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आप सभी को गणेश चतुर्थी के इस पावन अवसर पर ढेर सारी शुभकामनाएं !
जैसा कि हम जानते ही हैं श्री गणेश हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। उन्हें गणपति, एकदंत, विनायक आदि नामों से जाना जाता है। क्या आप जानते हैं कि श्री गणेश को न केवल हिंदू धर्म में बल्कि बौद्ध धर्म में भी बहुत माना जाता है। हिंदू तथा बौद्ध दोनों धर्मों में, श्री गणेश को यिदम देवता (Yidam deity) अर्थात इष्ट देवता के साथ-साथ, धर्म रक्षक के रूप में भी सम्मानित किया जाता है। श्री गणेश, धर्म अभ्यास एवं समृद्धि के रक्षक है तथा विघ्न-बाधाओं को भी दूर करते है।
तिब्बती बौद्ध धर्म में वज्रयोगिनी एवं कुरुकुल्लावे के साथ-साथ गणेश तीन लाल देवताओं में शामिल हैं, जो साकिपा परंपरा (Sakypa tradition) के तेरह स्वर्ण धर्मों का हिस्सा हैं। श्री गणेश पंद्रह दिशा रक्षकों में से भी एक हैं और यहां उन्हें ‘विनायक’ के रूप में जाना जाता है। गुप्त काल के बौद्ध साहित्य में भी उनकी कई छवियां शामिल हैं। साथ ही, वह एकमात्र हिंदू भगवान हैं, जिन्हें बोधिसत्व माना जाता है।
महायान और वज्रयान सहित बौद्ध धर्म की अधिकांश शैलियों में गणपति प्रथा व्यापक और लोकप्रिय है। बौद्ध धर्म में मान्यता है कि हमारे पसंदीदा देवता श्री गणेश जी ने, हमारे देश भारत में स्थित महान स्तूप, गोमासाला गंडा में, गुरु पद्मसंभव के सामने धर्म की रक्षा करने का वादा किया था। तब गुरु पद्मसंभव ने गणेश की 108 साधनाओं की रचना की थी और उन्हें तिब्बत के दूसरे महान राजा त्रिसोंग देत्सेन (Trisong Detsen) को प्रदान किया था। बौद्ध धर्म गुरु रिनपोछे (Zasep Rinpoche) के अनुसार हिंदू धर्म में गणेश के 32 पहलू हैं, जबकि, बौद्ध धर्म में भी श्री गणेश के कई पहलू हैं, जिनमें अवलोकितेश्वर का भी एक पहलू शामिल है।
आइए, अब अवलोकितेश्वर की कहानी पढ़ते हैं। अवलोकितेश्वर (एक देवता) जानते थे कि गणेश एक शक्तिशाली देवता हैं और वे चाहते थे कि वे धर्म रक्षक बनें। अतः अवलोकितेश्वर ने निर्णय लिया कि ऐसा करने का एकमात्र तरीका, अधिक शक्तिशाली गणेश के रूप में प्रकट होना था। एक दिन जब गणेश उनके सेवकों के साथ सैर पर गए हुए थे, तो अवलोकितेश्वर ने स्वयं को गणेश के रूप में प्रकट कर शाही महल में प्रवेश कर लिया। तब, गणेश जी की पत्नी एवं उनके दल ने, उनका स्वागत किया। हालांकि, जब स्वयं गणेश जी महल में लौटे, तो उनकी पत्नी एवं दल भ्रमित हो गए। उन्होंने स्वयं श्री गणेश को बताया कि गणपति तो पहले से ही स्वर्ण सिंहासन पर बैठे हैं। तब श्री गणेश अवलोकितेश्वर की शक्ति से अभिभूत हो गए। और उन्होंने तुरंत ही, पवित्र धर्म की रक्षा और उसे बनाए रखने के लिए वचन दिया।
दूसरी ओर, शाक्यमुनि बुद्ध ने गणपति का ‘हृदय धरणी’ सूत्र ‘आर्य गणपति हृदय’ में घोषित किया है। इस सूत्र में, बुद्ध ने अभ्यास में आने वाली बाधाओं को दूर करने में मदद पाने हेतु,, गणपति की धरणी का अभ्यास करने का सुझाव दिया। उनके अनुसार, जो भी मनुष्य इसे पढ़ेंगे उनके सभी कार्य सिद्ध होंगे। उनके मन में जो भी आकांक्षाएं हैं, वे भी पूरी होंगी।
