जी20 देशों एवं संयुक्त राष्ट्र की कार्य पद्धतियों में क्या है अंतर?

आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
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जी20 देशों एवं संयुक्त राष्ट्र की कार्य पद्धतियों में क्या है अंतर?

हाल ही में, हमारे देश ने जी20 (G20) के अध्यक्ष के रूप में जी20 सम्मेलन की मेजबानी की है, जो अत्यंत गर्व का विषय है। जी20 एक वैश्विक अंतरसरकारी मंच है, जिसमें 19 संप्रभु देश, यूरोपीय संघ (European Union) और अफ्रीकी संघ (African Union) शामिल हैं। यह मंच वैश्विक अर्थव्यवस्था से संबंधित प्रमुख मुद्दों, जैसे कि, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता, जलवायु परिवर्तन शमन और सतत विकास को संबोधित करने के लिए प्रतिबद्ध है। जी20 मंच विश्व के अधिकांश बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का गठबंधन है, जिसमें विकसित एवं विकासशील दोनों देश शामिल हैं।
जी20 की स्थापना वर्ष 1999 में उत्पन्न हुए, वैश्विक आर्थिक संकटों से निपटने के लिए की गई थी। वर्ष 2008 के बाद से, जी20 की एक वर्ष में, कम से कम एक बार बैठक बुलाई जाती है। इस बैठक में प्रत्येक सदस्य देश की सरकार या राज्य के प्रमुख, वित्त मंत्री या विदेश मंत्री और अन्य उच्च अधिकारी शामिल होते हैं। 2009 के बाद से, जी20 को अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक और वित्तीय सहयोग के लिए प्राथमिक स्थल माना जाने लगा। अगले 10 वर्षों के दौरान इस संगठन का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर इसका अपना प्रभाव एवं दबदबा है। और इसी वजह से कभी-कभी इस संस्थान की आलोचना भी की जाती है । जी20 के बारे में बात करते हुए कई लोगों के मन में प्रश्न होता है कि जी20 और संयुक्त राष्ट्र (United Nations) में क्या फर्क है? क्योंकि, हम एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान के रूप में संयुक्त राष्ट्र का नाम भी बार–बार सुनते हैं। आइए, आज इस पहेली को सुलझाने का प्रयत्न करते हैं तथा संयुक्त राष्ट्र के गठन एवं इतिहास के बारे में भी पढ़ते हैं। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र और जी20 के इच्छित उद्देश्य अलग-अलग हैं। संयुक्त राष्ट्र “अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध” है, जबकि, जी20 “अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विकास के लिए एक प्रमुख मंच” है। हमें यहां यह समझना चाहिए कि, विश्व में शांति बनाए रखने के उद्देश्य से गठित पहला अंतर्राष्ट्रीय अंतर-सरकारी निकाय “लीग ऑफ नेशंस” (League of Nations) था, जिसका गठन 10 जनवरी, 1920 में पेरिस शांति सम्मेलन (Paris Peace Conference) द्वारा हुआ था। फिर, 1945 में संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के बाद इसका परिचालन बंद कर दिया गया।
1919 में जब राष्ट्र संघ की स्थापना हुई, तब शांति बनाए रखने के लिए कोई भी अंतरराष्ट्रीय संगठन मौजूद नहीं था। हालांकि, 16वीं शताब्दी के पश्चात, कई विचारकों ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि निकायों के निर्माण, अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान, मध्यस्थता, या यहां तक कि, एक अंतरराष्ट्रीय पुलिस के निर्माण के माध्यम से शांति सुनिश्चित करने के लिए योजनाओं की संकल्पना की थी। अतः तब, लीग ऑफ नेशंस या राष्ट्र संघ पहला विश्वव्यापी अंतरसरकारी संगठन बना, जिसका मुख्य मिशन विश्व शांति बनाए रखना था। लीग का प्राथमिक लक्ष्य सामूहिक सुरक्षा और निरस्त्रीकरण के माध्यम से युद्धों को रोकना और बातचीत और मध्यस्थता के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाना था। इसके अलावा इसके अन्य उद्देश्यों में श्रम की स्थितियाँ, मूल निवासियों के साथ उचित व्यवहार, मानव और मादक पदार्थों की तस्करी, हथियारों का व्यापार, वैश्विक स्वास्थ्य, युद्ध के कैदी और यूरोप में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा शामिल थे। 