देवनागरी: भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय एवं बहुमुखी लिपि

ध्वनि 2- भाषायें
12-10-2023 09:33 AM
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देवनागरी: भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय एवं बहुमुखी लिपि

देवनागरी, उत्तरी भारत में उपयोग की जाने वाली सर्वाधिक लोकप्रिय लेखन प्रणाली या लिपि है। इसे भारत और नेपाल की आधिकारिक लिपियों में से एक माना जाता है। इसका उपयोग 120 से अधिक भाषाओं को लिखने में किया जाता है। लैटिन वर्णमाला, चीनी लिपि और अरबी लिपि के बाद यह दुनिया में चौथी सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली लेखन प्रणाली बन चुकी है। भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत को लिखने के लिए भी देवनागरी का ही उपयोग किया जाता है। देवनागरी लिपि का विकास 7वीं शताब्दी ई. में शुरू हुआ। यह गुप्त लिपि से बाद के वर्षों में विकसित हुई। 13वीं शताब्दी ई. के आसपास यह लिपि पूर्णतः विकसित हो चुकी थी। देवनागरी में 14 स्वर और 34 व्यंजन सहित कुल 48 मुख्य अक्षर होते हैं। देवनागरी बाएं से दाएं लिखी जाती है और इसमें अक्षरों के शीर्ष पर एक क्षैतिज रेखा होती है। इस रेखा को “शिरोरेखा” कहा जाता है। इसमें विशेषक यानी विशेष चिह्न भी होते हैं, जो अक्षरों की ध्वनि बदलने के लिए उनसे जुड़े रहते हैं। 'देवनागरी' शब्द दो शब्दों 'देव+नागरी' से मिलकर बना है। जहां देव का अर्थ "स्वर्गीय" या "दिव्य", और 'नागरी' का अर्थ "नगर" या "शहर" होता है। इस प्रकार 'देवनागरी' का अनुवाद "देवताओं के शहर" के रूप में किया जा सकता है। प्राचीन समय में इस लिपि का उपयोग मुख्य रूप से धार्मिक ग्रंथों और शिलालेखों में संस्कृत लिखने के लिए किया जाता था, लेकिन साथ ही इसका उपयोग उत्तरी और पश्चिमी भारत में स्थानीय भाषाओं को लिखने के लिए भी किया जाता था। दक्षिण भारत में इसे नंदिनागरी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ "नंदी की लेखनी" होता है। देवनागरी एक बहुत ही बहुमुखी लेखन प्रणाली है, जिस कारण यह सीखने के परिपेक्ष्य में भी बहुत आसान लिपि हो जाती है। अच्छी बात यह है कि “यह लिपि जैसी दिखाई देती है, वैसा ही इसका उच्चारण भी होता है।” पहली नज़र में, देवनागरी अन्य भारतीय लिपियों जैसे बंगाली-असमिया या गुरुमुखी से भिन्न नजर आ सकती है। लेकिन अगर आप करीब से देखेंगे, तो पाएंगे कि कुछ कोणों और जोर को छोड़कर इन सभी में काफी समानताएं हैं। देवनागरी का सबसे पुराना उदाहरण समनगढ़ नामक स्थान में खोजे गए एक अभिलेख में देखने को मिलता है। यह दंतिदुर्ग नामक राजा के समय में लिखा गया था, जो राष्ट्रकूट नामक एक बड़े क्षेत्र पर शासन करता था। इसे वर्ष 754 ई. में लिखा गया था। राष्ट्रकूट साम्राज्य के अन्य राजाओं और पश्चिमी चालुक्यों, यादवों और विजयनगर जैसे अन्य स्थानों / साम्राज्य में भी देवनागरी के प्रारंभिक प्रयोग के उदाहरण देखने को मिलते हैं। देवनागरी की उत्पत्ति “ब्राह्मी” नामक एक अन्य प्राचीन लिपि से हुई है, जिसका उपयोग पूरे भारत में किया जाता था। ब्राह्मी लिपि को वाणी और साहित्य के देवता “ब्रह्मा” द्वारा प्रदत्त माना जाता है। सम्राट