इसके अलावा, बौद्ध धर्म में, बारह भुजाओं वाले श्रीगणेश भी प्रसिद्ध है, जो हमारे इच्छापूरक है। और यह एक महान एवं लाल रंग केगणेश है। अर्थात उनकाशरीर लाल रंग का है। उनकी तीन आंखें हैं। उनके काले बाल एक कामना-रत्न के साथ, एक चोटी में बंधे हुए हैं तथा उनके सिर के मुकुट पर एक गुच्छे में लाल रेशम के धागे हैं। उनके बारह हाथों में, (दाहिने छह हाथों में) कुल्हाड़ी, तीर, अंकुश, वज्र, तलवार और भाला है। जबकि, बाएं छह हाथों में, एक मूसल, धनुष, खटवंगा, खून से भरा कपाल, मानव मांस से भरा कपाल और एक भाला और झंडे के साथ एक ढाल भी हैं। वस्त्र के रूप में गणेश रेशम के वस्त्र पहने हुए हैं और विभिन्न प्रकार के आभूषणों से सुसज्जित है। उनका बायां पैर नृत्य की शैली में फैला हुआ है। वे लाल टिमटिमाती रोशनी की उज्ज्वल किरणों के बीच में खड़े हैं। हालांकि, कभी-कभी उन्हें बैठी हुई मुद्रा में भी दर्शाया गया है। गणपति का यह रूप, तंत्र के चक्रसंवर चक्र से संबंधित है और इसे अवलोकितेश्वर का एक रूप या उत्सर्जन माना जाता है।
जैसा कि हमनें देखा कि, बौद्ध धर्म में, श्री गणेश को संरक्षक के रूप में सम्मानित किया जाता है। परिसर की सुरक्षा के लिए, हिमाचल प्रदेश के ताब में गेलुग्पा मठ के मुख्य द्वार के बगल में, भगवान गणेश की एक मूर्ति स्थापित की गई है। साथ ही, ताबो में एक महायान बौद्ध मंदिर में भी, गणेश की मूर्ति एक लकड़ी के मेहराब के ऊपर स्थित है।
गणेश पुराण के ‘गणेश सहस्रनाम’ के अनुसार, गौतम बुद्ध नाम भी भगवान गणेश के नामों में से ही एक है। गणेश सहस्रनाम की शुरुआत बुद्ध के नाम के उल्लेख से होती है। इससे पता चलता है कि गणपत्य संप्रदाय से संबंध रखने वाले लेखक इस नाम को बहुत महत्व देते थे। जबकि, भास्करराय की गणेश सहस्रनाम की व्याख्या में भगवान बुद्ध का उल्लेख भगवान गणेश के अवतार के रूप में किया गया है।
दूसरी ओर, एक बौद्ध ग्रंथ ‘साधनमाला’ से पता चलता है कि भगवान गणेश अन्य बौद्ध देवताओं में भी पूजनीय हैं।
यहां यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि हमारे हिंदू धर्म में प्रख्यात शैव गणेश, बौद्ध गणपति भगवान गणेश के समान देवता नहीं हैं।'महारक्त कहानी' के अनुसार, एक कथा है जहां अवलोकितेश्वर ने हिंदू भगवान गणेश को हराया, फिर एक हाथी का सिर हटाकर अपने सिर पर रख लिया। इससे उन्हें विजयी “दुष्ट” गणेश का रूप मिल गया। अतः महारक्त गणपति को बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का अवतार माना जाता है।
गणेश को बौद्ध देवता महाकाल द्वारा कुचले जाने वाले रूप में भी देखा जाता है। परंतु स्पष्ट रूप में, वह प्रतीकात्मक रूप से महाकाल के पैरों के नीचे प्रकट होते हैं। क्योंकि, यह गणेश द्वारा महाकाल के कार्य का समर्थन करने का एक प्रतीक है और न कि, महाकाल द्वारा उन्हें कुचले जाने की घटना है। अतः हम कह सकते हैं कि, गणेशजी की प्रतिष्ठित छवियां व्यापक रूप से भिन्न हैं।
भक्ति गणपति, शक्ति गणपति
सिद्धि गणपति, लक्ष्मी गणपति!
संदर्भ
https://tinyurl.com/5n7b4tbu
https://tinyurl.com/yc38f6fd
https://tinyurl.com/y7nsxwtd
https://tinyurl.com/2p8f3ms3
चित्र संदर्भ
1. बौद्ध गणेश को दर्शाता एक चित्रण (rawpixel, flickr)
2. विनायक गणेश को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बाली में श्री गणेश जी की मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
4. अवलोकितेश्वर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. गणपति को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
6. श्री गणेश की लघु छवि को दर्शाता एक चित्रण (creazilla)
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