28 सितंबर 1934 से 23 फरवरी 1935 तक इस संघ में 58 सदस्य थे। 1920 के दशक में कुछ उल्लेखनीय सफलताओं और कुछ प्रारंभिक विफलताओं के बाद, संघ अंततः 1930 के दशक में धुरी शक्तियों के आक्रमण को रोकने में असमर्थ साबित हुआ। और अंततः 20 अप्रैल 1946 को इसका परिचालन पूर्णतया बंद कर दिया गया जब इसके कई घटकों को नए संयुक्त राष्ट्र में स्थानांतरित कर दिया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान राष्ट्र संघ की गतिविधियाँ काफी प्रभावित हुई। 24 अक्टूबर 1945 को जब संयुक्त राष्ट्र चार्टर अस्तित्व में आया, तब भी राष्ट्र संघ सक्रिय था। कुछ महीनों तक दोनों संगठन सह-अस्तित्व में भी रहे। अप्रैल 1946 में, लीग के विघटन को औपचारिक रूप से मंजूरी देने के लिए 46 सदस्य राज्यों में से 35 राज्यों ने जिनेवा (Geneva) में बैठक की। दूसरी तरफ 12 जून 1941 को, ग्रेट ब्रिटेन (Great Britain), कनाडा (Canada), ऑस्ट्रेलिया (Australia), न्यूजीलैंड (New Zealand), दक्षिण अफ्रीका (South Africa) के प्रतिनिधियों के साथ-साथ बेल्जियम (Belgium), चेकोस्लोवाकिया (Czechoslovakia), यूनान (Greece), लक्ज़मबर्ग (Luxembourg), नीदरलैंड (Netherlands), नॉर्वे (Norway), पोलैंड (Poland), यूगोस्लाविया (Yugoslavia) और आज़ाद फ़्रांस (Free France) आदि सरकारों के प्रतिनिधि, जेम्स पैलेस (James Palace) के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए लंदन (London) में मिले।
इस घोषणा के दो महीने बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट (Roosevelt) तथा ब्रिटेन के प्रधान मंत्री चर्चिल (Churchill) एक सम्मेलन में मिले। तब, 14 अगस्त को दोनों नेताओं ने, एक संयुक्त घोषणा की, जिसे अब इतिहास में अटलांटिक चार्टर (Atlantic Charter) के नाम से जाना जाता हैं। अटलांटिक चार्टर के बिंदुओं ने सार्वभौमिक मानवाधिकारों के बुनियादी सिद्धांतों की पुष्टि की तथा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शांति स्थापित करने का दावा किया ।
फिर 1 जनवरी 1942 के दिन, राष्ट्रपति रूजवेल्ट, प्रधान मंत्री चर्चिल, यूएसएसआर (USSR– तत्कालीन रशिया राष्ट्र) के मैक्सिम लिट्विनोव (Maxim Litvinov) और चीन (China) के टी.वी.सूंग (T. V. Soong) ने एक छोटे दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए, जिसे बाद में “संयुक्त राष्ट्र घोषणा” के रूप में जाना गया। अगले दिन, बाईस अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने भी इस दस्तावेज़ पर अपने हस्ताक्षर किए। इस घोषणा पर हस्ताक्षर करने वाली सरकारों ने, अटलांटिक चार्टर को स्वीकार करने का वचन दिया और किसी भी धुरी राष्ट्र के साथ एक अलग शांति वार्ता न करने पर भी सहमति व्यक्त की।
इस घटना के तीन साल बाद, जब सैन फ्रैंसिस्को सम्मेलन (San Francisco Conference) की तैयारी की जा रही थी, तब केवल उन राष्ट्रों को ही इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, जिन्होंने मार्च 1945 तक जर्मनी (Germany) और जापान (Japan) पर युद्ध की घोषणा की थी तथा संयुक्त राष्ट्र घोषणा की सदस्यता ली थी।
विश्व में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए समर्पित एक अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना के मूल सिद्धांत, 1941 के बाद से जारी की गई विभिन्न घोषणाओं में पहले से ही निर्धारित किए गए थे। अगले चरण में, अब इस नए संगठन की संरचना को परिभाषित करना आवश्यक था। जबकि, दूसरी ओर चल रहे, सैन फ्रैंसिस्को सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य, इस नए संगठन के लिए एक चार्टर तैयार करना था, जो सभी देशों को स्वीकार्य हो। और चूंकि, 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होने वाला था, तथा कुछ राष्ट्र पूरी तरह से बर्बाद हो चुके थे, विश्व में शांति स्थापित करना अत्यंत आवश्यक था। 