अशोक के काल के बाद ब्राह्मी के विकास में तेज गति देखी गई। अशोक ने विभिन्न चट्टानों और स्तंभों पर अपने संदेश ब्राह्मी लिपि में ही लिखे थे। अशोक के बाद ब्राह्मी के विभिन्न प्रकार (सुंगन ब्राह्मी, कुषाण ब्राह्मी और गुप्त लिपि इत्यादि) विकसित हुए।। गुप्त लिपि का प्रयोग उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के शासनकाल में किया जाता था। गुप्त लिपि, दक्कन और दक्षिण भारत जैसे अन्य स्थानों पर भी देखी गई है, जहाँ यह थोड़ी अलग दिखती है। छठी और सातवीं शताब्दी में गुप्त लिपि से एक अन्य प्रकार की लिपि प्रचलित हुई। इसे “सिद्धमातृका या सिद्धम लिपि” कहा जाता था। इसका उपयोग भारत और मध्य एशिया तथा जापान जैसे अन्य देशों में धार्मिक ग्रंथ लिखने के लिए किया जाता था। सिद्धम लिपि का सबसे पुराना उदाहरण जापान के एक मंदिर में एक पत्ते पर लिखे हुए लेख को माना जाता है। माना जाता है कि देवनागरी सिद्धम लिपि से प्रेरित एक नई तरह की लिपि का नाम है। हालांकि देवनागरी में कुछ ऐसी भी विशेषताएं (जैसे प्रतीकों के शीर्ष पर रेखाएं, तिरछे स्ट्रोक, छोटे कोण या नाखून की तरह दिखने वाले बिंदु आदि।) हैं, जो इसे सिद्धम लिपि से अलग बनाती हैं। ये विशेषताएं नागरी लिपि में भी देखी जाती हैं। 8वीं शताब्दी से देवनागरी का उपयोग राजाओं के नाम और उनके हस्ताक्षर लिखने के लिए किया जाता था। उदाहरण के लिए, गुजरात में जय भट्ट नाम के एक राजा ने देवनागरी लिपि का उपयोग कर संस्कृत भाषा में अपना नाम "स्व हस्तो मम जयभट्टस्य" लिखा था, जिसका अनुवाद व् अर्थ है: "यह मेरे हस्ताक्षर हैं, जय भट्ट" । कई भाषाओं में देवनागरी का उपयोग मुख्य या माध्यमिक लिपि के रूप में किया जाता है। इन भाषाओं में मराठी, पाली, संस्कृत, हिंदी, बोरो, नेपाली, शेरपा, प्राकृत, अपभ्रंश, अवधी, भोजपुरी, ब्रज भाषा, छत्तीसगढ़ी, हरियाणवी, मगही, नागपुरी, राजस्थानी, खानदेशी, भीली, डोगरी, कश्मीरी, मैथिली, कोंकणी, सिंधी, मुंडारी, अंगिका, बज्जिका और संथाली शामिल हैं। भारत में पुराने समय में लोग अलग-अलग लिपियों का उपयोग, अलग-अलग उद्देश्यों के लिए करते थे। उदाहरण के लिए, मोदी लिपि, (जिसे तेजी से लिखना आसान होता है), का उपयोग मराठी में रोजमर्रा के लेखन के लिए किया जाता था, जबकि देवनागरी का उपयोग औपचारिक मराठी शिलालेखों के लिए किया जाता था। मुद्रण के आविष्कार से पहले, देवनागरी का उपयोग ज्यादातर पेशेवर लेखकों द्वारा लिखे गए औपचारिक ग्रंथों के लिए किया जाता था। ये ग्रंथ आमतौर पर पांडुलिपियों पर लिखे गए थे।
ब्राह्मी से गुप्त और देवनागरी तक के विकास को निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है। साथ ही देवनागरी में कुछ ऐसे भी अक्षर हैं, जिनके प्रतिरूप आज बदल गए हैं: जैसे देवनागरी लिपि के अंक निम्नवत दर्शाए गए हैं: आज, देवनागरी का उपयोग तीन प्रमुख भाषाओं (हिंदी (520 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली), मराठी (83 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली), और नेपाली (14 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली) को लिखने के लिए किया जाता है। इस प्रकार यह आधुनिक दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली लिपि है, जिस प्रकार प्राचीन काल में भूतपूर्व ब्राह्मी लिपि थी । साथ ही हिंदी, भारत सरकार की आधिकारिक भाषाओं में से एक है (अंग्रेजी के साथ), जबकि नेपाली, नेपाल की आधिकारिक भाषा है। मराठी, महाराष्ट्र की आधिकारिक भाषा है और इसे गोवा में भी आधिकारिक मान्यता प्राप्त है। हिंदी का उपयोग पूरे भारत में केंद्र सरकार के संस्थानों द्वारा भी किया जाता है और हिंदी भाषी राज्यों के बाहर दूसरी भाषा के रूप में इसे व्यापक रूप से पढ़ाया और बोला जाता है। देवनागरी का उपयोग भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त कई अन्य भाषाओं (बोडो, मैथिली, कश्मीरी, सिंधी, डोगरी और कोंकणी) को लिखने के लिए भी किया जाता है। प्राचीन भारत में लेखन एक जटिल प्रक्रिया हुआ करती थी। लेखक, श्रोता, संदर्भ और उद्देश्य के आधार पर लोग, एक ही भाषा लिखने के लिए विभिन्न लिपियों का उपयोग करते थे। इसके अलावा विभिन्न सामाजिक वर्गों और धार्मिक समूहों के लोग अलग-अलग लिपियों का उपयोग करते थे। उदाहरण के लिए, ब्राह्मण (पुजारी) अक्सर देवनागरी लिपि का इस्तेमाल करते थे, जबकि मुसलमान अक्सर फारसी-अरबी लिपि का इस्तेमाल करते थे। हालांकि, 19वीं शताब्दी में मुद्रण की शुरुआत ने सब कुछ बदल दिया। मुद्रण तकनीक के आगमन के बाद बड़ी मात्रा में पुस्तकें और अन्य पाठ्य सामग्री तैयार करना संभव हो गया। इससे हस्तलिखित पांडुलिपियों के उपयोग में गिरावट आई और मुद्रित ग्रंथों के उपयोग में वृद्धि हुई। मुद्रित ग्रंथ प्रायः देवनागरी लिपि में लिखे जाते थे। यही कारण है कि देवनागरी अब भारत में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली लिपि बन गई है। देवनागरी का प्रयोग भारत के बाहर भी किया जाता रहा है। उदाहरण के लिए, सिद्ध मातृका लिपि, जिसका देवनागरी से गहरा संबंध है, पूर्वी एशिया में बौद्धों द्वारा उपयोग की जाती थी। आज भारत में देवनागरी एक अत्यंत महत्वपूर्ण लिपि बन चुकी है और इसका प्रयोग प्रतिदिन लाखों लोग करते हैं।

संदर्भ

https://tinyurl.com/bdfvwume
https://tinyurl.com/2spsrfrr
https://tinyurl.com/57mf96ux

चित्र संदर्भ
1. वेदव्यास महर्षि के साथ माधवाचार्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. ज्ञानेश्वरी भगवद गीता पर लिखी गई एक टिप्पणी है, जिसे 1290 ई.पू. में देवनागरी लिपि का उपयोग करके मराठी में लिखा गया है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. देवनागरी अक्षरों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. पवित्र गाय को विश्व के रूप में चित्रित करने वाले क्रोमोलिथोग्राफ को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
5. अक्षर "क" के स्वर विशेषको को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. ब्राह्मी से गुप्त और देवनागरी तक के विकास को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. यूनिकोड ब्लॉक देवनागरी के लिए ग्राफिक बोर्ड को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. देवनागरी में लिखी गई प्रारंग की एक पोस्ट को दर्शाता एक चित्रण (prarang)

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