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पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में एक सुरंग के ढहने के कारण इसके अंदर फंसे हुए 41 श्रमिकों को आखिरकार सफलता पूर्वक निकाला जा चुका है! श्रमिकों को सुरंग अनुभाग से बाहर लाने के लिए अधिकारियों ने कई तकनीकों का उपयोग किया। इसमें मैन्युअल ड्रिलिंग (Manual Drilling) की एक तकनीक का भी प्रयोग किया गया था, जिसे चूहा खनन या रैट माइनिंग (Rat Mining) के नाम से जाना जाता है। जैसा कि आप इसके नाम से ही समझ सकते हैं, चूहा खनन या रैट-होल खनन (Rat-Hole Mining) मैन्युअल ड्रिलिंग की एक विधि है, जिसे कुशल श्रमिकों द्वारा किया जाता है! इस विधि के अंतर्गत श्रमिको द्वारा जमीन में संकीर्ण गड्ढे खोदे जाते हैं, जो केवल इतने चौड़े होते हैं कि इनमें एक व्यक्ति आसानी से अंदर घुस सके। इसी कारण इन गड्ढों को "चूहे का बिल" कहा जाता है।
ये गड्ढा आम तौर पर इतना बड़ा होता है कि एक व्यक्ति उसमें उतर सके और कोयला निकाल सके। गड्ढा खोदने के बाद, खनिक यानी श्रमिक, रस्सी और बांस की सीढ़ी का उपयोग करके इसमें उतरता है। इस विधि का उपयोग आमतौर पर कोयला निकालने के लिए किया जाता है और इसे बेहद खतरनाक माना जाता है। दम घुटने, ऑक्सीजन की कमी और भूख से खनिकों की मौत के बढ़ते मामलों को देखते हुए कई देशों में खनन की इस विधि को अवैध करार दे दिया गया है। रैट-होल खनन नामक यह मैन्युअल ड्रिलिंग भारत के मेघालय राज्य में सबसे आम है।
चूहे-खनन पद्धति की खतरनाक कामकाजी परिस्थितियों, पर्यावरणीय क्षति और चोटों तथा दुर्घटनाओं की वजह से होने वाली कई मौतों के कारण चूहा खनन पद्धति को प्रतिबंधों और गंभीर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। हालांकि उत्तराखंड में घटी घटना के अंतर्गत सरकार के नोडल अधिकारी नीरज खैरवाल ने स्पष्ट किया कि साइट पर काम कर रहे लोग वास्तव में रेट होल खनिक (Rate Hole Miner) नहीं बल्कि तकनीकी विशेषज्ञ थे। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की खदानें आम तौर पर अनियमित होती हैं, जिनमें उचित वेंटिलेशन (Ventilation), संरचनात्मक समर्थन या श्रमिकों के लिए सुरक्षा गियर जैसे सुरक्षा उपायों का अभाव होता है, जिससे खनिकों के लिए इनमें उतरना अत्यंत हानिकारक साबित हो सकता है।
इसके अतिरिक्त इस तरह की खनन प्रक्रिया से भूमि क्षरण, वनों की कटाई और जल प्रदूषण हो सकता है। इन्हीं सब मुद्दों को ध्यान में रखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal (NGT) ने 2014 में इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को हटा दिया और केंद्र सरकार तथा मेघालय सरकार को वैज्ञानिक रूप से अनुकूल खनन के लिए एक नीति बनाने के लिए कहा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि निजी और सामुदायिक भूमि मालिकों दोनों के पास सतह और उप-सतह अधिकार / खनिजों का स्वामित्व है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार केंद्र सरकार और मेघालय सरकार ने एक खनन योजना तैयार की है और केंद्र सरकार ने हाल ही में चार खनिकों के पट्टों को मंजूरी भी दे दी है। वैज्ञानिक खनन के लिए, अंतिम कागजी कार्रवाई जल्द ही पूरी कर ली जाएगी।
