मेरठ की पहल:मवेशियों में सरोगेसी की सफलता,स्वदेशी नस्लों के संरक्षण में है फायदेमंद

डीएनए
03-06-2023 10:21 AM
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मेरठ की पहल:मवेशियों में सरोगेसी की सफलता,स्वदेशी नस्लों के संरक्षण में है   फायदेमंद


आपने फिल्मों एवं टेलीविजन नाटकों में, किराए की कोख अर्थात सरोगेसी (Surrogacy) का नाम अवश्य ही सुना होगा, जिसके द्वारा जो स्त्रियां मां नहीं बन सकती, वह किराए की कोख के द्वारा मातृसुख का अनुभव कर सकती हैं। मनुष्य में सरोगेसी से बच्चे होने की बात हमनें सुनी है, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अब सरोगेसी की मदद से एक गाय भी मां बन सकेगी। जी हां, आप सही पढ़ रहे हैं। इस पहल को हमारे मेरठ शहर के ‘केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान’ (Central Institute For Research On Cattle) ने मुमकिन कर दिखाया है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने गायों में सरोगेट मदर (Surrogate Mother) के सिद्धांत को सफलता पूर्वक पूर्ण किया है। वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान में फ्रिस्वाल नस्ल (Frieswal breed) वाली संकर गाय की कोख से सहिवाल नस्ल की बछिया का जन्म मुमकिन कराया है। हमारे शहर में स्थित इस संस्थान का यह प्रयोग पूरी तरह से सफल हुआ है। अब संस्थान सरोगेसी तकनीक की मदद से बांझ और कम दूध देने वाली गायों को इस मामले में भी उपयोगी बनाने के बारे में सोच रहा है। साथ ही, संस्थान का लक्ष्य भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक की मदद से ज्यादा से ज्यादा उच्च गुणवत्ताधारक स्वदेशी बछिया और बछड़ों को जन्म देना है, ताकि देश में अच्छी नस्ल की गुणवत्ता धारक गायों की संख्या और दुग्ध उत्पादन बढ़ सके। सरोगेसी सिद्धांत के द्वारा वृद्ध और कम दूध देने वाली गायों को सरोगेट मदर बनाया जा सकता है। ऐसी गाय जिसकी दूध उत्पादन क्षमता कम या खत्म हो गई है, उसका सरोगेसी के माध्यम से गर्भ धारण कराया जा सकता है। सामान्य या अवांछित नस्ल की गायों से भी सरोगेसी के जरिए उन्नत नस्ल की गाय का बच्चा उत्पन्न किया जा सकता है। एक सामान्य गाय अपने पूर्ण जीवनकल में 6 से 7 बार गर्भ धारण कर सकती है। इसके बाद गाय की प्रजनन क्षमता घटने लगती है। लेकिन सरोगेसी की मदद से हम गाय को उसके प्राकृतिक प्रजनन के बाद भी प्रजनन का मौका दे सकते हैं। इससे हमारे पशुधन में वृद्धि हो सकती है तथा गायों की उन्नत नस्ल खत्म होने से भी बच सकती है। पिछले कुछ दशकों में, भारत में दुग्ध उत्पादन में वृद्धि करने के एकमात्र उद्देश्य के परिणामस्वरूप हमारी स्वदेशी मवेशियों की नस्लों की आबादी में लगातार गिरावट आई है; जबकि विदेशी और संकर नस्लों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है। ‘केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय’ (Central Ministry of Fisheries, Animal Husbandry and Dairying) द्वारा हाल ही में जारी की गई 2019 की 20वीं पशुधन गणना से पता चलता है कि भारत में 2019 तक मवेशियों की कुल आबादी 19,34,62,871 थी , जिसमें विदेशी या संकर मवेशी 5,13,56,405 और स्वदेशी मवेशी 14,21,06,466 थे। इस संख्या में पिछली पशुधन गणना की तुलना में 0.8% वृद्धि हुई है। अगस्त 2021 तक, भारत में स्वदेशी देसी गायों की 50 नस्लें पंजीकृत हैं। हालांकि, कुछ मवेशी इस सूची में आज भी पंजीकृत नहीं है। विदेशी नस्लों की तुलना में स्वदेशी नस्लों के कई फायदे है। विदेशी नस्लों की तुलना में स्वदेशी नस्लों में बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। स्वदेशी पशु उस स्थानीय क्षेत्र के विशिष्ट रोगों के प्रति प्रतिरोधक होते हैं, जिस पर्यावरण में वे विकसित हुए हैं। कम निवेश के साथ प्रबंधन प्रणाली के लिए स्वदेशी नस्ल अधिक उपयुक्त होती हैं। ये नस्लें प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों और भोजन की कम उपलब्धता में भी उत्पादकता को समायोजित कर सकती हैं। स्वदेशी नस्ल स्थानीय वातावरण में बेहतर तरीके से जीवित रहती है। भारवहन के कार्य के लिए भी स्वदेशी नस्लें उपयुक्त होती है। आइए, भारत में पाई जाने वाली गायों की कुछ स्वदेशी नस्लों के बारे में जानते है:-
गिर गाय
