ताल: भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्राण-वायु

ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि
28-07-2023 09:41 AM
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ताल: भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्राण-वायु

यदि संगीत के निर्माण में सुर, लय और ताल का बुद्धिमानी से प्रयोग किया जाए, तो इन तीनों के संयोजन से एक ऐसे कालजयी गीत का निर्माण होता है, जो संगीत प्रेमियों के बीच सदा-सदा के लिए अमर हो जाता है। हालांकि, सुर और लय के संबंध में हम सभी भली भांति परिचित हैं, किंतु जब "ताल" की बात आती है, तो कुछ चुनिन्दा लोग ही इसके बारे में जानते हैं, या फिर कई लोग इसकी वास्तविक परिभाषा और उपयोग को लेकर भ्रमित नजर आते हैं।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में, "ताल" शब्द संगीत के लयबद्ध ढांचे या मापक को संदर्भित करता है। ताल एक संगीतमय दिल की धड़कन की तरह है, जो गाने को लय में रखती है। इसे हाथ की ताली, अंगुलियों के स्पर्श या ताल वाद्य यंत्रों के माध्यम से स्थापित किया जाता है। ताल को भारतीय संगीत की नींव माना जाता है। वैदिक ग्रंथों में ताल का इतिहास बहुत प्राचीन माना जाता है, और इसे दो प्रणालियों में विभाजित किया जाता है -
1. उत्तर में हिंदुस्तानी।
2. दक्षिण में कर्नाटक।
मूलतः ताल (ताळ) एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ 'स्थापित होना' होता है। ताल भारतीय संगीत को उसकी लयबद्ध संरचना प्रदान करता है।लेकिन, यह हमेशा एक नियमित पैटर्न का पालन नहीं करता। इसके बजाय, ताल को श्रेणीबद्ध तरीके से व्यवस्थित किया जाता है। ताल संगीत की लय और स्वरूप को निर्देशित करने तथा व्यक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हमेशा एक नियमित पैटर्न का पालन नहीं करती है, लेकिन संगीत के प्रदर्शन के आधार पर ताल की धुनों को श्रेणीबद्ध रूप से व्यवस्थित किया जाता है। आदि ताल आमतौर पर दक्षिण भारत में उपयोग किया जाता है, जबकि,तीन-ताल उत्तर भारत में लोकप्रिय है। भारतीय संगीत में, ताल कुछ-कुछ अंतरों के साथ पश्चिमी संगीत के म्यूजिकल मीटर (Musical Meter) की तरह ही होती। ताल संगीत रचनाओं को भी संरचना प्रदान करती हैं। संगीतकार और गीतकार गीत लिखते समय ताल पर ज़रूरविचार करते हैं।
कर्नाटक संगीत में, गीत, ताल के आधार पर 3, 4, 5, 7, या 9 थाप से बना होता है। प्रत्येक ताल में अलग-अलग थाप का प्रतिनिधित्व करने के लिए हाथ के इशारे किये जाते हैं, जिससे संगीतकारों को ताल चक्र का ट्रैक रखने में मदद मिलती है। ताल की पहली ताल, जिसेसाम कहा जाता है, सबसे महत्वपूर्ण होती है, और एक संदर्भ बिंदु के रूप में कार्य करती है। संगीतकार मूल लय को बनाए रखते हुए ताल के भीतर भी सुधार कर सकते हैं। ताल में अलग-अलग लय हो सकती हैं, और रचनाएंदो या तीन लय में प्रस्तुत की जा सकती हैं। आमतौर पर राग संगीत को माधुर्य प्रदान करता है।जबकि, ताल समय का उपयोग करके लयबद्ध सुधार की अनुमति देती है।
जब कोई ताल, तबला जैसे ताल वाद्ययंत्रों पर बजाई जाती है, तो मूल लयबद्ध वाक्यांश को "ठेका" कहा जाता है। लयबद्ध चक्र के भीतर की थाप को "मात्रा" कहा जाता है, और चक्र की पहली थाप "साम" होती है। बिना थाप की खाली ताल को "खाली" कहा जाता है।
