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धर्मयुग, भारत की सबसे अधिक लोकप्रिय पत्रिकाओं में शुमार थी। इसे 1949 से 1993 तक “टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप (Times Of India Group)” द्वारा प्रकाशित किया गया था। इस पत्रिका ने राजनीति, साहित्य, मनोरंजन, विज्ञान, कला, कथा और फैशन (Fashion) सहित, लगभग हर विषय को कवर कर दिया था। धर्मयुग, 80 के दशक के उत्तरार्ध तक A3 आकार प्रारूप में प्रकाशित होने वाली एक साप्ताहिक पत्रिका थी। धर्मयुग पत्रिका पहली बार भारत के स्वतंत्र होने के ठीक बाद, 1949 में डालमिया प्रेस (Dalmia Press) द्वारा बॉम्बे (मुंबई) में प्रकाशित हुई थी। 1948 में, डालमिया समूह ने बेनेट, कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड (Bennett, Coleman & Co. Ltd.) में अपना हिस्सा बेच दिया, लेकिन “धर्मयुग” टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के साथ ही रही। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' समूह भारत का एक प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान है, जो लम्बे समय से अस्तित्व में है। इस समूह ने सभी उम्र के लोगों के लिए कई अलग-अलग प्रकार की रोचक और मनोरंजक कॉमिक्स (Comics) बनाई हैं। उदाहरण के लिए, इस समूह ने बच्चों के लिए इंद्रजाल और पराग, फिल्म प्रेमियों के लिए फिल्मफेयर (Filmfare) और माधुरी तथा युवाओं के लिए सारिका, महिलाओं के लिए फेमिना (Femina) और अंग्रेजी साहित्य पसंद करने वालों के लिए द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया (The Illustrated Weekly Of India) तथा हिंदी में रूचि रखने वाले लोगों के लिए धर्मयुग का प्रकाशन किया। द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया और धर्मयुग दोनों ही वर्तमान की घटनाओं को कवर करते थे। उस समय पंडित सत्यकाम विद्यालंकार धर्मयुग पत्रिका के मुख्य संपादकों में से एक थे। 1960 में डॉ. धर्मवीर भारती द्वारा इसके मुख्य संपादक का पद संभालने के बाद इस पत्रिका की प्रसिद्धि आसमान छूने लगी।
भारती के समय में, धर्मयुग को भारत में शीर्ष हिंदी पत्रिकाओं में से एक माना जाता था और इसकी तुलना अक्सर 'द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया (The Illustrated Weekly Of India)' के हिंदी संस्करण से की जाती थी। डॉ. धर्मवीर भारती, इस पत्रिका में उच्च साहित्यिक मानकों को बनाए रखने के प्रति बहुत सख्त थे।
भारती अपने नाटक अंधा युग (1953) के लिए जाने जाते थे। वह साल 1987 तक मुख्य संपादक की भूमिका में रहे और इसके 10 साल बाद पत्रिका का प्रकाशन बंद हो गया। इस पत्रिका ने दुनिया भर और भारत से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को आम लोगों के घरों तक पहुंचाने का काम किया। लेखक और पत्रकार भी अपनी रचनाएँ, धर्मयुग में प्रकाशित होने को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखते थे।
धर्मयुग में कई तरह के विषयों जैसे कि “शहरीकरण भारत को कैसे बदल रहा था, इस पर सामाजिक टिप्पणी, या ग्रामीण भारत कैसे बदल रहा था?” पर लेख और कहानियां लिखी गई थी। यह पत्रिका पूरे भारत में पढ़ी जाती थी और इसके लगभग 8-9 लाख साप्ताहिक सदस्य थे। इसने अपने पाठकों तक हर राज्य की कहानियाँ पहुँचाने की कोशिश की। अपनी लोकप्रियता के चरम वर्षों में इस पत्रिका ने, प्रति सप्ताह चार लाख से अधिक प्रतियां बेच डाली थी।
धर्मयुग ने ऐसे विषम समय में भी नए कलाकारों के काम को प्रकाशित किया जब इन कलाकारों के पास अपनी प्रतिभा दिखाने के अधिक अवसर नहीं थे। आम लेखकों के साथ-साथ इस पत्रिका में कई प्रसिद्ध लेखकों और कलाकारों के काम को भी प्रकाशित किया गया था। उदाहरण के लिए, शिवानी की कहानियों और मोहन राकेश के नाटक प्रकाशित करने वाली यह पहली पत्रिका थी। इसमें मृणाल पांडे और राजेश जोशी की कृतियां भी प्रकाशित हुई। इसमें कई लोकप्रिय हिंदी लेखकों और कवियों की सिलसिलेवार कहानियाँ प्रकाशित हुईं।
इस पत्रिका ने राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता चित्रकार जे.पी. सिंघल की पहली पेंटिंग भी प्रकाशित की। तब वह मात्र 20 वर्ष के थे। अपनी पेंटिंग के प्रकाशन के बाद वह काफी मशहूर हो गए।
