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आज के दिन अर्थात 7 जून को प्रत्येक वर्ष खाद्य मानकों पर हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ (World Food Safety Day) मनाया जाता है। खाद्य जनित रोग प्रतिवर्ष विश्व में 10 में से 1 व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। उचित खाद्य मानक यह सुनिश्चित करते हैं कि हम जो खाद्य खा रहे हैं वह सुरक्षित है। इस वर्ष, खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि, कृषि उत्पादन, और खाद्य जनित जोखिमों को समझने, रोकने, और उन्हें प्रबंधित करने के प्रोत्साहन हेतु पांचवां विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाएगा। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organisation-WHO) और ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (Food and Agriculture Organisation-FAO) ने मिलकर 2018 में इस दिन को नामित किया था। इस वर्ष का ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ “खाद्य मानक, जीवन बचाते हैं” (Food standards save lives) विषय पर आधारित है।
हमारा जिला मेरठ ‘गंगा के मैदान’ (Indo-Gangetic plain) में आता है, जो 2.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है। यह क्षेत्र भारत के 1.4 बिलियन लोगों में से लगभग 40% लोगों को भोजन प्रदान करता है। वर्तमान समय में, तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण, गरीबी और जलवायु परिवर्तन के कारण यह मैदानी क्षेत्र दबाव में हैं। इस मैदान में मानसून में परिवर्तन, बेमौसम वर्षा, तथा तीव्र गर्मी की लहरों जैसी चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को स्पष्ट करती दिखाई दे रही है। ये प्रभाव कृषि उत्पादन को भी काफी प्रभावित करते हैं। जलवायु में ये बदलाव कई छोटे और सीमांत किसानों की खाद्य सुरक्षा और आजीविका को भी खतरे में डालते हैं, खासकर केंद्रीय और पूर्वी मैदान के अधिक तनावपूर्ण क्षेत्रों में।
अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण, मौजूदा कृषि भूमि से होने वाली कृषि आय में 4% से 14% शुद्ध गिरावट और प्रति व्यक्ति आय में 3% से 7% गिरावट हो सकती है। साथ ही, गरीबी दर 1% से 2% तक बढ़ सकती है। इस स्थिति में, लगभग 49% से 74% आबादी, और कृषि भूमि के एक बड़े हिस्से पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके साथ ही यह भी अनुमान है कि 2050 के दशक तक चावल-गेहूं उत्पादन प्रणालियां भी जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक संवेदनशील हो जाएंगी। साथ ही, चावल-गेहूं के 55% किसान परिवार भी जलवायु परिवर्तन के कारण और प्रभावित हो सकते हैं।
भविष्य की कृषि प्रणालियों के परिदृश्य के बारे में, कुछ मॉडल यह सुझाव देते हैं कि 2050 के दशक तक चावल की उपज में 12% तक, और गेहूं की उपज में 24% तक की कमी हो सकती है। रासायनिक उर्वरकों के असंतुलित उपयोग के साथ-साथ चावल और गेहूं की लगातार ज्यादा पैदावार से मिट्टी की सेहत बिगड़ रही है, और उपज का स्तर स्थिर हो गया है। इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन ने समस्या को बढ़ा दिया है।
तीव्र खाद्य असुरक्षा से पीड़ित लोगों की संख्या 82 देशों में 2019 में 135 मिलियन से बढ़कर जून 2022 तक 345 मिलियन हो गई है। आशंका है कि दुनिया के सबसे अधिक खाद्य-असुरक्षित क्षेत्रों में फसलों की गिरती पैदावार, इससे अधिक लोगों को गरीबी में धकेल सकती हैं। अकेले दक्षिणअफ्रीका (South Africa) में अनुमानित 43 मिलियन लोग 2030 तक गरीबी रेखा से नीचे आ सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण उप–सहारा अफ्रीका (Sub-Saharan Africa), दक्षिण एशिया (South Asia) और दक्षिण पूर्व एशिया (South-East Asia) में फसल की विफलता और भूख से 80% वैश्विक आबादी सबसे अधिक जोखिम में है। क्योंकि यहां कृषक परिवार असमान रूप से गरीब और कमजोर हैं। और हमारा देश भारत भी इसी क्षेत्र में आता है!
कुपोषण, पानी की कमी, प्रति एकड़ कृषि का कम उत्पादन, और जलवायु परिवर्तन हमारे लिए भविष्य में और भी बड़ी चुनौतियां बन जाएंगी। ‘अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान’ (International Food Policy Research Institute) की वैश्विक खाद्य नीति 2022 रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन 2030 तक भारतीयों के बीच भूख के मुद्दे को बढ़ा सकता है। भारत में, 2050 तक, मिट्टी के कटाव से फसल की पैदावार में 10% तक की कमी आ सकती है। वर्तमान में भारत का मौजूदा प्रति एकड़ कृषि उत्पादन दुनिया में सबसे कम है, ऐसे में यह स्थिति और भी खराब हो सकती हैं।
हालांकि, वर्तमान समय में, कृषि प्रणाली के लिए बुवाई तकनीक, और फसल किस्मों को बेहतर बनाने की अनुकूलन रणनीति, चावल की उपज में 7% से 15% ,और गेहूं की पैदावार में 12% से 19% तक की वृद्धि कर सकती है। उत्पादन प्रणाली में इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप औसत शुद्ध कृषि प्रतिफल (net agricultural yield) में 11% से 14% की वृद्धि हुई है, और प्रति व्यक्ति आय में 7% से 8% की वृद्धि हुई है। भविष्य में, एक अनुकूलन रणनीति अपनाने से शुद्ध कृषि प्रतिफल 9% से 12% तक बढ़ सकता है। इसके साथ ही प्रति व्यक्ति आय में अतिरिक्त 6% से 9% की वृद्धि का भी अनुमान है, और कुल क्षेत्रीय गरीबी को 3% से 4% तक कम किया जा सकता है है। अनुमान है कि लगभग 53% से 60% किसान इन अनुकूलन रणनीतियों को अपना सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के बावजूद पारंपरिक ज्ञान, आधुनिक कृषि पद्धतियों, और आधुनिक एवं उभरती प्रौद्योगिकियों का विवेकपूर्ण उपयोग भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। ऐसे में, गंगा का मैदान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में अपना योगदान बढ़ा सकता है। इस प्रकार की पहल आगे चलकर आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने, और प्रति एकड़ उत्पादन में सुधार करने के लिए किसानों की क्षमता में वृद्धि ला सकती है। हमें आज फसल सुरक्षा और इसकी वृद्धि करने के लिए अधिक शोध और निवेश करने की आवश्यकता है। सरकार को भारतीय फसल संरक्षण और संवर्धन उद्योग को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा संरचना’ के एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में पहचानने की आवश्यकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3C4XZLB
https://bit.ly/45Kaiuq
https://bit.ly/3qncZSn
https://rb.gy/2sqhe
चित्र संदर्भ
1. खेती करते किसान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. खेत खोदती महिला किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. भूख से व्याकुल बच्चों को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
4. कतार में बैठकर भोजन करते गरीब बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pixabay)
5. खेत में हल जोतते किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (
Needpix)
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