कारतूस और मेरठ शहर के बीच है एक दिलचस्प ऐतिहासिक संबंध

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05-09-2023 11:55 AM
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कारतूस और मेरठ शहर के बीच है एक दिलचस्प ऐतिहासिक संबंध

कारतूस, एक ऐसा उपकरण है जिसे किसी बंदूक़, पिस्तौल या किसी अन्य हथियार में डाला जाता है। एक आधुनिक कारतूस, गोली (प्रक्षेप्य के रूप में), धातु या प्लास्टिक से बने कार्ट्रिज केस (Cartridge case), प्रणोदक (बारूद या धुआं रहित पाउडर या काला पाउडर), रिम (Rim) तथा प्रणोदक को प्रज्वलित करने वाले प्राइमर (Primer) से मिलकर बनी होती है। कारतूसों का एक समृद्ध इतिहास है और ये विभिन्न प्रकार के होते हैं। जहां वर्तमान में भारत, कारतूस निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जाना जाता है। वहीं, कारतूस और मेरठ शहर के बीच एक दिलचस्प ऐतिहासिक संबंध है। आइये सबसे पहले कारतूस के बारे में जानते हैं। कारतूस को गोली भी कहा जाता है तथा इसका इस्तेमाल विभिन्न हथियारों के लिए एक मुख्य घटक के रूप में किया जाता है। कारतूस को बंदूक या हथियार में भरा जाता है तथा जब हथियार को चलाया जाता है, तब कारतूस एक तीव्र आवाज के साथ बहुत तेज गति से हथियार से बाहर निकलते हुए अपने लक्ष्य को भेद देती है। कारतूस को कुछ इस तरीके से डिजाइन किया गया है कि, यह बंदूक के बैरल चैम्बर (Barrel chamber) के अंदर आसानी से फिट हो जाए, ताकि बंदूक को आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सके और जब जरूरत पड़े तब आसानी से उपयोग किया जा सके। "बुलेट" (Bullet) शब्द का उपयोग अक्सर अनौपचारिक रूप से एक पूर्ण कारतूस को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, लेकिन वास्तव में यह केवल प्रक्षेप्य को संदर्भित करता है। 19वीं शताब्दी के पहले दशकों में पॉली (Pauly) द्वारा विकसित किया गया कारतूस तकनीकी रूप से एक एकीकृत, सेंटर-फायर (Center-fire) तथा धातु से बनी कारतूस थी, लेकिन यह आज की कारतूस जैसी नहीं दिखती थी। पहला वास्तविक आधुनिक कारतूस 1846 में बेंजामिन हॉलियर (Benjamin Houllier) द्वारा पेरिस (Paris) में पेटेंट (Patent) कराया गया था। इस कारतूस को रिमफायर (Rimfire) और सेंटर-फायर दोनों वेरिएंट में पेटेंट कराया गया था और इसमें तांबे या पीतल के आवरण का उपयोग किया गया था। यह कारतूस अत्यधिक लोकप्रिय हुआ जो कि, पूर्ण रूप से धातु से बना पहला कारतूस था। हेनरी हार्डिंग (Henry Hardinge) ने भारतीय सेना में चर्बी लगे कारतूस वाली एनफील्ड राइफल्स (Enfield Rifles) की शुरुआत की, जो 1857 की क्रांति का कारण बनी। हेनरी हार्डिंग, जो 1844 से 1848 तक भारत के गवर्नर-जनरल थे, ने गवर्नर-जनरल के रूप में सेना के उपकरणों को आधुनिक बनाने का प्रयास किया। उन्होंने भारतीय सेना में ऐसी एनफील्ड राइफलें शामिल कीं, जिन पर चर्बी वाली कारतूस लगी हुई थी। मेरठ की एक बड़ी सैन्य छावनी में 2,357 भारतीय सिपाही और 2,038 ब्रिटिश सैनिक 12 ब्रिटिश-चालित बंदूकों के साथ तैनात थे। भारत में इस क्षेत्र में ब्रिटिश सैनिकों की सबसे बड़ी संख्या मौजूद थी। इस चीज को एक साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया तथा कहा गया कि इस समय जो वास्तविक विद्रोह हुआ, वह एक पूर्व नियोजित साजिश नहीं थी, बल्कि सहज में हुई घटना थी। वास्तविक विद्रोह से पहले कई महीनों तक विभिन्न प्रकार की घटनाएं होती रहीं, जिसकी वजह से क्षेत्र में तनाव बढ़ता गया। 26 फरवरी 1857 को 19वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री (Bengal Native Infantry) ने नई कारतूसों का उपयोग करने से मना कर दिया, क्योंकि वे इस बात से चिंतित थे कि नए कारतूसों को गाय और सुअर की चर्बी से लगे कागज में लपेटा गया है, जिन्हें उन्हें मुंह से खोलना पड़ेगा और उनकी धार्मिक संवेदनाएं आहत होंगी। सैनिकों के विद्रोही व्यवहार को देखते हुए उनके कर्नल ने परेड मैदान पर तोपें और घुड़सवार सेना बुला दी। हालांकि, कुछ बातचीत के बाद तोपों को वापस भेज दिया गया और अगली सुबह की परेड रद्द कर दी गई।
