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पर्यावरण और विकास की राजनीति पर केंद्रित पाक्षिक पत्रिका ‘डाउन टू अर्थ’ (Down To Earth) के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में इस साल जनवरी और फरवरी के महीने के कुल 59 दिनों में से लगभग 28 दिन, चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव किया गया। इन घटनाओं की वजह से आठ लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी और शीत लहरों और ओलावृष्टि के कारण 3,89,127 हेक्टेयर फसल क्षेत्र प्रभावित हुई। इस साल जनवरी 2023 में फसल क्षेत्र में नुकसान जनवरी-फरवरी 2022 की तुलना में 13 गुना अधिक था। दूसरी तरफ, भारत में 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जनवरी-फरवरी 2023 में 21 दिन शीत लहर के साथ अत्यधिक ठंडे दिन दर्ज किए गए। जबकि, 2022 में इसी अवधि में 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 30 दिनों में शीत लहर के दिन दर्ज किए गए थे।
हरियाणा राज्य में 3,47,117 हेक्टेयर फसल क्षेत्र के नुकसान के साथ सबसे अधिक नुकसान की सूचना मिली थी। साथ ही, पाले की वजह से सरसों की फसल को नुकसान भी हुआ था। दूसरी ओर, राजस्थान में भी फसलों को भारी नुकसान हुआ है। राज्य में ओलावृष्टि के कारण कम से कम 42,000 हेक्टेयर गेहूं की फसल बर्बाद हो गई है। इसके बाद पंजाब का स्थान आता है, जहां शीतलहर के कारण कम से कम 10 हेक्टेयर क्षेत्र में आलू की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है। ‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’ (India Meteorological Department) के मासिक जलवायु सारांश के अनुसार, चरम मौसम की घटनाओं से उत्तर प्रदेश में शीतलहर से चार लोगों की मौत हो गई जबकि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बर्फबारी से चार लोगों की मौत हो गई। इसकी तुलना में हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पिछले साल जनवरी-फरवरी में भारी बारिश, बर्फबारी और बिजली गिरने से 22 मौतें हुईं थी। जबकि उसी समय, इन राज्यों में ठंडे दिन या शीत लहर के कारण कोई भी मृत्यु दर्ज नहीं की गई थी।
इस वर्ष 2023 के शीतकाल में 35 दिनों तक शीत लहर की स्थिति बनी रही, जबकि 2022 में यह स्थिति 43 दिन रही थी। इस वर्ष जनवरी और फरवरी के दोनों महीनों में शीत लहर वाले शीत दिवस कम थे। भारत में इस साल, वर्ष 1901 के बाद से अब तक का सबसे गर्म फरवरी महीना रिकॉर्ड किया गया। यह कमजोर पश्चिमी विक्षोभ, साफ आसमान और प्रतिचक्रवात के कारण होने वाली सर्दियों की बारिश के न होने के कारण हुआ है। देश में इस फरवरी महीने में औसत से 68% कम बारिश हुई है।
जबकि इस वर्ष देश में शीत लहर वाले या ठंडे दिन कम दर्ज किए गए है, आंकड़ों से पता चलता है कि जहां जनवरी 2022 में कर्नाटक, सिक्किम, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में शीत लहर या ठंड के दिन नहीं थे, वही इन राज्यों ने जनवरी 2023 में ठंड की स्थिति का अनुभव किया।
आइए, अब इस शीत लहर या ठंडे दिनों की आवृत्ति और तीव्रता के अनुमानों के बारे में पढ़ते हैं। अत्यधिक ठंड में रुझानों को परिभाषित करने और उनकी जांच करने के तरीके में यह देखा जाता है कि समय के साथ हर कैलेंडर वर्ष का सबसे ठंडा तापमान कैसे बदल रहा है। यहां किसी विशिष्ट स्थान पर सबसे ठंडे वार्षिक तापमान में ऐतिहासिक प्रवृत्ति का मानचित्र प्रस्तुत किया गया है-
IPCC AR6 चित्र 11.9b से 1960-2018 तक वर्ष के सबसे ठंडे तापमान में रुझान