जिस तरह आज नया मोबाइल आते ही, उसे खरीदने के लिए होड़ मच जाती है, उसी प्रकार वह दौर ऐसा था जब लोग इस बात पर झगड़ते थे कि हर हफ्ते सबसे पहले पत्रिका कौन पढ़ेगा? क्योंकि इसमें सभी के लिए कुछ न कुछ जरूर होता था। आजादी के बाद भारत को दुनिया और खुद को बेहतर ढंग से समझने में, धर्मयुग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने पत्रकारिता के लिए भी एक उच्च मानक स्थापित किया, जिस पर कई प्रकाशन अभी भी खरा उतरने की कोशिश करते हैं।
“धर्मयुग” पत्रिका का एक मुख्य आकर्षण आबिद सुरती द्वारा रचित "'ढब्बू जी'" नामक कार्टून था, जो आम लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय था और जिसने सुरती को भारत के शीर्ष कार्टूनिस्टों (Cartoonists) में से एक बना दिया। इस पत्रिका में विभिन्न प्रकार के विज्ञापन भी जाते थे। 1970 के दशक में, धर्मयुग में नई रिलीज़ हुई हिंदी फिल्मों की समीक्षाएँ भी प्रदर्शित की जाती थीं। उदाहरण के लिए, हरीश तिवारी के निर्देशन में बनी 'जॉनी मेरा नाम' (1970) की समीक्षा भी इसमें प्रकाशित हुई। साथ ही इस पत्रिका में आगामी फिल्मों के लिए विज्ञापन भी प्रकाशित किए जाते थे। पत्रिका में इतिहास के प्रसिद्ध लोगों से जुड़े लेख और दूरदर्शन के समाचार भी शामिल किये जाते थे। 70 के दशक में प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट 'प्राण' के कार्टून भी धर्मयुग में नियमित रूप से छपते थे। इस पत्रिका में 1500/- रुपये के नकद पुरस्कार के साथ एक क्रॉसवर्ड साहित्यिक प्रश्नोत्तरी (Crossword Literary Quiz) भी हुआ करती थी, जो लोगों के बीच एक प्रमुख आकर्षण हुआ करती थी।
इंटरनेट के आगमन से पहले धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, और सारिका जैसी पत्रिकाएँ मध्यम वर्ग के बीच खूब लोकप्रिय हुआ करती थीं और लोगों की साहित्यिक अभिरुचि को आकार देने का काम करती थीं। इन पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद होने के साथ ही हिन्दी साहित्य जगत में एक खालीपन आ गया। इस कमी को 'लघु पत्रिकाओं' ने पूरा किया, जिनकी संख्या अब लगभग एक हजार हो गई है। आज तद्भव, हंस, समयांतर, पहल कथादेश, आलोचना, पल-प्रतिपल, नया ज्ञानोदय, समकालीन जनमत और उद्भावना जैसी ये 'लघु पत्रिकाएँ' गंभीर साहित्य और विचार प्रकाशित करती हैं। उदय प्रकाश, प्रभा खेतान और मैत्रेय पुष्पा जैसे कई प्रसिद्ध लेखकों को पहली बार इन्हीं पत्रिकाओं के माध्यम से पहचान हासिल हुई। ये पत्रिकाएँ समाज को भी प्रतिबिंबित करती हैं और अक्सर सत्ता को चुनौती देने का काम हैं। इन्हें प्रगतिशील, प्रयोगधर्मी, धर्मनिरपेक्ष माना जाता है और ये उत्पीड़ितों का समर्थन करती हैं।
सीमित बजट और संसाधन होने के बावजूद 'लघु पत्रिकाओं' ने हिंदी साहित्य में बड़ा योगदान दिया है। उदाहरण के लिए, उनमें से कई में 1857 के विद्रोह की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष लेख प्रकाशित किए गए । मुख्यधारा की पत्रिकाओं ने 1857 के विद्रोह के ऐतिहासिक महत्व पर चर्चा नहीं की, लेकिन 'छोटी पत्रिकाओं' ने की। उन्होंने विद्रोह को सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना के रूप में नहीं बल्कि वैश्विक प्रभुत्व के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा के रूप में देखा। इसलिए 'छोटी या लघु पत्रिकाएँ' आकार में भले ही छोटी हों, लेकिन वे आज भी समाज में बड़ी और अहम भूमिका निभाती हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/59vn37s6
https://tinyurl.com/ycx569ab
https://tinyurl.com/mscekdw4
https://tinyurl.com/446xaufy
https://tinyurl.com/mv35wrfp
चित्र संदर्भ
1. धर्मयुग पत्रिका को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. धर्मयुग पत्रिका के मुख्य पृष्ठ को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. डॉ. धर्मवीर भारती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. धर्मयुग के जून 1959 के अंक को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. धर्मयुग में उल्लेखित विभिन्न छवियों को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
6. विभिन्न हिंदी पत्रिकाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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