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हमारे शहर मेरठ की नगर निगम का, प्रशासनिक कार्यालय ब्रिटिश काल के दौरान निर्मित हुआ है। क्या आप यह तथ्य जानते हैं? इसे टाउन हॉल(Town Hall)भी कहा जाता है। जिस भूमि पर यह कार्यालय बना है, वह भूमि शेख गुलाम मोहिउद्दीन की थी, और ब्रिटिश काल के दौरान मेरठ नगर निगम को पट्टे पर दी गई थी। जबकि, शेख गुलाम मोहिउद्दीन के कानूनी उत्तराधिकारी आज भी, मेरठ के कोठी भय्याजी में रहते हैं।
इस टाउन हॉल के अंदर, एक पुस्तकालय है,जिसे वर्ष 1886 में श्री कालीपाद बोस द्वारा स्थापित किया गया था। वे उस समय एक सरकारी वकील थे। इस ऐतिहासिक पुस्तकालय में महात्मा गांधी, सर सैयद अहमद खान, अली बंधु, जवाहर लाल नेहरू और उस समय के कई अन्य दिग्गज आ चुके हैं। लेकिन, इस हॉल के सबसे खास प्रशंसक,स्वामी विवेकानन्द थे। वे सबसे लंबे समय तक यहां रुके थे।उन्होंने लगभग छह महीनों तक, इस पुस्तकालय का नियमित रूप से दौरा किया, और इस पुस्तकालय में उपलब्ध लगभग सभी पुस्तकें भी पढ़ीं!
औपनिवेशिक काल के दौरान, भारत के कुछ महत्वपूर्ण शहरों में, सिटी टाउन हॉल(City Town Hall) का निर्माण किया गया था।इनमें से एक टाउन हॉल, 1880 के दशक में हमारे मेरठ में भी निर्मित हुआ, जिसे आज मेरठ की कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारतों में से एक माना जाता है। दरअसल, सिटी हॉल या टाउन हॉल, किसी शहर या कस्बे के प्रशासन का मुख्यालय होता है, जहां से आमतौर पर शहर या नगर परिषद, उससे जुड़े विभाग और उनके कर्मचारी कार्य करते हैं। यह आमतौर पर शहर, कस्बे, नगर या काउंटी मेयर(Mayor) का निवास भी होता है। जबकि, सिटी हॉल विशेष रूप से, बड़े शहरों में और टाउन हॉल, छोटे शहरी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
टाउन हॉल, मेरठ(Town Hall, Meerut) की स्थापना वर्ष 1886 में हुई थी। हालांकि, यहां मेरठ नगर निगम (नगर पालिका) का प्रशासनिक कार्यालय 1892 में ब्रिटिश काल के दौरान स्थापित किया गया था।
टाउन हॉल के संरक्षण का उद्देश्य अनुसंधान को प्रेरित करना और साहित्य, विज्ञान और प्राच्य कलाओं को संजोना है। वास्तव में, वास्तुशिल्प का चमत्कार माने जाने वाले ये टाउन हॉल एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण भी होते है।
आइए, हमारे शहर मेरठ के टाउन हॉल की, देश के कुछ मुख्य शहरों में स्थित टाउन हॉल्स के साथ तुलना करते हैं। ब्रिटिश वास्तुकला में निर्मित,कोलकाता टाउन हॉल, पश्चिम बंगाल की राजधानी में मौजूद, राजभवन के पास स्थित है। इस टाउन हॉल की वास्तुकला रोमन डोरिक शैली(Roman-Doric style)की है। वर्ष 1813 में वास्तुकार और इंजीनियर मेजर जनरल जॉन गार्स्टिन(John Garstin) (1756-1820) ने, यूरोपीय लोगों को सामाजिक समारोहों के लिए जगह प्रदान करने हेतु इसका निर्माण किया था।
हमारे देश की राजधानी में स्थित, पुराना टाउन हॉल, पुरानी दिल्ली, में सेंट स्टीफंस चर्च के पास है। नगरपालिका कार्यालय का भवन बनने से पहले इसमें एक पुस्तकालय और संग्रहालय था। आज इसके भव्य अग्रभाग को देखकर,हमारे भारतीय उपमहाद्वीप में औपनिवेशिक इमारतों पर जॉन मॉरिस(John Morris) की टिप्पणी का ध्यान होता है। वे कहते थे कि, “उनकी चिनाई में हम ब्रिटिश साम्राज्यवाद की मिश्रित भावनाओं का पता लगा सकते हैं, जो एक ही समय में, अहंकारी और पारिवारिक(देश के प्रति लगाव दिखाने की भावना)थे।” मॉरिस आगे कहते हैं, “यदि ब्रिटेन(Britain) ने सामान्य अर्थ में अपने साम्राज्य के पत्थर कहीं छोड़े हैं, तो उन्हें भारत में खोजा जा सकता है।”
