आधुनिक चित्रकला की स्वदेशी शैली ‘समीक्षावाद’ पर, मेरठ में छपी,रामचन्द्र शुक्ला की पुस्तक

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
29-11-2023 09:52 AM
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आधुनिक चित्रकला की स्वदेशी शैली ‘समीक्षावाद’ पर, मेरठ में छपी,रामचन्द्र शुक्ला की पुस्तक

आधुनिक भारत का पहला स्वदेशी कला आंदोलन कौन सा है, क्या आप जानते हैं? दरअसल, यह ‘समीक्षावाद’ है।यह आंदोलन वर्ष 1974 में, उत्तर भारत में शुरू हुआ था।“समीक्षा” एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ– जीवन और समाज की आलोचना, है। समीक्षावाद कला के पश्चिमी आंदोलनों से, थोड़ी अलग पहचान रखता है। क्योंकि, यह पश्चिमी कला से प्रभावित एवं प्रेरित होने का प्रयास नहीं करता है। यह अतीत की कला शैलियों या कला की वर्तमान शैलियों की भी, किसी प्रकार की नकल के खिलाफ है। इसकी प्रेरणा का मुख्य स्रोत तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिस्थितियां थी। जबकि, इसका उद्देश्य कला को वैयक्तिक दायित्वों से मुक्त कर उसका सामाजिकीकरण करना, एवं कला को विशेष उद्देश्य वाली एक वस्तु में बदलना है। इस शैली के माध्यम से, कलाकार प्रतीकात्मक और व्यंग्यात्मक भाषा के साथ, समाज और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करते हैं।1970 के दशक के अंत में, इस आंदोलन ने भारत में आधुनिक भारतीय चित्रकला के परिदृश्य को बदल दिया है।
इस आंदोलन से प्रेरित कुछ कलाकार– रवींद्र नाथ मिश्रा, हृदय नारायण मिश्रा, संतोष कुमार सिंह, वीरेंद्र प्रसाद सिंह, राम शब्द सिंह, रघुवीर सेन धीर, वेद प्रकाश मिश्रा, गोपाल मधुकर चतुर्वेदी, बाला दत्त पांडे आदि थे। जबकि, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में चित्रकला विभाग के प्राध्यापक तथा विभागाध्यक्ष, राम चन्द्र शुक्ला इस आंदोलन के आरंभकर्ता और प्रेरणा स्रोत थे।
इसका मूल उद्देश्य, देश में ऐसी कला को जन्म देना है, जिसकी जड़ें भारतीय मिट्टी में हो। कला का लोगों की सेवा करने, उन्हें प्रेरित एवं शिक्षित करने, उन्हें बेहतर जीवन और समाज के लिए तैयार करने के अलावा कोई अन्य उद्देश्य नहीं हो सकता है; और “समीक्षावाद” का यही उद्देश्य है। ‘समीक्षावादी चित्रों’ के विषय आम लोगों के सामाजिक जीवन से लिए गए हैं। पहले भी कई कलाकारों ने ऐसा किया है, और कुछ कलाकार आज भी ऐसा कर रहे हैं। हमारे देश भारत में, अमृता शेरगिल सामाजिक जीवन की पहली महत्वपूर्ण एवं सशक्त चित्रकार थीं। सतीश गुजराल ने भी, अपने शुरुआती दौर में सामाजिक जीवन को सशक्त ढंग से चित्रित किया था। लेकिन, इन चित्रकारों और समीक्षावादी चित्रकारों के बीच मौजूद दृष्टिकोण में अंतर है।
अधिकांश सामान्य कलाकार अपने दैनिक सामाजिक जीवन में रुचि रखते हैं।दरअसल, वे भी सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण और उपयोगी होते है, हालांकि, समीक्षावादी चित्रकार केवल इतने में ही संतुष्ट नहीं होते हैं। वे एक कदम आगे बढ़कर लोगों की दुर्दशा भी दिखा सकते हैं। लेकिन, वे उन लोगों पर हमला करने में अधिक रुचि रखते हैं, जो इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। क्योंकि, यदि कारण उजागर हो जाते हैं, तो लोग उन्हें मिटाने के लिए अधिक सतर्क हो जाएंगे। इस कला आंदोलन के संस्थापक– राम चन्द्र शुक्ला एक भारतीय चित्रकार और कला समीक्षक थे। शुक्ला जी का जन्म हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के शुकुलपुरा नामक एक छोटे से गांव में, एक किसान परिवार में हुआ था। हालांकि, उनके जन्म के तुरंत बाद उनके पिता इलाहाबाद में बस गए। और अतः, राम चन्द्र शुक्ला वहां पले-बड़े । उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की, एवं बंगाल स्कूल(Bengal School) के प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार क्षितींद्र नाथ मजूमदार से चित्रकला का अध्ययन किया। शुक्ला जी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के ललित कला विभाग में, एक कला शिक्षक के रूप में शामिल हुए थे। तथा, वर्ष 1985 में वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चित्रकला विभाग के प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुए।उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय पूर्व छात्र संघ, द्वारा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के “प्राउड पास्ट एलुमिनाय (Proud Past Alumni)” के रूप में भी सम्मानित किया गया है।
इसके बाद, वह अपने मूल शहर, इलाहाबाद लौट गए और वहां उन्होंने अपना स्टूडियो(Studio) शुरू किया। उन्होंने कभी भी,अपने चित्र नहीं बेचें। क्योंकि, वह बस कला की गहराई में जाना चाहते थे, और कला का आनंद लेते हुए एक आध्यात्मिक चित्रकार के रूप में काम करना चाहते थे। शुक्ला जी ने चित्रों के कई रूप और शैलियां चित्रित कीं, लेकिन, वे भारत में आधुनिक चित्रकला की एक स्वदेशी शैली की तलाश में थे। जिसे उन्होंने समीक्षावाद के रूप में विकसित किया।समीक्षावाद के अलावा, उन्होंने चित्रकला की विभिन्न स्वदेशी शैलियां विकसित की हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण काशी शैली और सहज पेंटिंग हैं। साथ ही, उन्होंने विजुअल आर्ट्स(Visual arts) पर कई किताबें लिखी हैं। शुक्ला जी ने, समीक्षावाद आंदोलन के चरम पर, हमारे शहर मेरठ की एक प्रकाशन कंपनी से, इस नई कला शैली के बारे में एक पुस्तक भी प्रकाशित की थी। हालांकि, इस कला शैली को आज ज्यादातर भुला दिया गया है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/3msd969y
https://tinyurl.com/2bwh75yz
https://tinyurl.com/4433auvr

चित्र संदर्भ
1. आधुनिक चित्र कला की स्वदेशी शैली ‘समीक्षावाद’ और रामचन्द्र शुक्ला के चित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. ‘समीक्षावाद’ शब्द को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. रामचन्द्र शुक्ला द्वारा निर्मित माँ काली के चित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रामचन्द्र शुक्ला के चित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. रामचन्द्र शुक्ला को समर्पित एक पुस्तक के पृष्ठ को दर्शाता एक चित्रण (facebook)

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