वैज्ञानिक कोयला खनन से, टिकाऊ और कानूनी रूप से अनुपालन वाली निष्कर्षण प्रक्रियाओं के माध्यम से, पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए कोयला खनन क्षेत्रों के पुनरुद्धार और रिमोट सेंसिंग (Remote Sensing), हवाई सर्वेक्षण और 3डी मॉडलिंग (3d Modeling) जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्राथमिकता दी जाएगी। वैज्ञानिक कोयला खनन से मेघालय के नागरिकों के लिए भी स्थायी आजीविका के अवसर खुलने की उम्मीद है। वैज्ञानिक कोयला खनन से उत्पन्न आय को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में निवेश किया जाएगा।
हालांकि मेघालय में अवैध कोयला खनन पर प्रतिबंध के बावजूद, उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक विशेष समिति ने पाया है कि यहां पर अभी भी अवैध रूप से खनन किए गए कोयले का अनधिकृत परिवहन हो रहा है। नवंबर 2022 में प्रस्तुत समिति की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि यहां पर कई असुरक्षित कोयला खदानें हैं, जो लोगों और जानवरों के जीवन को खतरे में डाल रही हैं और पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं।
अप्रैल 2022 में एक समिति का गठन किया गया था, जो यह जांच करेगी कि मेघालय सरकार अवैध कोयला खनन पर सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के प्रतिबंधों का अनुपालन कर रही है। समिति ने पूर्वी जैन्तिया हिल्स (East Jaintia Hills) और अन्य जिलों में कोयला खनन क्षेत्रों का दौरा किया और पाया कि राजमार्गों और वेट ब्रिज (Weighbridges) के पास बड़ी मात्रा में ताजा खनन किया हुआ कोयला डंप किया गया है।
समिति ने सिफारिश की है कि मेघालय सरकार हजारों असुरक्षित कोयला खदानों को बंद करने और अवैध रूप से खनन किए गए कोयले के परिवहन को रोकने के लिए एक कार्य योजना लागू करे।
पूर्वोत्तर भारत का राज्य मेघालय खनिज संसाधनों से समृद्ध है। यहाँ पर अधिकांश कोयला मिकिर हिल्स (Mikir Hills), खासी हिल्स (Khasi Hills), जैन्तिया हिल्स और गारो हिल्स (Garo Hills) में पाया जाता है। इन क्षेत्रों में अधिकांश कोयला खदानें स्थानीय आदिवासी लोगों द्वारा अपनी जमीन पर छोटे पैमाने पर संचालित की जाती हैं। इसके अलावा मेघालय में चूना पत्थर भी पाया जाता है। यह पश्चिमी गारो हिल्स, पूर्वी खासी हिल्स, पश्चिमी खासी हिल्स और जैन्तिया हिल्स जिलों में पाया जाता है। चूना पत्थर का उपयोग सीमेंट और अन्य निर्माण सामग्री बनाने में किया जाता है। खनिजों के समृद्ध राज्य मेघालय में अन्य खनिजों के भंडार भी हैं, जिनमें एपेटाइट (Apatite), चाइना क्ले (China Clay), तांबा, सीसा-जस्ता, चांदी, टाइटेनियम (Titanium) , फेल्डस्पार (Feldspar), रॉक फॉस्फेट (Rock Phosphate), फायर क्ले (Fireclay), ग्रेनाइट, लौह अयस्क, और सिलिमेनाइट (Sillimanite) आदि शामिल हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3du4yf46
https://tinyurl.com/ye2x7ehj
https://tinyurl.com/ymknz8ud
https://tinyurl.com/8mty5kzw
चित्र संदर्भ
1. रैट-होल खनन को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube, pexels)
2. सानलू गुफा को संदर्भित करता एक चित्रण (Wikimedia)
3. उत्तरखण्ड के उत्तरकाशी जिले में बन रही सुरंग को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. रैट-होल खनन क्षेत्र में काम कर रहे बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. भारत में मेघालय के स्थान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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