जल निगम, वाटर वर्क्स डिपार्टमेंट
3. सेक्टर वाइज स्लिप टेम्पलेट वाटर सप्लाई मेरठ
4. जनहित फाउंडेशन http://www.janhitfoundation.in/rainwater_harverting.html
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