वर्तमान समय में भारत में उपयोग की जाने वाली सबसे लोकप्रिय कारतूसों में 9×19 मिलीमीटर पैराबेलम (9×19 mm Parabellum), 7.62×39 मिलीमीटर (7.62×39 mm), 5.56×45 मिलीमीटर नाटो (5.56×45 mm NATO), 7.62×51 मिलीमीटर नाटो (7.62×51 mm NATO), .338 लापुआ मैग्नम (.338 Lapua Magnum) शामिल हैं। 9×19 मिलीमीटर पैराबेलम सबसे लोकप्रिय हैंडगन (Handgun) कारतूस है, जिसका उपयोग दुनिया भर में पुलिस बलों, सेनाओं और नागरिकों द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसकी लागत कम है तथा यह आसानी से उपलब्ध हो जाती है, जिस कारण इसे अत्यधिक पसंद किया जाता है। 7.62×39 मिलीमीटर कारतूस, फैमिली कलाश्निकोव (Kalashnikov) या Ak 47 फैमिली की कारतूस है। पृथ्वी पर मौजूद कुल आग्नेयास्त्रों में 50 प्रतिशत से अधिक आग्नेयास्त्र, कलाश्निकोव फैमिली से सम्बंधित हैं। 5.56×45 मिलीमीटर नाटो, एक रिमरहित टोंटीदार मध्यवर्ती कारतूस परिवार से सम्बंधित है। इसे दुनिया भर में असॉल्ट राइफल गोली (Assault rifle ammunition) के रूप में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। शायद 7.62x39 मिलीमीटर गोलियों के बाद, इसका सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। 7.62×51 मिलीमीटर नाटो भी एक रिमरहित टोंटीदार राइफल कारतूस है, जिसे 1950 के दशक में नाटो देशों द्वारा छोटे हथियारों के लिए एक मानक कारतूस के रूप में विकसित किया गया था। इसका उपयोग HK G3, L1A1 SLR, FN FAL. जैसी युद्ध राइफलों में किया गया। .338 लापुआ मैग्नम भी एक रिमरहित, टोंटीदार, सेंटरफायर राइफल कारतूस है, जिसका विकास 1980 के दशक के दौरान सैन्य स्नाइपरों (Military snipers) के लिए उच्च शक्ति तथा लंबी दूरी तय करने वाले कारतूस के रूप में किया गया था। भारत में कई कारखानें रक्षा उत्पादों का निर्माण करती हैं। इन कारखानों में पुणे, महाराष्ट्र में स्थित गोला-बारूद फैक्ट्री खड़की, महाराष्ट्र में ही आयुध निर्माण वरंगांव, ईशापुर, पश्चिम बंगाल में मेटल एंड स्टील फैक्ट्री (Metal & Steel Factory), नागपुर, महाराष्ट्र में आयुध निर्माण अंबाझरी, महाराष्ट्र में आयुध निर्माण अंबरनाथ शामिल हैं।

संदर्भ:
https://tinyurl.com/ucv5bvsk
https://tinyurl.com/2p9cc78s
https://tinyurl.com/3fcdxndw
https://tinyurl.com/3s794298
https://tinyurl.com/43e5f3sn
https://tinyurl.com/56w4ka59

चित्र संदर्भ
1. 1857 के विद्रोह को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
2. कारतूस के भागों को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. विभिन्न आकार के कारतूसों को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. एनफील्ड राइफल्स को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. विद्रोह के दृश्य को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. अफ्यूसिल ग्रास एमएलई 1874 धातु कारतूस को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)

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