25 अप्रैल से 26 जून 1945 तक सैन फ्रैंसिस्को, कैलिफोर्निया (California) में ‘अंतर्राष्ट्रीय संगठन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’ में 50 देशों के प्रतिनिधि एकत्र हुए। अगले दो महीनों के लिए, वे संयुक्त राष्ट्र चार्टर का मसौदा तैयार करने और फिर उस पर हस्ताक्षर करने के लिए आगे बढ़े। और फिर इस प्रकार, एक नया अंतर्राष्ट्रीय संगठन बना, जिसे हम आज ‘संयुक्त राष्ट्र’ के नाम से जानते हैं। सैन फ्रैंसिस्को सम्मेलन समाप्त होने के चार महीने बाद, आधिकारिक तौर पर 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई। और तब से आज तक, संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने, जरूरतमंद लोगों को मानवीय सहायता देने, मानवाधिकारों की रक्षा करने और अंतरराष्ट्रीय कानून को बनाए रखने के लिए काम कर रहा है।
साथ ही, संयुक्त राष्ट्र ने हम सभी के लिए बेहतर और अधिक टिकाऊ भविष्य हासिल करने के लिए 2030 तक सतत विकास लक्ष्य भी निर्धारित किए हैं। अपने अतीत में, कई उपलब्धियों के साथ, संयुक्त राष्ट्र भविष्य की ओर, नई उपलब्धियों की ओर देख रहा है। संयुक्त राष्ट्र का इतिहास अभी भी लिखा जा रहा है।
हालांकि, आज जी20 देशों का महत्व बढ़ रहा है। आज, जी20 ऐसे निर्णय ले रहा है, जिनका व्यापक वैश्विक प्रभाव होगा। हालांकि, फिर भी, संयुक्त राष्ट्र ही “सार्वभौमिक भागीदारी और निर्विवाद वैधता वाला एकमात्र वैश्विक निकाय” है! ‘सार्वभौमिक भागीदारी’ की संकल्पना ने ही जी20 जैसे मंच के निर्माण को भी बढ़ावा दिया है। संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्य देश हैं। परंतु, संयुक्त राष्ट्र की समय पर निर्णय लेने की क्षमता, अक्सर ही, ध्रुवीकृत राय एवं नौकरशाही में फंस जाती है। अतः जी20 जैसे अधिक प्रभावी समूहों द्वारा दरकिनार किए जाने से, बचने के लिए संयुक्त राष्ट्र को अधिक प्रभावी और फुर्तीला होने की आवश्यकता है। चूंकि, जी20 का आकार विकासशील देशों तथा मध्यम ‘सकल घरेलू उत्पाद’ वाले देशों को शामिल करने से बढ़ गया है, इसलिए इसकी वैधता भी बढ़ गई है। जी20 के गठन के माध्यम से देशों के लिए, प्रमुखता से एक बड़े स्थान पर पहुंचने के लिए जगह बनाई गई थी। हालांकि, यह संयुक्त राष्ट्र की वैधता को कभी भी कम नहीं कर सकता है।
90% वैश्विक उत्पादन, 80% वैश्विक व्यापार, और दुनिया की दो-तिहाई आबादी को प्रभावित करते हुए, जी20 एक अच्छे प्रतिनिधि होने का उदाहरण बन रहा है। जबकि, संयुक्त राष्ट्र और जी20 दोनों ही विभिन्न राष्ट्रों के लिए महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
एक साथ मिलकर काम करते हुए, संयुक्त राष्ट्र और जी20 एक दूसरे के पूरक के रूप में कार्य करते हैं। जी20 को संयुक्त राष्ट्र की भी आवश्यकता है, क्योंकि, जो परिवर्तन जी20 लाते हैं, यह उन परिवर्तनों के लिए आवश्यक मंच प्रदान करता है। यह जी20 सदस्य देशों एवं संयुक्त राष्ट्र दोनों के सर्वोत्तम हित में होगा कि आगामी शिखर सम्मेलन को वे एक-दूसरे की ताकत को पहचानने के अवसर के रूप में देखें। और अपने सामान्य लक्ष्यों और उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के अवसर के रूप में इसका उपयोग करें।

संदर्भ
https://tinyurl.com/mr445d89
https://tinyurl.com/57ayejyx
https://tinyurl.com/3re8u4fc
https://tinyurl.com/495mekxt
https://tinyurl.com/35bm4665
https://tinyurl.com/4ent28u
https://tinyurl.com/5n6tak7k

चित्र संदर्भ
1. जी20 एवं संयुक्त राष्ट्र के प्रतीकों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. जी20 के राष्ट्राध्यक्षों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. लीग ऑफ नेशंस को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
4. लीग ऑफ नेशंस के विस्तार मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. G20 के दौरान नई दिल्ली में वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन के शुभारंभ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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