उपरोक्त मानचित्र में संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) के आधे पूर्वी हिस्से के ठंडे मौसम और ठंड के कुछ अलग पहलुओं को देखते हुए यह स्पष्ट है कि अत्यधिक ठंड में कम तीव्रता और कम आवृत्ति बढ़ रही है। वर्ष 1950 के बाद से वैश्विक स्तर पर ठंडे दिन और रातों की संख्या में कमी आई है। जबकि चरम ठंडे और गर्म दोनों तापमान की स्थितियां बढ़ते तापमान को प्रदर्शित करती हैं। इस बात की बहुत संभावना है कि ये परिवर्तन यूरोप (Europe), ऑस्ट्रेलिया (Australia), एशिया (Asia) और उत्तरी अमेरिका (North America) में क्षेत्रीय स्तर पर भी हुए हैं। 1960 के दशक के बाद से भूमि पर वार्षिक न्यूनतम तापमान, वैश्विक सतह के तापमान की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक बढ़ गया है। यह विशेष रूप से उत्तरी ध्रुव के आसपास तेज गर्मी के साथ बढ़ा है।
जलवायु से संबंधित घटनाओं के बारे में पूर्व सूचना देने वाले मॉडल बताते हैं कि चरम ठंड की आवृत्ति और ठंड की तीव्रता में देखी गई कमी वास्तव में ग्रीनहाउस गैस सांद्रता में वृद्धि के कारण है। ये मॉडल चरम ठंड के गर्मी से प्रभावित होने का भी अनुमान देते हैं। इस प्रकार भविष्य में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से ठंड की आवृत्ति और ठंड की तीव्रता में और भी अधिक कमी आने के अनुमान भी लगाए गए हैं। निष्कर्ष बताते हैं कि 21 वीं सदी में दुनिया भर में चरम ठंड की तीव्रता और आवृत्ति में गिरावट होगी। सबसे ठंडे दिनों के तापमान में सबसे अधिक वृद्धि उत्तरी ध्रुव के क्षेत्रों में, ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) की दर से लगभग तीन गुना अधिक होने का अनुमान है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अत्यधिक ठंड कम हो जाएगी क्योंकि उत्तरी ध्रुव की हवा, जो ठंडी हवा का एक स्रोत है, बाकी पूरे विश्वभर की हवा की तुलना में बहुत तेजी से गर्म हो रही है। इसका मतलब है कि जब यह ठंडी हवा दक्षिण की ओर बहती है तो यह उतनी ठंडी नहीं होती है, जितनी पहले हुआ करती थी, जिसके कारण ठंड की तीव्रता में कमी आ रही है।
आर्कटिक क्षेत्र (Arctic circle), अर्थात उत्तरी ध्रुव पर ठंडी हवाओं के विस्तारण की घटनाएं जेट स्ट्रीम(Jet Stream) को भी प्रभावित कर सकती हैं। जेट स्ट्रीम ऊपरी वायुमंडल में तेजी से चलने वाली हवा की एक धारा है। इससे आर्कटिक से बाहर और मध्य अक्षांशों में ठंडी हवा के दक्षिणी बहाव के बढ़ने की संभावना है। अनुमान लगाया गया है कि इससे कमजोर जेट स्ट्रीम अधिक लहरदार (बड़ी तरंग आयाम) और अधिक घुमावदार हो सकती है। जेट स्ट्रीम के चरित्र में इस परिवर्तन को ध्रुवीय भंवर कहा जाता है। घुमावदाल के जेट स्ट्रीम के कारण दक्षिण में और कुछ मध्य अक्षांशों पर ठंडी हवा बढ़ सकती है। जिससे अत्यधिक ठंड के दौर की अवधि भी बढ़ सकती है क्योंकि लहरदार जेट स्ट्रीम चरम मौसम की आवृत्ति को बढ़ाती है।
शोधकर्ताओं को विश्वास है कि चरम ठंड वैश्विक रुझानों के हिसाब से प्रभावित होगी। यह धीरे-धीरे गर्म हो जाएगी, हालांकि फिर भी इससे उन जगहों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा जो ठंड के आदी नहीं हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3AOdHdj
https://bit.ly/41WSIkg
https://wapo.st/3Vsbvl5
चित्र संदर्भ
1. खेत में किसान और ठण्ड में प्रसन्न बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (Pxfuel, flickr)
2. अपने खेत का अवलोकन करते किसान को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. 1960 से 2018 तक वर्ष के सबसे ठंडे तापमान में रुझान को दर्शाता एक चित्रण (thebreakthrough)
4. सर्दी के दौरान खेत में चल रहे किसान को दर्शाता एक चित्रण (Pxfuel)
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