मेरठ के कैंची निर्माता, क्या कीमत देकर इसे चमका रहे हैं?

नगरीकरण- शहर व शक्ति
06-06-2023 09:48 AM
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मेरठ के कैंची निर्माता, क्या कीमत देकर इसे चमका रहे हैं?

हमारे शहर मेरठ में बनने वाली कैंची के बारे में एक कहावत कही जाती है कि, ‘दादा ले पोता बरपे!’ इसका शाब्दिक अर्थ है ‘दादा जी द्वारा खरीदी गई कोई ऐसी चीज, जिसका उपयोग उनका पोता भी कर रहा हो, अर्थात हमारे शहर की बनने वाली कैंची इतनी मजबूत और टिकाऊ होती है कि वह पीढ़ियों तक चलती है।’ आज देश के लाखों घरों की अलमारियों में आपको पीढ़ियों से उपयोग में आ रही , मेरठ की कैंची अवश्य दिखाई देगी। संभव है कि इनमें से एक कैंची आपके घर में भी हो। लेकिन इस शानदार कैंची के निर्माण की भी एक कीमत होती है। मेरठ शहर का कैंची उद्योग लगभग 70,000 लोगों को आजीविका प्रदान करता है। इस उद्योग का इतिहास लगभग 350 वर्षों पुराना माना जाता है, और इसमें लगभग 400 छोटे और सूक्ष्म उद्यम शामिल हैं। वर्ष 2013 में, मेरठ की हाथ से बनी कैंची को जी.आई टैग(GI Tag) के नाम से विशेष पहचान मिली। जी.आई का पूरा नाम भौगोलिक संकेत (Geographical Indication) होता है, जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है। इतिहास में ऐसा पहली बार है , जब भारत में इस तरह के लघु व्यवसायों में काम करने वाले कारीगरों के हाथ से बने उपकरण को यह दर्जा मिला है। मेरठ में बनने वाली कैंची अद्वितीय मानी जाती है, क्योंकि यह पुनर्नवीनीकरण सामग्री से निर्मित होती है। इन कैंचियों के ब्लेड (Blade) पुरानी बसों, कारों, ट्रकों और रेल आदि की कबाड़ धातु से प्राप्त कार्बन स्टील (carbon steel) से बने होते हैं। काटने, घिसने, ड्रिलिंग और पॉलशिंग (Drilling And Polishing) करने के लिए बुनियादी मशीनों के अलावा ज्यादातर निर्माण प्रक्रिया हाथ से ही की जाती है। कैंची बनाने की प्रक्रिया कई चरणों से होकर गुजरती है। मेरठ के कई परिवार कई पीढ़ियों से, आपसी सहयोग के साथ यह काम करते आ रहे हैं। यहां के पुरुष कैंची बनाते हैं, जबकि महिलाएं हाथ के कार्यों (जैसे नक्काशी और पैकेजिंग) में योगदान देती हैं।
मेरठ में विभिन्न उद्देश्यों के लिए अलग-अलग प्रकार की कैंचियों का उत्पादन किया जाता है, जिनमें दर्जी की कैंची, नाई की कैंची, कागज काटने की कैंची, सख्त कैंची और तार काटने वाली कैंची भी शामिल हैं। कैंची के प्रत्येक प्रकार में ब्लेड, वजन, लंबाई और नोक के आकार जैसी विशिष्ट विशेषताएं होती हैं। कैंची का आकार छह इंच से लेकर 14 इंच तक होता है, और आकार के आधार पर इनकी कीमत 80 रुपये से लेकर 2,500 रुपये तक होती है।
हाल ही में भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘आत्मनिर्भरता मिशन’ के तहत चीनी (Chinese) सामानों के बजाय स्थानीय स्तर पर बने उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण, मेरठ कैंची उद्योग को बहुत बढ़ावा मिला है। बहुत से लोग मेरठ में बनी कैंची खरीदना पसंद करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यहां की कैंचियाँ चीन (China) के सस्ते विकल्पों की तुलना में अच्छी गुणवत्ता वाली और टिकाऊ होती हैं। कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन (Lockdown) केदौरान, बाल काटने वाली कैंची की मांग में वृद्धि देखी गई, क्योंकि इस दौरान कई परिवार संक्रमण के डर से नाई की दुकान पर जाने से बच रहे थे। हालांकि, हमारे शहर का कैंची उद्योग मेरठ का गर्व है, किन्तु इसका भविष्य चिंता से घिरा हुआ है। विद्वानों का मानना है कि चीनी उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए इस क्षेत्र को आधुनिकीकरण और नई तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है।
मेरठ का कैंची बाजार अपने कैंची उद्योग के लिए काफी प्रसिद्ध है। लेकिन आपको पर्दे के पीछे की एक काली सच्चाई भी जाननी चाहिए। दरअसल, इस उद्योग के श्रमिकों को जहरीले धुएं और रसायनों के संपर्क में आने के कारण गंभीर स्वास्थ्य संबंधी खतरों का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण वे सिलिकोसिस (Silicosis) और सिलिको ट्यूबरकुलोसिस (Silico tuberculosis) जैसी फेफड़ों की बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। सिलिकोसिस तब होता है जब धातु घिसने वाले मट्ठे से महीन सिलिका के कण फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं! इसके अलावा