: इस नस्ल की उत्पत्ति गुजरात के गिर जंगलों में हुई है। यह गाय महाराष्ट्र और राजस्थान राज्य में भी पाई जाती है। यह गाय एक स्तन्य स्त्रवण में लगभग 1200-1800 किलोग्राम दूध देती है। यह नस्ल अपनी मजबूती और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है। इसे भदावरी, देसन, गुजराती, काठियावाड़ी, सोर्थी और सुरती के नाम से भी जाना जाता है।
सहिवाल: इस नस्ल की उत्पत्ति पाकिस्तान से हुई है और यह गाय पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में पाई जाती है। सहिवाल को सर्वश्रेष्ठ स्वदेशी दुग्ध उत्पादक नस्ल माना जाता है। इसके दूध की उपज प्रति वर्ष 1,400 से 2,500 किलोग्राम तक होती है।
कांकरेज: गुजरात और राजस्थान राज्य में पाई जाने वाली कांकरेज गायों को अच्छी मात्रा में दूध देने वाली नस्ल माना जाता है, यह गाय लगभग 1600-1800 लीटर दुग्ध उत्पादन करती हैं।
लाल सिंधी: इन गायों की उत्पत्ति पाकिस्तान के कराची और सिंध से हुई है, हालांकि यह गाय भारत के विभिन्न हिस्सों में भी देखी जा सकती है।
आलमबाडी: इन मवेशियों की नस्ल दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में होती है। यह नस्ल लगभग विलुप्त हो चुकी है और दुर्लभ है। अतीत में, इसे आम तौर पर एक मसौदा पशु के रूप में रखा जाता था, हालांकि आधुनिक प्रजनक इस पारंपरिक नस्ल के दूध उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।
अमृत ​​महल: मवेशियों की यह नस्ल, कर्नाटक के मैसूर, हासन, चिकमंगलूर और चित्रदुर्ग जिले में पाया जाता है। इनके अलावा भारत में बरगुर, हल्लीकर, कंगायम, पुलिकुलम, खिलारी मवेशी, देवनी, हरियाना, थारपारकर, आदि स्वदेशी नस्लों के मवेशी भी पाए जाते हैं। जबकि हमारे उत्तर प्रदेश राज्य में मेवाती, केनकाथा, खेरीगढ़, पोंवर, गंगातीरी आदि स्वदेशी नस्लों का बोलबाला हैं। आज हमें हमारी स्वदेशी नस्लों को बचाना है। उनका संरक्षण समय की आवश्यकता है। इसके लिए, राज्य अपनी संबंधित मवेशी प्रजनन नीति की समीक्षा कर सकते हैं, ताकि स्वदेशी नस्लों के संरक्षण को प्राथमिकता दी जा सके। राज्य इनके संरक्षण कार्यक्रम को लागू करने हेतु क्षेत्र विशिष्ट और नस्ल विशिष्ट प्रजनन रणनीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं पर विचार कर सकते है। राज्य अपनी प्रजनन नीतियों में उन क्षेत्रों की भौगोलिक सीमाओं को चिन्हित कर सकते हैं, जहां देशी नस्लों के नर जानवरों के साथ संकरण कर, गैर-वर्णित मवेशियों का उन्नयन किया जा सकता है।
देशी नस्लों की मौजूदा प्रजनन प्रयोगशालाओं को ‘जर्मप्लाज्म रिपोजिटरी’ (Germplasm Repositories) अर्थात जननद्रव्य के भंडार-गृह के रूप में घोषित किया जाना चाहिए और इनका नर जानवरों को पैदा करने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। स्वदेशी नस्लों को बनाए रखने के लिए गौशालाओं का समर्थन करना जरुरी है ताकि वे प्रजनन के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले जननद्रव्य की आपूर्ति कर सकें। गौशालाओं को मवेशियों के आनुवंशिक मूल्यांकन के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी जानकारी तथा प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। इसके अलावा प्रजननको के संगठनों अर्थात ब्रीडर एसोसिएशन (Breeder Association) के सहयोग से स्वदेशी नस्लों में सुधार के लिए उत्कृष्ट जानवरों का चयन किया जा सकता है। साथ ही, स्वदेशी नस्लों के सभी विवरणों के संबंध में एक डेटाबेस (Data Base) विकसित किया जाना चाहिए, जिसमें उनके प्रजनन क्षेत्र, संख्या, लक्षण, जीन (Gene) संरचना, संस्थागत प्रयोगशाला, जहां उन्हें संरक्षित किया जा रहा है, आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध हो।

संदर्भ
https://bit.ly/3MMqQJg
https://bit.ly/43ySVdW
https://bit.ly/3IOa1fO
https://bit.ly/3ISigrg
https://bit.ly/3OPNYcI
https://bit.ly/3qnFyPx

 चित्र संदर्भ
1. एक गाय को उसके बछड़े के साथ दर्शाता एक चित्रण (wallpaper Flare)
2. जर्सी गाय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. साहीवाल गाय को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. गिर गाय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कांकरेज गाय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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