ताल की चक्रीय प्रकृति भारतीय संगीत का एक महत्वपूर्ण पहलू है, और पूरे चक्र को "अवर्तन" के रूप में जाना जाता है। राग और ताल दोनों अनंत रचनात्मक संभावनाएं प्रदान करते हैं।लेकिन, परंपरागत रूप से, 108 मूल ताल माने जाते हैं। “नाट्य शास्त्र” नामक एक शास्त्रीय संस्कृत पाठ, ने भारत में शास्त्रीय संगीत और नृत्य की नींव रखी। इसके तहत संगीत वाद्य-यंत्रों को उनके ध्वनिक सिद्धांतों के आधार पर चार समूहों में वर्गीकृत किया गया। "ताल" (लयबद्ध चक्र) की प्रणाली भी भारतीय संगीत सिद्धांत का एक अनिवार्य हिस्सा मानी जाती थी।
दक्षिण भारतीय (कर्नाटक) संगीत में, एक पूर्ण ताल में सात "सुलादी ताल" होते हैं, जो तीन भागों वाले चक्रीय पैटर्न (Cyclic Pattern) हैं। संगीत प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक ताल को "कला" (प्रकार) और "गति" में विभाजित किया गया है। किसी भी ताल की पहली ताल, जिसे "साम" के नाम से जाना जाता है, लय में सबसे महत्वपूर्ण और जोर दिया जाने वाला बिंदु होती है। ताल को "क्रिया" नामक लयबद्ध हाथ के इशारों का उपयोग करके दर्शाया जाता है। इसकी कोई निश्चित गति नहीं होती है और इसे अलग-अलग गति से बजाया जा सकता है। सबसे आम ताल को "चतुरस्र-नादैचतुरस्र-जाति त्रिपुटा ताल " कहा जाता है, जिसे "आदि ताल" भी कहा जाता है। कर्नाटक संगीत में ताल की विभिन्न वर्गीकरण प्रणालियों का उपयोग किया जाता है। इनमें से कुछ तालों में चापू (चार प्रकार), चंदा (108 प्रकार), और मेलाकार्ता (72 प्रकार) शामिल हैं। कर्नाटक संगीत में तालों में तीन प्रकार की इकाइयां(लघु, धृतम् और अनुधृतम्) शामिल होती हैं। लघु(प्रतीक I)एक ताली है, जिसके बाद अंगुलियों की गिनती होती है और जाति (प्रकार) के आधार पर इसमें ताल की संख्या अलग-अलग होती है।
इसमें 5जातियां होती हैं, चतुरसरा (4 थाप), तिसरा (3 थाप), मिश्रा (7 थाप), खंडा (5 थाप), और संकीरना (9 थाप)।
धृतम्(प्रतीक O) एक ताली और हथेली की तरंग होती है, और इसमें 2 थाप होती हैं।
अनुधृतम्(प्रतीक U)एक एकल ताली होती है और इसमें 1 ताल होती है।
इन इकाइयों के संयोजन से 7 मूल ताल बनते हैं, जिन्हें “सुलधि सप्त” ताल के नाम से जाना जाता है। उदाहरण के लिए, ध्रुव ताल में क्रमपरिवर्तनIOII (लघु-धृतम्-लघु-लघु) होता है। इस प्रकार कुल मिलाकर 35 ताल हो जाती हैं, क्योंकि 7 सुलधि सप्त तालों में से प्रत्येक 5 अलग-अलग ताल बनाने के लिए अपनी जाति को बदल सकता है। सात ताल श्रेणियों या परिवारों और 35 तालों में से प्रत्येक के लिए अक्षरों की संख्या निम्नवत दी गई है:

इस लेख में हमने आपको उत्तर भारत और दक्षिण भारत के शास्त्रीय संगीत में उपयोग होने वाले ताल के बारे में संक्षेप में बताया है। आशा करते हैं कि इस लेख के माध्यम से आपको एक नई और रोचक जानकारी मिली होगी।

संदर्भ
 https://tinyurl.com/mryupwry
https://tinyurl.com/32m7jchw
https://tinyurl.com/5c2tkxe9
https://tinyurl.com/3phazvc9
https://tinyurl.com/4pw4b99k

चित्र संदर्भ
1. तबले पर थाप को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. तबला बजाते हुए उस्ताद जाकिर हुसैन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. एक संगीत समारोह को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. दक्षिण भारतीय संगीत को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

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