कैंची बनाने में शामिल निर्माण प्रक्रियाएं भी, जहरीले धुएं और रसायनों को छोड़ती हैं। कैंची की ब्लेड को तेज करने के दौरान श्रमिक, सिलिका कणों को साँस के साथ अंदर खींच लेते हैं। इसके अलावा कैंची का पीतल से बना हत्था बनाने के लिए भी सल्फ्यूरिक और नाइट्रिक एसिड (Sulfuric And Nitric Acid) जैसे रसायनों का उपयोग होता है, जो हानिकारक धुएं का उत्सर्जन करता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि कैंची उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की औसत आयु केवल 45-50 वर्ष की ही होती है। उचित सुरक्षा उपायों के अभाव में श्रमिकों की स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा जीवन को खतरा और भी अधिक बढ़ सकता है। इसके अलावा मेरठ के कैंची बाजार की 300 कैंची इकाइयों में से कोई भी इकाई ‘प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (Pollution Control Board) द्वारा पंजीकृत नहीं है। ये इकाइयां अवैध रूप से संचालित होती है। चूंकि, हजारों लोगों की आजीविका इस उद्योग पर निर्भर करती है, जिससे इन इकाइयों पर तत्काल कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है।
नीचे दी गई तालिका में कैंची निर्माण श्रमिकों में होने वाली विभिन्न बीमारियों के बारे में बताया गया है: हालांकि, इस प्रकार कैंची उद्योग जैसे छोटे लघु उद्योगों में लगे हुए श्रमिकों की सुरक्षा हेतु भारत ने अपने राष्ट्रीय स्तर के श्रम कानूनों को चार संहिताओं में समेकित और संहिताबद्ध किया है। ये कानून श्रमिकों की रोजगार की स्थिति, सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक स्वास्थ्य, सुरक्षा, और काम करने की स्थिति को सुनिश्चित करते हैं। पहले, भारत में 29 अलग-अलग श्रम कानून थे, जिनमें से कुछ बहुत पुराने थे और वर्तमान आर्थिक परिदृश्य के अनुकूल नहीं थे। लेकिन श्रम कानूनों के संहिताकरण के परिणामस्वरूप कई बदलाव और सुधार हुए हैं। श्रमिकों की सुरक्षा के मद्देनजर उत्तर प्रदेश की सरकार ने ‘ड्राफ्ट उत्तर प्रदेश व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति कोड नियम, 2021’ (Draft Uttar Pradesh Occupational Safety, Health and Working Condition Code Rules, 2021) नामक नए नियम पेश किए हैं। ये नियम यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि कर्मचारी सुरक्षित रहें हैं और उनके लिए काम करने की स्थिति आदर्श रहे। इन नियमों के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निम्नवत दिए गए हैं:
१. किसी कंपनी या प्रतिष्ठान को पंजीकृत करने के लिए, मालिक या प्रबंधक को फॉर्म-ए (Form-A) नामक एक आवेदन-पत्र भरना होता है। यह फॉर्म राज्य सरकार के श्रम विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर जमा किया जा सकता है।
२. चालीस वर्ष से अधिक आयु के सभी कर्मचारियों को नियोक्ता द्वारा आयोजित एक चिकित्सा परीक्षा से गुजरना पड़ता है।
३. यदि कार्यस्थल में कोई दुर्घटना होती है, तो नियोक्ता या प्रबंधक को तुरंत क्षेत्र के निरीक्षक-सह-सुकारक (Inspector-cum Facilitator) और मुख्य निरीक्षक-सह-सुकारक (Chief Inspector-cum-Facilitator) को व्यक्तिगत रूप से या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सूचित करना चाहिए।
४.कुछ प्रतिष्ठानों में राज्य सरकार के सामान्य या विशेष आदेश के तहत एक सुरक्षा समिति की आवश्यकता होती है। इसका उद्देश्य कार्यस्थल में सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
५. एक कर्मचारी एक दिन में अधिकतम चार घंटे या एक सप्ताह में बीस घंटे ओवरटाइम (Over Time) कर सकता है। यह नियम श्रमिकों को अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक कार्य करने से बचाने के लिए है।

संदर्भ
https://shorturl.at/CDXY1
https://shorturl.at/cizL8
https://shorturl.at/etZ37
https://shorturl.at/xyCZ2
https://shorturl.at/juKU4
https://shorturl.at/fhnDI

 चित्र संदर्भ

1. मेरठ के कैंची निर्माता को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. मेरठ की कैंची को संदर्भित करता एक चित्रण (Prarang)
3. विभिन्न प्रकार की कैंचियों को दर्शाता चित्रण (Prarang)
4. भारतीय लोहार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. रसायनों से धातु को साफ़ करते व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)

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