बंगलोर टाउन हॉल भवन की आधारशिला 6 मार्च, 1933 को, मैसूर के तत्कालीन महाराजा, कृष्ण राजेंद्र वोडेयार द्वारा रखी गई थी। जबकि, इसका उद्घाटन 11 सितंबर, 1935 को मैसूर के तत्कालीन युवराज श्री कांतीरवा नरसिंहराजा वाडियार ने किया था। इसका निर्माण मैसूर के तत्कालीन दीवान सर मुहम्मद मिर्जा इस्माइल के कुशल मार्गदर्शन में किया गया था। यह प्रतिष्ठित इमारत वास्तुकला की यूरोपीय शास्त्रीय ग्रीको-रोमन शैली(Greco-Roman style) का प्रतिनिधित्व करती है। इस टाउन हॉल के मुख्य सभागार का निर्माण, आयताकार में किया गया है, और इसमें दो मंजिल हैं।
दूसरी ओर,टाउन हॉल, मुंबई एक औपनिवेशिक संरचना है, और इसे 1833 में बनाया गया था।टाउन हॉल, मुंबई, इस शहर की बेशकीमती वास्तुशिल्प इमारतों में से एक है। हॉल में प्राचीन पांडुलिपियों और भारत के दुर्लभतम खज़ानों का संग्रह है।19वीं शताब्दी के दौरान, इस टाउन हॉल को बोलचाल की भाषा में ‘टोंडल’ कहा जाता था। इस टाउन हॉल को, कर्नल थॉमस काउपर(Colonel Thomas Cowper) द्वारा डिज़ाइन किया गया था, जो मुंबई के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरों में से एक थे। इसकी संरचना ग्रीक और रोमन शैली की वास्तुकला से प्रेरित थी।
दरअसल, टाउन हॉल की आधुनिक अवधारणा स्थानीय या क्षेत्रीय सरकार के उदय के साथ विकसित हुई। किसी राजसी शासक के बजाय निर्वाचित या चुने हुए प्रतिनिधियों के समूह, द्वारा प्रशासित शहरों को उनकी बैठकों के लिए एक जगह की आवश्यकता होती थी। इस उद्देश्य के लिए भी, कई टाउन हॉल का निर्माण किया गया था।अतः, एक बड़ी इमारत में, एक बड़ा बैठक कमरा और कई प्रशासनिक कक्ष शामिल होते हैं। और, इमारतों के शीर्ष पर ऊंचे टावर होते हैं, जिनपर प्राचीन घड़ियां लगी हुई होती हैं। स्मारकों के लिए, भंडार कक्ष भी इसमें होते हैं।
हालांकि, 19वीं शताब्दी के दौरान, टाउन हॉल में अक्सर जनता को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के लिए वाचनालय शामिल होते थे। और, बाद में, ऐसे हॉल में, नगर परिषद के लिए सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना और रखरखाव करना प्रथागत हो गया। परिणामस्वरुप, भव्य कक्ष या बैठक स्थल– स्वयं स्वागत, भोज और सार्वजनिक मनोरंजन का स्थान बन गया।
जबकि, 20वीं सदी में, टाउन हॉल ने जनता को मतदान, परीक्षा, टीकाकरण, आपदा के समय राहत और युद्ध हताहतों की सूची पोस्ट करने के साथ-साथ, अधिक सामान्य नागरिक कार्यों, उत्सवों और मनोरंजन के स्थानों के रूप में सेवा प्रदान की है। परंतु, आज स्थानीय परिषदों में प्रशासनिक कार्यों को आधुनिक कार्यालयों में स्थानांतरित करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। जहां स्थानीय सरकारों के आवास के लिए, नए परिसरों का डिज़ाइन और निर्माण किया गया है। इस प्रकार, आज एक प्रशासनिक कार्यालय और एक नागरिक टाउन हॉल के कार्य अलग हो गए हैं।
संदर्भ
http://tinyurl.com/4536tahc
http://tinyurl.com/vnx2bbrw
http://tinyurl.com/3hk5bh6c
http://tinyurl.com/3yywc2uw
http://tinyurl.com/yc63e7hy
http://tinyurl.com/36tjd6fh
http://tinyurl.com/3nrmxx4j
चित्र संदर्भ
1. मेरठ के टाउन हॉल प्रांगण को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. नजदीक से मेरठ के टाउन हॉल को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. दिल्ली के टाउन हॉल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. बंगलोर टाउन हॉल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. टाउन हॉल, मुंबई को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
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